सुपरस्टार शाहरुख खान की एक फिल्म है. स्वदेस. इसमें शाहरुख ने नासा के वैज्ञानिकका रोल निभाया है. फिल्म के एक सीन में मोहन भार्गव (यानी शाहरुख) यूपी के एक गांवके लोगों के साथ ग्रामीण व्यवस्था पर बहस कर रहा होता है. इसमें दोनों तरफ सेजातिवाद के पक्ष और विपक्ष में दलीलें दी जाती हैं. मोहन भार्गव अपने तर्कों सेगांव वालों को ये समझाने की खूब कोशिश करता है कि जातिवाद जैसी व्यवस्थाओं नेभारतीय समाज को कहां पहुंचा दिया है. इसी बहस के दौरान गांव के एक प्रतिष्ठित वृद्धकहते हैं- ये सब जात-पात, ऊंच-नीच हमने थोड़े न बनाया है. पीढ़ियों से ऐसा चला आरहा है. एक बात सुन लो. जो कभी नहीं जाती, उसी को जाति कहते हैं.भारतीय समाज, और विशेषकर हिंदू समाज के इतिहास को देखते हुए ये बात गलत नहीं लगती.हमारे देश में जाति लेकर पैदा हुआ व्यक्ति इसे खुद से अलग करने की कितनी ही कोशिशकर ले, कामयाब नहीं हो सकता. वो अपने रहने की जगह बदले, नाम बदले या धर्म ही क्योंन बदल ले, जाति से पीछा नहीं छुड़ा सकता.भारत में धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों में दलित और ओबीसी समाज के लोगों की संख्यासबसे ज्यादा है. लेकिन आपने गौर किया होगा कि धर्म परिवर्तन के बाद भी उनकेलिए दलित मुसलमान, दलित सिख या दलित ईसाई जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है.ऐसे में मन में कई सवाल उठते हैं. मसलन, धर्म परिवर्तन के बाद जाति का क्या होताहै? क्या उसके बाद भी जाति बनी रहती है? और इस्लाम, सिख धर्म या ईसाइयत मानने वालेइस बारे में क्या सोचते हैं?धर्म बदलने से जाति से मुक्ति मिल जाती है?भारतीय संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता को मूल अधिकारों में रखा गया है. हर नागरिकअपनी पसंद के धर्म को मानने और उसके कर्मकांडों की प्रैक्टिस करने के लिए स्वतंत्रहै. वो चाहे तो जरूरत महसूस होने पर धर्म बदल ले. जरूरत न हो तो किसी भी धर्म को नमाने. ये बड़ी वजह है कि सामाजिक और धार्मिक परंपराएं अक्सर संवैधानिक मूल्यों सेटकराती दिखती हैं.धर्म परिवर्तन से जुड़ी खबरें समय-समय पर सुर्खियां बटोरती हैं. भारत के बहुसंख्यकहिंदू समाज के लिए ये बेशक एक अहम मुद्दा है. कट्टर हिंदू संगठन इसके लिए 'लवजिहाद' को जिम्मेदार मानते हैं. वहीं, हिंदुओं का ही एक बड़ा तबका धर्म परिवर्तन केलिए 'ब्राह्मणवादी व्यवस्था' को दोष देते हैं. इनमें अधिकतर दलित या ओबीसी समाज केलोग होते हैं. हालांकि मुसलमान, सिख या ईसाई बनने के बाद भी दलित या पिछड़ी जातियोंके लिए आरक्षण की मांग होती है. ऐसे में ये सवाल लाजमी है कि आखिर अलग-अलग धर्मोंमें यात्रा करने के दौरान जाति का होता क्या है?सांकेतिक फोटोइसका जवाब ढूंढने की कोशिश में हमने ये जाना कि इसका कोई सीधा जवाब नहीं है. इसकीएक बड़ी वजह ये है कि किसी धर्म में जाति व्यवस्था के लिए कोई स्थान न होना और उसधर्म को मानने वालों का जातिवादी न होना, अलग-अलग बात है. अपने-अपने धर्मों के लिएलोग दावा करते हैं कि उनके धर्म में जाति व्यवस्था नहीं है. इस लिहाज से देखा जाएतो धर्म बदलने पर जाति खत्म हो जानी चाहिए. हालांकि ये बात व्यावहारिकता के स्तर परकितनी वास्तविक है?मुस्लिम, सिख या ईसाई बनने पर जाति का क्या होता है?हमने इस मुद्दे पर कुछ जानकारों से बात की. मानवाधिकार और ईसाई राजनीतिक कार्यकर्ताजॉन दयाल ने हमें बताया, 'क्रिश्चिएनिटी में न जाति है न जातिवाद है. हां फिनॉमिनन(Phenomenon) हैं, जैसे नस्ली फिनॉमिनन. हिंदू धर्म को छोड़कर जाति किसी और धर्म काअभिन्न अंग नहीं है. अगर कोई हिंदू से ईसाई बन रहा है तो उसकी जाति मायने नहींरखती.' दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के एक सदस्य से जब हमने धर्म परिवर्तनऔर जाति को लेकर सवाल किया तो पहले उन्होंने कहा कि सिखों में कोई जाति नहीं है.लेकिन फिर उन्होंने इसे पेचीदा मुद्दा बताते हुए कुछ और कहने से इन्कार कर दिया.नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने हमें बताया, 'हम लोग धर्म परिवर्तन नहीं करवातेहैं. अगर कोई अपने मन से सिख धर्म को अपनाना चाहता है तो उसका स्वागत है. इसके लिएउसे अमृतपान करना पड़ता है. जहां तक जाति का सवाल है तो नाम के पीछे सिंह और कौरलगते हैं. बाकी कोई जाति नहीं है. सिख जो है, एक स्टूडेंट है जिसे तमाम उम्र सीखनाहै. ये मुद्दा पेचीदा है. इस पर मैं कुछ और नहीं कहना चाहता.' वहीं, मुस्लिम वुमनस्कॉलर और पत्रकार शीबा असलम फ़हमी ने हमसे बातचीत में कहा, 'अगर कोई मुस्लिम बनताहै तो उसमें जाति का कोई मसला नहीं होता है. मुस्लिम बनने वाले की जाति नहीं खोजीजाती है. हालांकि अगर कोई दलित मुस्लिम बन रहा है तो मुस्लिम समाज में उसे कोईपरेशानी नहीं आती है और ना ही उसके साथ किसी तरह का डिस्क्रिमिनेशन होता है.जहां तक आरक्षण की बात है तो ये सच है कि अगर कोई दलित मुस्लिम बन रहा है तो वोअपने आरक्षण का लाभ खो देगा. हालांकि कुछ राज्यों में ओबीसी के तहत आने वाली कुछमुस्लिम जातियों, जो पेशे के हिसाब से बांटी गई हैं, उन्हें सरकार ने ओबीसी माना हैऔर उन्हें आरक्षण का लाभ मिलता है.'भारत के बहुसंख्यकों के लिए धर्म परिवर्तन एक बड़ा मुद्दा है. (फाइल फोटो- पीटीआई)क्या कहती हैं अदालतें?फरवरी 2015 की बात है. केरल के एक व्यक्ति केपी मनु ईसाई से हिंदू बन गए थे. उनके दादा हिंदू से ईसाई बने थे. पिता ने भी ईसाई जीवनबिताया. लेकिन पोता यानी मनु 24 साल की उम्र में ईसाई धर्म छोड़कर हिंदू बन गए. वोशेड्यूल कास्ट के तहत आने वाली पुलिया जाति से आते थे. सो ईसाई से हिंदू बनने केबाद अनुसूचित जाति के कोटे से सरकारी नौकरी करने लगे.लेकिन इस पर आपत्ति दर्ज की गई और मामला कोर्ट तक पहुंच गया. कहा गया कि ऐसेव्यक्ति को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता जो ईसाई से हिंदू बन गया हो. उधर,राज्य सरकार ने मनु को नौकरी से निकालने और 15 लाख रुपए वसूलने के निर्देश दे दिए.इस दौरान मामला पहले हाई कोर्ट पहुंचा और फिर सुप्रीम कोर्ट. शीर्ष अदालत ने इसमामले को लेकर अपने फैसले में जो कहा, उस पर गौर फरमाइए, किसी व्यक्ति को हिंदूधर्म में वापसी पर अनुसूचित जाति का लाभ दिया जा सकता है, अगर उस जाति के लोग उसेअपना लेते हैं तो. ऐसे व्यक्ति को ये साबित करना होगा कि वे या उसके पूर्वज किसीअन्य धर्म को अपनाने से पहले उसी जाति के थे. इस बात का बिल्कुल स्पष्ट प्रमाण होनाचाहिए कि वो उस जाति से संबंधित है, जिसे संविधान के (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950में मान्यता प्राप्त है. और उसका उसी धर्म में पुन: धर्मांतरण हुआ है जिसे उसकेमाता-पिता या पिछली पीढ़ियां मानती थीं. साथ ही उसे ये भी साबित करना होगा कि वापसीके बाद उसे उस समुदाय ने अपना लिया है. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कहता है किरीकंवर्जन में व्यक्ति उसी जाति को पा जाता है, जो पूर्व में उसकी पीढ़ियों की जातिरही है.धर्म बदल सकते हैं जाति नहींLivelaw की खबर का स्क्रीनशॉट.एक और मामले की बात कर लेते हैं. ऊपर लगी तस्वीर लाइव लॉ की 29 अप्रैल 2016 की एकखबर का स्क्रीनशॉट है. इसकी हेडिंग है- A person can change his religion and faithbut not the caste to which he belongs, as caste has linkage to birth; SCयानी- एक व्यक्ति अपना धर्म और आस्था बदल सकता है, लेकिन उस जाति को नहीं जिससे वेसंबंधित है, क्योंकि जाति का संबंध जन्म से है: सुप्रीम कोर्टये मामला क्या था?मोहम्मद सादिक. पंजाब के मशहूर गायक. उनका जन्म मुस्लिम माता-पिता से हुआ. वे डूमकम्युनिटी से आते हैं जो कि पंजाब की एक अनुसूचित जाति है. मोहम्मद सादिक के परिवारके सदस्य इस्लाम धर्म का पालन करते थे, लेकिन सादिक ने अपना धर्म बदल लिया. मुस्लिमसे सिख धर्म अपना लिया. कांग्रेस के टिकट पर मोहम्मद सादिक ने 2012 के विधानसभाचुनाव में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट भदौड़ से चुनाव भी लड़ा था औरजीते थे. उसी सीट पर शिरोमणि अकाली दल-भाजपा के उम्मीदवार दरबारा सिंह गुरु नेसादिक के चुनाव को कोर्ट में चुनौती दी थी. आरोप लगाया कि मुस्लिम होने के बावजूदसादिक ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट से चुनाव लड़ा.याचिकाकर्ता की अपील पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा था कि सादिक ये साबितकरने में असफल रहे कि उन्होंने इस्लाम छोड़ सिख धर्म अपना लिया है. कोर्ट ने कहा किसादिक मुस्लिम हैं, लिहाजा वे आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के हकदार नहीं हैं.बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. उसने अपने फैसले में कहा कि जरूरी नहीं किदूसरा धर्म अपनाने वाला व्यक्ति नाम बदले. शीर्ष अदालत ने ये भी कहा, जरूरी नहीं किअगर कोई व्यक्ति कोई धर्म अपना रहा है तो उसका पूरा परिवार भी उस धर्म को अपनाए. येस्थापित कानून है कि कोई व्यक्ति अपना धर्म और आस्था बदल सकता है, लेकिन उस जाति कोनहीं, जिससे वे संबंधित है. क्योंकि जाति का जन्म से संबंध है. रिकॉर्ड पर ये साबितहोता है कि अपीलकर्ता को जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया था. जब उसने घोषणा की किउसने सिख धर्म अपनाया है तो उसे सिख समुदाय द्वारा स्वीकार कर लिया गया था.एक्सपर्ट क्या कहते हैं?हम 'धर्म परिवर्तन और जाति' का सवाल लीगल एक्सपर्ट के पास भी लेकर गए. हैदराबादस्थित NALSAR लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और इंडियन ऐकडेमिक एंड लीगल एक्सपर्टफैजान मुस्तफा ने हमें बताया, दो तरह के मुद्दे उठे हैं. एक मुद्दा तो ये है कि कोईSC/ST है और उसने धर्म परिवर्तन कर लिया, तो वो फौरन अपना रिजर्वेशन का बेनेफिट खोदेगा. शेड्यूल कास्ट 1950 का जो प्रेसिडेंशियल ऑर्डर है, उसके हिसाब से शेड्यूलकास्ट को रिजर्वेशन का लाभ पाने के लिए हिंदू होना जरूरी है. बाद में इसमें बौद्धऔर सिख भी जोड़ दिए गए. दूसरा पहलू सुप्रीम कोर्ट से जुड़ा है, जिसका फैसला कहता हैकि रीकंवर्जन पर व्यक्ति अपनी ऑरिजिनल कास्ट पा जाएगा. फैजान मुस्तफा ने आगे कहा,आज की डेट में रिलिजन बेस्ड रिजर्वेशन जो है, वो है शेड्यूल कास्ट में. जबरदस्ती आपलोगों को हिंदू रहने पर मजबूर कर रहे हैं. जो दलित क्रिश्चियन हैं उनको रिजर्वेशननहीं दे रहे हैं. वहीं शेड्यूल ट्राइब मुसलमान भी हो सकते हैं, हिंदू भी हो सकतेहैं. लेकिन शेड्यूल कास्ट सिर्फ हिंदू हो सकते हैं. हमने स्वदेस फिल्म के एक संवादके हवाले से कहा था कि जो कभी नहीं जाती, उसी को जाति कहते हैं. धार्मिक नुमाइंदोंया कार्यकर्ताओं, कानूनी विशेषज्ञों और अदालती उदाहरणों को जानने के बाद यही समझआता है कि धर्म परिवर्तन का जाति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. सुप्रीम कोर्ट ने भीजाति को जन्मजात माना है. भले कोई व्यक्ति किसी धर्म को छोड़कर किसी दूसरे धर्म मेंचला जाए, उसकी जाति बनी रहती है.