इक्ष्वाकु वंश में एक राजा हुए थे कल्माषपाद. एक दिन वो शिकार से लौट रहे थे. जिसरास्ते से लौट रहे थे, वो वन-वे था. एक बार में एक ही आदमी निकल सकता था. उसीरास्ते में मिल गए शक्तिमुनि. राजा बोले- हम बहुत थके हैं गुरु, किनारे कट लो. हमकोनिकल जाने दो. शक्तिमुनि बोले- राजा हम ब्राह्मण हैं, हमको निकल जाने दो. कल्माषपादखिसिया गए. यहां भूख-प्यास से जिउ(जान) जा रहा है. तुमको बम्हनौती(ब्राह्मणत्व) सूझरही है. कोई पीछे हटने को तैयार न था. ईगो क्लैश हुआ और दोनों में कलेश हुआ. दोनोंलड़ पड़े. कल्माषपाद के हाथ में चाबुक था. मुनि को चाबुक जड़ दिया. मुनि तमतमा गए.श्राप दे दिया- तपस्वी पर चाबुक चलाता है. जा राक्षस बन जा. कल्माषपाद राक्षस बन गएऔर राक्षस बनते ही शक्तिमुनि को खा गए. उनके साथ उनके सारे भाइयों को भी खा गए. जिसइक्ष्वाकु वंश के राजा कल्माषपाद थे, उसी वंश में आगे जाकर भगवान राम भी हुए. जिनशक्तिमुनि को कल्माषपाद खा गए थे, वो वसिष्ठ के बेटे थे. एक दूसरे वसिष्ठ भी हुए,जो आगे जाकर राम के गुरु बने.