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शेर क्यों नहीं होता नीला, क्या खाकर चिड़िया गुलाबी हो जाती है? होली पर रंगों से जुड़ीं खास बातें

एक बड़ी सुंदर चिड़िया है जिसको फ्लेमिंगो कहते हैं. इसकी एक खासियत है इसका गुलाबी रंग. लेकिन ये बचपन से गुलाबी नहीं होतीं. बल्कि फ्लेमिंगो के बच्चे ग्रे और सफेद से नजर आते हैं. फिर ये गुलाबी कैसे हो जाती हैं?

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flamingo pink colour reason
फ्लेमिंगो के गुलाबी रंग का राज़ इनके खाने में छुपा है. (Image: Getty Images)
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राजविक्रम
25 मार्च 2024 (Published: 08:20 IST)
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होली (Holi) रंगों का त्योहार है. घबराइए मत! निबंध लिखकर आपका माथा खपाने का हमारा कोई इरादा नहीं है. इरादा है तो होली के मजेदार माहौल में रंगों के बारे में लल्लनटॉप बातें बताने का (Holi colours fun facts). बातें, जैसे 'सफेदा' की खोज से पहले पुराने जमाने में किन रंगों से होली खेली जाती थी? हम रंग कैसे देख पाते हैं? नीले रंग के तारे ज्यादा गर्म होते हैं या पीले रंग के? आइए, आज जानते हैं रंगों के इर्दगिर्द कुछ मजेदार बातें.

जब ‘सफेदा’ नहीं था तब किन रंगों से होली खेली जाती थी? 

होली में कुछ खास तरह के जीव सड़कों पर नजर आते हैं. जिनमें चांदी सी चमक होती है. देखने में किसी एस्ट्रोनॉट से कम नहीं लगते. ‘फैंटास्टिक फोर’ फिल्म के सिल्वर सर्फर से भी इनकी तुलना की जाती है. घरेलू साइंटिस्ट्स बताते हैं कि ये एक अनोखा लेप लगाते हैं.

इसे स्ट्रीट लैंग्वेज या कहें मोहल्ले की भाषा में ‘सफेदा’ कहते हैं. कुछ लोग इसे ‘सिल्वर कलर’ भी कहते हैं. लेकिन ये तो हो गए केमिकल वाले रंग. जिनकी सेफ्टी पर भी सवाल उठते रहते हैं. लेकिन कभी सोचा है कि जब ये फैक्ट्री में बने रंग नहीं होते थे, तब किन रंगों से होली खेली जाती थी?

19 वीं सदी की इस पेंटिंग में राधा-कृष्ण को गोपियों संग होली खेलते दिखाया गया है.

नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस म्यूजियम की मानें तो पुराने जमाने में नेचुरल चीजों से बने रंगों से होली खेली जाती थी. जैसे हरे रंग के लिए नीम, पीले रंग के लिए हल्दी, बेल. वहीं लाल और नारंगी शेड के लिए पलाश. पलाश के फूल को सेमल के फूल से कन्फ्यूज करने की कोशिश न करें! दोनों अलग-अलग होते हैं.

हमको रंग दिखाई कैसे देते हैं? 

रंगों को समझने से पहले समझते हैं कि रंग हम देखते कैसे हैं? या कहें लाल रंग लाल ही क्यों दिखाई देता है? शुरू करते हैं इंद्रधनुष से, जिसमें सात रंगों की लाइट नजर आती है. ऐसे ही आपने देखा होगा कि सफेद लाइट प्रिज्म में जाकर कई रंगों में बंटकर बाहर निकलती है. माने समझा जा सकता है कि सफेद लाइट अलग-अलग रंगों की लाइट से मिलकर बनी होती है.

इन सब रंगों की फ्रीक्वेंसी अलग-अलग होती है. फ्रीक्वेंसी माने लाइट की लहरें एक सेकेंड में कितनी तेजी से ‘मटक’ सकती हैं. इसका इनकी एनर्जी से सीधा नाता होता है. जैसे नीले रंग की फ्रीक्वेंसी लाल से ज्यादा होती है, तो इसमें एनर्जी भी ज्यादा होती है. नीचे टंगी फोटो में रंगों की फ्रीक्वेंसी देखें फिर आगे बात करते हैं.

रंगों की फ्रीक्वेंसी और एनर्जी में सीधा नाता होता है. (Image: Wikimedia commons)

अब बात करते हैं कि ये अलग-अलग रंग हम देखते कैसे हैं? तो होता ये है कि हमारी आंखों में सिनेमा जैसा एक परदा होता है. जिसको रेटिना कहते हैं. रेटिना में खास तरह की सेल्स होती हैं. जिनको कोन सेल्स कहते हैं. सरल शब्दों में समझें तो ये तीन रंगों की लाइट को पहचान सकती हैं- लाल, नीली और हरी.

रेटिना में लाल लाइट पड़ी तो लाल रंग दिखा. हरी लाइट पड़ी तो हरा. लाल और हरी दोनों लाइट पड़ीं तो पीला रंग. ऐसे ही हमारा दिमाग तीन रंगों की लाइट से बाकी रंग मन में बनाता है. जैसे टीवी में होता है, तीन रंगों की LED लाइट से तमाम रंग बन जाते हैं.

प्रिज्म से होकर गुजरने पर सफेद लाइट सात रंगों में बंट जाती है. (Image : X/ humanvibration)

एक सवाल ये भी है कि क्या हम सभी रंग देख सकते हैं? जैसा कि हम जानते हैं कि कुछ इंसान कलर ब्लाइंड भी हो सकते हैं. माने वो कुछ रंग नहीं देख या समझ सकते. इसका एक टेस्ट भी है. 

क्या आप सारे रंग देख सकते हैं?

कुछ लोग लाल और हरे रंगों को ठीक से नहीं समझ सकते. इनके लिए इन रंगों में अंतर करना मुश्किल हो सकता है. इसे कलर ब्लाइंडनेस कहा जाता है. इसे पहचानने के लिए एक टेस्ट किया जाता है. जिससे एक्सपर्ट्स कलर ब्लाइंडनेस का अंदाजा लगाते हैं. इसे इशिहारा टेस्ट कहा जाता है. इस टेस्ट में कई रंगों के डॉट्स के बीच में दूसरे रंगों के कुछ नंबर छुपे होते हैं. नीचे लगी फोटो में इसे देखा जा सकता है. 
 

इशिहारा टेस्ट में कुछ ऐसे नंबर लिखे रहते हैं. (सांकेतिक तस्वीर)
नीले तारे ज्यादा गर्म होते हैं या पीले?
आकाश की इस तस्वीर में M15 क्लस्टर में अलग-अलग रंग के तारों को देखा जा सकता है. Credit: ESA, Hubble, NASA

रंगों के बारे में तो हम समझ गए. आइए अब समझते हैं कि रंगों से हम क्या समझ सकते हैं. एक मजेदार चीज जो रंगों से समझी जा सकती है, वो है तारों का तापमान. जैसा कि अभी हमने समझा कि अलग-अलग रंगों की फ्रीक्वेंसी भी अलग-अलग होती है. और इनकी एनर्जी भी. इसलिए अलग रंग के तारों का तापमान भी अलग होता है. और नीले तारे पीले तारों से ज्यादा गर्म होते हैं.

केल्विन डिग्री में अलग-अलग रंगों के तारों का तापमान देख सकते हैं.(Image: Wikimedia commons)
नीले रंग के शेर क्यों नहीं होते?

नेचर में कई रंग देखने को मिलते हैं लेकिन नीला रंग कम ही देखने मिलता है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि नेचर में ज्यादातर नीला रंग खास तरह की आकृतियों या स्ट्रक्चर की वजह से होता है. न कि किसी पिगमेंट की वजह से. पिगमेंट माने स्याही जैसी कोई चीज. 

वैसे तो हम किसी चीज का रंग तब देखते हैं, जब उसमें में लाइट पड़ती है और वो चीज किसी खास रंग की लाइट को छोड़कर, बाकी रंगों की लाइट सोख लेती है. या कहें उसमें ऐसे पिगमेंट होते हैं जो ऐसा करते हैं. 

समझते हैं, पत्ती हमको हरी दिखाई देती है क्योंकि इसमें क्लोरोफिल नाम का पिगमेंट होता है. जो हरी लाइट छोड़कर बाकी लाइट सोख लेता है और हमारी आंखों तक हरी लाइट पहुंचती है. जो इसका हरा रंग दिखाती है.

File:Blue butterfly (2560414252) (2).jpg

वहीं दूसरी तरफ नीले रंग के साथ खास बात ये है कि नेचर में ज्यादातर चीजें नीली किसी पिगमेंट की वजह से नहीं होतीं. बल्कि खास तरीके की महीन संरचनाओं की वजह से होती हैं, जैसे इस नीली तितली के पंख. जिनकी खास संरचनाएं नीली लाइट छोड़कर बाकी लाइट सोख लेती हैं.

जिससे सिर्फ नीले रंग की लाइट पंखों से बाहर निकल कर हमारी आंखों तक पहुंच पाती है. जैसे आसमान नीला किसी पिगमेंट या स्याही की वजह से नहीं होता. बल्कि इसलिए होता है क्योंकि हम उसकी नीले फ्रीक्वेंसी की लाइट देख पाते हैं. वहीं शेर में न तो नीले रंग का पिगमेंट होता है न ही ऐसा खास स्ट्रक्चर.

ये भी पढ़ें: क्या गुलाबी रंग को 'लड़कियों का रंग' हिटलर ने बनाया?

क्या खाकर ये चिड़िया गुलाबी हो जाती हैं?

एक बड़ी सुंदर चिड़िया है जिसको फ्लेमिंगो कहते हैं. इसकी खासियत है इसका गुलाबी रंग. लेकिन ये बचपन से गुलाबी नहीं होतीं. बल्कि फ्लेमिंगो के बच्चे ग्रे और सफेद से नजर आते हैं. तो फिर ये गुलाबी कैसे हो जाती हैं?

बचपन में ग्रे रंग के होते हैं फ्लेमिंगो के बच्चे (credit: Getty images)

इसका राज छुपा है, इनके खाने में. दरअसल, ये जो जीव-जंतु खाते हैं, उनमें एक खास रंग का पिगमेंट होता है. जिसको ‘कैरोटिनॉइड’ कहते हैं. ये वही चीज है जिसकी वजह से फल-सब्जियों में नारंगी रंग होता है. जब फ्लेमिंगो में ये पिगमेंट पहुंचता है तो ये इनको कमाल का गुलाबी रंग देता है. क्यों चौंक गए न?

वीडियो: होली खेल रहे हैं तो सफेदा का खतरा समझ लो

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