ये आर्टिकल 'दी लल्लनटॉप' के लिए ताबिश सिद्दीकी ने लिखा है. 'इस्लाम का इतिहास'नाम की इस सीरीज में ताबिश इस्लाम के उदय और उसके आसपास की घटनाओं के बारे मेंजानकारी दे रहे हैं. ये एक जानकारीपरक सीरीज होगी जिससे इस्लाम की उत्पत्ति के वक़्तकी घटनाओं का लेखाजोखा पाठकों को पढ़ने मिलेगा. ये सीरीज ताबिश सिद्दीकी कीव्यक्तिगत रिसर्च पर आधारित है. आप ताबिश से सीधे अपनी बात कहने के लिए इस पते परचिट्ठी भेज सकते हैं - writertabish@gmail.com--------------------------------------------------------------------------------इस्लाम की चार में से तीन किताबों में नहीं है काबा का ज़िक्रकाबा के निर्माण की किवदंतियां बहुत दिलचस्प हैं. इस्लाम के आगमन से पहले अरबों काये विश्वास था कि काबा प्रथम पुरुष और पैगंबर आदम द्वारा बनाया गया था. मगर बाद मेंयह नष्ट हो गया. फिर इसको पैगंबर इब्राहीम ने दोबारा बनाया. ये अरबों की अपनीमान्यता थी. मगर अरब और उसके आसपास के देशों में भी लिखी इतिहास की किताबों मेंकाबा जैसी किसी पवित्र जगह और उसका इब्राहीम द्वारा निर्माण का कोई वर्णन नहींमिलता है.अगर मुसलमानों द्वारा स्वीकार्य आसमानी किताबों तोरह, बाइबिल और ज़ूबूर की भी बातकरें, तो उसमें भी ऐसा कोई ज़िक्र नहीं मिलता है. हां आजकल के कुछ इस्लामिकविद्वानों ने तोरह के शब्दों को तोड़-मरोड़ कर अपनी बातें रखने का प्रयास किया है.मगर वो दलीलें सिर्फ़ इन्ही विद्वानों और इस्लाम के मानने वालों द्वारा ही सराही औरसुनी जाती है. इन दलीलों की कोई विश्वव्यापी मान्यता नहीं है.कुरान क्या कहता है?कुरान और हदीस का रेफरेंस मैं इस आर्टिकल में इसलिए नहीं देना चाहता क्योंकि बातइस्लाम से पहले के अरब की हो रही है. कुरान और हदीसें इस्लाम के बाद की चीजें हैं.फिर भी एक रेफरेंस हम ले लेते हैं कि कुरान क्या कहता है काबा के निर्माण के बारेमें:क़ुरान की आयत 3:96 कहती है: "वस्तुतः इंसानों की इबादत के लिए पहला घर बक्का मेंबना था."कुछ इस्लामिक विद्वान कुरान की इस आयत में आए बक्का शब्द को मक्का शहर का पुरातननाम बताते हैं. जबकि कुछ कहते हैं कि काबा और उसके आसपास के क्षेत्र को क़ुरान मेंबक्का कहा गया है. बक्का के नाम की ये दलीलें पूरी तरह से खरी नहीं उतरती है. इनदलीलों पर संशय इसलिए उठता है क्योंकि आगे कुरान की एक और आयत 48:24 में कहा गयाहै:"और ये वो है जिसने उनका हाथ रोक रखा है तुम से और तुम्हारा हाथ उनसे, मक्का के बीचमें."मक्का का दुर्लभ स्केच. (Image: Native pakistan)कुरान की इस आयत में मक्का शहर को मक्का बोला गया है. इसलिए अगर ये कहा जाता है किपिछली आयत में बक्का, मक्का का पुराना नाम था, तो ये बात सही नहीं बैठती है.क्योंकि फिर तो हर जगह कुरान में मक्का को बक्का ही कहा गया होता. चूंकि ऐतिहासिकप्रमाण के हिसाब से भी मक्का शहर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. उसके पुरातन नामका प्रमाण अरब के आसपास के अन्य देशों की पुराने इतिहास की किताबों में भी नहींमिलता है. यहां तक कि आज के सऊदी अरब के पुरातन शहरों की लिस्ट में भी मक्का का नामकहीं नहीं मिलता है.काबा मुसलमानों का सर्वोच्च धार्मिक स्थान है.कुरान के अलावा बक्का शब्द Book of Psalms, Chapter 84 में आता है. ये वही किताब हैजिसे मुसलमान ज़ुबूर के नाम से जानते हैं. इसे आसमानी मानते हैं. ज़ुबूर के इस उदाहरणको इस्लामिक आलिम अपनी समझ से पेश करते हैं. मगर इसमें बक्का शब्द जहां के लिएइस्तेमाल हुआ है, वो यहूदियों के जेरुसलम जाने की तीर्थयात्रा के रास्ते में पड़ताहै. अगर कुरान किसी बक्का की बात कर रहा है, तो क्या वो ज़ुबूर वाला बक्का हो सकताहै? जेरुसलम से मक्का की दूरी लगभग पंद्रह सौ किलोमीटर है. जो उस समय के हिसाब सेबहुत ज़्यादा दूरी थी. जिस दौरान ज़ुबूर लिखी गई, उस समय मक्का का कोई वजूद भी था यानहीं ये भी अपने आप में खोज का विषय है.वो कौन था जिसने मक्का को महत्वपूर्ण बनाया?बहरहाल, बात काबा के बारे में अरबों की मान्यताओं की हो रही थी. उन मान्यताओं को हमउसी दौर की उपलब्ध जानकारियों से हासिल करेंगे. काबा और मक्का को व्यापारिक औरधार्मिक केंद्र बनाने में जिस इंसान का सबसे बड़ा हाथ था, वो था चौथी सदी के अंत काएक व्यक्ति, कुसय्य (Qusai ibn Kilab ibn Murrah).कुसय्य, काबा पर कब्ज़े से मक्का शहर काबू में किया.कुसय्य जो कि कुरैश घराने से था, उसने अपने कुछ कबीलों को इकठ्ठा कर के काबा परअपना आधिपत्य स्थापित किया और स्वयं को राजा घोषित किया. इस से पहले काबा कुरैश केविरोधी घरानों के हाथों में था. कुसय्य जानता था कि मक्का शहर को अगर अपने हाथ मेंलेना है, तो काबा की बागडोर अपने हाथ में लेनी होगी. उन दिनों पवित्र महीने मेंदूर-दराज़ के लोग हज के लिए मक्का आते थे. व्यापारिक दृष्टि से हज मक्का वासियों केलिए बहुत फ़ायदे का सौदा रहता था. इतिहासकार काबा को धार्मिक के साथ एक व्यापारिकक्षेत्र बनाने का श्रेय कुसय्य को देते हैं. कुसय्य ने अपने आप को राजा घोषित करनेके साथ काबा की चाभी अपने हाथ में रखी और जर्जर हो चुके काबा को फिर से बनवाया.दूरदराज़ क्षेत्रों में बसे अपने कुरैश रिश्तेदारों को मक्का में ला कर बसाया.तीर्थयात्रियों से मक्का में प्रवेश से पहले कर वसूल करने का प्रावधान रखा. ज़मज़म केपानी पर अपना प्रभुत्व रखा. कर चुकाने के बाद तीर्थयात्रियों के खाने और पीने कीज़िम्मेदारी कुसय्य के प्रशासन की होती थी.कुसय्य की हुकूमत के दौरान मक्काकुसय्य ने अपना घर काबा से सटाकर बनाया और काबा के भीतर प्रवेश करने के दरवाज़े कोअपने घर के भीतर से रखा. जिस किसी को भी काबा में प्रवेश करना होता था, उसे कुसय्यके घर के भीतर से होकर जाना होता था. घर इस तरह बनाने से काबे की परिक्रमा करनेवाले लोगों को कुसय्य के घर की भी परिक्रमा करनी होती थी. अपने ज़माने के सबसे बड़ेइतिहासकार इब्न इशाक, जिन्होंने पैगंबर मुहम्मद की जीवनी लिखी है, लिखते हैं किकुसय्य का प्रभुत्व उसके अपने क़बीले क़ुरैश में इतना अधिक था कि उसके जीवन में औरउसकी मृत्यु के बाद लोगों ने उसे धर्म की तरह माना. कुसय्य के कई बच्चे हुए. जिनमेंसे दो अब्द-मनाफ़ और अब्द-उल-उज्ज़ा थे. इन दो नामों को सिर्फ इस उदाहरण के लिए यहांबताना ज़रूरी है, क्योंकि ये दोनों नाम देवियों के नाम पर रखे गए थे. मनाफ़ और उज्ज़ाअरब की सबसे प्रतिष्ठित और पूज्य देवियां थीं. क़ुरैश घराने की ये देवियां क़ुरैशलोगों के लिए पूज्य थीं और काबा के भीतर इनकी मूर्तियों को विशिष्ट स्थान प्राप्तथा. सारा अरब उस समय क़बीलों और वंशों में बंटा हुआ था. हर क़बीले का अपना ओहदा औरपहचान होती थी अरब समाज में. कुसय्य के घराने कुरैश की प्रतिष्ठा उसकी नीतियों औरकाबा की दावेदारी की वजह से बहुत बढ़ गई थी. बाद के समय में ये घराना अरब के सबसेप्रतिष्ठित घरानों में गिना जाने लगा. इस घराने की प्रतिष्ठा उस समय और बढ़ गई, जबइसमें पैदा होने वाले एक शख्स ने ख़ुद को पैगंबर घोषित किया. आगे चलकर वो दुनिया भरके लिए मुहम्मद के नाम से जाना गया.क्रमशः--------------------------------------------------------------------------------इस्लाम का इतिहास की पिछली किस्त:Part 1: कहानी आब-ए-ज़मज़म और काबे के अंदर रखी 360 मूर्तियों कीताबिश सिद्दीकी के और आर्टिकल्स यहां पढ़ें:हलाला के हिमायतियों, कुरआन की ये आयत पढ़ लो, आंखें खुल जाएंगीइस्लाम की नाक बचाने के लिए डॉक्टर कफ़ील को हीरो बनाने की मजबूरी क्यों है?मुसलमानों और हिंदुओं के बीच के इस फर्क ने ही मुसलमानों की छवि इतनी खराब की हैइस्लाम में नेलपॉलिश लगाने और टीवी देखने को हराम क्यों बताया गया?औरंगज़ेब, जो पाबंदी से नमाज़ पढ़ता था और भाइयों का गला काट देता थाहज में ऐसा क्या होता है, जो वहां खंभों को शैतान बताकर उन्हें पत्थर मारे जातेहैं, जानिए इस वीडियो में: