The Lallantop
X
Advertisement

वैलेंटाइन डे के दिन बना आसामानी आग वाला बम, जो चमड़ी में घुसकर हड्डियां गला देता था!

Napalm Bomb History: सफेद फॉस्फोरस और जेली जैसा चिपचिपा गैसोलीन जल उठता है. हजार डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान की लपटें उठती हैं. जिनमें सोना भी पिघल जाए. कुछ नेपॉम के छीटें आस-पास पड़ते हैं. इसी के साथ ‘वैलेंटाइंस डे’ के दिन खोजा गया ये हथियार, अपना पहला शक्ति प्रदर्शन करता है.

Advertisement
history of napalm bomb word war 2 japan vietnam war explained
नेपॉम बम हवा को आग की लपटों से भर देता था. (PHOTO-विकीपीडिया)
pic
राजविक्रम
21 नवंबर 2024 (Published: 12:41 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

आठ जून 1972 की सुबह को वियतमान के ‘ट्रांग बैंग’ कस्बे में चिड़ियों की चहचहाट की जगह मशीन गन की गोलियां गूंज रही थीं. हेलीकॉप्टर गरज रहे थे, और हवा में धुआं ही धुआं भरा था. ये लड़ाई का तीसरा दिन था. विएत-कांग और नॉर्थ वियतनाम सेना ने कस्बे पर कब्जा कर लिया था. अमेरिका समर्थित, साउथ वियतनाम सेना की टुकड़ी ने इन्हें घेर रखा था. एक तरफ सेना की मुठभेड़ चल रही थी, दूसरी तरफ नौ साल की ‘फान-थी-किम-फु़क’, अपनी मां, पिता, छोटे भाई और कुछ तीस गांव वालों के साथ- कस्बे के किनारे एक मंदिर में छिपी थी. यहीं साउथ वियतमाम के कुछ सैनिक भी शरण लिए थे. पास की इमारतें बमों की गर्जना से कांप रही थीं. पर इन बमों में बारूद नहीं था. इनमें नेपॉम था. जो हवा को लपटों से भर देता था. इमारतों को भीतर से भट्टी की तरह लाल कर देता था. ऐसे ही एक नेपॉम बम को देखकर शर्णार्थी चिल्लाते हैं, “आसमान से आग बरस रही है!”

कुछ ही देर में मंदिर पर बम गिराए जाने का शक सैनिकों को होता है. सैनिक लोगों को जल्दी निकलने के लिए कहते हैं. वो मंदिर परिसर में आकर चिल्लाते हैं, “जल्दी बाहर, सभी जल्दी बाहर निकलो. वो सब कुछ तबाह करने वाले हैं.” सभी मंदिर से निकल कर हाइवे पर जाने लगते हैं. होता वही जिसका शक था. एक बम मंदिर परिसर के पास गिराया जाता है. कुछ देर में दूसरा प्लेन आसमान में नजर आता है. ये भी अपना पेलोड गिराता है. स्लेटी रंग के कंटेनर, जिनमें नेपॉम जेली भरी थी. कंटेनर सन्नाटे के साथ जमीन की तरफ बढ़ते हैं. और गिरते ही आग की लपटें भर देते हैं. फॉस्फोरस जमीन पर सूरज की तरह जल उठाता है. हड्डियां गला देने वाला फॉस्फोरस.

गर्मी की लहर हाइवे के उस पार, चेकपॉइंट पर खड़े पत्रकारों तक जाती है. वो इस मंजर को देख ही रहे थे. कुछ ही देर में धुएं का गुबार छंटता है, और आग की लपटों में सनी नौ साल की किम फुक नजर आती है. सहमे बच्चे चेक पॉइंट की तरफ दौड़ रहे थे. एसोसिएट प्रेस के फोटॉग्रफर हुयन्ह कॉन्ग ‘निक’ इस मंजर को फ्रेम दर फ्रेम कैमरे में कैद कर रहे थे. तभी वो तस्वीर खींची जाती है. जो युद्ध की त्रासदी का चेहरा बन गई. जिसके लिए निक को पुलित्जर पुरस्कार मिला. तस्वीर - “द टेरर ऑफ वॉर”

teroor of war photo
हुयन्ह कॉन्ग ‘निक’ की तस्वीर ‘टेरर ऑफ वॉर’ (PHOTO-AP)

द टेरर ऑफ वॉर. निक की खींची ये तस्वीर. वियतनाम युद्ध की त्रासदी का चेहरा बनी. तस्वीर इतनी भयावह है कि इसे हम आपको पूरा दिखा भी नहीं सकते. तस्वीर में नज़र आता है कि आग की गर्मी ने किम के बदन पर एक कपड़ा ना रहने दिया. सब झुलस गए. उसके साथ कुछ और बच्चे चिल्लाते और दर्द में कराहते दौड़ रहे होते हैं. पीछे कुछ सैनिक बंदूकें लिए नजर आते हैं. और इस सब के पीछे काले धुएं का विशाल बादल नजर आता है. कुछ ही देर में तस्वीर खींचने वाले निक, बच्चों की मदद के लिए दौड़ते हैं. इस मंजर के बारे में वो आगे लिखते हैं,

“किम के बदन से गर्मी महसूस हो रही थी. और गुलाबी-काली चमड़ी बदन से निकलने को थी.”  

ये बातें रूह कंपा देने वाली हैं, इन्हें सुनकर भी असहजता होती है. गला रुंध सा जाता है. लेकिन ये त्रासदी लाखों वियतनामीज़ नागरिकों का सच थी. इनमें से एक किम भी थीं. जो दुनियाभर में ‘नेपॉम गर्ल’ के नाम से जानी गईं. इसी के साथ नेपॉम का नाम भी चर्चा में आया. जिसकी कहानी एक अमेरिकी यूनिवर्सिटी से निकली.

खेल के मैदान से जंग के मैदान

दूसरे विश्व युद्ध का दौर, साल 1942. अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी. बिजनेस स्कूल लाइब्रेरी का सुनहरा गुंबद. पास में टेनिस कोर्ट. खेल का मैदान और एक चार से नौ इंच गहरा पूल. पूल के किनारे कुछ लोग, प्रोफेसर लूइस फिशर के इंतिज़ार में थे. केमिस्ट्री के जाने माने प्रोफेसर, जिन्होंने ‘विटामिन-के’ लैब में तैयार किया था, क्वीनाइन का डेरेवेटिव बनाया था जिसे मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल किया जाता था. पर यहां कोई दवा नहीं बनाई जा रही थी. यहां एक हथियार टेस्ट करने की तैयारी हो रही थी. रॉबर्ट एम नीर, अपनी किताब नेपॉम- ऐन अमेरिकन बायॉग्रफी में लिखते हैं,

“सब ऑर्गेनिक केमेस्ट्री के जाने माने प्रोफेसर लूइस फिशर के इंतज़ार में थे. यूनिवर्सिटी के सबसे ब्रिलिएंट स्कॉलर्स में से एक. अज्ञात रिसर्च प्रोजेक्ट नंबर 4 के हेड, एक टॉप सीक्रेट युद्ध की रिसर्च, जो यूनिवर्सिटी और सरकार के साथ मिलकर की जा रही थी.”

कुछ ही देर में बयालीस साल के लंबे कद और कम बालों वाले प्रोफेसर मैदान में आते हैं. उनके साथ कुछ असिस्टेंट भी थे. जिन्हें बूट, दस्ताने, बाल्टी और लंबे डंडों के साथ - पूल के चारों तरफ खड़ा किया गया था. प्रोफेसर के हाथ में एक कंट्रोल बॉक्स था, जिसके तार तीस किलो के नेपॉम बम तक जाते थे. एक ऐसा हथियार जिसका इस्तेमाल पहले कभी नहीं किया गया था.

प्रोफेसर स्विच दबाते हैं. और धमाका होता है. सफेद फॉस्फोरस और जेली जैसा चिपचिपा गैसोलीन जल उठता है. हजार डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान की लपटें उठती हैं. जिनमें सोना भी पिघल जाए. कुछ नेपॉम के छीटें आस-पास पड़ते हैं. चारों तरफ इतना धुंआ भर जाता है कि पास खेल रहे टेनिस प्लेयर भाग खड़े होते हैं. इसी के साथ ‘वैलेंटाइंस डे’ के दिन खोजा गया ये हथियार, अपना पहला शक्ति प्रदर्शन करता है.

नेपॉम- दो शब्दों को मिलाकर बना था. ने - नैप्थेनिक एसिड और पॉम- पॉल्मिटिक एसिड. ये दोनों केमिकल ही शुरुआत में इस चिपचिपे- जलने वाले तरल को बनाने में इस्तेमाल किए गए थे. हालांकि, इसे बनाने वाले फिशर की मानें, तो कोई भी गाढ़ा-चिपचिपा ज्वलनशील पदार्थ, नेपॉम कहा जा सकता है. ये ऐसा हथियार था, जो बनाने में बहुत सस्ता था. इसे आसानी से स्टोर किया जा सकता था और ये युद्ध में दुश्मनों के ठिकानों को जला सकता था. चूंकि जापान में भूकंप से बचने के लिए लकड़ी, कागज़ वगैऱा के घर होते थे. इसलिए अमेरिकियों ने नए-नए खोजे, नेपॉम बम को यहां इस्तेमाल के लिए एक बेहतर हथियार समझा.

आसमान से बरसती आग

जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में एटॉमिक बॉम्बिंग के बारे में हम जानते हैं. वो बम जो युद्ध की आखिरी कील बना. दुनिया भर के मीडिया ने इसे कवर किया. इसकी भीषण त्रासदी की चर्चा हुई. परमाणु बमों पर बहस हुई. लेकिन साल 1945 के अगस्त की शुरुआत में- जापान पर गिराए गए, फैट मैन और लिटिल बॉय परमाणु बमों से इतर. मार्च 1945 के हमले की चर्चा कम होती है. जब टोक्यो के ऊपर आसमान से नेपॉम बरसाया गया. जिसकी आग ने 87 हजार से भी ज्यादा लोगों की जान ली. इस बारे में फ्रेंच पत्रकार रॉबर्ट गुलियन ने लिखा,

“प्लेनों के चपटे पखने, उठते धुएं के बीच देखे जा सकते थे. मानो जमीन पर कोई विशाल भट्टी जल रही हो. ये नीचे तो सुनहरी थी पर उसकी छत एक-दम काली थी. जैसे ही प्लेन गुजरे, करीब 6,500 ‘एम-69’ बमों के गुच्छे, उनका पेट खोल गिराए गए. गिरते ही लाखों की आबादी के बीच ये बम फटे. ‘मोलोटोव फूलों के गुच्छे’, जैसा कि जापानी इन्हें नाम दिया करते थे. ये चमकीले हरे तरल के साथ जल रहे थे. वो छतों को तोड़कर नीचे आते, और चारों तरफ नेपॉम फैल कर चिपक जाता. सफेद फॉस्फोरस का एक गुबार बन गया. लपटें चारों तरफ नाचने लगीं. ” 

बकौल गुलियन तीन लाख किलो से भी ज्यादा नेपॉम उस रात, एक घंटे से भी कम समय में गिराया गया. ये टोक्यो के इतिहास में बड़ा भयावह वाकया बन गया. बहरहाल, इस हमले में तो प्लेन्स का इस्तेमाल किया गया था. पर एक और प्लान में अमेरिकियों ने चमगादड़ों को ‘कामिकाजे’ बनाने की सोची.

चमगादड़ों से हमला

डॉक्टर लॉयटल एस. एडम्स - पेन्सलवेनिया में एक डेंटिस्ट थे. कभी-कभी प्लेन भी उड़ाते थे और खोज में खासी दिलचस्पी रखते थे. एक रोज़ न्यू मेक्सिकों में चमगादड़ों से भरी एक गुफा में उन्हें, ऐसी ही एक खोज का आइडिया आया. दरअसल, हाल ही में उन्होंने ‘पर्ल हार्बर’ में जापानियों के हमले के बारे में सुना था. और वो ऐसा ही आत्म-घाती हमला करना चाहते थे.  एडम्स अमेरिकी राष्ट्रपति को लिखते हैं,

“जीवन का सबसे निचला जन्म चमगादड़ का है. इतिहास में इन्हें अंडरवर्ड, अंधकार और बुराई से जुड़ा बताया गया है. वहीं अब तक इसे बनाए जाने का कारण नहीं बताया गया था. पर जैसा कि मैं देख सकता हूं, लाखों चमगादड़ हमारी सुरंगों, गुफाओं और तहखानों में भगवान ने रखे हैं. जो कि मानव अस्तित्व को बंधनमुक्त करने का इंतज़ार कर रहे हैं.” 

एडम्स आगे लिखते हैं कि लाखों चमगादड़ों से आग का हमला, जापानियों को बे-घर कर देगा. उनके कारखानों को बेकार कर देगा. साथ ही निर्दोष लोग जान बचाने के लिए, भाग भी सकेंगे. ये कोई आम विचार नहीं था. ऐसा युद्ध में पहले कभी नहीं किया गया था. पर हाल ही में बने नेपॉम की वजह से, इस बारे में सोचना मुमकिन हो सका. इस मामले में आगे अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट, स्ट्रैटेजिक सर्विसेज के डायरेक्टर को लिखते हैं,

“यह आदमी पागल नहीं है. यह एकदम वाइल्ड आइडिया जैसा लगता है. पर इस पर एक बार सोचा जा सकता है.”

प्लान आगे चलता है. कुछ शुरुआती दिक्कतों के बाद, एक 17 ग्राम का नेपॉम बम बनाया गया. टाइमर के साथ. प्लान था कि इन्हें उड़ाकर जापानी शहरों के ऊपर से छोड़ा जाएगा. और जागने पर चमगादड़ जापानी घरों में छिपेंगे. और जापानी घरों में नेपॉम बम पहुंचा देंगे.

शुरुआती कुछ टेस्ट्स में ये आग लगाने में कामयाब भी हुए. पर चमगादड़ तो आखिर चमगादड़ हैं. वो ना देश जानते हैं. ना युद्ध और ना ही सीमाएं. ऐसे ही एक टेस्ट में चमगादड़ों ने गलती से अमेरिकी मिलिटरी बेस को ही जला दिया. जिसके बाद इस प्लान के सफल होने पर लोगों को शक हुआ. लाखों चमगादड़ों को पकड़ना भी एक बड़ी समस्या थी. और बाद में एटॉमिक बम वाले, मैनहैटन प्रोजेक्ट में सरकार ज्यादा ध्यान देने लगी. जिसके बाद ये ठंडे बस्ते में चला गया.

वियतनाम का नेपॉम

वियतनाम युद्ध में नेपॉम का इस्तेमाल शायद सबसे खौफनाक रहा होगा. युद्ध की हजारों तस्वीरें भी इस बात की गवाही देती हैं. अमेरिकी मिलिटरी ने आसमान से इसका खूब इस्तेमाल किया. खासकर दुशमनों के ठिकानों पर. और सप्लाई के सास्तों को खत्म करने के लिए. घने जंगलों को साफ करने के लिए भी ये इस्तेमाल में लाया गया. जहां विएत-कांग गोरिल्ला लड़ाके छिपे रहते थे और दुश्मन के मन में भय भरने में भी इसने भूमिका निभाई. लेकिन जापान की चुप्पी से इतर, वियतनाम युद्ध में नेपॉम की बात हुई. खासकर किम की तस्वीर सामने आने के बाद. भयावह दृश्य को देखकर दुनिया सहम गई. युद्ध का ये चेहरा पहले ना दिखा था. जिसके बाद युद्ध विरोधी प्रदर्शनों को बल मिला. खासकर अमेरिका और यूरोप में. इस युद्ध के लिए लोगों का नजरिया बदल रहा था.

वहीं दूसरी तरफ वियतनाम पहला ‘टेलिविजन वॉर’ था. युद्ध की अनसेंसर्ड तस्वीरें अमेरिकी घरों तक दिखाई जा रही थीं. साथ ही नेपॉम और इसका भयावह इस्तेमाल पर भी चर्चा होने लगी. फिल्मों और पॉप कल्चर में भी इसकी त्रासदी और निरंकुश इस्तेमाल की झलक मिलती है. गॉड फॉदर फिल्म वाले डायरेक्टर, फ्रांसिस फोर्ड कोप्पाला की ‘एपॉक्लिप्स नॉउ’ फिल्म में भी इसका जिक्र किया जाता है. फिल्म वियताम युद्ध पर बेस्ड थी. इसका किरदार ल्यूटिनेंट कर्नल बिल कहता है,

“मुझे सुबह-सुबह नेपॉम की खुशबू बेहद पसंद आती है.”

ये लाइन ऑइकॉनिक बन गई. ये नेपॉम को मिलिटरी शक्ति प्रदर्शन का चेहरा तो बताती ही है, साथ ही नैतिक पतन की तस्वीर भी रखती है. इतनी विध्वंशक चीज़ को कोई कैसे प्रेम कर सकता है? बहरहाल, नेपॉम बनाने वाली कंपनी ‘डॉउ केमिकल्स’ को भी लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा. इसके खिलाफ तमाम प्रदर्शन हुए. जिसके चलते कंपनी ने इसका प्रोडक्शन रोक दिया.

बाद के सालों में, यूनाइटेड नेशन्स में कुछ हथियारों को बैन करने का कनवेंशन लाया गया. जिसमें ऐसे हथियारों के रिहायशी इलाकों में इस्तेमाल पर रोक लगाने की बात कही गई. हलांकि अमेरिका ने मिटिलरी में जरूरत का हवाला देते हुए, इस प्रोटोकॉल को रेक्टीफाई नहीं किया. लेकिन धीरे-धीरे इस हथियार से दूरी बनाने की कोशिशें की जाने लगीं. साल 1996 में नेपॉम के आखिरी बैरल को नष्ट करने का प्रदर्शन किया गया. जिसके साथ ऐक्टिव मिलिटरी ऑपरेशन्स में इसके इस्तेमाल का अंत हुआ. अमेरिका आज अपने मूल रूप में नेपॉम का इस्तेमाल नहीं करता. पर इसके जैसे कुछ हथियार जरूर इस्तेमाल किए गए. खैर, सेना और युद्ध के अलग-अलग तर्क हैं. लेकिन जिस खौफनाक-चिपचिपे पदार्थ का मंजर जापान और वियतनाम ने देखा. वो एक बुरे सपने की तरह आखिर खत्म हुआ.

वीडियो: तारीख: एक केमिकल जिसने जापानियों को नींद में ही राख कर दिया!

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement