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धर्म बदलने के क्या-क्या तरीके हैं? कोई पुराने धर्म में वापसी करना चाहे तो क्या करना होता है?

धार्मिक और कानूनी, दोनों तरीके जान लीजिए

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भारत का संविधान अपनी मर्जी के धर्म को मानने और उसकी प्रैक्टिस करने की आजाादी देता है.
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अमित
4 दिसंबर 2020 (Updated: 4 दिसंबर 2020, 04:28 IST)
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अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए
गोपालदास नीरज ने जब ये पंक्तियां लिखी होंगी तो उन्होंने एक ऐसे धर्म के बारे में जरूर सोचा होगा, जिसमें सब कुछ परफैक्ट हो. खैर जो हो न सका, उसकी बात क्या करना. आज बातें मजहब यानी अपने मन के धर्म को मान लेने की. भारतीय संविधान के आर्टिकल 25 से 28 में धार्मिक आजादी को मूल अधिकारों में रखा गया है. मतलब जिसकी जो मर्जी हो, वो धर्म माने और उसकी प्रैक्टिस करे. जरूरत महसूस होने पर धर्म बदल ले. न जरूरत हो तो किसी भी धर्म को न माने. इस आजाद ख्याल संविधान और इन दिनों गरमाए धर्मांतरण विरोधी कानूनों की छाया में आज जानते हैं किसी भी धर्म को ग्रहण करने का पूरा सिस्टम क्या है.
धर्म बदलने के कितने तरीके हैं मुख्यतः धर्म बदलने के दो तरीके हैं.
# कानूनन धर्म बदलना
# धार्मिक स्थल पर जाकर धर्म बदलना
सबसे पहले कानूनी तरीका यह बहुत आसान है.
# सबसे पहले धर्म को बदलने का एक एफिडेविट बनवाना होगा. इसे शपथपत्र भी कहते हैं. यह किसी भी कचहरी में या वकील के पास जाकर बनवाया जा सकता है. इसमें अपना बदला हुआ नाम, बदला हुआ धर्म और अड्रेस लिखना होता है. सहूलियत के लिए आपसे अड्रेस प्रूफ और पहचान पत्र मांगा जा सकता है, तो उसे भी साथ ले लें. इसे नोटेरी अटेस्ट करवा लिया जाता है. यह सब काम 200 से 250 रुपए में हो सकता है.
# इसके बाद एक ऐसे राष्ट्रीय दैनिक अखबार, जिसका सर्कुलेशन अच्छा (2-3 लाख) में हो, उसमें अपने धर्म परिवर्तन की जानकारी का विज्ञापन छपवा लें. इसमें 2000 रुपए तक का खर्च आ सकता है.
# अब चूंकि आप अपना धर्म और नाम सब बदल चुके हैं, तो सरकारी तौर पर भी इसे दर्ज कराना बेहतर रहता है. इसके लिए गजट ऑफिस में एप्लिकेशन देना होता है. हर प्रदेश का अपना गजट ऑफिस होता है. अमूमन ये काम जिलाधिकारी कार्यालयों से होता है, लेकिन केंद्र शासित प्रदेशों में अलग से ऑफिस होता है. जैसे दिल्ली के सिविल लाइंस में सरकारी गजट ऑफिस है. एप्लीकेशन लिखकर उसके साथ बाकी डॉक्युमेंट्स जैसे एफिडेविट, अखबार में छपवाया गया विज्ञापन और पासपोर्ट साइज के 2 फोटो ले जाने होते हैं.
# इसके बाद अपने धर्म परिवर्तन पर सरकारी मोहर लगने का इंतजार करना होता है. सरकारी समयसीमा 60 दिन की है. इसके बाद नया नाम धर्म के साथ गजट में दर्ज हो जाता है. अपनी एप्लिकेशन के स्टेटस को इस वेबसाइट 
पर चेक किया जा सकता है.
# जैसे ही गजट में आपका बदला हुआ नाम आ जाएगा, समझ लीजिए आप आधिकारिक तौर पर मनचाहे धर्म में शामिल हो चुके हैं.
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कानूनी तरीके से कोई भी अपना धर्म आसानी से बदल सकता है.

धार्मिक स्थल पर धर्म बदलना
यह मामला तकनीकी है.
इसमें हर धर्म के धार्मिक स्थल और संस्थान अपने हिसाब से कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्से में अलग-अलग तरह की प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है. मिसाल के तौर पर जिस तरह से ईसाई धर्म का पालन उत्तर भारत में किया जाता है, जरूरी नहीं कि वैसा दक्षिण भारत में भी किया जाए. इसी तरह की बात इस्लाम धर्म पर भी लागू होती है. अलग-अलग जगहों से संस्थान अपनी तरह से धर्म में शामिल करने का काम करते हैं. हम वह जानकारी दे रहे हैं जो धार्मिक स्थलों और कर्मकांड से जुड़े लोगों ने उपलब्ध कराई है.
हिंदू धर्म
अगर कोई हिंदू धर्म ग्रहण करना चाहे तो इसके लिए आधिकारिक तौर पर हर मंदिर में कोई सिस्टम नहीं है. जब हमने उत्तर भारत के कुछ मंदिर के पुजारियों से बात की तो उन्होंने कहा कि कोई भी इच्छुक शख्स का शुद्धिकरण संस्कार करके हम उसे हिंदू बना सकते हैं. हालांकि सांस्थानिक तौर पर विश्व हिंदू परिषद और आर्य समाज मंदिर हिंदू धर्म ग्रहण करने के लिए बेहतर हैं. कोई भी व्यक्ति विश्व हिंदू परिषद या आर्य समाज के मंदिर में जाकर हिंदू धर्म स्वीकार करने की इच्छा जता सकता है. इसके लिए पूजा-पाठ का एक प्रोटोकॉल बनाया गया है. इसका पालन करने के बाद कोई भी शख्स हिंदू धर्म में शामिल हो सकता है.
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हिंदू धर्म में बदलने का काम औपचारिक तरीके से विश्व हिंदू परिषद और आर्य समाज के मंदिर करते हैं.

इस्लाम इस्लाम में शामिल करने की भी कोई आधिकारिक प्रक्रिया तो नहीं है, लेकिन लोकल लेवल पर मस्जिद इसका इंतजाम करती हैं. अगर कोई धर्म ग्रहण करने की इच्छा जताता है तो उसे कलमा पढ़ना होता है. मस्जिद का मौलवी नमाज़ और अज़ान से जुड़ी तकनीकी बातों की जानकारी उपलब्ध करा देता है. इस्लामिक शिक्षा से जुड़े एक जानकार ने बताया कि पहले आमतौर पर जब कोई इस्लाम स्वीकार करता था, तो उसके धर्म स्वीकार करने की जानकारी मौलवी मस्जिद में तकरीर के दौरान देता था. इससे वह औपचारिक तरीके से मुस्लिम समाज का हिस्सा बन जाता था. हालांकि अब विवाद की चिंता से लोग ऐसा करने से बचते हैं. इस्लाम कबूल करने के लिए ऐसा जरूरी नहीं है कि मस्जिद जाया ही जाए. घर पर रहकर भी इबादत की जा सकती है.
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किसी मस्जिद में जाकर कलमा पढ़ने के साथ इस्लाम ग्रहण करने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है.

सिख सिख धर्म धारण करने का तरीका भी काफी आसान है. अपने करीबी गुरुद्वारे के ग्रंथी से संपर्क करके धर्म स्वीकार करने की इच्छा जताई जा सकती है. इसके बाद वह इच्छुक व्यक्ति को धर्म से जुड़ी मूल बातों का पालन करने को कहते हैं. इसमें केश बढ़ाना और कड़े को धारण करना शुरुआती प्रक्रिया होती है. जब ग्रंथी इस बात को लेकर निश्चिंत हो जाते हैं कि इच्छुक इंसान सिख धर्म की मूल भावना को बखूबी समझ चुका है, तब अमृत छकने की प्रक्रिया शुरू होती है. इसे गुरुद्वारे के पंज प्यारे पूरी करते हैं. इसके बाद सिख धर्म धारण करने वाले को कछैरा, कृपाण और कंघा धारण करने को दिया जाता है. यह एक तरह से सिख धर्म स्वीकार करने वाले की सामाजिक एंट्री होती है.
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सिख धर्म स्वीकार करने की शुरुआत गुरुद्वारे जाकर केश और कड़े को धारण करने से शुरू होती है.

ईसाई बाकी धर्मों से अलग इस धर्म की एक मान्यता इसे खास बनाती है. ईसाई धर्म में माना जाता है कि कोई भी पैदाइशी ईसाई नहीं होता. उसे ईसाई बनने के लिए बापतिस्मा की प्रक्रिया से गुजरना होता है. कोई भी नजदीकी चर्च में जाकर ईसाई बनने की इच्छा पादरी से जता सकता है. पादरी उसे धर्म की मूल बातों को समझने और प्रैक्टिस करने के लिए कहता है. जब पादरी इस बात को लेकर निश्चिंत हो जाते हैं कि धर्म की समझ और भावना धर्म ग्रहण करने वाले को समझ में आने लगी है, तब उसका बापतिस्मा होता है. यह एक खास रिवाज है, जो औपचारिक रूप से धर्म ग्रहण करने की रस्म को पक्का कर देता है. इसके बाद चर्च अक्सर धर्म में शामिल हुए लोगों का हिसाब भी रखता है. अगर कभी जरूरत पड़े तो चर्च धर्म को लेकर सर्टिफेकट भी इशू कर देते हैं.
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ईसाई धर्म में औपचारिक प्रवेश बापतिस्मा की रस्म के बाद ही होता है.

अगर कोई अपने धर्म में वापसी करना चाहे तो क्या होता है?
हर धर्म इस तरह की चीजों को लेकर संवेदनशील है. हमने चारों धर्म से जुड़े लोगों से इसे पर चर्चा की, लेकिन सभी का जवाब ऐसे लोगों को लेकर काफी नकारात्मक ही मिला. धार्मिक शिक्षा से जुड़े जानकार बताते हैं कि पहले किसी धर्म को छोड़ देना, और फिर उसमें वापसी करना अमूमन सामाजिक तौर पर दिक्कत भरा साबित होता है. हालांकि कोई भी सरकारी तरीके से ऐसा करने के लिए आजाद है. धर्म में दोबारा जाने की प्रक्रिया अलग से नहीं होती, बल्कि जिस तरह से धर्म में नए आए शख्स को लेकर प्रक्रियाएं होती हैं, उस प्रक्रिया से ही दोबारा धर्म में शामिल कराने की प्रक्रिया है. हालांकि यह पूरी तरह से उस धार्मिक संस्थान और धार्मिक कर्मकांड से जुड़े लोगों पर ही निर्भर करता है कि वह धर्म में वापस आने की प्रक्रिया में किसी को शामिल करवाना चाहते हैं या नहीं.
धर्म बदलने के बाद जाति का क्या होता है?
संविधान के तहत आप अपना धर्म तो बदल सकते हैं लेकिन जाति बदलने का कोई प्रावधान नहीं है. मिसाल के तौर पर अगर कोई अनुसूचित जाति का शख्स सिख धर्म ग्रहण कर लेता है तो उसे सरकारी तौर पर अनुसूचित जाति के तौर पर मिलने वाली सुविधाएं मिलती रहेंगी.
2018 में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अरुण मिश्रा और एमएम शांतानगौदर की बेंच ने एक महिला टीचर को केंद्रीय विद्यालय में मिले एससी कैटेगिरी रिजर्वेशन को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने रिजर्वेशन को इस आधार पर सही मानने से इंकार कर दिया कि उसने अनुसूचित जाति के व्यक्ति से शादी की है. कोर्ट ने कहा
एक इंसान की जाति को बदला नहीं जा सकता, यहां तक कि विवाह के बाद भी नहीं.

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