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फडणवीस देखते रहे 'दिल्ली' ने कैसे पूरा खेल पलट दिया?

महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की जगह एकनाथ शिंदे सीएम कैसे बने? अमित शाह की क्या भूमिका थी?

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How did Eknath Shinde become CM instead of Devendra Fadnavis in Maharashtra? What was the role of Amit Shah?
महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की जगह एकनाथ शिंदे सीएम कैसे बने?
30 जून 2022 (Updated: 30 जून 2022, 23:33 IST)
Updated: 30 जून 2022 23:33 IST
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फिल्मों की पटकथा मुंबई में लिखी जाती है. तमाम धारावाहिक की कहानियां भी मुंबई में लिखी जाती हैं और आज के दौर में सबसे ट्रेंडिंग वेब सीरीजों की कल्पनाएं भी मुंबई ही करती है. मुंबई रहस्य से भरती तो मुंबई ही रोमांच देती है. 90 के दौर में आई फिल्म गुप्त देखी तो लगा क्या थ्रिलर मूवी है. अंत तक पता नहीं चलता कि काजोल विलन है. विद्या बालन की फिल्म कहानी आई तो अंत तक लोग गेस करते गए थे. अजय देवगन की दृश्यम ने भी अंत तक समा बांधे रखा. मगर आज मुंबई की राजनीति में जो घटा उसने पीछे की तमाम थ्रिलर फिल्मों के रहस्य को भी मात दे दी. क्योंकि इस बार की कहानी में कलम भले मुंबई की रही हो, मगर कलमकार दिल्ली के थे. ऐन वक्त पर क्लाइमेक्स ऐसे बदला गया कि अच्छे-अच्छे हक्का बक्का रह गए. और खुद अगले सीएम माने जा रहे थे देवेंद्र फडणवीस के मुंह से ही एकनाथ शिंदे के नाम का ऐलान करा दिया गया. 

मगर कहानी में ट्विस्ट फिर भी बाकी रहा. इस ऐलान के साथ तमाम सूत्रों के सूत्रधारी एक दूसरे का मुंह ताकते रह गए. दिन भर सूत्रों के हवाले से खबर चलती रही कि देवेंद्र फडणवीस सीएम होंगे और एकनाथ शिंदे डिप्टी सीएम. शाम होते-होते किरदार और कहानी दोनों बदल गए. आज का पूरा दिन सूत्रों के लिहाज से काफी बुरा रहा. एकनाथ शिंदे सीएम बने तो फिर सूत्रों के हवाले से खबर चली कि फडणवीस को दिल्ली लाया जा सकता है. मगर दिल्ली ने रात होते-होते फिर से सूत्रों को गलत साबित कर दिया. ....काय झाडी, काय डोंगर, काय हाटेल...गुवाहाटी पर बोलते हुए बागी विधायक शहाजी पाटिल का ये ऑडियो कॉल खूब वायरल हुआ. उन्हीं की स्टाइल में आज की बात रखी जाए तो... काय ती कहाणी, काय ते नट, काय तो क्लाइमैक्स, वोक्के एकदम....अब मराठी एक्सेंट तो उनके जैसा आएगा नहीं, मगर भूल-चूक के साथ स्वीकारते चलिए. मतलब है कि क्या कहानी थी, क्या किरदार थे और क्या क्लाइमेक्स...ओके एकदम.

मी एकनाथ संभाजी शिंदे....मुख्यमंत्री....मी देवेंद्र गंगाधर फडणवीस...उपमुख्यमंत्री. महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोशयारी ने दोनों को शपथ दिलाई. एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के 20वें मुख्यमंत्री बने. शिवसेना की पृष्ठभूमि से आने वाले चौथे सीएम. इससे पहले शिवसैनिक के तौर पर मनोहर जोशी, नारायण राणे, उद्धव ठाकरे सीएम बन चुके हैं. शपथ हो गई. मगर इस तस्वीरे के पीछे की कहानी भरपूर नाटकीय रही. 39 शिवसेना विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे ने बगावत की. तभी ये तय हो गया कि उद्धव ठाकरे की कुर्सी चंद दिनों की है. सुप्रीम से जब 29 जून की रात फ्लोर टेस्ट को हरी झंडी मिली तो उसके ठीक एक घंटे बाद उद्धव ठाकरे ने फेसबुक पर इस्तीफे का ऐलान करना पड़ा.  भारी बारिश के बीच गोवा से एकनाथ शिंदे सुबह मुंबई पहुंचे. राजभवन में फडणवीस से मुलाकात हुई. राज्यपाल कोशयारी की तरफ से दोनों को लड्डू खिलाया गया. तब से माना यही जा रहा था कि जल्द शपथ होगी और देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में सरकार बनेगी.मगर नेतृत्व एकनाथ शिंदे के हाथों में चला गया. ये इतनी अचंभे से भर देने वाली खबर थी कि खुद शिंदे के साथी विधायकों और रिश्तेदारों तक नहीं पता थी. 

शिंदे के करीबी और बागी विधायकों के प्रवक्ता रहे दीपक केसरकर ने आज तक फोन पर बात करते हुए बताया कि ये फैसला उनके लिए भी सरप्राइज था. उन्हें पहले से कोई जानकारी नहीं थी. मुंबई में मौजूद सारे पत्रकार भी अंचभे में थे कि आखिर ये हो क्या गया. फिर तस्वीरें आने लगी. होटल में शिंदे समर्थक विधायकों के डांस के तस्वीर, ठाणे में कार्यकर्ताओं के जश्न की तस्वीर. दोनों नेताओं की विधायकों से वीडियो कॉल पर बातचीत की तस्वीर. बदले हुई तासीर में तस्वीरों का भी खेल बदल चुका था. कल तक जो बीजेपी विधायक फडणवीस को सीएम मानकर चल रहे थे. वो अब सवालों को उलझते-लिपटते नजर आए. और फिर देवेंद्र  फडणवीस और एकनाथ शिंदे ने प्रेस कॉन्फेंस की. यहां पर एकनाथ शिंदे ने कहा. देवेंद्र फडणवीस ने बड़ा निर्णय लिया है बीजेपी के पास 106 विधायक हैं, फिर उन्होंने बड़ा दिल दिखाते हुए मुझे मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया है. 

मैं फडणवीस जी, पंत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह अमित शाह जी का धन्यवाद करता हूं. यहां पर फडणवीस और एकनाथ शिंदे. दोनों की तरफ से साफ किया गया कि देवेंद्र फडणवीस मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होंगे, बीजेपी शिंदे सरकार को बाहर से समर्थन करेगी. 

ये बात ऑन रिकॉर्ड दर्ज कर  ली गई. पहले तो बीजेपी का ये दांव बहुतों को समझ में नहीं आया. कयास और अटकलें फिर से लगने लगी. बयान आए तो बीजेपी की तरफ से कहा जाने लगा उन्हें कुर्सी की लालसा नहीं है. हिंदुत्व की विचारधार, देशप्रेम, महाराष्ट्र का विकास, बाल साहेब और छत्रपति महाराज शिवाजी की नारेबाजी. बीजेपी नेताओं की तरफ से पूरी तरह से ये दर्शाया गया कि बीजेपी ने मुद्दों पर सरकार बनाई है, सीएम सीट के लिए नहीं. फडणवीस के बड़े दिल की मिसाल दी जाने लगी. मगर क्या सबकुछ सामान्य था? क्या सबकुछ फडणवीस के इच्छास्वरूप चल रहा था.

थोड़ा आइडिया मिल गया होगा. अब हम एक्सप्लेन कर देते हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने समाचार एजेंसी के माइक पर ऐलान किया कि देवेंद्र फडणवीस सरकार में डिप्टी सीएम का पद संभाले. जबकि फडणवीस शुरू में साफ कर चुके थे कि वो सरकार में शामिल नहीं होंगे. वो शिंदे गुट को बाहर से समर्थन देंगे. फिर राष्ट्रीय आलाकमान की तरफ से ये ऐलान ट्विस्ट के तौर पर फिर चौंकाने वाला था. क्योंकि बीजेपी को क्लीयर मैसेजिंग वाली पार्टी माना जाता है. प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह की मंजूरी पर पार्टी अध्यक्ष जो फैसला ले लेते हैं. वो सभी को मान्य होता है. एक मैसेज भेजा जाता है, पूरे देश में पार्टी उसी को फॉलो करती है. मगर यहां ऐसा नहीं हुआ. राष्ट्रीय नेतृत्व को अलग से बयान जारी करना पड़ा.  तो क्या ऐसे में मान लिया जाए कि देवेंद्र फडणवीस इस फैसले से खुश नहीं थे? क्या वो नहीं चाहते थे कि उन्हें डिप्टी सीएम बनाया जाए? क्योंकि जो व्यक्ति पांच साल मुख्यमंत्री रह चुका हो, जाहिर है उसके लिए उपमुख्यमंत्री का पद छोटा है. इसलिए देवेंद्र फडणवीस ने 106 विधायक होने के बावजूद सरकार ने ना शामिल होने का ऐलान किया था? क्या वो सिर्फ मुख्यमंत्री ही बनना चाहते थे? 

कयासों और अटकलों के बीच सवाल कई हैं. क्योंकि आलाकमान और स्थानीय बीजेपी नेतृत्व के फैसले में इतना विरोधाभास कम से कम मोदी ऐरा तो कभी देखने को नहीं मिला. मोदी के दौर की प्रथा आज की तस्वीर बिलकुल उलट थी. क्योंकि बयान के बाद पहले अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ट्वीट कर भी लिखना पड़ा. शपथ होने में चंद मिनट बाकी थे तभी 6 बजकर 58 मिनट पर गृहमंत्री अमित शाह का ट्वीट आता है. उनकी तरफ से लिखा गया- 

‘भाजपा अध्यक्ष श्री जेपी नड्डा जी के कहने पर श्री देवेंद्र फडणवीस  जी ने बड़ा मन दिखाते हुए महाराष्ट्र राज्य और जनता के हित में सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया है. यह निर्णय महाराष्ट्र के प्रति उनकी सच्ची निष्ठा व सेवाभाव का परिचायक है. इसके लिए मैं उन्होंने हृदय से बधाई देता हूँ.’

ये ट्वीट उस वक्त आया जब राजभवन ने शपथ टेबल पर सिर्फ एक नाम लिखा था. एकनाथ शिंदे. देवेंद्र फडणवीस का जिक्र भी नहीं था.

जानकारों ने माना कि अब ये फाइनल मुहर है. इसके बाद 7 बजकर 33 मिनट पर गृहमंत्री शाह के ट्वीट को को रीट्वीट करते हुए लिखा गया. प्रामाणिक कार्यकर्ता के नाते पार्टी के आदेश का मैं पालन करता हूँ. जिस पार्टी ने मुझे सर्वोच्च पद तक पहुँचाया, उसका आदेश मेरे लिए सर्वोपरि है. फिर आखिर में शपथ ले ली गई. हो जो भी मगर इस पूरे घटनाक्रम ने एक बात तो बिलकुल साफ कर दी कि EVERYTHING is not fine.

जानकार भी मानते हैं कि कुछ तो था जो हजम नहीं हुआ. ये भी अपने आप में दुर्लभ था कि 106 विधायकों वाली बीजेपी का डिप्टी सीएम और 39 विधायकों के गुट का सीएम. इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने एकनाथ शिंदे को बधाई दी. देवेंद्र फडणवीस की तारीफ करते हुए लिखा कि देवेंद्र फडणवीस कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्रोत हैं. एक तरह से देखा जाए तो देवेंद्र फडणवीस को त्याग की प्रतिमूर्ति के तौर पर पेश किया गया. खैर अब इस मुद्दे पर आते हैं कि आखिर बीजेपी ने शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे को सीएम बनाया क्यों? इससे उसे क्या हासिल हुआ? 2019 में उद्धव से सारा विवाद शिवसैनिक को सीएम बनाने को लेकर हुआ. वो इतना बढ़ा कि हिंदुत्व के नाम पर बना गठबंधन परिवार बिखर गया? घूमफिरकर शिवसैनिक को ही सीएम बनाना था तो उस वक्त ही क्यों नहीं बना दिया? क्या ये फकत अहम के लिए बदला लिया गया? 

ये वो सवाल थे जिनके जवाब बड़ी ही बेसब्री से तलाशे जा रहे हैं. फिर कुछ तर्क सामने आए. बीजेपी सूत्रों की तरफ से कहा गया कि इस फैसले के पीछे ठोस रणनीति है. इससे संदेश ये जाएगा कि शिवसेना की ही सरकार है. और ठाकरे परिवार को शिवसेना से ही अलग-थलग कर दिया जाएगा. ऐसे में बचे खुचे विधायकों के भी इधर आने की गुंजाइश बनेगी. जिसका फायदा आने वाले चुनाव में मिल सकता है. शिवसेना कमजोर हुई तो बीजेपी की सीधी लड़ाई कांग्रेस और ncp से रह जाएगी. हिंदुत्व की सिर्फ ही धारा बहेगी और वो सिर्फ बीजेपी की होगी. संभावना ये भी है कि आने वाले दिनों में बागी गुट खुद को असली शिवसेना के तौर क्लेम करे. फिर सिंबल के लिए मामला कोर्ट कचहरी तक पहुंचे. ऐसे में नुकसान शिवसेना ही होगा.  

ये कहानी समझ ली. अब जरा एकनाथ शिंदे की प्रोफाइल और भूमिका को समझ लेते हैं. एकनाथ शिंदे का जन्म 4 फरवरी 1964 सातारा में हुआ, बचपन मे ही ठाणे में रहने चले गए. किसान परिवार में जन्मे एकनाथ शिंदे को पढ़ाई लिखाई, आर्थिक परिस्थिति के चलते छोड़ना पड़ा. वागले स्टेट में एक मछली के कंपनी में बतौर सुपरवाइजर काम किया, नौकरी नहीं जमी तो ऑटोरिक्शा भी चलाया. उद्धव कैबिनेट में एकनाथ शिंदे को शहरी विकास और लोक निर्माण विभाग PWD की ज़िम्मेदारी दी गई. देश के दूसरे सूबों की तरह महाराष्ट्र में भी हर ज़िले के लिए प्रभारी मंत्री बनाए जाते हैं, जिन्हें पालक मंत्री कहा जाता है. शिंदे, ठाणे और गडचिरोली ज़िले के पालक मंत्री हैं. साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले शिंदे एक पुराने शिवसैनिक हैं. मूल रूप से महाराष्ट्र के सतारा के हैं और अब मुंबई के करीब पड़ने वाले ठाणे ज़िले में मज़बूत पकड़ रखते हैं. शुरुआत शाखा प्रमुख रहते हुए की और फिर पार्षद बने. तब तक ठाणे ज़िले के दबंग शिवसैनिक आनंद दिघे का हाथ सिर पर आ गया था. 2001 में दिघे की असमय मृत्यु हुई तो पार्टी ने ठाणे की बागडोर एकनाथ शिंदे को दे दी.

शिंदे ठाणे की कोपरी - पाच पाखडी सीट से चार बार के विधायक हैं. 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना अलग-अलग लड़े थे. तब उद्धव ठाकरे शिंदे को नेता प्रतिपक्ष बनाने वाले थे. लेकिन दोनों पार्टियों ने साथ में सरकार बना ली और एकनाथ शिंदे मंत्री बन गए. माना जाता है कि 2014 में शिंदे उन नेताओं में थे, जो भाजपा के साथ गठबंधन के पक्षधर थे. 2019 में भी एकनाथ शिंदे भाजपा के साथ सरकार बनाने के पक्षधर थे. शिवसेना ने उन्हें विधायक दल का नेता भी चुन लिया था और माना जा रहा था कि शिंदे सीएम तक हो सकते हैं. लेकिन वो सीएम बन नहीं पाए. क्यों?

याद कीजिए, 2019 में भाजपा और शिवसेना ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव साथ-साथ लड़ा था. और महायुति गठबंध ने शानदार जीत भी दर्ज की थी. सबको यही लगा कि सरकार पहले की तरह चलती रहेगी. और देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने रहेंगे. लेकिन तभी शिवसेना ने ये कहकर सबको चौंका दिया कि भाजपा को अपना वादा निभाना चाहिए. शिवसेना की तरफ से दावा किया गया कि एक बंद कमरे में भाजपा के प्रमुख चुनावी रणनीतिकार अमित शाह ने वादा किया था कि मुख्यमंत्री पद पर रोटेशन होगा. ढाई-ढाई साल के लिए शिवसेना और भाजपा को मौका मिलेगा.

जैसा कि हमने कहा, ये शिवसेना का दावा था. बंद कमरे में हुई की कोई सार्वजिक बातचीत रिकॉर्ड पर नहीं है और बीजेपी इसे लगातार नकारती भी है. इसके बावजूद शिवसेना ज़िद पर अड़ी रही. क्योंकि पार्टी के सामने अस्तित्व का प्रश्न था. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा 2014 के मुकाबले कम सीटें जीती थी. लेकिन केंद्र में उसके हाथ मज़बूत हुए थे. इसीलिए शिवसेना को ये डर था कि भविष्य में वो एक जूनियर पार्टनर बनकर रह जाएगी. इसीलिए पार्टी ने मुख्यमंत्री पद पर रोटेशन वाली बात को इतना तूल दिया और अंत में धुर विरोधी कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने की बात तक कह डाली. ये ऐलान हुआ 22 नवंबर 2019 को.

इधर बातचीत से बात नहीं बनी, तो भाजपा ने सरकार बनाने की एक कोशिश और की. 23 नवंबर की सुबह जब पूरा भारत सो रहा था, तब उगते सूरज को भी अचंभित करते हुए देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. खबर आई कि भाजपा को अजित पवार के नेतृत्व में बाग़ी एनसीपी विधायकों का समर्थन मिल गया है. और अजित पवार को डिप्टी सीएम बनाया जाएगा. लेकिन दोपहर होते होते शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें शरद पवार ने कह दिया कि NCP के विधायक लौट आएंगे. शपथ ग्रहण का मामला देखते-देखते सुप्रीम कोर्ट पहुंच था. 24 नवंबर को सुनवाई हुई. और 25 नवंबर को शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने मुंबई के एक 5 स्टार होटल में 162 विधायकों की परेड करवा दी. 26 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे दिया कि 27 नवंबर को महाराष्ट्र विधानसभा में फडनवीस सरकार विश्वास मत हासिल करे. लेकिन इसकी नौबत आई नहीं और देवेंद्र फडणवीस ने खुद ही इस्तीफा दे दिया.

यहां से शिवसेना - कांग्रेस - एनसीपी की महाविकास अघाड़ी सरकार के बनने का रास्ता साफ हुआ. तब भी चर्चा एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बनने की थी. मगर शरद पवार का कहना था कि गठबंधन उद्धव ठाकरे के नेतृत्व बेहतर काम करेगा. शिंदे ने इस फैसले को एक आदर्श शिवसैनिक की तरह लिया और कैबिनेट में शामिल हुए. बीते ढाई सालों में जब-जब महाराष्ट्र सरकार के सामने कोई संकट आया, तब एकनाथ शिंदे ने उद्धव के दाएं हाथ की तरह काम करते रहे. मगर फिर बगावत की बेला आई तो आधी से ज्यादा शिवसेना को ही ले उड़े. पहले 29, फिर 32, फिर 35 और आखिर आते-आते शिवसेना के 55 में से 39 विधायकों को अपने साथ खड़ा कर लिया.

एकनाथ शिंदे कभी ऑटो चलाया करते थे. राजनीति में उन्हें लाने वाले उनके गुरु आनंद दिघे थे. दिघे शिवसेना के बाहुबली नेता था. ठाणे जिले में तगड़ी पकड़ थी. खुद का दरबार चलाते और लोगों की शिकायतों का त्वरित निपटारा भी. साल 2001 में इलाज के दौरान एक अस्पताल में उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई. शिव सैनिकों ने तब उस अस्पताल को ही फूंक दिया था. शिंदे बार-बार अपने ट्वीट में बाला साहेब ठाकरे और आनंद दिघे का ज़िक्र करते रहते हैं. और आज भी शपथ लेते हुए बालासाहेब ठाकरे और आनंद दिघे का नाम लेकर यही बताने की कोशिश की, कि वही असली शिवसैनिक हैं.

मगर आखिर में कुछ सवाल और रह जाते हैं कि क्या बिना ठाकरे शिवसेना की कल्पना की जा सकती है ? क्या मराठी मानुष मातोश्री की जगह किसी और घर को वो मान्यता, वो दर्जा देगा. जो उसे मिला है. सवाल कई हैं और कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिसका जवाब वक्त देता है. फौरी तौर पर कुछ भी कहना मुनासिब नहीं होता है.

 

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