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एक नेक काम ने 60 लाख लोगों की जान ले ली!

ऐसी दया, जिसे करने वाला हमेशा पछताता रहा

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एक ब्रिटिश फौजी ने अगर हिटलर पर दया नहीं दिखाई होती तो 60 लाख लोगों की जान बच जाती (तस्वीर: Getty)
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कमल
28 जुलाई 2023 (Updated: 27 जुलाई 2023, 13:05 IST)
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युद्ध की ज़मीन पर दो सैनिक आमने-सामने खड़े हैं. दोनों के बीच अंतर ये कि एक के हाथ में राइफ़ल है और दूसरा निहत्था, खून में नहाया, निढाल होकर जमीन पर गिरा हुआ है. युद्ध का धर्म कहता है, दुश्मन को मारे बिना युद्ध नहीं जीते जाते. लेकिन ब्रिटिश फ़ौज की वर्दी में खड़े शख़्स का दिल पता नहीं क्यों पसीज उठता है. और वो हैंडलबार मूंछों वाले जर्मन सैनिक की जान बख़्शते हुए आगे बढ़ जाता है. युद्ध खत्म होता है. ज़िंदगी आगे बढ़ जाती है. कुछ दशकों बाद अचानक एक रोज ब्रिटिश फौज के सामने एक पेंटिंग आती है.

पेंटिंग में वो खुद था, और साथ में उस जर्मन सैनिक की तस्वीर भी थी. तस्वीर देखकर उसे अहसास होता है कि जिसे वो अपनी ज़िंदगी का सबसे नेक पल समझ रहा था, वो एक पल 60 लाख मासूमों की मौत की वजह बन गया था. दुनिया के एक कोने में कहीं एक तितली पंख फड़फड़ाती है और दूसरे कोने में तूफान आ जाता है. इसे बटरफ्लाई इफ़ेक्ट कहते हैं. ब्रिटिश फौजी को उस रोज़ पहली बार बटरफ्लाई इफेक्ट का मतलब समझ आ रहा था. क्योंकि जिस शख़्स की जान उसके बचाई थी, उसका नाम था, अडोल्फ़ हिटलर.

28 जुलाई के रोज़ साल 1914 में फर्स्ट वर्ल्ड वॉर की शुरुआत हुई थी. जिसे तब द ग्रेट वॉर कहा जाता था. बाद में जब एक और विश्व युद्ध हुआ तो द ग्रेट वॉर को फ़र्स्ट वर्ल्ड वॉर कहा गया. सांप्रदायिक और साम्राज्यवाद के जिस सांप ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लाखों लोगों की जान ली. उसमें ज़हर का इंजेक्शन दरअसल WW1 के दौरान भरा गया था. हिटलर इस युद्ध को एक सैनिक की तरह लड़ा था. और उसे बाक़ायदा आयरन क्रॉस सम्मान मिला था, जो आम सैनिकों के लिए बड़ी रेयर बात हुआ करती थी. WW1 के दौरान हिटलर क्या कर रहा था. क्या कुछ हुआ उसके साथ, जिसने हिटलर को हिटलर बनाया. चलिए जानते हैं.

रोता हिटलर 

10 नवंबर 1918 की तारीख़. जर्मनी के एक मिलिट्री अस्पताल में कुछ घायल सैनिक लेटे हुए थे कि तभी वहाँ एक पादरी आया. उसकी आंखों में आंसू थे. उसने खबर सुनाई. जर्मनी युद्ध हार चुका था. पादरी ने आगे बताया, जर्मनी कल से एक रिपब्लिक होगा. उसकी सीमाएं छोटी कर दी जाएंगी. विशालकाय जर्मन साम्राज्य का पतन हो जाएगा. ये सुनकर वहाँ मौजूद सभी लोगों के सर मायूसी से झुक गए. उनमें से एक सैनिक जो युद्ध में लांस कॉर्पोरल के तौर पर लड़ा था, उसने बिस्तर से तकिया उठाया और अपना सर उनमें धंसा लिया. पूरी दुनिया को आतंकित करने वाला हिटलर उस रोज़ दहाड़ मारकर रो रहा था. जर्मनी की हार ने उसे तोड़कर रख दिया था. 

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प्रथम विश्व युद्ध में हिटलर को आयरन क्रॉस सम्मान मिला (तस्वीर: getty)

उसने अहद लिया कि जर्मनी की हार के जिम्मेदार लोगों को ख़त्म कर देगा. जो उसके अनुसार यहूदी और मार्क्सिस्ट थे. यहूदियों के प्रति हिटलर के मन में नफ़रत कैसे उपजी, ये समझने के लिए हमें थोड़ा और पीछे चलना होगा. हिटलर की जवानी के दिनों में. जिससे आपको ये भी समझ आएगा कि हिटलर बनने के लिए कोई विशेष रेसिपी नहीं लगती. दो ही मसाले काफ़ी होते हैं, नफ़रत और नफ़रत को अंजाम देने के लिए ज़रूरी सत्ता की भूख.

कौन चित्रकार है?

हिटलर के हिटलर बनने की शुरुआत होती है साल 1909 में. इस समय वो ऑस्ट्रिया-हंगरी की राजधानी विएना में रह रहा था. दिन मुफलिसी में कट रहे थे. काम के नाम पर उसे चित्रकारी करना आता था.वियना में फ़ाइन आर्ट्स की एक अकादमी थी. हिटलर का सपना उसमें दाखिला लेना था. दो बार कोशिशों के बाद जब उसे दाख़िला नहीं मिला. वो परेशान हो गया. हालत दिन पर दिन ख़राब होती जा रही थी. कई दिन उसे रेलवे स्टेशन में सोकर गुजारने पड़े थे. इसके बावजूद उसने कोई दूसरा काम करना गंवारा ना समझा. वो खुद को जिनियस समझता था.उसके अनुसार उसकी इस हालत की ज़िम्मेदार दुनिया थी. लेकिन दुनिया से तो लड़ा जा नहीं सकता. उसके लिए एक कंक्रीट पहचान चाहिए होती है. हिटलर के लिए ये पहचान थी- यहूदी होना. यहूदियों को उसने अपनी खुद की और साथ साथ पूरे जर्मनी के सभी समस्याओं का ज़िम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया.

विएना में तब एंटी सेमेटिक लोगों को अच्छी ख़ासी तादाद थी. हिटलर का उनमें उठना बैठना शुरू हुआ. और वो बाक़ी दुनिया से कटा कटा रहने लगा. अपनी उम्र के लड़कों की तरह ना उसे लड़कियों में इंटरेस्ट था, ना और किसी चीज में. समान विचार वालों लोगों की संगत में रहने के चलते वो खुद को बड़ा वक्ता मनाने लगा था. हालांकि खटारा भाई के शब्दों में कहें तो लड़कपन से ही 'हल्का आदमी' था हिटलर. क्योंकि उसकी वाक्पटुता सिर्फ़ तब तक रहती थी, जब तक कोई सामने से सवाल न पूछ दे. कोई उसकी गलती बताता तो तर्क करने के बजाय अनाप शनाप बोलने लगता.

1913 तक हिटलर विएना में रहा. इसके बाद वो म्यूनिक चला गया. म्यूनिक जाने के पीछे एक ख़ास वजह थी. विएना में रहते हुए उसे फ़ौज में भर्ती का बुलावा आया, जो अनिवार्य हुआ करता था. लेकिन हिट्लर की फ़ौज में मेहनत की कोई मंशा नहीं थी. बताया ना हल्का आदमी था. भर्ती से बचने के लिए वो म्यूनिक आया लेकिन पुलिस उसका पीछा करते हुए वहां भी पहुंच गई. और उसे पकड़ लिया. हिटलर के सामने दो ऑप्शन थे. जेल या फ़ौज. हिटलर ने फ़ौज में जाना चुना. लेकिन किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान. हिटलर मेडिकल टेस्ट में फेल हो गया. बाद में जब वो तानाशाह बना, जर्मन सीक्रेट पुलिस ने हिटलर की भर्ती से जुड़े कागजात ढूंढने के लिए ज़मीन आसमान एक कर दिया. लेकिन ये काग़ज़ात हाथ लगे नहीं. और इन्हीं से उसकी असलियत सामने आई. वरना हिटलर ने तो प्रोपेगेंडा चला रखा था कि वो महान योद्धा था जो एक बार में ही देश के लिए लड़ने मारने के लिए तैयार हो गया था.

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हिटलर के पास फॉक्स नाम का कुत्ता था जो विश्व युद्ध के बाद चोरी हो गया था (तस्वीर: Getty)

सच ये था कि म्यूनिक में हिटलर के दिन मजे में कट रहे थे. अब तक उसे उसके पिता की जायदाद मिल चुकी थी. जिसके चलते पैसों की कमी दूर हो गई थी. म्यूनिक में भी हिटलर की पुरानी जिंदगी जारी रही. कैफे और बार में बैठकर वो भाषण देता रहता. हालांकि अभी तक उसके भक्तों की फ़ौज तैयार नहीं हुई थी. इसलिए कहा जा सकता है. अगर ऐसा ही चलता रहता तो हिटलर गुमनामी की जिंदगी जीकर मर गया होता. लेकिन फिर एक ऐसी घटना हुई, जिसने दुनिया को हमेशा के लिए बदल डाला.

द ग्रेट वॉर 

28 जून 1914 की तारीख. आज जो ऑस्ट्रिया और हंगरी हैं. तब एक साम्राज्य हुआ करता था. इस साम्राज्य के उत्तराधिकारी थे आर्चड्यूक फर्डिनेंड. उस रोज़ आर्चड्यूक अपनी पत्नी के साथ पड़ोसी देश बोस्निया के दौरे पर गए थे. यहां उनके काफिले पर बम से हमला हुआ. इस हमले में दोनों पति पत्नी बच निकले. लेकिन कुछ देर बाद एक शख़्स ने गोली मार उनकी हत्या कर दी. इस हत्या के साथ ही प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हो गई. जर्मनी भी इस युद्ध में कूदा. इसलिए हिटलर, जो जर्मनी को दुनिया का सबसे महान साम्राज्य समझता था, उसने भी युद्ध लड़ने की ठान ली. बाकायदा वो लिखता है, जिस रोज़ भर्ती का खत आया, मैं अपने घुटनों के बल बैठा और ईश्वर को धन्यवाद दिया".

हिटलर ही नहीं, पूरे जर्मनी में 16-17 साल के लड़कों का यही हाल था. साल 2019 में एक फिल्म आई थी, ‘ऑल क्वाइट ऑन वेस्टर्न फ्रंट’ फिल्म का एक सीन है. 16 -17 साल के तीन चार लड़के हैं. जर्मनी की ओर युद्ध में जाने को लालायित. ख़ुशी इस बात की थी कि में जाएंगे तो आर्मी की नई यूनिफॉर्म मिलेगी. यूनिफॉर्म मिलती है लेकिन उनमें से एक पर किसी और के नाम का टैग था. मिलिट्री अफसर टैग फाड़ते हुए कहता है, फिटिंग सही नहीं आई होगी, इसलिए तुम्हें दे दी. तुम्हारे लिए फिट है. लड़का यूनिफ़ॉर्म लेकर ख़ुशी ख़ुशी चला जाता है. कैमरे का फोकस चेंज होकर जमीन की ओर मुड़ता है, वहां ऐसे ही सैकड़ों टैग फाड़ कर फेंके हुए थे. ये सारी यूनिफ़ॉर्म युद्ध में मारे गए सैनिकों की थी, जिन्हें धोकर नए लड़कों को दिया जा रहा था.

हिटलर को इस लड़ाई में भाग लेने का मौका मिला, अक्टूबर 1914 में. क्या काम करता था हिटलर?
उसे डिस्पैच रनर की जिम्मेदारी मिली हुई थी. यानी यहां से वहां संदेश पहुंचाने का काम. WW1 के रिकार्ड्स के अनुसार युद्ध के दौरान वो बाक़ी सैनिकों से अलग-थलग रहता था. अक्सर पेंटिंग बनाया करता था. शराब नहीं पीता था और स्मोक भी नहीं करता था. युद्ध के दौरान उसने एक कुत्ते को पालतू बना लिया था. जिसका नाम उसने फ़ॉक्स रखा था. हालांकि युद्ध के बाद किसी ने ये कुत्ता चुरा लिया. जिसकी वजह से हिटलर बहुत दुखी हुआ था. जानवरों से उसे ख़ास प्रेम था. बाकायदा एक कसाई घर का दौरा करने के बाद उसने मांसाहार भी बंद कर दिया था. युद्ध में उसे फ्रंट लाइंस पर रहने का मौका कम ही मिला. लेकिन इस दौरान उसने अपने एक सीनियर अफसर की जान बचाई जिसके चलते उसे दूसरे दर्जे का आयरन क्रॉस सम्मान दिया गया. साथ ही उसे पदोन्नत कर लांस कॉर्पोरल बना दिया गया.

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प्रथम विश्व युद्ध में ऑस्ट्रिया हंगरी और जर्मन साम्राज्य ने मिलकर युद्ध की शुरुआत की (तस्वीर: wikimedia Commons)

साल 1916 में युद्ध के दौरान हिटलर के पांव में एक गोली लगी. जिसके चलते उसे घर भेज दिया गया. हिटलर जर्मनी की राजधानी बर्लिन गया. यहां उसने देखा, लोग भूखे मर रहे हैं. ब्रिटेन ने समुद्री रास्ते से जर्मनी जाने वाले जहाजों पर ब्लॉकेड लगा रखा था. जिसके चलते चीजों के दाम आसमान छू रहे थे. लिहाज़ा जर्मनी में मजदूरों ने हड़ताल शुरू कर दी. लोगों में युद्ध के खिलाफ माहौल बनाने लगा . ये देखकर हिटलर को उन पर दया आने के बजाय गुस्सा आया. उसकी नज़र में युद्ध का विरोध करने वाले सब गद्दार थे. वो वापिस मोर्चे पर लौटा और एक बार फिर उसने अपने अनाप शनाप भाषण शुरू किए. शुरुआती दिनों में हिटलर का एक साथ हांस मेन बताता है, "मेस में दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ कर बैठा रहता था. मानो कोई गहरी बात सोच रहा हो. अचानक खड़ा हो जाता था और फिर भाषण शुरू कर देता था". 

हांस मेन के अनुसार युद्ध के खात्मे से पहले ही हिटलर ने जर्मनी की हार की भविष्यवाणी कर दी थी. जर्मनी के हारने की वजह, अमेरिका का युद्ध में उतरना, और ब्रिटेन, फ्रांस का जर्मनी से ज़्यादा ताकतवर होना था. लेकिन हिटलर इन सब बातों को मानने को तैयार नहीं था. वो कहता था, "हमारी बड़ी से बड़ी बंदूकें भी हमें नहीं जिता सकतीं क्योंकि दुश्मन हमारे घर में छिपे हैं".

मौत के देवता के नाम दिव्य संदेश

इसके बावजूद 1917 में चंगा होने के बाद हिटलर एक बार फिर युद्ध के मैदान में गया. इस बार उसे आयरन क्रॉस सम्मान मिला. इस सम्मान की उसके लिए इतनी कीमत थी कि वो जब तक ज़िंदा रहा इस क्रॉस को अपनी यूनिफॉर्म में लगाता रहा. 1918 में एक लड़ाई के दौरान हिटलर एक केमिकल गैस का शिकार हुआ, और इस बार उसे फिर अस्पताल जाना पड़ा. अस्पताल में लेटे लेटे उसे जर्मनी के हारने की खबर मिली. जिसने उसे निराशा और गुस्से से भर दिया. उसके लिए यहूदी इस हार का कारण थे. और हार का बदला उसे लेना था. 

दरअसल प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कुछ ग़ज़ब इत्तेफाक हुए. ऐसे कई मौके आए जब हिटलर की जान जा सकती थी. लेकिन इत्तेफाक से वो बच निकला. आम आदमी होता तो क़िस्मत समझता, जबकि हिटलर ने इसका ये अर्थ निकाला कि भगवान ने उसे किसी खास उद्देश्य से भेजा है. एक जगह वो कहता है "जंग के दौरान एक दिव्य आवाज़ ने मुझे बंकर से निकल जाने को कहा, जैसे ही मैं वहां से निकला, एक गोला उस बंकर के ऊपर गिरा और अंदर मौजूद सब लोग मारे गए". एक दूसरा वाक़या भी है, जो बताता है कि हिटलर इस बात पर कितना विश्वास करता था.

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हेनरी टेंडे की पेंटिंग जिसे हिटलर अपने घर में लगाए रहता था (तस्वीर: Wikimedia Commons )

1938 में ब्रिटिश प्रधान मंत्री नेविल चेम्बरलेन हिटलर से मिलने गए. द्वितीय विश्व युद्ध के आसार बन रहे थे लेकिन युद्ध की शुरुआत नहीं हुई थी. चेम्बरलेन शांति समझौते की उम्मीद में गए थे. वहां उन्होंने हिटलर के आवास में एक पेंटिंग लगी हुई देखी. ये प्रथम विश्व युद्ध की पेंटिंग थी. जिसमें अधिकतर ब्रिटिश सैनिक बने हुए थे. चेम्बरलेन के पूछने पर हिटलर ने बताया कि ये एक ब्रिटिश सैनिक की तस्वीर है. जिसने उसकी जान बख्श दी थी. इस वाक़ये को दैवीय संदेश मानकर हिटलर इस पेंटिंग को अपने घर में लगाकर रखता था. चेम्बरलेन को बाद में पता चला कि हिटलर की जान बचाने वाले शख़्स का नाम हेनरी टेंडे था. 

हेनरी WW1 में ब्रिटेन के हीरो रहे थे. उन्हें सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से नवाज़ा गया था. टेंडे को जब पता चला कि उन्होंने जिसकी जान बख़्शी वो हिटलर था, वो पश्चाताप से घिर गए. हालांकि गलती उनकी नहीं थी. उन्होंने दया दिखाई थी, जो इंसानियत का तक़ाज़ा है. लेकिन हिटलर जैसे हल्के आदमियों की फ़ितरत है. दया प्रोपेगेंडा बन जाती है. और देशभक्ति- एक समूह विशेष से नफ़रत की वजह.

 

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