इंडिया, भारत, हिंदुस्तान, कहां से आए ये नाम?
नाम के पीछे इतिहास क्या है?
भारत इंडिया और हिंदुस्तान. ये तीन नाम जब लिए जाते हैं. हम सब के दिमाग में एक तस्वीर उपजती है. एक तस्वीर जो एक नक़्शे, एक झंडे, और कुछ प्रतीकों को मिलकर बनती है. कमाल की बात ये है कि इस तस्वीर का एक नाम भी है जो तस्वीर का ही हिस्सा है. नाम हटा दिया जाए तो तस्वीर बदल जाएगी. तर्क के लिए आप कह सकते हैं, पानी को आग कह दिया जाए तो पानी का नेचर नहीं बदलता. इसलिए नाम से क्या ही फर्क पड़ता है. लेकिन फर्क पड़ता है. आपको किसी और नाम से बुलाया जाए, तो आपको वो नाम अपना नहीं लगेगा. हालांकि इसका ये भी मतलब नहीं कि एक वस्तु जीव या इकाई के एक से ज्यादा नाम नहीं हो सकते. आप रमेश भी हो सकते हैं , और चिंटू भी. और सोना बेबी भी. तो इसी बात से अपन चलते हैं अपने इस सवाल पे कि क्या एक देश के एक से ज्यादा नाम हो सकते हैं?
क्या एक नाम दूसरे से ज्यादा जरुरी होता है? इन्हीं सब सवालों की छाया में आज बात करेंगे इस देश के नामों की.(rename india)
जिस देश को हम इंडिया भारत या हिंदुस्तान कहते हैं. समय और काल में उसे और कई नामों से जाना जाता रहा है. मसलन अशोक के शिलालेखों में जंबूद्वीप नाम का जिक्र मिलता है. हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में भी जम्बूद्वीप का उल्लेख है. हालांकि जम्बूद्वीप का संबंध पूरे महाद्वीप से था या एक खास देश से. ये पक्का नहीं कहा जा सकता. इस महाद्वीप में काले जामुनों की बहुतायत थी. शायद इसी कारण इसे जम्बूद्वीप कहा जाता था. नाम और भी थे. (india and bharat)
तिब्बत के लोग इसे ग्यागर और फाग्युल कहकर बुलाते थे. वहीं चीन के लोग अलग अलग समय में इसे तियांजु और जुआंदु और येंदु नाम से बुलाते रहे. इसके अलावा आर्यों के कारण इसे आर्यावर्त नाम भी मिला. हालांकि जो नाम सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जाता था, खासकर यहां रहने वाले लोगों के द्वारा, वो भारत था.
भारत- ये नाम कैसे पड़ा?इसको लेकर कई अलग अलग मत हैं. मसलन सबसे फेमस कहानी है राजा भरत की. जिनका जिक्र महाभारत के आदिपर्व में मिलता है. कहानी यूं है कि महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की एक बेटी हुई. नाम था शकुंतला. शकुंतला और हस्तिनापुर के महाराज दुष्यंत का गंधर्व विवाह हुआ. उनकी एक संतान हुई, भरत, जो आगे जाकर हस्तिनापुर के महाराज बने. इन्हीं भरत ने एक विशाल भूखंड पर लम्बे समय तक राज किया. और उन्हीं के नाम पर उनके राज्य का नाम भारतवर्ष पड़ा.
इसके अलावा भारत नाम का जिक्र हिंदुओं के सबसे पुराने ग्रन्थ- ऋग्वेद में मिलता है. एकदम ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता लेकिन ऋग्वेद के बारे में माना जाता है कि इसकी रचना ईसा से 1500 से 1200 साल पहले हुई थी. ये हड़प्पा संस्कृति के अंत और वैदिक काल के शुरुआत का समय है. इतिहासकार रणबीर चक्रवर्ती अपनी किताब, एक्सप्लोरिंग अर्ली इंडिया में लिखते हैं,
ऋग्वेद में करीब 300 कबीलों का जिक्र आता है. इनमें प्रमुख थे पुरु, यदु, अनु, द्रुह्यु और तुर्वासा. इनके अलावा एक और कबीला था जिन्हें भारत कहते थे. इस कबीले के लीडर या राजा का नाम सुदास था. ऋग्वेद में एक लड़ाई का जिक्र है. जिसे दाशराज्ञ युद्ध या 'दस राजाओं का युद्ध'- इस नाम से जाना जाता है. इस लड़ाई का स्थान रावी नदी के किनारे था. युद्ध में एक तरफ राजा सुदास थे, और दूसरी तरफ दस कबीले. जीत राजा सुदास की हुई. जिसके बाद सिंधु नदी के आसपास एक बड़े भूभाग पर भारत कबीले का अधिकार हो गया. ये भी माना जाता है कि यही भारत कबीला आगे गंगा के तटों तक गया. और इसमें कई सारे कबीलों का मिश्रण हो गया. जो आगे जाकर कुरु कहलाए. चूंकि भरतवंशी सबसे ज्यादा ताकतवर थे. इसलिए उनका राज्य भारत कहलाया.
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वेदों के अलावा कई पुराणों में भी भारत नाम का जिक्र है. मसलन विष्णु पुराण का एक श्लोक कहता है,
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः॥
समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो देश है, उसे भारत कहते हैं. इस श्लोक की खास बात ये है कि ये भारत नाम को एक सीमा से जोड़ता दिखाई देता है. दरअसल वैदिक काल यानी ईसा पूर्व 1500 से 1000 ईसा पूर्व में भारतीय महाद्वीप की सभ्यता सिंधु नदी के इर्द गिर्द सिमटी हुई थी. वैदिक काल के अंतिम दिनों में लोगों ने गंगा के तटों की ओर रुख किया. पुरातत्वविदों खुदाई में जो अवशेष मिले हैं. वो इस समय का बहुत सीमित ब्यौरा देते हैं. इसलिए इस काल में जिसे भारत कहा गया है, उस देश या इकाई का सीमा विस्तार कितना था, ये पता लगाना काफी मुश्किल है.
पुरातत्वविद BB लाल इस विषय में लिखते हैं, "ये ऐसा है जैसे आप किसी जानवर की पूंछ देखकर उसके बाकी शरीर का पता लगाने की कोशिश कर रहे हों".
भारत के बाद अब बात बाकी दो नामों की. हिंदुस्तान और इंडिया. इन दोनों नामों का आपस में गहरा रिश्ता है. क्योंकि दोनों नामों के मूल में एक ही नाम है- सिंधु. सिंधु नदी का नाम है. जिसके आस पास सभ्यता का विकास शुरू हुआ. सिंधु से ही हिन्दू शब्द बना. कैसे?
सिंधु, हिंदू और हिंदुस्तानईसा से कुछ 528 साल पहले ईरान, जिसे तब फारस कहा जाता था. वहां डेरियस नाम के राजा का शासन था. डेरियस के लिखे कुछ शिलालेखों में हिन्दू शब्द का जिक्र है. इन शिलालेखों के अनुसार डेरियस ने अपना राज्य सिंधु की तलहटी तक फैला लिया था. और इसी इलाके को वो हिंदू कहा करता था. दरअसल फारसी भाषा में स का उच्चारण नहीं होता था. इसलिए सिंधु बन गया हिंदू. ऐसे ही कुछ और शब्दों में भी अंतर आया, मसलन, सप्ताह बन गया हफ्ता.
बहरहाल पर्शिया में ही हिंदू के साथ स्तान जोड़कर उसे हिंदुस्तान बना दिया गया. कुछ उसी तरह जैसे तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि देशों के नाम बने. लम्बे समय तक हिंदू शब्द धार्मिक नहीं बल्कि भौगोलिक पहचान के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा. आम मान्यता है कि उत्तर से आए मुस्लिम आक्रमणकारियों ने दूसरे धर्म के लोगों को हिंदुस्तानी कहना शुरू किया. लेकिन ये भी सच नहीं है. पहला तो जैसा बताया हिंदुस्तान ये नाम फारस से आया था. इस्लाम की स्थापना से बहुत पहले. दूसरा जिन मुस्लिम राजाओं ने उत्तर भारत पर हमला किया. वो यहां के दूसरे मुस्लिम शासकों के लिए हिंदुस्तानी शब्द का इस्तेमाल करते रहे.
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मसलन बाबरनामा में बाबर ने लिखा है. सरहिंद के पास एक हिंदुस्तानी आया और उसने मुझे बताया कि वो सुल्तान इब्राहिम लोदी का दूत है. ऐसे ही खानवा में जब बाबर और राणा सांगा की लड़ाई हुई. कई मुस्लिम सरदारों ने बाबर का साथ छोड़ दिया. इस पर बाबर ने लिखा, "हैबत खान संभल चला गया है. हिंदुस्तानी साथ छोड़कर जा रहे हैं".
मुगलकाल में हिंदुस्तान नाम का प्रचलन काफी बड़ा लेकिन बहुताबहुत उत्तर भारत के लिए इस शब्द का इस्तेमाल होता था . जबकि विंध्याचल के नीचे के इलाके को दक्कन कहकर पुकारते थे. ये बार कई मुग़ल दस्तावेजों में दिखाई देती है. फिर चाहे हो अकबर या औरंगजेब. सब खुद को हिंदुस्तान का बादशाह मानते थे. लेकिन साथ ही चाहते थे कि दक्कन भी पूरी तरह उनके कब्ज़े में आ जाए. हिंदुस्तान शब्द का एक और महत्व ये है कि हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रमुख विचारक विनायक दामोदर सावरकर भारत नाम के बजाय हिंदुस्तान को प्राथमिकता देते दिखाई देते हैं.
सावरकर के अनुसार हिंदू और हिंदुस्तान, सिंधु नदी और सिंधु यानी सागर के बीच रहने वाले लोगों को सबसे बेहतर डिस्क्राइब करते हैं. सावरकर कहते हैं, सिंधु नाम आर्यों ने दिया था. लेकिन हो सकता है स्थानीय कबीले इससे मिलता जुलता नाम इस्तेमाल करते हों. और यही नाम आर्यों ने इस्तेमाल कर लिया हो.
इंडिया नाम कहां से आया?पर्शिया में हिंदू शब्द कैसे पंहुचा ये हमने देखा. ईसा से कुछ 450 साल पहले पर्शिया और ग्रीस के बीच युद्ध की शुरुआत हुई. कुछ वक्त तक पर्शिया ने ग्रीस पर शासन किया. इसके डेढ़ सौ साल बाद सिकंदर के वक्त में ग्रीस ने पर्शिया पर हमला किया. वो सिंधु नदी के किनारे तक आ गया. पर्शिया के कारण ग्रीक्स ने सिंधु नदी के पार का इलाका हिंद जाना. ग्रीक भाषा में ह की ध्वनि साइलेंट होती थी . इसलिए उनके लिए ये नाम बन गया इंड. यही जाकर इंड, इंडस, इंडिया, इंडिका और इंडिया बन गया. लैटिन भाषा में भी यही नाम प्रचलित हुआ. और बाकी यूरोपीय भाषा भी भारत के लिए इंडिया का इस्तेमाल करने लगी. यानी ये ग्रीसवासी थे जिन्होंने भारत को इंडिया नाम दिया. बाकायदा ग्रीस इतिहासकार मेगस्थनीज़ ने इंडिका नाम की एक किताब भी लिखी थी. जिसमें उसने मौर्य साम्राज्य का बखान किया है.
इसके अलावा इंडिया का जिक्र ग्रीक इतिहासकार हेरोडोटस ने भी किया है. बाकायदा हेरोडोटस ने तो बातें मिर्च मसाला लगाकर लिखा है. मसलन उसने लिखा है कि इंडिया में सोना ढूंढने वाली चीटियां हुआ करती थीं. जो लोमड़ी से बड़े आकार की होती थीं और जमीन के अन्दर से सोना निकालकर ले आती थी. इनके अलावा रोम का भी भारत से व्यापार का रिश्ता था. रोमन लेखक प्लिनी ने इंडिया के बारे में लिखा, 'ये वो जगह जहां सारी दुनिया का सोना इकट्ठा होने के लिए जाता है.'
ग्रीस और रोम के बाद अब देखिए कि मॉडर्न यूरोप के लोगों के बीच इंडिया नाम कैसे प्रचलित हुआ. आपने नोटिस किया होगा, यूरोप की जितनी ट्रेडिंग कंपनियां भारत आई हो. फिर चाहे वो फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी हो, या ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, या डच ईस्ट इंडिया कंपनी. इन सभी के नाम में ईस्ट इंडिया लगा होता था. बजाय सिर्फ इंडिया. ऐसा क्यों?
ये सब हुआ क्रिस्टफर कोलंबस के कारण. कोलंबस ने अमेरिका की खोज की लेकिन समझा कि उसने इंडिया ढूंढ लिया है. इसी कारण अमेरिका के मूल निवासियों को रेड इंडियन बुलाया जाता है. कोलंबस सबसे पहले कैरेबियन सागर में बने एक द्वीप पर उतरा. उसने इसे नाम दिया इंडीज. बाद में जब यूरोप वासियों को कोलंबस की गलती का अहसास हुआ. उन्होंने इंडीज़ का नाम बदलकर वेस्ट इंडीज़ कर दिया. और इस तरह भारत, जो सिर्फ इंडिया होना चाहिए था, ईस्ट इंडीज के नाम से जाना गया. इसके बाद जितनी भी ट्रेडिंग कम्पनी भारत में आई सबने अपने नाम में इंडिया के साथ साथ ईस्ट भी लगाया.
इंडिया नाम अंग्रेजों के समय तक आधिकारिक नाम के रूप में इस्तेमाल होता रहा. एक बात नोट करने लायक है कि श्रीलंका, म्यांमार, जैसे देशों ने अपने कोलोनियल नाम त्याग दिए. लेकिन आजादी के बाद भी भारत इंडिया नाम का संवैधानिक इस्तेमाल करता रहा. बाकायदा इस बात को लेकर खूब हंगामा भी हुआ. क्योंकि आजादी से पहले भारत पाकिस्तान को मिलाकर इंडिया कहा जाता था. पाकिस्तान ने नया नाम चुन लिया. लिहाजा इंडिया नाम से उनका किनारा हो गया. जिन्ना को लगा था, इंडिया नाम किसी को नहीं मिलेगा. लेकिन जब उन्हें पता चला कि इंडिया को अभी भी इंडिया कहा जाएगा. तो वो बहुत नाराज़ हुए. सितमबर 1947 में, बंटवारे के आठ हफ्ते बाद जिन्ना ने लुई माउंटबेटन को ख़त लिखकर ऐतराज़ भी जताया. भारत में नए संविधान बनाए जाने की प्रक्रिया चल रही थी. इसलिए बात माउंटबेटन से अधिकार से बाहर थी. ये संविधान सभा को चुनना था कि वो इंडिया नाम चुने या नहीं.
नाम की बात भारतीय संविधान के पहले ही आर्टिकल में की गई है. वहां लिखा है, 'इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा." ये पहला आर्टिकल है. लेकिन अचरज होगा ये जानकर कि ‘नेम एंड टेरिटरी ऑफ द यूनियन’- इस टॉपिक पर बहस 17 सितम्बर 1949 को हुई. आख़िरी ड्राफ्ट पेश होने से महज दो महीने पहले.
एक और कमाल की बात ये थी कि ओरिजिनल ड्राफ्ट में भारत नाम का कहीं जिक्र ही नहीं था. लेकिन फिर आख़िरी समय में भारत शब्द जोड़ दिया गया. कैथरीन क्लेमेंटिन-ओझा ने ओपन एडिशन जर्नल में छपे एक रिसर्च पेपर में संविधान सभा में हुई बहस का ब्यौरा दिया है. ओझा लिखती हैं, उस रोज़ सभा ख़त्म होने में आधे घंटे का समय बचा था. और डॉक्टर आम्बेडकर चाहते थे कि नया आर्टिकल वन में जो बदलाव हुआ, वो उसी दिन स्वीकार कर लिया जाए. लेकिन संविधान सभा के बाकी कई सदस्यों का मानना था कि इस मुद्दे पर बहस के लिए अगले दिन का पूरा समय लिया जाए.
संविधान सभा में बहसअगले दिन बोलने वालों में सेन्ट्रल प्रोविंस के सेठ गोविन्द दास, यूनाइटेड प्रोविंस से कमलापति त्रिपाठी, श्री राम सहाय, हरगोविन्द पंत और फॉरवर्ड ब्लॉक के हरि विष्णु कामत प्रमुख थे. कामत ने सबसे पहले बोलना शुरू किया. उनका प्रस्ताव था , 'इंडिया, जो कि भारत है' के बदले होना चाहिए - "भारत, जो अंग्रेज़ी भाषा में इंडिया कहलाता है"
सेठ गोविन्द दास का प्रस्ताव था- "भारत जो विदेशों में इंडिया के नाम से जाना जाता है".
अगले नंबर पर कमलापति त्रिपाठी बोले. कांग्रेस के नेता जो आगे जाकर UP के मुख्यमंत्री बने. उन्होंने कहा, 'इंडिया जो कि भारत है' के बदले 'भारत जो कि इंडिया है' होना चाहिए.
इन सभी लोगों ने क्रम में बदलाव का प्रस्ताव दिया और अपने अपने तर्क भी रखे. तर्क कमोबेश इतिहास से जुड़े थे. जिनकी हमने ऊपर चर्चा की है. लेकिन किसी ने भी इंडिया नाम हटाने की बात नहीं कही. सिवाय हरगोविंद पंत के. पंत चाहते थे भारत का नाम भारतवर्ष होना चाहिए, और कुछ नहीं.
इस मुद्दे पर बिहार से संविधान सभा के सदस्य मुहम्मद ताहिर का बयान का भी काबिले गौर है. संविधान का आखिरी ड्राफ्ट पास होने से दो दिन पहले, 24 नवम्बर को मुहम्मद ताहिर डॉक्टर आम्बेडकर पर भड़क गए थे. उन्होंने कहा , "डॉक्टर आम्बेडकर से अगर कोई उनके जन्म स्थान के बारे में पूछे तो उन्हें कहना पड़ेगा, "मैं इंडिया से हूं जो कि भारत है. क्या सुन्दर उत्तर है". बहरहाल इस पूरी बहस का नतीजा ये निकला कि संविधान सभा में सभी संसोधनों पर वोटिंग हुई. लेकिन अंत में सभी अस्वीकार कर दिए गए. 'इंडिया जो कि भारत है' इसी रूप में स्वीकार कर लिया गया.
संविधान निर्माताओं ने अपने विवेक से जो भी निर्णय लिया. वो लागू हुआ. इस निर्णय को कई लोग सही और गलत ठहरा सकते हैं. और वक्त वक्त पर ऐसा किया भी गया है. साल 2004 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में पूर्व सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने एक प्रस्ताव पेश किया था. इसमें कहा गया कि संविधान में संशोधन कर "इंडिया, दैट इज भारत" के बदले "भारत, दैट इज इंडिया" किया जाना चाहिए. सदन में ये प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित भी हो गया. इसके अलावा साल 2020 इस बाबत सुप्रीम कोर्ट में एक PIL भी दाखिल हुई थी. जिसे कोर्ट ने ये कहते हुए खारिज कर दिया था कि संविधान में दोनों नामों को जगह मिली हुई है.
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