क्या गुलाबी रंग को 'लड़कियों का रंग' हिटलर ने बनाया?
एक अरसे से रंग बंटे हुए हैं. नीला लड़कों का, गुलाबी लड़कियों का. चला आ रहा है, सो चला आ रहा है. मगर रंगों का बंटवारा हुआ कब?
सिनेमा और समाज में गुलाबी (Pink) रंग को लड़कियों से जोड़ने का एक दौर चला आ रहा है. चाहे वो हाल ही में आई ‘बार्बी’ (Barbie) फिल्म हो या फिर 1957 में आई 'फनी फेसेज़' (Funny Faces). कई फिल्मों में गुलाबी रंग भर-भर के डाला गया है. अक्सर महिलाओं और लड़कियों का रंग करार दिए जाने वाले गुलाबी का हाल हमेशा से ऐसा नहीं था. साल 1950 से पहले तो गुलाबी रंग लड़कों का रंग माना जाता था, और नीला लड़कियों का. वर्ल्ड वॉर (World War) के समय ब्रिटिश नर्सों की यूनिफॉर्म भी नीले रंग की होती थी. फिर आखिर ये रंगों का बंटवारा कब और कैसे हुआ?
पहले ऐसा न थापहले विश्व युद्ध के समय की बात है. मतलब 1914 के आस-पास. एक तरफ फ्रांस की सेना की वर्दी नीली थी. दूसरी तरफ ब्रिटिश नर्सों की यूनिफॉर्म भी नीली थी. युद्ध में शामिल अमेरिकी नर्सों की वर्दी भी नीली ही थी. माने लड़कों और लड़कियों के जेंडर को किसी खास रंग से जोड़कर नहीं रखा गया था. नीले रंग की यूनिफॉर्म का एक प्रमुख कारण ये भी दिया जाता था कि ये रंग गंदा कम होता है.
बड़े लोग, तो बड़े लोग. बड़ों में जेंडर के आधार पर रंगों का भेद देखने कम मिलता था. लेकिन फिर एक दौर आया, जब बच्चों के कपड़ों के रंगों को जेंडर से जोड़कर बेचा जाने लगा. मगर इसमें भी खेला किया गया है. 1918 में एक अमेरिकी ट्रेड पब्लिकेशन अर्नशॉ इनफ़ैन्ट्स में छपे लेख की मानें, तो जनरल नियम ये था कि ‘नीला’ लड़कियों का रंग है. इसके अलावा लेखक, लेक्चरर और रंगों के मामलों के एक्सपर्ट गेविन एवांस के मुताबिक,
20वीं सदी के आस-पास अक्सर लोग महिलाओं को सलाह देते थे - ‘अगर तुम चाहती हो कि लड़का मर्दाना बने तो उसे गुलाबी जैसे मर्दाना रंग के कपड़े पहनाओ.’
1925 में आई एफ़ स्कॉट फ़ित्ज़गेराल्ड (F. Scott Fitzgerald) की किताब ‘द ग्रेट गैट्सबी’ में भी पिंक को मर्दों की पसंद बताया गया था. पिंक सूट में लियोनार्डो डि-कैप्रियो की डैशिंग फोटो नीचे लगी है, ‘द ग्रेट गैट्सबी’ वाली.
इसके अलावा 1927 में आई TIME मैगजीन में ये भी आया कि बॉस्टन, न्यूयॉर्क जैसे अमेरिकी शहरों की कई बड़ी दुकानें लड़कों को गुलाबी रंग पहनाने का सुझाव देती थीं. इसमें ध्यान रखने वाली ये है कि तब का रंगों का विभाजन आज जैसा नहीं था, कि ये पहनो या वो न पहनो. आज पश्चिमी देशों में तो बच्चों का जेंडर बताने के लिए दी जाने वाली पार्टियों (जेंडर-रिवील पार्टी) में साफ तौर पर इन रंगों का भेद देखा जा सकता है. इन पार्टियों में होने वाले बच्चे के जेंडर को सांकेतक तौर पर रंगों के सहारे बताया-सिखाया जाता है. सीधा हिसाब: गुलाबी आया तो लड़की और नीला आया तो लड़का.
कब बांटे गए रंग?पहले बता कर ही सस्पेंस खत्म किए देते हैं कि ऐसी कोई एक एक घटना नहीं है, जिसके बाद लोगों ने लड़कियों को पिंक कपड़े सौंप दिए हों. इतिहास में कई ऐसे वाकये हुए, जिससे रंगों का बंटवारा धीरे-धीरे हुआ... होगा. इनमें से एक में हिटलर का हाथ भी हो सकता है. समझते हैं.
हिटलर का ‘गुलाबी त्रिभुज’ (Pink Triangle)
हिटलर के नाजी जर्मनी की बात है. बंदियों को रखने वाले ‘कंसंट्रेशन कैंप’ में पहचान के लिए लोगों को अलग-अलग दिए जाते थे. यहूदियों को ‘यलो स्टार’, होमोसेक्सुअल्स को 'पिंक ट्रायंगल (Pink triangle)' दिया गया. इसके बाद से गुलाबी रंग को होमोसेक्सुऐलिटी से जोड़ा जाने लगा. या कहें तथाकथित ‘गैर-मर्दाना’ दर्जा दिया जाने लगा. इस सब के बारे में कंसंट्रेशन कैंप सर्वाइवर हाइंज़ हीगर (Heinz Heger) अपनी किताब ‘द मेन विथ द पिंक ट्रायंगल’ में विस्तार से बताते हैं.चिह्न
बाद में ‘Pink Triangle’ को होमोसेक्सुअल मूवमेंट्स के प्रतीक के तौर पर भी इस्तेमाल किया गया. भले ही हिटलर ने जानबूझकर गुलाबी रंग न चुना हो, मगर ये रंग काफी हद तक तथाकथित मर्दाना मानकों से दूर होता गया. ऐसे जो रंग मर्दों का रंग माना जाता था, उसे मर्दों से अलग करके देखा जाने लगा.
लेकिन यही सिर्फ इकलौता कारण नहीं था. गुलाबी रंग को लड़कियों से जोड़े जाने में अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी की भूमिका भी मानी जाती है.
मेमी पिंक
1953 में अमेरिका के 34वें राष्ट्रपति बनते हैं, ड्वाइट डी आइज़नहावर (Dwight David Eisenhower). भले ही उनका सीधे इससे कोई लेना देना न हो, लेकिन उनकी पत्नी मेमी का रंग बटवारे से लेना-देना है.
दरअसल, अमेरिका में राष्ट्रपति की पत्नी या कहें ‘फर्स्ट लेडी’ को किसी सेलेब्रिटी से कम दर्जा नहीं दिया जाता. तो माना जाता है कि एक रोज ‘फर्स्ट लेडी’ ने किसी फंक्शन के लिए पिंक ड्रेस पहनी, बकायदा पिंक नेकलेस के साथ. ये लुक लोगों को बड़ा पसंद आया, खासकर महिलाओं को.
वो अक्सर गुलाबी रंग ही पहनती थीं. यहां तक पिंक के एक शेड को फर्स्ट लेडी के नाम पर ‘मेमी पिंक’ भी कहा जाने लगा. धीरे-धीरे लोग पिंक को ‘लेडी लाइक’ रंग कहने लगे. सनद रहे, लेडी माने शाही. आम महिला नहीं. यानी पिंक ऊंचे दर्जे में चला गया. फिर क्या था, अखबारों से लेकर टेलिविजन विज्ञापनों तक गुलाबी रंग को लड़कियों से जोड़कर दिखाया जाने लगा.
पहले देखें मर्लिन मुनरो का ये वीडियो. देखिए चमकती पिंक ड्रेस में, फिर आगे बात करते हैं.
सिनेमा से लेकर टेलिविजन ऐड्स में लड़कियों को गुलाबी रंग में दिखाया जाने लगा. एक सवाल ये भी कि आम लोगों और दुनिया भर में ये चलन कैसे पहुंचा? इसके लिए दो उदाहरण लेते हैं. एक कोल्ड ड्रिंक का, जो अमेरिका से दुनियाभर में फैल गई. कठिन भाषा में कहें तो ‘ग्लोबलाइजेशन’. दूसरा उदाहरण, 'तेरे नाम' फिल्म का. याद है ‘तेरे नाम’ आने के बाद क्या क्रेज आया था? लोगों में बीच से मांग निकालकर बाल काढ़ने का? ऐसा ही कुछ सेलेब्रिटी फैशन का मामला है. शास्त्रों में तो नहीं है, लेकिन इसे ही कहते हैं ‘पॉप कल्चर’. कोई फेमस इंसान, कोई आइकन कुछ पहने-खाए-बेचे तो आम लोग भी वैसा ही कुछ करने लग जाते हैं. और, दुकाने वैसा ही कुछ बेचने लगती हैं.
माने गुलाबी को लड़कियों का रंग बनाने में फिल्मों, अमेरिकी फर्स्ट लेडी, बाजार और हिटलर सब का मिला-जुला हाथ हो सकता है.