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ये 'ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे' क्या है, जिसकी घोषणा नितिन गडकरी ने की है

इस तरह के एक्सप्रेसवे के बारे में विस्तार से जान लीजिए.

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ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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विजेता दहिया
3 जून 2020 (Updated: 3 जून 2020, 18:22 IST)
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केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी साल 2014 से ही सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का कामकाज संभाल रहे हैं. 2 जून, मंगलवार को गडकरी ने अनाउंस किया कि सरकार ने 'ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे' प्लान को मंजूरी दे दी है. अमृतसर से नकोदर शहर तक ग्रीनफ़ील्ड कनेक्टिविटी होगी. ये दिल्ली-अमृतसर एक्सप्रेसवे प्लान का ही हिस्सा है. उन्होंने कहा कि अब अमृतसर से दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुंचने का समय आठ घंटे से घटकर केवल चार घंटे ही रह जाएगा. सुनने में तो सब बढ़िया लग रहा है. लेकिन आखिर ये 'ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे' क्या बला है? इसके बारे में विस्तार से जान लेते हैं. एक्सप्रेसवे क्या होता है? 'ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे' के बारे में चर्चा से पहले ये समझ लीजिए कि एक्सप्रेसवे क्या चीज है. दरअसल, ये हाइवे का अगला वर्ज़न है. किसी स्टेट हाइवे या नेशनल हाइवे पर चौराहे और रेड लाइट भी होते हैं. लेकिन एक्सप्रेसवे की खासियत होती है कि इस पर एक बार चढ़ गए, तो रुकने का नाम नहीं. यहां चढ़ने और उतरने के लिए लिमिटेड एंट्री-एग्ज़िट पॉइंट होते हैं. यहां आपको एक ढलान मिलेगी किसी दूसरी सड़क से एक्सप्रेसवे पर चढ़ने के लिए या एक्सप्रेसवे से उतरने के लिए. इन सड़कों को सिग्नल-फ्री बनाने के लिए ओवरपास और अंडरपास का इस्तेमाल होता है. एक्सप्रेसवे काफी चौड़े होते हैं. आमतौर पर छह या आठ लेन वाले, इसलिए ट्रैफिक स्पीड तेज़ होती है. कई एक्सप्रेसवे ऐसे भी हैं, जहां कार के लिए मैक्सिमम स्पीड लिमिट 120 किमी प्रति घंटा है. ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे क्या है? अब आते हैं 'ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे' पर. आम बोल-चाल की भाषा में कहें, तो वो एक्सप्रेसवे, जो हरे-भरे इलाकों से निकाल दिए जाते हैं, 'ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे' कहे जाते हैं. इन्हें 'ग्रीन कॉरिडोर' भी कहा जाता है. मतलब ऐसी जगह, जहां पर पहले कभी सड़क न रही हो. इसके लिए कोई बिल्डिंग या सड़क वगैरह तोड़ने का झंझट भी नहीं होता. ऐसे इलाकों से एक्सप्रेसवे निकालने के पीछे क्या मकसद होता है? जनवरी, 2020 में नितिन गडकरी ने इसके मकसद के बारे में खुद ही बताया था-
  • आबादी वाले इलाकों से बचने की कोशिश की गई
  • ज़मीन सस्ते में मिल सकी.
  • साथ ही उन पिछड़े इलाकों के लोगों के लिए ऐसा एक्सप्रेसवे नए आर्थिक अवसर पैदा करेगा.
'ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे' को लेकर क्या प्लान है सरकार का # अप्रैल 2015 से ही देशभर में हाईवे बनाने के एक बड़े प्रोजेक्ट की बात चल रही थी. इसका नाम रखा गया था 'भारतमाला परियोजना'. इसमें नेशनल हाईवे, इकोनॉमिक कॉरिडोर, बॉर्डर रोड, कोस्टल रोड जैसे आम शब्द दिखाई दिए. साथ में ज़िक्र था ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे का. अक्टूबर 2017 में यूनियन कैबिनेट ने भारतमाला प्रोजेक्ट को मंजूरी दी. # जुलाई 2018 में केंद्र सरकार ने ऐसे 5 इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की पहचान की, जिन्हें ग्रीन कॉरिडोर बनाया जा सकता है. इसके लिए ट्रैफिक मूवमेंट को स्टडी किया गया. और साथ ही यह देखा गया कि इंडस्ट्रियल सेंटर में बनने वाले सामान को कंज़म्पशन सेंटर और पोर्ट्स तक ले जाने की सुविधा बढ़ाई जा सके. यानि व्यापार करने में सहूलियत बढ़ाई जा सके. इस आधार पर चुने गए ये 5 रूट थे - (i) गुड़गांव से वड़ोदरा, (ii) सांगरिया - सांचोड़ - संतलपुर, (iii) इस्माइलाबाद - चरखी दादरी - नारनौल, (iv) चेन्नई से सालेम और (v) चित्तोड़ से थाचुर. # जनवरी, 2020 में नितिन गडकरी ने 22 एक्सप्रेसवे बनाने की योजना का ऐलान किया था. इनमें से 6 एक्सप्रेसवे और 16 ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे होंगे. इन पर कुल खर्चा होगा 3.10 लाख करोड़ रुपए. # इन 22 एक्सप्रेसवे को 2025 तक कंप्लीट करने की बात कही गई. इनमें से तीन एक्सप्रेसवे/ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे को पूरा करने की डेडलाइन है साल 2022.   कौन-से तीन एक्सप्रेसवे हैं, जिन पर सबसे पहले काम होगा?  1. दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे 2. ट्रांस-राजस्थान, यानी राजस्थान के अंदर 3. ट्रांस-हरियाणा, यानी हरियाणा के अंदर दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे यह इंडिया का सबसे लंबा एक्सप्रेसवे होगा. इसकी लंबाई होगी 1,320 किमी. नितिन गडकरी ने दावा किया था कि इस सड़क से दिल्ली से मुंबई का ट्रैवल टाइम 24 घंटे से घटकर 13 घंटे हो जाएगा. इस एक्सप्रेसवे पर भी उन्होंने ग्रीनफ़ील्ड कनेक्टिविटी वाला फंडा लगाया. उन्होंने बताया था कि इस तरह ज़मीन अधिग्रहण पर ही उन्होंने 16,000 करोड़ रुपए बचा लिए, क्योंकि प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन 80 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर पर मिल सकी. हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के पिछड़े इलाकों के लिए भी इससे नए आर्थिक अवसर पैदा होने की बात कही गई. इसका संभावित रूट होगा- दिल्ली - गुड़गांव - मेवात - रणथंभौर - कोटा - मुकुंदरा - रतलाम - दाहोद - गोधरा - वड़ोदरा - सूरत - मुंबईट्रांस-हरियाणा एक्सप्रेसवे इसकी योजना जुलाई 2018 में ही तैयार हो चुकी थी. यह 230 किमी लंबा 4-लेन ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे हरियाणा के इस्माइलाबाद से लेकर नारनौल तक जाएगा. इसका नाम होगा नेशनल हाईवे 152डी. इसको तैयार करने में कुल खर्चा बताया गया 5108 करोड़. यह इन 8 जिलों से होकर गुज़रेगा - कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, जींद, रोहतक, भिवानी, चरखी दादरी, महेंद्रगढ़. इस एक्सप्रेसवे के कुछ गांवों और कस्बों के नाम से इसका रूट देखा जाए - गंगहेरी (इस्माइलाबाद के पास) - कौल - धत्रथ - लाखन-माजरा - कलानौर - चरखी दादरी - नारनौल   ट्रांस-राजस्थान एक्सप्रेसवे सड़क आदमी को मंज़िल तक पहुंचाती है, लेकिन 'ट्रांस राजस्थान ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे' नाम की सड़क खुद का ही रास्ता भूली हुई लगती है. इसका एक प्लान तो जून 2018 की एक फॉरेस्ट क्लीयरेंस रिपोर्ट में दिखता है. हरियाणा के नूह डिस्ट्रिक्ट का गांव है फ़िरोज़पुर झिरका. जो हरियाणा-राजस्थान बॉर्डर के पास ही है. यहां से एक 8-लेन का ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे शुरू होना था. जिसे जाना था राजस्थान के कोटा डिस्ट्रिक्ट के इटावा गांव तक. योजना थी भारतमाला परियोजना लॉट-4 / पैकेज 4.लंबे इस एक्सप्रेसवे का रूट इन डिस्ट्रिक्ट से गुज़रना था -  नूह (हरियाणा) - अलवर - भरतपुर - दौसा - सवाई माधोपुर -  कोटा फिर जाने इसके प्लान में क्या तब्दीली हुई. अभी राजस्थान के किसी ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे का ज़िक्र केवल पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट पर दिख रहा है. मंजूरी का इंतज़ार करते हुए. योजना वही है - भारतमाला परियोजना लॉट-4 / पैकेज 4. लेकिन रूट बताया गया है भेंडा हेड़ा गांव से मूंडिया गांव. लंबाई दिख रही है मात्र 59 किमी. उम्मीद करते हैं कि जहां बने, जितना भी बने, लेकिन जल्द ही इस पर भी काम चालू हो. राज्य सरकारों के कुछ ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकारें भी इस कॉन्सेप्ट पर काम करती रही हैं. कुछ ऐसे ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे पर नज़र डालते हैं, जो चर्चा में रहे हैं: गंगा ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे 2007 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने गंगा एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट लॉन्च किया था. यानी गंगा नदी के साथ साथ दौड़ने वाला  1047 किमी लंबा आठ लेन वाला एक्सप्रेसवे. ग्रेटर नोएडा से बलिया तक. इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक ऑर्डर की वजह से उस समय काम शुरू नहीं हो सका. कहा गया था कि इस प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले पर्यावरण पर इसके प्रभाव को आंका जाए, इसके बाद केंद्र सरकार से परमिशन ली जाए. जनवरी, 2019 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुछ फेरबदल के साथ इस प्रोजेक्ट को फिर से शुरू किया. ये भी एक 'ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे' होगा. इसकी कुल लंबाई होगी 1020 किमी. इस पर कुल खर्चे का अनुमान है 36000 करोड़ रुपए. पहले फेज़ की डेडलाइन है साल 2024. इस दौरान मेरठ से इलाहाबाद के बीच का 596 किमी लंबा एक्सप्रेसवे तैयार होगा. दूसरे फेज़ में एक 314 किमी का सेक्शन इलाहाबाद से बलिया तक एक्सटेंड किया जाएगा, और दूसरा 110 किमी लंबा सेक्शन मेरठ वाले छोर की तरफ तिगरी से उत्तराखंड बॉर्डर तक. फरवरी, 2020 के उत्तर प्रदेश के बजट में इसके लिए 2,000 करोड़ रुपए आवंटित हो चुके हैं. आगरा-लखनऊ ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे यह उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का एक ड्रीम प्रोजेक्ट था. 2016 में यह सपना पूरा हुआ, जब आगरा से लखनऊ के बीच 302 किमी के ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे का अखिलेश ने उद्घाटन किया. फरवरी 2017 में इसे पब्लिक के लिए खोल दिया गया. इस 6-लेन ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे पर लागत आई 13200 करोड़ रुपए, और इसे बनाने में 22 महीने का समय लगा. कोंकण ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे मार्च, 2020 में महाराष्ट्र सरकार ने भी 500 किमी लंबे ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवे की घोषणा की है. यह रायगढ़, रत्नागिरि और सिंधुदुर्ग जिलों को कनेक्ट करेगा. शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे ने बताया था कि यह सड़क कोंकण के समुद्री तट के साथ साथ चलेगी. इससे टूरिज़्म को बढ़ावा मिलेगा. यहां के अल्फोंसो आम, काजू, सुपारी और नारियल को इंटरनेशनल मार्केट की पहुंच मिलेगी. स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. उन्होंने महाराष्ट्र स्टेट रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (MSRDC) तो इसके तकनीकी और आर्थिक पहलुओं पर स्टडी करने के लिए कहा. उसके बाद ही पता चल पाएगा कि इस प्रोजेक्ट पर कितना खर्चा आएगा.
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