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अकबर की सेना को चांद बीबी ने कैसे धूल चटाई थी?

चांद बीबी जब तलवार लेकर सामने आईं, तो अकबर की सेना को हार का मुंह देखना पड़ा. 40 साल से जो सेना नहीं हारी थी अब वो शिकस्त झेल चुकी थी. फिर आगे क्या हुआ? जंग के मैदान में एक महिला से हारने के बाद अकबर ने क्या किया था?

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चांद बीबी के सामने बादशाह अकबर की सेना भाग खड़ी हुई थी
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अभय शर्मा
8 नवंबर 2023 (Updated: 8 नवंबर 2023, 11:46 IST)
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19 फरवरी, 1596. दक्कन की रियासतों में सबसे उत्तर की रियासत अहमदनगर. यहां के लोगों के लिए वो दिन हर दिन जैसा नहीं था, किले में अजीब सी बेचैनी थी. बीती दो-चार रातों से शायद ही कोई सोया होगा. जीवन और मरण का सवाल जो था. जिस राज्य को कोई जीत नहीं पाया था, उसकी चौखट तक आ गई थी दुनिया की सबसे ताकतवर सेना. वो सेना जिसके लिए कहा जाता था कि किसी से हारती नहीं, जिधर निकल पड़ती, उधर घोड़ों की टापों से आसमान में धूल का ऐसा गुबार उठता, जैसे तूफान आ रहा हो. जानते हैं किसकी थी ये सेना? ये सेना थी हिन्दुस्तान के शहंशाह और दिल्ली के तख्त पर बैठे मुगल बादशाह अकबर की.

अहमदनगर के लिए इसको रोकना नामुमकिन जैसा था. वहां कोई राजा नहीं था, एक छोटा सा राजकुमार जिसे कुछ रोज पहले ही राजा बना दिया गया था, सिर्फ इसलिए कि गद्दी खाली ना दिखे. सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाले ज्यादातर सरदार मैदान छोड़कर भाग चुके थे. लेकिन ऐसे में भी कोई थी, जिसने झुकना नहीं सीखा था, वो किला मजबूत करने में लगी थी, उसे फतेह की उम्मीद थी, लग रहा था अभी दम नहीं घुटेगा, सांस लेने की गुंजाइश बची है. उसने तलवार उठाई और जमकर खड़ी हो गई, किले और दुश्मन सेना के बीच में. फिर उसकी तलवार ने ऐसा शोर मचाया कि अकबर के बजीर, सैनिक सब मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए. इस शेरनी का नाम था चांद बीबी (Chand Bibi History).

आज बात इन्हीं चांद बीबी की, जिनके सामने अकबर की सेना को हार का मुंह देखना पड़ा था. साथ ही जानेंगे कि जंग के मैदान में एक महिला से हारने के बाद अकबर ने क्या किया था?

बिलकुल शुरू से शुरू करते है. विजय नगर और बहमनी साम्राज्य, ये 1340 के आसपास दक्षिण भारत के सबसे ताकतवर दो साम्राज्य बनकर उभरे थे. लेकिन 1351 में दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक की मौत के बाद, बहमनी साम्राज्य में अंदरूनी कलेश शुरू हो गया. आखिरकार 1481 में ये राज्य पांच अलग-अलग राज्यों में बंट गया. अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा, बेरार और बीदर. इन्हें ही दक्कन की रियासतें बोला जाता था. बंटने के बाद भी ये एक-दूसरे से लगातार जूझते रहते थे. इन सभी में मुस्लिम शासक थे, जबकि विजयनगर की कमान एक हिंदू राजा राम राय के हाथ में थी.

दक्कन की रियासतें
चांद बीबी की आदिल शाह से राजनीतिक शादी

दक्कन रियासतों की आपसी तकरारों के बीच 1558 में बीजापुर के सुल्तान अली आदिल शाह, विजय नगर के राजा राम राय से मिलने पहुंचे. उनसे कहा कि अहमदनगर के निजाम - हुसैन निजाम शाह-  के षड्यंत्रों से अब वो परेशान हो चुके हैं. वो अहमदनगर के खिलाफ अब जंग करेंगे जिसमें उन्हें विजय नगर जैसे बड़े राज्य की मदद चाहिए. कुछ समय लगा, लेकिन दोनों की डील पक्की हुई, बीजापुर और विजय नगर की सेनाओं ने अहमदनगर पर अटैक कर दिया और उसे लूट लिया. अहमदनगर के निजाम भागे-भागे गोलकुंडा रियासत के शासक इब्राहिम क़ुतुब शाह के पास पहुंचे. उनसे मदद की अपील की. क़ुतुब शाह के बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह से अच्छे संबंध थे. उन्होंने आदिल शाह को अपने यहां एक रोज दावत पर बुलाया.

अहमदनगर

मीटिंग में क़ुतुब शाह ने आदिल शाह से कहा कि दक्कन की सभी पांचों रियासतें मुस्लिम हैं, ऐसे में हमें विजयनगर की हिन्दू रियासत के खिलाफ एकजुट होना चाहिए. एक जुट रहेंगे तो कोई भी हमारी रियासतों की तरफ देखने से घबराएगा. इसके बाद उन्होंने आदिल शाह को लालच दिया. कहा कि विजय नगर का रायवंश करीब 60 बंदरगाहों और अपने अधीन कई रियासतों से राजस्व वसूलता है, अगर हम सबने एक होकर उसपर हमला बोला, तो ये राजस्व फिर हम वसूलेंगे. इसके बाद क़ुतुब शाह ने आदिल शाह को एक ऐसा प्रस्ताव दिया जिससे वो तुरंत विजय नगर के खिलाफ लड़ने को तैयार हो गया. क़ुतुब शाह ने आदिल से कहा कि अगर वो अहमदनगर के राजा हुसैन निजाम शाह की बेटी राजकुमारी चांद बीबी से शादी कर लेगा, तो निजाम उसे शोलापुर का अपना किला दहेज में देंगे. क़ुतुब शाह जानते थे कि आदिल की शोलापुर के किले पर बरसों से नजर है और वो उसे हासिल करना चाहता है.

बात पक्की हुई और 1564 में आदिल शाह का चांद बीबी के साथ निकाह हो गया. इस तरह अहमदनगर और बीजापुर के बीच रिश्तेदारी हो गई. आदिल शाह को इस डील में काफी फायदा हुआ था. वो इसलिए क्योंकि उसे चांद बीबी के रूप में हुनरमंद पत्नी मिली थी. चांद बीबी उस समय पूरे दक्कन में काफी चर्चित राजकुमारी थीं. उनके पिता भी उनकी रणनीतियों और युद्ध कौशल के मुरीद थे. घंटों अपनी सेना के सबसे बेहतरीन लड़ाकों के साथ वो तलवार बाजी किया करती थीं. उन्हें शिकार करने और बाज उड़ाने का शौक था, जो उस समय पुरुषों के शौक माने जाते थे.

गोलकुंडा के क़ुतुब शाह ने जिस मकसद से अहमदनगर और बीजापुर की रिश्तेदारी करवाई थी, अब उस मकसद को पूरा करने पर काम शुरू हुआ. यानी विजय नगर पर आक्रमण का. दिसंबर 1564 में दक्कन के मुस्लिम शासकों ने विजयनगर के रायवंश पर आक्रमण कर दिया. राजा राम राय इस हमले में मारे गए, विजयनगर को बुरी तरह लूटा गया. रियासत की सभी इमारतों को तोड़ दिया गया. हंसता खेलता साम्राज्य कुछ घंटों में श्मशान बना दिया गया.

अली आदिल शाह

विजय नगर को खत्म करके दक्कन की रियासतों में अच्छी बन रही थी. लेकिन, दुश्मन रहीं, इन सल्तनतों में ये दोस्ती आखिर कब तक रहती. कुछ समय बाद जब अहमदनगर के शासक और चांद बीबी के पिता निजाम शाह की मौत हुई तो उनका बेटा मुर्तजा गद्दी पर बैठा. मुर्तजा ने सभी रियासतों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. 1574 में मुर्तजा ने बेरार रियासत पर कब्जा कर लिया. बीजापुर जहां उसकी खुद की बहन चांद बीबी की शादी हुई थी, उसने उस राज्य के साथ भी कई लड़ाईयां लड़ डालीं. हालांकि, कुछ समय बाद दोनों में शांति के लिए संधि हो गई.

कैसे बनीं चांद बीबी बीजापुर की संरक्षक?

इसी समय अप्रैल 1579 में बीजापुर के शासक और चांद बीबी के पति आदिल शाह की हत्या हो गई. आदिल शाह के मरने के बाद अब पूरे बीजापुर की जिम्मेदारी चांद बीबी के कंधों पर थी. अपना कोई बेटा नहीं था तो उन्होंने आदिल के नौ साल के भतीजे इब्राहिम आदिल शाह को गद्दी पर बिठाया. और खुद राज्य को संभालने लगीं. उस समय चांद बीबी की उम्र महज 29 साल थी. अब उन्हें इब्राहिम की देखभाल करनी थी और राज्य भी संभालना था. राज्य की सुरक्षा में कई भरोसेमंद सरदारों को उन्होंने विशेष तवज्जो दी, ज्यादा जिम्मेदारियां सौंपीं, जिससे राज्य की सुरक्षा और पुख्ता हो सके.

अहमदनगर में खून खराबा शुरू हो गया

इसी दौरान चांद बीबी के मायके यानी अहमदनगर में गद्दी के लिए खून खराबा शुरू हुआ. उनके भाई निजाम मुर्तजा ने अपने बेटे मीरान हुसैन को मरवाने की कोशिश की. बेटे ने पासा पलट दिया और खुद अपने पिता को मरवा दिया. इसके बाद मीरान हुसैन गद्दी पर बैठा. कुछ महीनों में अपनी गद्दी बचाने के लिए उसने दर्जन भर से ज्यादा राजकुमारों की हत्या करवा दी. उसने उन सभी लोगों को को जेल में डलवा दिया जिन्हें वो अपने खिलाफ समझता था. उसकी इन हरकतों से तंग आकर कुछ सरदारों ने सुका तख्ता पलट किया और मीरान हुसैन की हत्या कर दी. इसके बाद अगले कई सालों तक अहमदनगर में खूब आपसी लड़ाइयां हुईं. तीन राजा बदले और साजिश और हत्याएं भी हुईं.

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अहमदनगर पर अकबर की नजर से कैसे पड़ी?

उस समय जब भी किसी राज्य की इस तरह की स्थिति होती थी, यानी अंदरूनी कलेश होता था.  तो कोई और फायदा उठाने का पूरा प्रयास करता था. यहां भी यही हुआ. लेकिन, इस राज्य पर जिसकी नजर गई वो कोई छोटा-मोटा राजा नहीं था, बल्कि वो दिल्ली की गद्दी पर बैठा बादशाह अकबर था. 1560 के बाद से अकबर बहुत तेजी के साथ अपने राज्य का विस्तार कर रहा था. उसकी नजर दक्कन पर काफी पहले से थी, बस उसे एक मौके की तलाश थी.

1595 में उसे दक्कन में घुसने का मौका मिला वो भी अहमदनगर से, जो सबसे उत्तर में था, यानी दिल्ली से दक्षिण में जाने पर सबसे पहले यही राज्य पड़ता था. यानी दक्कन क्षेत्र का एंट्री पॉइंट. ऐसे में अकबर को यहां की लड़ाई आसान लगी. अहमदनगर में अंदरूनी कलह की बात जैसे ही अकबर को पता लगी उसने तुरंत अपने बेटे मुराद और सबसे काबिल सिपहसालार अब्दुर रहीम खाने-खाना को अहमदनगर पर कब्जा करने भेज दिया. दिसंबर 1595 में करीब 30 हजार सैनिकों के साथ अकबर मुराद की सेना अहमदनगर पहुंच गई. और किले से कुछ दूर पहले अपना पड़ाव डाल दिया.

मुगलों की सेना देख अहमदनगर में गद्दी के लिए लड़ रहे सरदारों में खलबली मच गई. सब भागकर बीजापुर चांद बीबी के पास पहुंचे. मदद की गुहार लगाई. ये सब जानते थे कि इस मुश्किल घड़ी में उन्हें केवल चांद बीबी ही बचा सकती हैं. इसके बाद बीजापुर की रानी अहमदनगर पहुंचीं. अपने भाई मुर्तजा के पोते बहादुर निजाम शाह को तुरंत वहां का राजा घोषित किया. और अपने आप राज्य की सुरक्षा के लिए रणनीति बनाने में जुट गईं.

प्रतीकात्मक फोटो
पत्रों के पीछे मुगलों का षड्यंत्र  

उधर, अकबर के बेटे मुराद की तरफ से चांद बीबी को हथियार डालने के लिए पत्र भेजने शुरू किए गए. लेकिन मुगल इन पत्रों के पीछे एक षड्यंत्र रच रहे थे. उन्होंने जमीन के नीचे-नीचे बारूद की सुरंगे खोदनी शुरू कर दी थीं. साफ़ था कि ये पत्र दुश्मन का ध्यान बांटने और समय काटने का बहाना भर थे, जिससे दुश्मन की नजर सुरंगों पर ना जाए, और किले तक सुरंगे बन जाएं.

लेकिन, बचपन से ही रणनीतिकार मानी जाने वाली चांद बीबी की नजरों से ये षड्यंत्र कहां छिपने वाला था. उन्हें मुगलों के किस्से पता थे, और इसीलिए उन्होंने सुरंगों के बारे में पता लगा लिया. पांच सुरंगे थीं, जिसमें से दो का पता लगाकर उनकी बारूद अहमदनगर के सैनिकों ने रात भर में निकाल कर बाहर फेंक दी. लेकिन इस बात का पता अकबर के बेटे मुराद को लग गया. उसने अगले ही दिन सुबह-सुबह बाकी बची तीन सुरंगों को उड़वा दिया. सुरंग उड़ते ही किले की एक दीवार ढह गई. ये देख किले के कई सरदार और सैनिक डरकर भाग गए.

'ब्रेव हर्ट्स ऑफ भारत' पुस्तक में में इतिहासकार विक्रम संपत लिखते हैं,

'इसी दौरान हथियार बंद, सिर पर नकाब ओढ़े और नंगी तलवार लेकर चांद बीबी सामने आ गईं. किले का जो हिस्सा टूटा था वो वहीं कुछ सैनिकों के साथ जम गईं. इस दौरान मुगलों ने तुरंत हमला नहीं किया. इस वजह से चांद बीबी ने उस टूटे हिस्से को तोपखाना बना दिया, कमजोर हिस्से को इतना मजबूत कर दिया कि अकबर का बेटा मुराद वहां से घुसने की सोचा भी नहीं सकता था. मुगलों ने उसी दिन शाम को चार बजे किले पर अटैक किया, रानी ने डंटकर मुकाबला किया. मुगलों ने जितने बार किए उनका मुंहतोड़ जवाब दिया गया. किले के ऊपर से मुगल सेना के ऊपर राकेट, बारूद और आग के गोले फेंके गए. किले के ऊपर से भारी गोलीबारी की गई. आधी रात होने पर जंग रुकी और तब तक बारूद की सुरंग फटने से बनी खाई मुगल सैनिकों की लाशों से पट चुकी थी. यानी 40 साल से न हारी अकबर की सेना चांद बीबी के सामने घुटने टेक चुकी थी.'

अब तक अकबर के बेटे मुराद और उसके सबसे काबिल सिपहसालार अब्दुर रहीम को समझ आ चुका था कि उनके साथ क्या खेल हुआ है. मतलब जब वे सुरंग खोद रहे थे, तब चांद बीबी ने अपने किले में गोला बारूद भर दिया था. जिसके आगे अकबर की सेना ने घुटने टेक दिये. चांद बीबी की सैन्य क्षमता और रणनीति को पूरे दक्कन ने सराहा, अगले ही दिन उन्हें खिताब मिला- राज्य संरक्षक चांद सुल्ताना का. उनकी जांबाजी देखकर दक्कन रियासतों के कई और सरदार उनका साथ देने आगे आ गए, इन सबको पता था कि अगर चांद बीबी का साथ दिया, तो मुगल सेना आगे नहीं बढ़ेगी. जो भविष्य में उनके लिए भी अच्छा होगा. इन सबके साथ के चलते अब अहमदनगर की सेना और मजबूत हो चुकी थी.

फिर बादशाह के बेटे ने क्या किया?

उधर, मुगल सेना की रसद खत्म होती जा रही थी. और उसमें चांद बीबी का मुकाबला करने की ताकत नहीं बची थी. मुराद और अब्दुर रहीम अब ये सोच रहे थे कि दिल्ली जाकर बादशाह को क्या मुंह दिखाएंगे?

ऐसे में उन्होंने बेरार रियासत के एक इलाके जिसपर अहमदनगर के निजाम का कब्जा था, उसे मांगा और शांति संधि की बात की. इस प्रस्ताव को पहले तो चांद बीबी ने ठुकरा दिया, लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि अगर मुगलों ने कहीं और ज्यादा ताकत के साथ दोबारा अटैक किया तो जाहिर है कि उनका मुकाबला करना मुश्किल पड़ जायेगा. इसलिए उन्होंने मुगलों का ये प्रस्ताव मान लिया. उधर, इस हार के बाद बेटे मुराद से अकबर बहुत नाराज हो गए. मुगलिया सल्तनत में उसका सम्मान बहुत घट चुका था, हार के बाद उसे कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई. वह नशे का आदी हो गया और फिर 1599 में नशे के चलते ही उसकी मौत हो गई.

एक महिला से मुगल बादशाह की हार की खबर पूरे मुल्क में फ़ैल चुकी थी. ऐसे में इसे अकबर कैसे बर्दाश्त करते? अकबर ने चांद बीबी का किस्सा खत्म करने की कसम खाई. 1599 में उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया और खुद 80 हजार सैनिकों की सेना लेकर दिल्ली से अहमदनगर पर चढ़ाई करने निकल गए. इस समय उनकी उम्र 57 साल थी.

विक्रम सम्पत लिखते हैं कि अब हिन्दुस्तान का बादशाह खुद चांद बीबी से निपटने निकला था. ऐसे में जिसने भी ये खबर सुनी वो रानी का साथ छोड़कर जाने लगा. दक्कन की दूसरी रियासतों के सरदार और सैनिक भी अकबर के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं करा पा रहे थे. ऐसे में अहमदनगर की ये शेरनी अकेली रह गई. उन्हें भी पता था कि वो अकबर की इतनी बड़ी फ़ौज का सामना नहीं कर पाएंगी. ऐसे उन्होंने युद्ध न करने की ठानी. लेकिन इसे लेकर उनसे एक गलती हुई. गलती ये कि मुगलों से जल्द ही सुलह करने वाली बात उन्होंने महल के एक किन्नर हमीद खान को बता दी. हमीद ने पूरे अहमदनगर में इसका ढिंढोरा पीट दिया. ये सुनकर अहमदनगर के सरदार और वहां के लोग रानी से नाराज हो गए, क्योंकि वो ये सोचकर बैठे थे कि चांद बीबी फिर उन्हें मुगलों के ताप से बचाएंगी, उनका मुकाबला करेंगी. कुछ सैनिक इस बात से इतना नाराज हुए कि उन्होंने रात में महल में घुसकर चांद बीबी की हत्या कर दी. अगले दिन चांद बीबी को किले में ही किसी जगह पर दफना दिया गया.

अहमदनगर के इसी किले में चांद बीबी की कब्र है

इस घटना के करीब चार महीने बाद मुगल सेना ने अहमदनगर पर हमला करके उस पर कब्जा कर लिया. यानी 57 साल के अकबर की चांद बीबी से मुकाबला करने और उन्हें हराने की तमन्ना अधूरी ही रह गई.

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