The Lallantop
Advertisement

आसान भाषा में: शॉपिंग की लत लगने के पीछे क्या 'साइंस' है?

चाहे घर में 10 जूतें हो, लेकिन नए वाले के डिज़ाइन पर लार चुआने लगते हैं. ये कहानी सिर्फ सामान खरीदने की नहीं है, बल्कि उन साइकोलॉजिकल ड्राइवर्स की है जो हरियाणा रोडवेज़ से भी हैवी ड्राइवर हैं और जो सदियों से हम में बसे हुए हैं.

pic
आकाश सिंह
16 सितंबर 2024 (Published: 08:48 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
Advertisement

100 साल पहले के हैदराबाद के बाज़ार हों, या 21 वीं सदी का मॉल, या ऑनलाइन लगने वाली महामेगा महाठगिनी सेल. नई चीज़ दिखते ही पेट में जो तितलियां फुदकने लगते हैं, विज्ञान की भाषा में उसे साइकोलॉजिकल ड्राइव कहते हैं. इन तितलियों का पेट कभी नहीं भरता. और इसी के चलते, नए आईफोन में नए के नाम पर चाहे सिर्फ इमोजी ही क्यों न हो, हमें लगता है, ये नहीं तो कुछ नहीं. चाहे घर में 10 जूतें हो, लेकिन नए वाले के डिज़ाइन पर लार चुआने लगते हैं. ये कहानी सिर्फ सामान खरीदने की नहीं है, बल्कि उन साइकोलॉजिकल ड्राइवर्स की है जो हरियाणा रोडवेज़ से भी हैवी ड्राइवर हैं और जो सदियों से हम में बसे हुए हैं. आसान भाषा में के इस एपिसोड में खरीदारी की इसी साइकोलॉजी को डीकोड करते हुए, आज हम जानेंगे,  शॉपिंग या खरीदारी से हमें अच्छी वाली फीलिंग क्यों आती है? और कब ये मासूम खुशी एक लत में बदल जाती है?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement