होली पर ये कविताएं, ग़ज़लें ना लिखी जातीं तो हिंदी-उर्दू काव्य का 'रंग' इतना गाढ़ा ना होता
चाहे वह जोगीरा के रूप में सदियों से लोगों के कंठ में विराजे लोकगीत हों या फिर साहित्य में भक्ति और श्रंगार का आलंबन लेकर लिखी गई कविताएं, दोहे, कवित्त, गीत या फिर शायरी हो. कविता और साहित्य की दुनिया में होली का रंग अमीर खुसरो, भारतेंदु हरिश्चंद से लेकर निराला और कुंवर बेचैन तक के काल तक फैला हुआ है.
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