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क्या ऑस्ट्रेलिया ने भारत के ख़ुफ़िया एजेंट्स को देश से बाहर निकाला?

क्या भारत ने ऑस्ट्रेलिया में ख़ुफ़िया ऑपरेशन चलाया?

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Australia's Prime Minister Anthony Albanese and India's PM Modi (AFP)
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ और भारत के पीएम नरेंद्र मोदी (AFP)
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2 मई 2024 (Updated: 2 मई 2024, 20:59 IST)
Updated: 2 मई 2024 20:59 IST
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अमेरिका, कनाडा और पाकिस्तान के बाद एक और देश में भारत पर ख़ुफ़िया ऑपरेशन चलाने का आरोप लगा है. ये देश भारत के सबसे अच्छे मित्रों में गिना जाता है. ये क़्वाड का सदस्य भी है. और, इस देश के पीएम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘बॉस’ कहकर संबोधित कर चुके हैं. ये मामला ऑस्ट्रेलिया का है. 30 अप्रैल को ऑस्ट्रेलियाई मीडिया संस्थान ABC न्यूज़ ने एक सनसनीखेज़ रिपोर्ट पब्लिश की. दावा किया कि 2020 में कुछ भारतीय ख़ुफ़िया एजेंटों को ऑस्ट्रेलिया से निकाला गया था. वे लोग डिफ़ेंस और ऑस्ट्रेलिया के व्यापारिक रिश्तों से जुड़ी गोपनीय जानकारियां चुराने की कोशिश कर रहे थे. ऑस्ट्रेलिया ने आधिकारिक तौर पर अभी तक कुछ नहीं कहा है. उसने ना तो रिपोर्ट में किए गए दावों की पुष्टि की है. और, ना ही खंडन किया है. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ और उनकी कैबिनेट सवालों से बचती दिखी. उन्होंने भारत का नाम लिए बिना कहा, कि ऑस्ट्रेलिया विदेशी सरकारों की दखलअंदाज़ी से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है.

आइए जानते हैं,

- ABC न्यूज़ की रिपोर्ट में क्या खुलासा हुआ?
- भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंधों की पूरी कहानी क्या है?
- और, दखलअंदाज़ी के आरोपों का किसी देश की छवि पर क्या असर होता है?

तारीख़, 29 अप्रैल 2024. 

अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट ने एक रिपोर्ट रिलीज़ की. सुर्खी थी,  An assassination plot on American soil reveals a darker side of Modi’s India यानी, अमेरिका की धरती पर हत्या की साज़िश, मोदी के भारत का काला चेहरा

इस रिपोर्ट का फ़ोकस खालिस्तानी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू पर था. वो एंटी-इंडिया गतविधियों के लिए कुख्यात है. 2020 में भारत सरकार ने उसको आतंकवादी घोषित किया था. फिलहाल पन्नू ने अमेरिका और कनाडा की नागरिकता ले रखी है. वो वहीं से भारत के ख़िलाफ़ उकसावे वाले बयान देता रहता है. जून 2023 में कथित तौर पर अमेरिका में उसकी हत्या की साज़िश रची गई. अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट के आरोप-पत्र के मुताबिक़, निखिल गुप्ता नाम के भारतीय एजेंट ने जिस शख़्स को सुपारी दी, वो FBI का एजेंट था. निखिल गुप्ता को बाद में चेक रिपब्लिक में गिरफ़्तार कर लिया गया. वो फिलहाल जेल में है. अमेरिका निखिल गुप्ता को अपने यहां लाने की तैयारी में जुटा है. उसी आरोप-पत्र में जस्टिस डिपार्टमेंट ने रॉ के एक अफ़सर का ज़िक्र भी किया था. हालांकि, उनके नाम के बदले CC-1 का इस्तेमाल किया गया था.

वॉशिंगटन पोस्ट ने 29 अप्रैल वाली रिपोर्ट में CC-1 का नाम विक्रम यादव बताया. बकौल रिपोर्ट, भारत और अमेरिका समेत कई देशों के अधिकारियों से बातचीत के बाद इसकी पुष्टि की गई. भारत ने रिपोर्ट को बेबुनियाद बताकर खारिज़ कर दिया.

वॉशिंगटन पोस्ट की ही रिपोर्ट में एक और दावा छपा था. इसके मुताबिक़, रॉ के अधिकारियों और एजेंट्स को पिछले कुछ बरसों में ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और जर्मनी में भी गिरफ़्तारी, निष्कासन और आलोचना का सामना करना पड़ा है. ब्रिटेन और जर्मनी से अभी तक इस मामले में कुछ नहीं आया है. मगर 30 अप्रैल को ऑस्ट्रेलिया के ABC न्यूज़ ने विस्तृत रिपोर्ट चलाई. क्या-क्या दावे किए गए? 
एक-एक कर समझते हैं.

- बकौल रिपोर्ट, भारतीय एजेंट्स को डिफ़ेंस प्रोजेक्ट, एयरपोर्ट सिक्योरिटी और ऑस्ट्रेलिया के व्यापारिक रिश्तों से जुड़ी गोपनीय जानकारियां चुराने की कोशिश करते हुए पकड़ा गया. पकड़े जाने के बाद उन्हें ऑस्ट्रेलिया से बाहर निकाल दिया गया.

- ऑस्ट्रेलिया की ख़ुफ़िया एजेंसी ऑस्ट्रेलियन सिक्योरिटी इंटेलिजेंस ऑर्गनाइज़ेशन (ASIO) ने 2020 में विदेशी जासूसों के समूह का खुलासा किया. वे लोग ऑस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीयों की निगरानी कर रहे थे. उन्होंने कई स्थानीय नेताओं से घनिष्ठ संबंध बना लिए थे.

- खुलासे के बाद ऑस्ट्रेलिया सरकार ने कई भारतीय एजेंटों को बाहर निकलने के लिए कहा था. वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में रॉ के दो अफ़सरों को निकाले जाने की बात लिखी है.

ABC न्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक़, ASIO के डायरेक्टर-जनरल माइक बर्गीज़ ने कई दफ़ा इस तरफ़ इशारा किया. मगर उन्होंने खुलकर भारत का नाम नहीं लिया.
बर्गीज़ ने मार्च 2021 में एजेंसी के मुख्यालय में एनुअल थ्रेट एसेसमेंट रिपोर्ट रिलीज की. वहां उन्होंने कहा था कि एक देश के जासूसों ने ऑस्ट्रेलिया सरकार से जुड़े ऐसे शख़्स का विश्वास जीत लिया था, जिसके पास सीक्रेट दस्तावेजों का क्लीयरेंस मिला था. उस वक़्त चर्चा चली कि बर्गीज चीन या रूस की बात कर रहे हैं.

मगर 2022 में उन्होंने कहा कि, जो देश हमारे दोस्त समझे जाते हैं, वे भी हमारे ख़िलाफ़ जासूसी कर रहे हैं. जाहिर तौर पर रूस और चीन, ऑस्ट्रेलिया के मित्र देश नहीं हैं. इसलिए, रूस और चीन वाला विकल्प वहीं पर खत्म हो गया.

फिर नवंबर 2023 में बर्गीज़ ने ABC न्यूज़ को इंटरव्यू दिया. वहां उनसे भारतीय जासूसों के कथित निष्कासन से जुड़ा सवाल पूछा गया. बर्गीज़ ने किसी का नाम लेने से मना कर दिया. मगर इतना ज़रूर कहा,
समय-समय पर ऑस्ट्रेलिया में काम कर रहे अघोषित ख़ुफ़िया अधिकारी पकड़े जाते हैं. हम अपनी तरफ़ से पहल करते हैं या सरकार की मदद लेते हैं. इस तरह पकड़े जाने के बाद लोगों को ऑस्ट्रेलिया छोड़ना पड़ता है.

ABC न्यूज़ ने सरकारी सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि, ऑस्ट्रेलिया में ख़ुफ़िया ऑपरेशन चलाने वाले मित्र देशों में भारत के अलावा सिंगापुर, इज़रायल और साउथ कोरिया के भी नाम हैं.

हालिया आरोपों पर ऑस्ट्रेलिया सरकार ने क्या कहा? प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ ने इंटेलिजेंस मैटर बताकर बयान देने से मना कर दिया.  ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग ने सवाल टाल दिया. हालांकि, उन्होंने कहा कि विदेशी दखल से निपटने के लिए हमारे पास पर्याप्त क़ानून हैं. वॉन्ग ने भी किसी का नाम नहीं लिया. राजस्व मंत्री जिम चामर्स ने रिपोर्ट पर कमेंट करने से इनकार कर दिया. ये ज़रूर बोले कि भारत के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं.

यानी, ऑस्ट्रेलिया की सरकार आधिकारिक तौर पर कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है. यहां पर विपक्षी नेता पीटर डटन का बयान भी जान लीजिए. पीटर 2020 में ऑस्ट्रेलिया के गृह मंत्री थे. उन्हीं के कार्यकाल में कथित तौर पर भारतीय जासूसों को ऑस्ट्रेलिया से निष्कासित किया गया था. डटन बोले, इस तरह के मामलों से निपटा जा सकता है. भारत क़्वाड में हमारा अहम साझेदार है. उनका सहयोग इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि वे भी हमारी तरह साझा लोकतांत्रिक मूल्यों में यक़ीन रखते हैं.

अब भारत सरकार का पक्ष जान लेते हैं. ABC न्यूज़ की रिपोर्ट पर भारत सरकार ने क्या कहा? 02 मई को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने वीकली प्रेस ब्रीफ़िंग में हिस्सा लिया. ऑस्ट्रेलियन मीडिया में छपी रिपोर्ट्स पर उन्होंने कहा, इन रिपोर्ट्स का सबूतों से कोई लेना-देना नहीं है. इसलिए, उसपर कमेंट नहीं करेंगे.

अब भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों का तिया-पांचा समझ लेते हैं. दोनों देशों का रिश्ता कितना अहम है? भारत और ऑस्ट्रेलिया, दोनों ब्रिटेन की कॉलोनी थे. 1901 में ऑस्ट्रेलिया सेल्फ़-गवर्निंग डोमिनियन बना. आंतरिक मसलों से जुड़े फ़ैसले लेने का अधिकार स्थानीय लोगों को मिला. हालांकि, विदेश-नीति की डोर ब्रिटेन के हाथों में बनी रही. 1942 में ऑस्ट्रेलिया को पूर्ण स्वायत्तता मिल गई. हालांकि, ब्रिटेन के कई क़ानून ऑस्ट्रेलिया पर लंबे समय तक लागू होते रहे.

ऑस्ट्रेलिया ने भारत की आज़ादी का समर्थन किया था. आख़िरकार, अगस्त 1947 में भारत को आज़ादी मिल गई. 1950 में रॉबर्ट मेंज़िस भारत का दौरा करने वाले पहले ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री बने. मई 1968 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ऑस्ट्रेलिया गईं थी. हालांकि, रिश्तों में मधुरता की कमी बनी रही. ऑस्ट्रेलिया ने 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण का विरोध किया था.
नवंबर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गए. G20 लीडर्स समिट में हिस्सा लेने. वो 28 बरस बाद ऑस्ट्रेलिया पहुंचने वाले पहले भारतीय पीएम बने थे.
मई 2023 में वो दूसरी बार ऑस्ट्रेलिया पहुंचे. वहां उन्होंने भारतीय मूल के लोगों को संबोधित किया था. 

कहां-कहां पार्टनर हैं भारत-ऑस्ट्रेलिया?

- दोनों क़्वाड के सदस्य हैं. क़्वाड में भारत और ऑस्ट्रेलिया के अलावा अमेरिका और जापान भी हैं. इसकी स्थापना 2004 में आई सुनामी के बाद की गई थी. मक़सद है, सदस्य देशों के बीच आर्थिक, सामरिक और दूसरे मसलों पर सहयोग बढ़ाना. हालांकि, कई जानकार मानते हैं कि, क़्वाड को इंडो-पैसिफ़िक में चीन को चुनौती देने के लिए बनाया गया है. 

- भारत और ऑस्ट्रेलिया, दोनों कॉमनवेल्थ और G20 जैसे संगठनों के भी अहम सदस्य हैं.

- भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 2+2 डायलॉग भी शुरू हुआ है. इसके तहत दोनों देशों के रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री मीटिंग करते हैं. भारत ने ये सिस्टम सिर्फ़ पांच देशों के साथ बनाया है. ऑस्ट्रेलिया के अलावा और कौन-कौन से देश हैं? अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, ब्रिटेन और रूस.

- ऑस्ट्रेलिया, भारत का छठा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है. 2022 में दोनों देशों के बीच ढाई लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा का व्यापार हुआ था.

- ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. 

- भारतीय छात्रों के लिए भी ऑस्ट्रेलिया पॉपुलर डेस्टिनेशन बनकर उभरा है. सितंबर 2023 में ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहे छात्रों की संख्या 01 लाख 22 हज़ार से ज़्यादा थी.

अब ये जानते हैं कि, ऑस्ट्रेलिया से पहले किन-किन देशों में भारत पर सवाल उठे?

> कनाडा

सितंबर 2023 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपनी संसद में भारत पर आरोप लगाए थे. कहा था, इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि भारत सरकार के एजेंटों ने कनाडा में घुसकर हरदीप सिंह निज्जर की हत्या करवा दी. हरदीप सिंह निज्जर खालिस्तानी आतंकी था. जून 2023 में कनाडा में गुरुद्वारे के बाहर उसकी हत्या हो गई. कनाडा ने हत्या का आरोप भारत पर लगाया. मगर अभी तक आरोप से संबंधित सबूत नहीं दिए हैं.

> अमेरिका

नवंबर 2023 में ब्रिटिश अख़बार फ़ाइनेंशियल टाइम्स ने गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साज़िश का खुलासा किया था. बकौल रिपोर्ट, अमेरिकी एजेंसियों ने पन्नू की हत्या की साज़िश को नाकाम कर दिया.
ऑस्ट्रेलिया ने बैक चैनल से भारत के साथ सबूत साझा किए. सितंबर 2023 में G20 लीडर्स समिट के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने पीएम मोदी के सामने ये मसला उठाया था. तब भारत ने जांच का वादा किया.उस मामले में एक हाईलेवल कमिटी बनाई गई है. मामले की जांच चल रही है. अभी तक आधिकारिक तौर पर जांच रिपोर्ट सामने नहीं आई है.

> पाकिस्तान

जनवरी 2024 में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर भारत पर आरोप लगाए. दावा किया कि भारत, पाकिस्तान के अंदर उसके नागरिकों की हत्या करवा रहा है. ये पाकिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन है. इसको बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

भारत ने पाकिस्तान के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. कहा, पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ झूठी और द्वेषपूर्ण प्रोपेगैंडा फैलाने की कोशिश कर रहा है. अप्रैल 2024 में ब्रिटिश अख़बार गार्डियन ने इंटेलिजेंस अधिकारियों के हवाले से दावा किया कि, भारत सरकार के आदेश पर पाकिस्तान में कम से कम 20 लोगों की हत्या हुई. मारे गए लोगों पर भारत में आतंक फैलाने का आरोप था.

विदेशी धरती पर ऑपरेशन चलाने का असर क्या होता है?

पूरी दुनिया में जासूसी एजेंसियां गुपचुप तरीके से काम करती रहती हैं. चूंकि आज के दौर में दुनिया एक-दूसरे से जुड़ी हुई है. इसलिए, किसी देश में घटने वाली छोटी-बड़ी हर घटना पर कई देशों की नज़र रहती है. दुश्मन देशों में ख़ुफ़िया एजेंट्स छिपकर या पहचान बदलकर काम करते हैं. मित्र देशों में वे वहां की इंटेलिजेंस एजेंसियों के संपर्क में रहते हैं. दूतावासों में भी ख़ुफ़िया एजेंसी के अधिकारी तैनात रहते हैं. उनके बारे में उस देश की सरकार को पूरी जानकारी रहती है. मगर कई बार औपचारिकताओं को किनारे रख दिया जाता है. जब ख़ुफ़िया एजेंसियां स्टैण्डर्ड प्रोटोकॉल से इतर जाकर काम करती हैं. ये एक फ़ैक्ट है. हालांकि, इसमें कई तरह के ख़तरे होते हैं. एक तो ये उस देश की संप्रभुता का उल्लंघन है. और दूसरी बात, इंटरनैशनल लॉ इसकी इजाज़त नहीं देता.

मसलन, 1970 और 80 के दशक में इज़रायल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद ने यूरोप और अरब देशों में लंबा ऑपरेशन चलाया था. वे 1972 के म्युनिख ओलम्पिक में इज़रायली एथलीट्स की हत्या के दोषियों को ढूंढ रहे थे. उन्होंने लेबनान, इटली, फ़्रांस, जर्मनी में घुसकर संदिग्ध लोगों को निशाना बनाया. हालांकि, नॉर्वे में एक ऑपरेशन के दौरान मोसाद के तीन एजेंट पकड़े गए. उनको सज़ा भी हुई. इस घटना के चलते दोनों देशों के संबंध बिगड़ गए थे. एजेंट्स को छुड़ाने के लिए इज़रायल को समझौता करना पड़ा था.

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