ऑफिस जाने में बहुत जोर आता है, सब इस मछली का किया धरा है!
आज हम पीछे चलते हैं. बहुत पीछे, करीब 450 करोड़ साल पीछे. ऑफिस का काम करते हुए कभी इस बारे में सोचा जाए तो कीबोर्ड पर थिरकती उंगलियां कुछ देर के लिए रुक जाएंगी.
एक मछली ने खुराफात की. चुपचाप जल की रानी बनी रहती. पर नहीं, उसने पानी से बाहर निकलने की सोची. और उस चिरान (बहुत पुराना) मछली की वजह से आज हमको दफ्तर जाना पड़ता है. आज हम पीछे चलते हैं. बहुत पीछे, करीब 450 करोड़ साल पीछे. बात उस वक्त की, जिसकी वजह से हमें रोज सुबह उठना पड़ता है. सफर करना पड़ता है, हिंदी और अंग्रेजी दोनों वाला. जख्मों की नुमाइश करनी पड़ती है. नहीं तो हम कह सकते थे, हम कि दुख ओढ़ के ख़ल्वत में पड़े रहते हैं. हम ने मैनेजर के सामने ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की.
ये कहानी है दफ्तर से भी पहले की जब हमारी धरती बनी. फिर चलेंगे वहां, जहां पहला जीवन फूटा. फिर कहानी पहली कोशिका के बनने की. बैक्टीरिया से उस पहली मछली तक जिसने पानी से बाहर कदम रखा, और फिर विशालकाय डायनासोर तक. जीवन की कड़ियां धरती में कैसे जुड़ीं और जुड़ती चली गईं. ये सब बात करते हुए पहुंचेंगे पहले इंसान तक, धरती के पहले इंसान तक.
बात होगी लूसी की. इस कंकाल को क्यों इतना खास माना जाता है? लूसी के साथ जिक्र होगा इंसानों के दो पैरों में चलने की शुरुआत का. इससे क्या फर्क पड़ा? इसे विकास के क्रम में इतना अहम क्यों माना जाता है? साथ ही बात होगी उस पहली मूर्ति की जो इंसानी कल्पना का सबूत देती है. इन सब घटनाओं के बारे में पता कैसे चला. कैसे अनुमान लगाए गए कि ऐसा हुआ होगा. मानव सभ्यता के शुरुआत की सारी बात.
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो, साल 1953. ग्रैजुएट स्टूडेंट स्टैनली मिलर एक खास एक्सपेरिमेंट की तैयारी में थे. उन्होंने दो फ्लास्क लिए, एक में थोड़ा सा पानी था. और दूसरे में मीथेन, अमोनिया और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसें थीं. मिलर पुरातन धरती के वातावरण की नकल करने की कोशिश में थे. इसीलिए इन खास केमिकल्स का इस्तेमाल किया जा रहा था. प्राचीन धरती की नकल करने के लिए मिलर ने एक और खास चीज जोड़ी. बिजली. आगे एक्सपेरिमेंट में इन दोनों फ्लास्क को रबर की ट्यूब से जोड़कर कई दिनों के लिए छोड़ दिया गया.
जब देखा गया तो पानी हरा-पीला सा पड़ चुका था. ये आम पानी नहीं था. इसकी जांच के बाद पता चला कि इसमें अमीनो एसिड, फैटी एसिड, शुगर और दूसरे कई कार्बनिक कंपाउंड थे. जीवन की उत्पत्ति के लिए इन्हें अहम माना जाता है. फ्लास्क के भीतर बेसिक गैसों से इन तत्वों का बनना जीवन की उत्पत्ति की तरफ पहला कदम बताया गया.
बिल ब्रायसन अपनी किताब, अ शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ नियरली एवरीथिंग में लिखते हैं, इससे खुश होकर नोबेल पुरस्कार विजेता सुपरवाइजर, हैरल्ड युरी ने कहा,
“अगर भगवान ने इस तरह से काम नहीं किया था, तो वो एक बड़ा दांव चूक गए.”
कहने का मतलब जीवन की उत्पत्ति का यही एक सुगम तरीका नजर आया. उस वक्त की प्रेस ने तो इस एक्सपेरिमेंट के बारे में ऐसे लिखा, मानों फ्लास्क हिलाते ही कोई जीव पैदा हो जाएगा. लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता पता चला कि यह इतना आसान नहीं है. सिर्फ जरूरी कैमिकल्स को मिलाकर, जीवन बनाना अभी तक संभव नहीं है.
मिलर के एक्सपेरिमेंट में अमीनो एसिड तो बने. जिन्हें जीनव के बिल्डिंग ब्लाक कहा जाता है. अपनी जबान में कहें तो जिंदगी की बुनियादी ईंटें. इन्हीं से तमाम प्रोटीन बनते हैं. पर मसला अमीनो एसिड बनाने का नहीं, मसला है प्रोटीन बनाने का. किसी जंजीर की तरह अमीनो एसिड एक के बाद एक जुड़कर प्रोटीन बनाते हैं. पर 3-4 सौ करोड़ साल पहले ये ईंटें कैसे जुड़ीं? कैसे इनमें जीव फूटा इस बात के पुख्ता सबूत नहीं मिलते. रिचर्ड डॉकिंस के शब्दों में कहें तो,
“जिन चीजों से जीवन बना है, उनमें कुछ खास नहीं है. जीवन अणुओं यानी मॉलीक्यूल्स का समुच्चय भर है जैसे कि बाकी की चीजें हैं.”
खैर जीवन रैंडमली बना, या इसके पीछे दूसरे कारण थे. इस पर कई मत हैं, लेकिन सबूत कम. हालांकि एक चीज के सबूत जरूर मिलते हैं कि पहला जीवाश्म कितना पुराना हो सकता है.
पहली छापसबसे पुराने पत्थरों की उम्र 380 करोड़ साल मानी जाती है. वहीं हैरान कर देने वाली बात ये है कि ऑस्ट्रेलिया में मिला एक जीवाश्म करीब 350 करोड़ साल पुराना है. यह फॉसिल या जीवाश्म था एक सायनोबैक्टीरिया का. कहें तो एक प्राचीन कोशिका वाले जीवों का. इसी के आधार पर माना जाता है कि जीवन 370 करोड़ साल पहले शुरू हुआ होगा. पर आज जैसे माहौल में नहीं बल्कि ज्वालामुखी के गर्भ में.
जीवन कहां पनपा इसे लेकर कुछ संभावनाएं जताई जाती हैं. माना जाता है या तो समंदर या जमीन पर ज्वालामुखी में हुई हलचल ने इसकी जमीन तैयार की होगी. गर्मी और पानी की मौजूदगी में जीवन बनना शुरू हुआ होगा. आज भी ऐसे गर्म और खतरनाक माहौल में छोटे एक कोशिका वाले जीव खूब फलते-फूलते हैं. फिर बनता है माइटोकांड्रिया जिसे विज्ञान की किताबों में पावर हाउस कहा जाता है. इसी की वजह से जटिल जीवन संभव हो पाया क्योंकि ये ऊर्जा बना सकता था.
वहीं दूसरी तरफ पौधों में भी ऐसा ही कुछ हुआ और क्लोरोप्लास्ट बने. ये किराएदारों की तरह थे जो कोशिका के घर में रहने लगे. खैर दोनों मिले तो काम आसान हुआ. एक तरफ सूरज की रौशनी से ऊर्जा बनने लगी. दूसरी तरफ कार्बनिक खाने को भी ऊर्जा में बदला जा सकने लगा. फिर कोशिकाओं के बढ़ने की शुरुआत हुई और हवा में आई ऑक्सीजन.
सायनोबैक्टीरिया बेधड़क ऊर्जा बनाने लगे और फोटोसिंथेसिस का नतीजा हुआ कि वातावरण में ऑक्सीजन बढ़ी. इसे ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट कहा जाता है. वातावरण में ऑक्सीजन आई, तो इससे दूसरे तरह के जीवों का बनना शुरू हुआ. फिर करीब 54 करोड़ साल पहले दौर आया कैंब्रियन एक्सप्लोजन का. इसमें कम समय या कहें तुलनात्मक तौर पर कम समय में ही जटिल जीवन बना. कई तरह के अलग-अलग जीवों के जीवाश्म इस दौर में मिलते हैं. बहुकोशिकीय जीवों के बनने की शुरुआत हुई. आंख, शेल्स और हाथ जैसे अंगों के बनने की शुरुआत हुई. अब जीवन वो रूप लेने लगा था. जिसकी आज हमें कुछ झलक दिखती है.
इसी दौर का एक जीव एनॉमलॉकैरिस भी था जिसके जीवाश्म के आधार पर ये भी पता चलता है कि कुछ जीव इतने भी आज जैसे नहीं थे. कुछ में तो पांच आंखें थीं. सूंड जैसा मुंह था. मानों कुदरत अपनी क्रिएटिविटी दिखा रही हो. पहले ये क्रिएटिविटी पानी में थी. पर फिर जीवन ने जमीन की तरफ बढ़ना शुरू किया.
बड़ा कदमकरीब 40 करोड़ साल पहले जीवन पानी से जमीन पर आना शुरू करता है. पर इस काम में पौधे अगुआ थे और फिर उभयचर; यानी जमीन और पानी दोनों में रह सकने वाले जीव. ऐसी ही एक कहानी टिकतालिक की भी है. जो मछलियों और टैडपोल्स के बीच की कड़ी मानी जाती है.
साल 2006 में आर्कटिक कनाडा में इसका एक जीवाश्म मिला जो 37 करोड़ साल पुराना था. टेक्निकली तो इसे मछली माना जाता है जिसमें स्केल और गिल्स भी थे. पर इसके इतर इसका मुंह चपटा था. किसी मगरमच्छ की तरह. वहीं इसके फीचर देखकर कहा गया कि यह मछलियों के पूर्वजों और चार पैर वाले जीवों के बीच की कड़ी हो सकती है. कई लेखों में तो इसे खोई कड़ी बता दिया गया. पर यह किसी खोई कड़ी से ज्यादा एक बदलाव के दौर की निशानी थी कि मछलियों और चार पैर वाले जीवों के बीच कैसे जीव रहे होंगे.
इसके बाद चार पैर पर चलने वाले जीव आए और ऐसा आए कि क्या ही कहना. कुछ जैसे आसमान छूने वाले थे, कुछ टीरेक्स जैसे खूंखार. हम बात कर रहे हैं डायनासोर्स की. ये कुछ 20 करोड़ साल पहले जिस दौर में बवाल काट रहे थे, वो जुरासिक पीरियड के नाम से जाना जाता है. डायनासोर्स के अलावा धरती पर तमाम प्रजातियां बढ़ीं जिनके सबूत तमाम जीवाश्मों में मिलते हैं. पर कुछ 6 करोड़ साल पहले जीवन ने करवट ली और अंतरिक्ष का एक पिंड इनका काल बना. माना जाता है कि मेक्सिको के चिक-जुब्रैकियो-सॉरसलुब में एक उल्का पिंड टकराया.
टक्कर इतनी जोरदार थी कि करोड़ों एटम बम जितनी ऊर्जा निकली. दुनिया भर के जंगलों में आग फैली, सुनामी आई और आई न्यूक्लियर विंटर. कहें तो धरती के वातावरण में धूल की मोटी चादर की वजह से सूरज की रौशनी नहीं आ सकी और ठंड पड़ने लगी. यह त्रासदी इतनी भयंकर थी कि इसने उस वक्त की 75 फीसद प्रजातियों का अंत कर दिया. इसमें ना उड़ सकने वाले डायनासोर भी शामिल थे.
स्तनधारियों का उदयडायनासोर्स के जाने के बाद स्तनधारियों के लिए रास्ता खुला. उन्हें फलने-फूलने का मौका मिला. करीब 5 करोड़ साल पहले प्राइमेट्स बने. माने इंसानों और बंदरों जैसे जीव. फिर दौर आया लूसी का, करीब 3.5 करोड़ साल पहले. इथियोपिया में मिला एक कंकाल शायद सबसे प्रसिद्ध कंकालों में से एक होगा. क्योंकि इसे होमिनिन माना जाता है. जो इंसानी और अफ्रीकी एप्स के विकास क्रम में कहीं बीच में आते हैं. माने इंसानों से पहले और बंदरों के बाद. इसे देखकर ये भी कहा जाता है कि यह दो पैरों पर चलने वाले भी रहे होंगे.
इसके नाम की कहानी भी कमाल की है. इसे खोजे जाने के बाद, रात में जश्न मनाया जा रहा था. पार्टी, नाच-गाने और शराब चल रही थी और पीछे बीटल्स का गाना बज रहा था. ‘लूसी इन द स्काई विद डायमंड्स’, एक वक्त पर किसी ने कंकाल को लूसी नाम दे दिया और तब से यह इसी के साथ जुड़ गया.
इसी क्रम में तमाम इंसानी पूर्वज आए, विलुप्त हुए. पर जो चीज हमें इंसान बनाती है, हमारा दिमाग, उसकी कहानी बाद में शुरू हुई. करीब तीन लाख साल पहले होमो सेपियंस यानी हम इंसानों का वक्त शुरू हुआ. लेखक और इतिहासकार युवाल नोआ हरारी इसे 'कॉग्निटिव रेवोल्यूशन' बताते हैं. सेपियंस का दिमाग बाकियों से ज्यादा जगह लेता था. इनमें सोचने की समझने की क्षमता विकसित होना शुरू होती है.
बकौल हरारी 70 हजार साल पहले सेपियंस एक नई जटिल संरचना का हिस्सा बनते हैं, जिसे ‘संस्कृति’ कहा जाता है. आग पर काबू पाया जाता है और इंसान खाना पकाना शुरू करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इसी वजह से इंसान ज्यादा ऊर्जा बचा पाए, और उनकी दिमागी क्षमता बढ़ी होगी. साझा मिथक शक्ल लेना शुरू करते हैं. 32 हजार साल पहले के शेर और इंसान के बीच की मूर्ति इसका एक सबूत है. जिसका सिर शेर का और शरीर इंसानों का. दूसरी तरफ खेती और सभ्यता भी शक्ल लेना शुरू करती है. इस तरह पानी में मौजूद एक कोशिकीय जीव, इंसानों तक का ये सफर तय करते हैं. ऑफिस का काम करते हुए कभी इस बारे में सोचा जाए तो कीबोर्ड पर थिरकती उंगलियां कुछ देर के लिए रुक जाएंगी.
वीडियो: तारीख: स्पेस में भेजी गए गाने और हिंदी में संदश, किसके लिए हैं?