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हरियाणा में प्राइवेट नौकरियों में 75 फीसदी आरक्षण लागू, जानिए और किन राज्यों में ऐसा आरक्षण है

और ये भी कि संविधान इस बारे में क्या कहता है?

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हरियाणा में The Haryana State Employment of Local Candidates Act, 2020 को राज्यपाल की मंजूरी मिल गई है.
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अभिषेक त्रिपाठी
4 मार्च 2021 (Updated: 3 मार्च 2021, 02:36 IST)
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हरियाणा में The Haryana State Employment of Local Candidates Act, 2020 लागू हो गया है. राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्या ने 2 मार्च को इस पर मुहर लगा दी. इसके लागू होते ही हरियाणा में प्राइवेट सेक्टर की 75 फीसदी नौकरियां राज्य के ही लोगों के लिए रिज़र्व हो गईं, आरक्षित हो गईं. राज्य के उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने ट्वीट करके इसके बारे में जानकारी दी थी. लिखा–
बहुत खुशी के साथ आप सबसे सांझा कर रहा हूँ कि महामहिम राज्यपाल की अनुमति के बाद 'The Haryana State Employment of Local Candidates Act, 2020' आज से पूरे हरियाणा में लागू हो गया जिससे प्राइवेट सेक्टर में 75% नौकरियां हरियाणा के युवाओं के लिए आरक्षित हो गई।
इस कानून में क्या खास है? सबसे पहले इस कानून के ख़ास प्रावधान जान लेते हैं. # राज्य में प्राइवेट सेक्टर की सारी ऐसी नौकरियां, जिनमें तनख़्वाह 50 हज़ार रुपये से कम है, उनमें 75 फीसदी सीटें ‘लोकल कैंडिडेट्स’ के लिए आरक्षित रखनी होंगी. # सरकार इसके लिए एक पोर्टल की व्यवस्था करेगी. रोजगार चाह रहे लोकल कैंडिडेट्स अपने आपको इस पोर्टल पर रजिस्टर कराएंगे. इस पोर्टल के माध्यम से ही कंपनियां उन्हें अप्रोच करेंगी. # अगर किसी कंपनी को लगता है कि उसने लोकल कैंडिडेट्स को परख तो लिया, लेकिन उनके काम के हिसाब से स्किल रखने वाले पर्याप्त लोग मिले नहीं. ऐसे में वो इस काम के लिए नियुक्त अधिकारी के सामने अर्जी दे सकती है कि साब हमें लोग मिल नहीं रहे. # अब अधिकारी या तो कंपनी की बात मानकर उन्हें ज़रूरत मुताबिक छूट दे देगा. या फिर ये निर्देश भी दिए जा सकते हैं कि लोकल कैंडिडेट्स लायक नहीं हैं तो उन्हें लायक बनाइए, ट्रेनिंग दीजिए. # इस कानून के तहत मिल रहा आरक्षण फिलहाल 10 साल के लिए लागू रहेगा. इस बिल में हरियाणा सरकार ने ये भी कहा है कि –
“हरियाणा में कम आय वाली नौकरियों की तलाश में राज्य के बाहर के तमाम लोग आते हैं. इस वजह से राज्य में आवासीय योजनाओं पर, लोकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर असर पड़ रहा है. झुग्गियां बढ़ रही हैं, जिसका असर पर्यावरण और लोगों की सेहत पर भी पड़ रहा है. इसलिए ऐसी नौकरियों में लोकल लोगों को बढ़ावा देना सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से ज़रूरी है.”
संविधान क्या कहता है? जिस संविधान से देश चलता है या एटलीस्ट चलना चाहिए, उसमें राज्य की तरफ से ‘जन्मस्थान’ के आधार पर भेदभाव न करने और ‘अवसर की समानता’ की बात कही गई है. इसके लिए संविधान के तीन आर्टिकल्स का ज़िक्र यहां ज़रूरी है. संविधान के भाग-3 में मूल अधिकारों की बात है. इनमें एक मूल अधिकार समता का अधिकार है. आर्टिकल 14 में कहा गया है कि राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा. आर्टिकल 15 में लिखा है कि राज्य किसी नागरिक से धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, ‘जन्मस्थान’ या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा. वहीं आर्टिकल-16 (1) के मुताबिक, राज्य के अधीन किसी जगह पर रोज़गार या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी. और किन राज्यों में है ऐसा आरक्षण? उन राज्यों के बारे में जान लेते हैं, जहां नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था है. # जम्मू-कश्मीर डोमिसाइल को लेकर नियमों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियां स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित हैं. लेकिन इसके अलावा कौन यहां का निवासी है, इन नियमों में हाल ही में कुछ बदलाव भी किए गए हैं. कोई व्यक्ति, जो 15 साल तक राज्य में रहा है, वो और उसके बच्चे यहां के निवासी माने जाते हैं. वो लोग जो सात साल तक जम्मू-कश्मीर में पढ़े हों और यहां की कक्षा 10 और 12 की परीक्षाओं में शामिल हुए हों, वो यहां के निवासी हैं. केंद्र सरकार के कर्मचारी, जिन्होंने 10 साल तक राज्य में सेवा दी हो, वो राज्य के निवासी माने जाएंगे. इन कर्मचारियों के बच्चे भी सरकारी नौकरी के लिए अप्लाई कर सकते हैं. आर्टिकल 370 यानी राज्य का विशेष दर्जा हटने से पहले जम्मू-कश्मीर में राज्य के विषयों के लिए नौकरियां आरक्षित थीं. # महाराष्ट्र यहां मराठी भाषा में पारंगत स्थानीय निवासियों को सरकारी नौकरी में तवज्जो दी जाती है. स्थानीय का मतलब, किसी शख्स का यहां घर हो, वो 15 साल से ज़्यादा समय से यहां रहा हो. हालांकि नौकरियों में आवेदन के लिए कर्नाटक के बेलगाम ज़िले के निवासियों को छूट दी गई है. बेलगाम में बड़ी संख्या में मराठीभाषी रहते हैं. इस वजह से महाराष्ट्र लंबे समय से बेलगाम पर अपना दावा करता आया है. # गुजरात राज्य के श्रम और रोजगार विभाग का 1995 का सरकारी प्रस्ताव कहता है कि राज्य सरकार के किसी उपक्रम-उद्योग में कर्मचारियों, कारीगरों के चयन में कम से कम 85 फीसदी और मैनेजर, सुपरवाइजर जैसे पदों पर 60 फीसदी स्थानीय निवासी होंगे. # असम असम में स्थानीय निवासियों के लिए कोई आरक्षण तो नहीं है, लेकिन गृह मंत्रालय की तरफ से नियुक्त कमिटी ने राज्य सरकार के अलग-अलग स्तरों और प्राइवेट सेक्टर में असम अकॉर्ड (समझौते) की धारा 6 के तहत असम के लोगों के लिए 80 से 100 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की है. # मेघालय राज्य सरकार की नौकरियों में खासी, जयंतिया और गारो जनजातियों को मिलाकर 80 फीसदी का आरक्षण मिलता है. दूसरी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति को 5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है. #अरुणाचल प्रदेश यहां अनुसूचित जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों में 80 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है. # मध्य प्रदेश यहां भी पिछले साल सरकारी नौकरियां राज्य के लोगों के लिए रिज़र्व कर दी गईं. हालांकि कई मामलों में कोर्ट की तरफ से जन्म या क्षेत्रीय आधार पर आरक्षण दिए जाने को लेकर सख्ती दिखाई गई है. जैसे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2019 में उत्तर प्रदेश सबऑर्डिनेट सर्विस सेलेक्शन कमीशन (UPSSC) के नौकरी वाले नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया था. इसमें राज्य की निवासी महिलाओं को तरजीह देने का नियम रखा गया था.

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