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कभी कांग्रेस का गढ़, अब BJP का किला, हरियाणा के अहीरवाल में इस बार चलेगा किसका जोर?

Haryana की राजनीति में अहीरवाल क्षेत्र की अहम भूमिका है. यहां की राजनीति में तीन राजनीतिक परिवारों का दबदबा रहा है. पिछले दो चुनावों से अहीरवाल में BJP का दबदबा रहा है. और इस दबदबे के पीछे राव इंद्रजीत सिंह का अहम योगदान है.

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कैप्टन अजय सिंह यादव (बाएं) और राव इंद्रजीत (दाएं) की खानदानी प्रतिद्वंदिता रही है.
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आनंद कुमार
10 सितंबर 2024 (Published: 15:34 IST)
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अहीरवाल. हालिया दिनों में हरियाणा की सत्ता की चाबी यहीं से मिली. राव बीरेंद्र सिंह इस इलाके से मुख्यमंत्री रहे. उनके बेटे राव इंद्रजीत लंबे समय तक कांग्रेस की राजनीति का दमदार चेहरा रहे. लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. जाट लीडरशिप उनके सपने के आड़े आते रही. 2014 में भूपेंद्र हुड्डा से नाराजगी के चलते राव ने कांग्रेस छोड़ी. और बीजेपी के साथ हो लिए. साथ ही इस इलाके से कांग्रेस की किस्मत रूठी और बीजेपी की चमकी. कांग्रेस अहीरवाल में एक-एक सीट को तरस गई. और राज्य की सत्ता से भी बाहर हो गई. वहीं लगातार दो बार राज्य की सत्ता में पहुंचने का बीजेपी का रास्ता अहीरवाल से होकर ही गुजरा है. 2014 में बीजेपी ने अहीरवाल की सभी 11 सीटें जीतीं. और 2019 में 11 में से 8 सीटें पार्टी के खाते में आईं. अब 2024 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी की सियासी हैट्रिक की उम्मीदें अहीरवाल क्षेत्र पर ही टिकी हैं.

‘अहीरवाल’ जहां हिसार के यादव अपनी बेटियां नहीं ब्याहते हैं

हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र में गुरुग्राम, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ तीन जिले आते हैं. जिनमें 11 विधानसभा सीटें हैं. रेवाड़ी, बावल, कोसली, महेंद्रगढ़, नारनौल, नांगल चौधरी, अटेली, गुड़गांव, पटौदी, सोहना और बादशाहपुर. इन जिलों में अहीर जाति (यादव) का प्रभाव है. संख्या में भी और राजनीति में भी. ऐसे दावे किए जाते हैं कि 70 के दशक में हरियाणा में अगर किसी IAS अधिकारी को सजा देनी होती थी उसका ट्रांसफर अहीरवाल क्षेत्र में कर दिया जाता था. अपनी किताब ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ में पूर्व IAS राम वर्मा लिखते हैं कि जब हिसार से बस में बैठकर वो नारनौल पहुंचे तो उन्हें गोद में बच्चे लिए पानी भरने जाती औरतें और कच्ची सड़के दिखीं. इस किताब में उन्होंने कई बार जिक्र किया है कि चंडीगढ़ से रोहतक, हिसार, भिवानी होते हुए नारनौल जाने के रास्ते में मंजिल करीब आने पर  विकास की दूरी साफ झलकती थी. 

यूं तो 1970 के आसपास ही तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने राज्य में नहरों का जाल बिछा दिया था. घर-घर बिजली पहुंचाई थी. और हर गांव तक सड़क पहुंचाने का भी दावा किया था. लेकिन आजादी के 75 से ज्यादा साल बीतने के बावजूद अहीरवाल के कुछ हिस्सों में स्थिति आज भी वैसी ही है. यहां के गांव हिसार जिले के गांव जैसे नहीं बन पाए हैं. कई इलाके अब भी ऐसे हैं जहां की औरतें पानी सिर पर ढोकर लाने को मजबूर हैं. इस वजह से रोहतक और हिसार के यादव इस इलाके में अपनी बेटियों को ब्याहने से कतराते हैं.

अहीरवाल की सियासत में तीन राजनीतिक परिवारों का दबदबा

हरियाणा की राजनीति में तीन ‘लाल’- देवी लाल, बंसी लाल और भजन लाल और उनके उत्तराधिकारियों का प्रभाव रहा है. उसी तरह अहीरवाल की राजनीति में भी तीन राजनीतिक परिवारों का दबदबा है. इनमें से एक परिवार राव तुला राम से जुड़ा है. जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था. 1857 की क्रांति में जो स्थान रानी लक्ष्मीबाई का रहा है, अहीर समुदाय में वही स्थान राव तुलाराम का है.

राव बीरेंद्र सिंह का रामपुरा हाउस

राव तुलाराम की तीसरी पीढ़ी में 1921 में राव बीरेंद्र का जन्म हुआ. राव बीरेंद्र ने सेंट स्टीफेंस से पढ़ाई की और आर्मी ऑफिसर बने. फिर 1949-50 बैच में आईपीएस में सेलेक्ट हुए. 1952 में फिर कमीशंड अधिकारी बने. और फिर सक्रिय राजनीति में आ गए. और अपनी एक क्षेत्रीय पार्टी बनाई. 1954 में पहली बार विधान परिषद पहुंचे. और इसी दौरान कांग्रेस में शामिल हो गए.

1956 में प्रताप सिंह कैरो की सरकार में उप मंत्री बन गए. कुछ महीनों बाद कैबिनेट मंत्री भी बने. लेकिन 1961 में प्रताप सिंह कैरो के साथ मतभेद के चलते हटाए गए. 1966 में हरियाणा और पंजाब का बंटवारा हुआ. फिर 1967 में पहली बार हरियाणा विधानसभा चुनाव हुए. राव बीरेंद्र चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. लेकिन कुछ दिनों बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री पंडित भगवत दयाल शर्मा के साथ मतभेद के बाद कांग्रेस छोड़ दी. और हरियाणा के सीनियर नेताओं के साथ मिलकर संयुक्त विधायक दल बना ली. और नवंबर 1967 में हरियाणा के मुख्यमंत्री बने. संयुक्त विधायक दल के विघटन के बाद उन्होंने विशाल हरियाणा पार्टी बना ली.

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राव बीरेंद्र सिंह (बाएं) राव इंद्रजीत सिंह (दाएं)

1978 में राव बीरेंद्र ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया. और 1980 और 1984 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते. थोड़े-थोड़े समय के लिए दो बार उनको कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया. कैबिनेट मंत्री रहते हुए उन्होंने 1981 में रावी-ब्यास नहर लिंक समझौता करवाया. उसके बाद राजीव गांधी से मतभेदों के चलते वो जनता दल में चले गए. फिर 1989 में हुए लोकसभा चुनाव जीते और केंद्र में मंत्री बने. 2009 में 80 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया.

राव बीरेंद्र सिंह के तीन बेटे राजनीति में सक्रिय हैं. उनके बेटे राव इंद्रजीत नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री हैं. राव इंद्रजीत ने सियासी करियर की शुरुआत 1977 में कांग्रेस से की. वे चार बार हरियाणा विधानसभा के सदस्य रहे हैं. और 1982 से 87 तक राज्य सरकार में खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री की जिम्मेदारी भी निभाई. राव इंद्रजीत 1998 में पहली बार महेंद्रगढ़ से सांसद बने. फिर 2004 में भी यहां से चुने गए. 2008 में हुए परिसीमन के बाद से 2009, 2014 और 2019 और 2024 में वो गुरुग्राम सीट से जीतकर संसद पहुंचे. 2014 से पहले कांग्रेसी थे. फिर भाजपाई हो गए. 2014 से लगातार केंद्र सरकार में मंत्री हैं.

राव इंद्रजीत नेशनल स्तर पर शूटिंग में अवॉर्ड जीत चुके हैं. और उनकी बेटी आरती राव भी शूटर हैं. और अब तुलाराम की विरासत से निकलने वाली भावी नेता भी. राव इंद्रजीत सिंह के दो भाई भी हैं. जिनका नाम राव अजीत सिंह और राव यादवेंद्र सिंह है. राव इंद्रजीत की बेटी जहां हरियाणा में बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की मेंबर है. वहीं अजीत सिंह के बेटे राव अर्जुन सिंह अब कांग्रेस पार्टी में हैं.

राव अभय सिंह का परिवार  

अहीरवाल की राजनीति में दूसरा परिवार राव अभय सिंह का है. राव अभय सिंह ने 1952 में राव इंद्रजीत के पिता राव बीरेंद्र को हराया था. सियासत में उनकी विरासत को संभाला उनके बेटे कैप्टन अजय सिंह यादव ने. दो नवंबर 1958 को जन्मे अजय सिंह यादव ने जून 1980 में सेकेंड लेफ्टिनेंट के तौर पर भारतीय सेना जॉइन किया था. सात साल बाद कैप्टन के पद पर रहते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया. और सक्रिय राजनीति में आ गए. कैप्टन अजय सिंह यादव कांग्रेस के टिकट पर रेवाड़ी से छह बार विधायक रह चुके हैं. 2014 के विधानसभा चुनाव में कैप्टन अजय सिंह यादव को हार का सामना करना पड़ा. और इसके बाद 2019 लोकसभा चुनाव में उनको राव इंद्रजीत सिंह से शिकस्त मिली. अब उनकी अगली पीढ़ी राजनीति में एक्टिव है. अजय सिंह के बेटे चिरंजीव राव ने 2019 में अपने पहले चुनाव में रेवाड़ी विधानसभा से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी. चिरंजीव राव की एक और पहचान है, वो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दामाद भी हैं. 

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कैप्टन अजय यादव (बाएं) चिरंजीव राव (दाएं)
राव मोहर सिंह का बूढ़पुर हाउस

अहीरवार क्षेत्र का तीसरा सबसे प्रभावशाली परिवार राव मोहर सिंह द्वारा स्थापित बूढ़पुर हाउस है. मोहर सिंह ने विभाजन से पहले गुरुग्राम में पहला सहकारी बैंक खोला था. राव मोहर सिंह 1942 में संयुक्त पंजाब में विधायक चुने गए थे. चार साल बाद वे तत्कालीन यूनियनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और 1957 में अपनी मृत्यु तक विधायक बने रहे. मोहर सिंह की राजनीतिक विरासत संभाली राव महाबीर सिंह ने. ग्राम पंचायत से अपना सफर शुरू करने वाले महाबीर सिंह तीन बार विधायक बने. पहली बार 1967 में निर्दलीय और 1968 व 1972 में कांग्रेस के टिकट पर. उनके भाई विजयवीर सिंह भी एक बार विधायक बने.

महाबीर सिंह के बेटे राव नरबीर सिंह तीन बार के विधायक रहे हैं. वे 1987 में पहली बार देवीलाल की पार्टी लोकदल के टिकट पर जाटूसाना विधानसभा से विधायक बने. जिसके बाद उन्हें सूबे का गृह राज्य मंत्री बनाया गया. उनके नाम हरियाणा के सबसे कम उम्र का मंत्री बनने का रिकॉर्ड है. दूसरी बार वे 1996 में चौधरी बंसी लाल की पार्टी के टिकट पर सोहना से विधायक बने. और फिर मंत्री भी बनाए गए. उन्होंने 2014 में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में बादशाहपुर से अपनी आखिरी जीत दर्ज की थी. और मनोहर लाल खट्टर सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए.

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राव नरबीर सिंह
अहीरवाल में राव इंद्रजीत के भरोसे भाजपा

 बीजेपी ने अहीरवाल की 11 में से 10 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. टिकट बंटवारे में बीजेपी ने केंद्र में कैबिनेट रैंक नहीं मिलने से नाराज बताए जा रहे राव इंद्रजीत को साधने की पूरी कोशिश की है. राव इंद्रजीत की बेटी आरती राव को अटेली विधानसभा से टिकट दिया गया है. यहां से सिटिंग विधायक सीताराम सिंह का टिकट काटा गया है. 

हरियाणा तक से जुड़े राहुल यादव ने बताया, 

कोसली से अनिल दहिना को टिकट मिला है वो राव इंद्रजीत के खेमे के माने जाते हैं. उनकी बेटी को अटेली से टिकट मिला. वहीं रेवाड़ी सीट से राव इंद्रजीत सुनील मुसेपुर के लिए टिकट चाहते थे तो पार्टी रणधीर सिंह कापड़ीवास को टिकट देना चाहती थी. लेकिन इस सीट पर बीच का रास्ता निकाला गया. मोसली के विधायक लक्ष्मण सिंह यादव को यहां शिफ्ट किया गया. जिनसे राव इंद्रजीत को भी कोई आपत्ति नहीं है. इसके अलावा गुड़गांव सीट से मुकेश शर्मा को टिकट मिला है. वो बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता हैं लेकिन इनके टिकट में भी राव इंद्रजीत सिंह की सहमति ली गई है.

राव इंद्रजीत सिंह ने पिछली बार अपने 5-6 चहेतों को टिकट दिलवाया था. और इस बार भी अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए पूरी ताकत लगा रहे थे. इस बारे में हरियाणा की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और गुरुकुल इन पॉलिटिक्स न्यूज पोर्टल के संपादक धर्मेंद्र कंवारी बताते हैं, 

टिकट वितरण के बाद ये स्पष्ट हो गया है कि अहीरवाल में राव इंद्रजीत का दबदबा कायम है. उनकी बेटी सहित उनके 6 समर्थकों को बीजेपी ने टिकट दिया है. इससे ये तय हो गया है कि बीजेपी पिछले दस साल से जिस राव इंद्रजीत को हाशिये पर रख रही थी उनकी अहमियत उनको समझ में आ गई है. और उनके समर्थकों को टिकट दी गई है. राव इंद्रजीत का कद इससे बढ़ा है. और बीजेपी को अहीरवाल में इससे काफी मजबूती मिलेगी.
 

इसके अलावा नांगल चौधरी सीट से बीजेपी ने अभय सिंह यादव, नारनौल सीट से ओम प्रकाश यादव, बावल सीट से डॉ कृष्ण कुमार, पटौदी सीट से विमला चौधरी और सोहना सीट से तेजपाल तंवर को टिकट दिया है. जबकि बादशाहपुर सीट से अहीरवाल के एक और दिग्गज क्षत्रप और राव इंद्रजीत के प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले राव नरबीर सिंह को टिकट मिला है. राव नरबीर सिंह कुछ दिन पहले बागी तेवर दिखा चुके थे. हाल में उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर बीजेपी उन्हें टिकट नहीं देगी तो वह कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. अहीरवाल की बची चार सीटें महेंद्रगढ़, नारनौल, पटौदी और बावल के लिए अभी उम्मीदवारों की घोषणा नहीं हुई है.

अहीरवाल में राव इंद्रजीत विरोधी खेमे को झटका  

अहीरवाल के इलाके में बीजेपी में राव इंद्रजीत का विरोधी खेमा भी काफी ताकतवर है. राव इंद्रजीत सिंह के विरोधी धड़े में पूर्व कैबिनेट मंत्री राव नरबीर सिंह के अलावा पूर्व विधायक रणबीर कापड़ीवास, पूर्व डिप्टी स्पीकर संतोष यादव, भाजपा संसदीय बोर्ड की सदस्य सुधा यादव, सिंचाई मंत्री डॉ अभय सिंह यादव और पर्यटन निगम के अध्यक्ष अरविंद यादव शामिल हैं. इस खेमे में शामिल नेता भी कई सीटों पर टिकट चाहते थे. लेकिन अहीरवाल की जो लिस्ट आई है उससे राव नरबीर सिंह को छोड़कर बाकी लोगों को निराशा हाथ लगी है. 

अहीरवाल में कांग्रेस की चुनौती 

राव इंद्रजीत सिंह के बीजेपी में शामिल होने से पहले अहीरवाल कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था. लेकिन 2014 के बाद से कांग्रेस यहां से एक-एक सीट जीतने के लिए संघर्ष करती आई है. पिछले चुनाव में कांग्रेस को यहां की दो सीटों रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ पर जीत मिली थी. लोकसभा चुनाव में जाटों और किसानों की नाराजगी और अग्निवीर जैसे मुद्दों के सहारे कांग्रेस ने हरियाणा के बाकी हिस्सों में अच्छा प्रदर्शन किया. लेकिन अहीरवाल में समर्थन पाने में असफल रही. अब इस चुनाव में कांग्रेस की आस अच्छे प्रत्याशी चुनने और बीजेपी की संभावित अंतरकलह पर टिकी है. लोकसभा चुनाव में राज बब्बर ने जिस तरह से राव इंद्रजीत को टक्कर दी है, उससे कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं. 

अहीरवाल में कांग्रेस की संभावनाओं के बारे में राहुल यादव बताते हैं,

 कांग्रेस की यहां संभावनाएं हैं कुछ सीटों पर. जैसे बावल की सीट जिस पर जाट वोटर्स ठीक-ठाक संख्या में हैं. महेंद्रगढ़ में कांग्रेस का स्कोप है क्योंकि वहां से राव दान सिंह पार्टी के सिटिंग विधायक हैं. इसके अलावा बात करें रेवाड़ी सीट की तो पिछली बार आपसी फूट की वजह से बीजेपी हारी.और इस बार भी ऐसा होने की बात कही जा रही है. पिछली बार रणधीर कापड़ीवास बीजेपी से बगावत करके लड़े थे. इस बार उनके भतीजे यहां से लड़ने की तैयारी में हैं. बावल, महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी में कांग्रेस के जीतने के चांसेज हैं.

अहीरवाल की रेवाड़ी सीट से कांग्रेस विधायक चिरंजीव राव मैदान में हैं. उन्होंने अपने चुनावी अभियान के दौरान दावा किया कि अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो उन्हें डिप्टी सीएम बनाया जाएगा. हालांकि, बाद में पार्टी प्रभारी दीपक बाबरिया ने उनके इस बयान का खंडन किया. चिरंजीव राव दिग्गज कांग्रेसी नेता कैप्टन अजय यादव के बेटे और लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं. वहीं महेंद्रगढ़ विधानसभा से चार बार के विधायक राव दान सिंह एक बार फिर से इस सीट से अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं.

अहीरवाल के बड़े मुद्दे

नहरों में पानी ना आना यहां का मुख्य मुद्दा रहा है. सेना में अहीर रेजीमेंट की मांग भी यहीं से उठी है. यहां के लोग फौज में जाते हैं या किसानी करते हैं. इसलिए ज्यादातर मुद्दे इन्हीं दोनों पेशे से जुड़े हुए हैं. 

आजादी के 77 सालों बाद भी अहीरवाल में पानी की समस्या बरकरार है. यहां की जमीन रेतीली है. ग्राउंड वाटर लेवल लगातार गिरता जा रहा है और अब हजारों फीट नीचे पहुंच चुका है. प्रदेश सरकार ने एरिया को डार्क जोन घोषित कर रखा है. किसान ट्यूबवेल नहीं लगा सकते. ऐसे में नहर का पानी ही एकमात्र समाधान है. लेकिन खेतों को नहर का पानी नहीं मिल पाता. जिसके चलते फसलों का उत्पादन प्रभावित होता है. गेहूं, कपास, बाजरा और सरसों इस इलाके की प्रमुख फसलें हैं. यहां के किसानों को अब भी सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) के पानी का इंतजार है. यहां हर चुनाव में SYL का पानी चुनावी मुद्दा बनता है. नेता बड़े-बड़े दावे करते हैं. लेकिन चुनावी हार-जीत के बाद यह मुद्दा कहीं खो जाता है.

यहां के युवाओं में सेना में जाने का क्रेज है. लेकिन अग्निवीर योजना के आने के बाद से यहां के युवा वोटरों में बीजेपी को लेकर नाराजगी है. इसके अलावा अहीरवाल के रेवाड़ी में बन रहे एम्स में हो रही देरी के चलते भी स्थानीय लोगों में रोष है. एम्स के लिए जमीन मिल गई है और शिलान्यास भी हो गया है. लेकिन इसकी नींव रखने में ही नौ साल से ज्यादा का समय लग गया.

वरिष्ठ पत्रकार धर्मेंद्र कंवारी का मानना है, 

अहीरवाल का सबसे बड़ा मुद्दा है कि वहां कोई मुद्दा नहीं है. अहीरवाल हरियाणा का सबसे पिछड़ा इलाका है. यहां पीने के पानी की किल्लत है. रोजगार की समस्या है और ऐसी कोई दिक्कत नहीं है जो अहीरवाल में नहीं हो. लेकिन अहीरवाल इस दिक्कत पर कभी वोट नहीं करता. राव इंद्रजीत सिंह के परिवार का यहां लंबे समय से दबदबा है. और वो जिस तरफ होते हैं उसी पार्टी के अधिकतर विधायक जीतते हैं.

अहीरवाल की राजनीति लंबे समय तक तीन परिवारों के इर्द -गिर्द घूमती रही है. इनमें राव बीरेंद्र सिंह का परिवार इस इलाके का सबसे मजबूत राजनीतिक परिवार है. जिसकी विरासत राव इंद्रजीत सिंह के हाथों हैं. जिनको साधकर बीजेपी दो बार राज्य में सत्ता का स्वाद चख चुकी है. और अब सियासी हैट्रिक पूरी करने की आस में है. 

वीडियो: हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की पहली लिस्ट में 67 नाम, 9 सिटिंग विधायकों का टिकट कटा

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