कहानी सीरिया की, जहां बच्चे कैमरा लेंस भी देखते हैं तो डर जाते हैं
कैमरा देख सीरियाई बच्ची कुछ ऐसे हाव-भाव में आ गई, मानो उसे बंदूक के बैरल से देखा जा रहा हो. ये तस्वीर बयां करती है एक देश की नई पीढ़ी में, बच्चों में बसे खौफ को. भय, जो 4 साल के मासूमों के जहन में भी घर कर गया है. पर एक देश यहां तक पहुंचा कैसे? अरब स्प्रिंग में क्या हुआ था?
बेदिल हैदरी साहब लिखते हैं,
भूख चेहरों पर लिए चांद से प्यारे बच्चे
बेचते फिरते हैं गलियों में गुब्बारे बच्चे
इन हवाओं से तो बारूद की बू आती है
इन फ़ज़ाओं में तो मर जाएंगे सारे बच्चे
बारूद की बू सीरिया की हवाओं में भी है. आज से नहीं, बरसों से. इन्हीं हवाओं में सांस लेती एक बच्ची की तस्वीर एक दशक पहले आई थी. आंखों में खौफ, होठों से मायूसी टपक रही थी. हाथ आत्मसमर्पण बयान कर रहे थे. मानो ये सब साझा तौर पर कह रहे हों..गोली मत चलाना..मुझे मारना मत.
बच्ची की ये तस्वीर ली थी तुर्की के फोटोग्राफर ओस्मान सॉगिर्लि ने. बच्ची की उम्र- 4 साल. नाम- हुद्-या. वो सीरिया के अतमेह शरणार्थी शिविर में रह रही थी. एक रोज़ हद्-या अपनी मां के साथ तुर्की सीमा के पास सफर कर रही थी. तभी फोटोग्राफर ओमान की नज़र बच्ची पर पड़ी. और उन्होंने ये तस्वीर ली. तस्वीर जिसने दुनिया भर के लोगों के दिल तोड़ दिए. ओस्मान इस बारे में कहते हैं,
“मैं एक टेलिफोटो लेंस का इस्तेमाल कर रहा था. और बच्ची को लगा कि यह कोई बंदूक है.”
तस्वीर में हुद्-या कुछ ऐसे हाव-भाव में आ गई, मानो उसे बंदूक के बैरल से देखा जा रहा हो. ये तस्वीर बयां करती है एक देश की नई पीढ़ी में, बच्चों में बसे खौफ को. भय, जो 4 साल के मासूमों के जहन में भी घर कर गया है. पर एक देश यहां तक पहुंचा कैसे? अरब स्प्रिंग में क्या हुआ था?
कांस्य युग के समय मेसोपोटामिया में कमाल की चीजें हो रही थीं. ख़ासकर इसके दक्षिणी हिस्से में जिसे आमतौर पर बेबीलोन कहा जाता है. ईसा से कुछ 2400 साल पहले, यहीं धन-दौलत से भरपूर सुमेरियन सभ्यता फली-फूली. यहीं, आज के ईराक के उर में, राजसी मकबरों की खुदाई की गई. इसमें एक तरफ तो सोने का खंजर, बर्तन, नगीने, सोने के सिर वाला बैल वगैरा मिले, वहीं दूसरी तरफ हेलमेट, हथियार और युद्ध का सामान भी मिला. इनमें यहां की प्राचीन सभ्यता की झलक साफ दिखी. हालांकि वो बात अलग है कि आज ये सब ब्रिटिश संग्रहालय में रखा है. उसकी वजह से आप वाकिफ ही हैं.
खैर, इससे इतर - इसी इलाके में मौजूद प्राचीन सीरिया की कहानी थोड़ी अलग मानी जाती थी. सुमेरियन्स लेख, प्राचीन अमॉरिटेस लोगों को ‘पहाड़ों के गंवार’ बताते थे जो अनाज नहीं जानते थे. जिनके घर नहीं होते थे, जिन्हें दफनाया नहीं जाता था, और जो कच्चा मांस खाते थे. वहीं दूसरी तरफ इन्हीं, अमॉरिटेस लोगों ने सीरिया और मेसोपोटैमिया में सभ्य शहरी राज्यों को बसाया, जिसमें बेबीलोन का पहला साम्राज्य भी शामिल था.
ट्रेवर ब्रेयस अपनी किताब, ‘एंशिएंट सीरिया: अ थ्री थाउजेंड इयर हिस्ट्री’ में लिखते हैं,
“1960 के दशक तक आमतौर पर प्राचीन सीरिया को कम पढ़े-लिखे, छोटे कबीलों के समूह से ज़्यादा नहीं माना जाता था. जो कि तात्कालिक मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता के सामने नहीं टिकती थी. पर सीरिया इससे ज़्यादा था और वाकई में तमाम टीलों के नीचे इसके सबूत दबे थे.”
बहुत समय तक मिडिल ईस्ट में प्राचीन सभ्यता के सबूत खोजे जाते रहे. हालांकि ज़्यादातर ध्यान मिस्र वगैरा पर दिया जा रहा था. लेकिन इटली के पुरातत्वविद, पाउलो मैथिअनी ने अलग राह पकड़ी. इनको यकीन था कि सीरिया को पूरी तरह से नकारा नहीं जाना चाहिए. और इन्होंने यहां के ‘तेल मारदिख’ का चयन अपनी खोज के लिए किया. खुदाई चालू हुई, सभ्यता के कुछ सबूत मिलते रहे. पर बड़ी खोज 4 साल बाद हुई. साल 1968 में एक बुत मिला. पता चला, ये बुत देवी इस्तर का था जो प्राचीन एब्ला के राजा इबित लिम ने बनवाया था. प्राचीन शहर एब्ला के सुराग कई लेखों में मिलते रहे थे. पर इस बात पर शक था कि क्या तेल मारदिख ही प्राचीन एब्ला था? साल 1974 में एक विशालकाय महल की खोज हुई. जमीन के नीचे से प्राचीन सीरिया की एक परत खुली, और पता चला कि सीरिया में सभ्यता कितनी प्राचीन थी.
वक्त बीतने के साथ कई साम्राज्य बदले. कई कबीले बसे, और फिर दौर आया रोमन साम्राज्य का. ईसा से कुछ 64 साल पहले सीरिया रोमन जनरल पॉम्पेई के हाथ आया. ये वही पॉम्पेई है, जो एक वक्त में सम्राट जूलियस सीजर के साथ था, और एक वक्त पर विरोध में. बहरहाल, इस दौर में इस इलाके में सांस्कृतिक और आर्थिक तरक्की देखी और एंटीओच जैसे शहर रोमन शासन में बड़े केंद्र के तौर पर उभरे.
ये तो हो गई प्राचीन सीरिया की कहानी. एक फलती-फूलती सभ्यता. पर ये सभ्यता युद्ध के मुंह में कैसे चली गई, इसकी कहानी ऑटोमन साम्राज्य से शुरू होती है.
400 साल का साम्राज्य1517 से 1918 के बीच. अगले 400 साल तक सीरिया ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा रहा जो कि सीमाई सूबों की तरह शासित था. लेकिन ऑटोमन्स ने सीधा शासन करने के बजाय स्थानीय लोगों के हाथ में कुछ अधिकार दे दिए. कुछ फ्यूडल लॉर्ड्स और कबीलाई मुखियाओं के हाथों में शासन दिया. वहीं ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के तहत कुछ का शोषण भी किया. किसी को गाजर दी तो किसी को छड़ी.
वहीं एक वक्त के बाद यूरोपीय शक्तियों ने भी इलाके में दस्तक दी. चूंकि यह इलाका व्यापार की नज़र से ज़रूरी था और यूरोप और एशिया के बीच एक कड़ी सा था, इसलिए कई यूरोपीय देश यहां दांव खेलने में रुचि रखते थे. ऐसे में फ्रांस और ब्रिटेन भी दो प्लेयर बने. फ्रांस ने मॉरोनाइट ईसाइयों का समर्थन किया. वहीं ब्रिटेन ने स्थानीय ड्रूज़ समुदाय पर दांव खेला ताकि व्यापार के ज़रूरी रास्तों पर कंट्रोल किया जा सके.
उन दिनों ऑटोमन साम्राज्य दक्षिणी यूरोप तक फैला था, कई साल तक स्थायी शासन रहा. पर यहां के सुल्तान ने भी कई तरह की क्रांतियां देखीं. उन्हें दबाने के लिए कठोर कदम भी उठाए. 1875 में हुई बॉस्निया की क्रांति को क्रूरता से दबाया गया. वहीं दूसरी तरफ, दुनिया भर में क्रांतियों का दौर था. 1905 में रूस, 1906 में ईरान, 1911 में चीन और 1910 में मैक्सिको ने क्रांतियां देखीं. कुल मिलाकर कहें, तो दुनिया भर में राजशाही के खिलाफ क्रांतियां फूट रही थीं, लोगों में असंतोष था. ऐसे माहौल में साल 1914 में पहला विश्व युद्ध भी दस्तक देता है. जिसमें ऑटोमन साम्राज्य जर्मनी के पाले में रहा. ब्रिटेन ने तख्तापलट की साजिश रची, अरबों को अपनी तरफ मिलाया. साल 1918 में आमिर फैजल की अगुआई में अरब सेना ने ब्रिटिश टुकड़ी के साथ मिलकर डेमेस्कस पर कब्जा कर लिया और 400 साल के ऑटोमन शासन का अंत हुआ.
फिर ‘वर्सेलिस का शांति समझौता’ होता है. फैजल अरब के स्वाधिकार का समर्थन करते हैं. साल 1920 में नेशनल कांग्रेस उन्हें सीरिया का राजा बना देती है. लेकिन फिर इसी साल सैन रेमो की कांफ्रेंस होती है. ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, इटली के प्रधानमंत्री इकट्ठा होते हैं. मकसद था, ऑटोमन तुर्की साम्राज्य का भविष्य तय करना. और नतीजतन सीरिया और लेबनान फ्रेंच कब्जे में दे दिया जाता है. इसके पीछे था साल 1916 का एक खुफिया समझौता.
नक्शे की लकीरसाइक्स-पीकॉट समझौता, जिसने मिडिल ईस्ट की नई तकदीर लिखने की शुरुआत की थी. कहें तो नक्शे में बस एक लकीर भर थी. लकीर के ऊपर का - ‘ए’ इलाका, फ्रांसीसियों को मिला और लकीर के नीचे का ‘बी’ इलाका, अंग्रेजों को. साल 1916 में गुमनामी में इस समझौते पर दस्तखत किए गए. और नक्शे से इतर जमीन पर बसे लोगों की कोई सुध नहीं ली गई.
बकौल, इंसाइड स्टोरी, साइक्स-पीकॉट समझौता दिखावटी तौर पर स्वतंत्र अरब राज्य की बात तो करता था, पर इसके दूसरे क्लॉज़ में साफ था कि फ्रांस और ग्रेट ब्रिटेन को डायरेक्ट या इनडायरेक्ट कंट्रोल का हक था. और वो अपनी मर्जी के मुताबिक, अरब स्टेट या अरब राज्यों की कंफेडरेशन पर प्रशासन की व्यवस्था कर सकते थे.
साल 1917 में रूस की क्रांति के बाद, ब़ोल्शे-विक्स ने कई खुफिया समझौतों को जारी किया. इनमें से एक साइक्स-पीकॉट समझौता भी था. जिसके रिलीज़ के बाद दुनियाभर में गर्माहट बढ़ी. क्योंकि अरब स्वाधिकार की असलियत साफ हो रही थी. लेकिन औपनिवेशिक नीतियों में कोई बदलाव नहीं हुआ. विश्व युद्ध के बाद के समझौतों में, ऑटोमन साम्राज्य को अपनी अरब जमीन देने के लिए मजबूर किया गया. दूसरी तरफ ब्रिटिश और फ्रेंच साम्राज्य की बंदरबांट करने में लग गए और अरबों को अपनी तकदीर तय करने का मौका नहीं दिया गया.
खैर समझौते वाले साइक्स का इस इलाके की राजनीति में एक और रोल रहा. इन्होंने यहूदी नेता, चैम विज़मैन और अंग्रेजों के बीच कई मीटिंग्स भी करवाईं जो बाद में इजरायल के पहले राष्ट्रपति बने.
साल 1920 में सीरिया में फ्रांस का कब्जा हो गया और राजा फैजल को विदेश भागना पड़ा. कुछ साल फ्रांस का कब्जा रहा, लेकिन फिर राष्ट्रवाद पनपा. लोग बागी हुए और औपनिवेशिक फ्रेंच शासन के खिलाफ सिर उठे. मामला बड़ा हुआ और फ्रांसीसी सेना को दमिश्क पर बमबारी तक करनी पड़ी. क्रांति को क्रूरता से दबा दिया गया. साल बीते, देश में संविधान बनाने की बात चली. साल 1928 में एक संविधान सभा का गठन भी हुआ. लेकिन फ्रेंच हाई कमीशन ने इसे नकार दिया. और कई प्रदर्शन हुए. सिलसिला चला और साल 1936 में फ्रांस सीरिया की आजादी की तरफ कदम उठाने को राजी हुआ. फिर साल 1943 में राष्ट्रवादी नेता, शुक्री अल- कुवतली पहले राष्ट्रपति बने. और तीन साल बाद देश को पूर्ण स्वतंत्रता मिली. और फिर बनती है एक पार्टी.
सोशलिस्ट बाथ पार्टीसाल 1947, मिचेल अफलाक और सलाह-अल-दिन अल -बितार अरब सोशलिस्ट बाथ पार्टी बनाते हैं. जिसका मकसद था, एक अरब सोशलिस्ट राज्य बनाना. इसकी कई शाखाएं मिडल ईस्ट देशों में रहीं. यही साल 1963 से सीरिया में रूलिंग पार्टी रही. दरअसल इसी साल मार्च के महीने में बाथिस्ट सेना ने पावर अपने हाथ में ली. फिर तीन साल बाद फरवरी के महीने में एक और तख्तापलट होता है. सलाह जाहिद, बाथ नेतृत्व के खिलाफ - एक आंतरिक बगावत करते हैं. जिसके बाद हफीज अल-असद रक्षा मंत्री बनाए जाते हैं.
इसके एक साल बाद ही छह दिन का युद्ध होता है, सिक्स डे वॉर. जिसमें इजरायली सेना सीरिया की एयरफोर्स को काफी नुकसान पहुंचाती है. और गोलन हाइट्स नाम का इलाका कब्जे में ले लेती है. इसके तीन साल बाद हाफिज अल-असद, राष्ट्रपति नूर अल-दीन अल-अताशी को गद्दी से हटा देते हैं. कुछ साल बाद, 1973 में राष्ट्रपति असद एक नियम लेकर आते हैं. संवैधानिक तौर पर जरूरी कर दिया जाता है, कि राष्ट्रपति मुस्लिम ही होना चाहिए. इसके खिलाफ भी देश में दंगे भड़कते हैं. लेकिन सेना इसे दबा देती है. असद के ही राज में आज के सीरिया के पॉलिटिकल सिस्टम की जमीन तैयार होती है. आवाजों को दबाने से लेकर इंटेलिजेंस नेटवर्क बनाने तक का काम बखूबी किया जाता है.
इसी साल अपना खोया इलाका पाने के लिए सीरिया मिस्र के साथ मिलकर - इजरायल के खिलाफ जंग में जाता है. लेकिन ये खोए इलाके को वापस नहीं पा सका. फिर साल 1980 आता है. ईरान में इस्लामिक रेवेल्यूशन होने के बाद, मुस्लिम ब्रदरहुड का उदय होता है. कई अपराइजिंग होती हैं. ऐसी ही एक अपराइजिंग साल 1982 में हामा शहर में होती है. जिसे दबाने के लिए सेना हजारों नागरिकों की जान लेती है. इसी साल इजरायल लेबनान में घुसता है और पहले से मौजूद सीरियाई सेना पर हमला करता है. कई इलाकों से सीरियाई सेना को वापस जाना पड़ता है. फिर लेबनान और इजरायल संघर्ष का अंत करते हैं. ऐसे ही तमाम संघर्ष इस दौरान चलते हैं.
साल 2000 में राष्ट्रपति असद की मौत हो जाती है. और इसके बाद बेटे बशर गद्दी पर बैठते हैं. फिर दौर आता है अरब स्प्रिंग का. मिडिल ईस्ट के कई राज्यों में विरोध फूटता है. मिस्र, यमन और लीबिया के साथ. सीरिया में भी इसकी छाया दिखती है, और देश गृह युद्ध जैसे हालातों में घिर जाता है. आगे अमेरिका के साथ कई वैश्विक शक्तियां इस इलाके में अपना इंटरेस्ट दिखाती हैं. आज सीरिया फिर से एक ऐसे रास्ते पर है, जिसका अंत कैसा होगा, ये बताना मुश्किल है.
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