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G20 के देश: दो परमाणु हमला झेलने वाले जापान की असली कहानी क्या है? कैसे बदली किस्मत?

जापान अपनी राख से फिर खड़ा हो गया. आज दिल्ली मेट्रो और बुलेट ट्रेन जैसे प्रॉजेक्ट्स में भारत और दूसरे देशों की मदद करता है.

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दो परमाणु हमलों के बाद जापान के आसमान में उठते विस्फोट के मशरूमनुमा बादल, प्रधानमंत्री किशीदा, G20 समिट में शामिल होंगे (फोटो- विकिमीडिया और आजतक)
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साकेत आनंद
6 सितंबर 2023 (Updated: 6 सितंबर 2023, 18:12 IST)
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भारत में आयोजित G20 Leaders Summit की तारीख़ नज़दीक आ चुकी है. उससे पहले G20 परिवार (G20 Countries) से आपका परिचय करा देते हैं. आज सुशी (Sushi) के लिए मशहूर और उगते सूर्य की धरती (Land of the Rising Sun) जापान (Japan) की कहानी पढ़िए.

नक्शेबाज़ी

जापान 14 हज़ार से अधिक द्वीपों से मिलकर बना है. लगभग 260 पर इंसान बसते हैं. 12 करोड़ से अधिक लोग इन्हीं 260 द्वीपों पर रहते हैं. इसलिए, जापान को सघन आबादी वाले द्वीपों का देश भी कहते हैं.

जापान के उत्तर में ओखोस्क सागर और दक्षिण में ईस्ट चाइना सी पड़ता है. पश्चिम में जापान सागर है. जापान सागर को पार करते ही नॉर्थ और साउथ कोरिया की सीमा शुरू हो जाती है. उसके तुरंत बाद चीन आ जाता है. तीनों देशों के साथ जापान की ऐतिहासिक दुश्मनी रही है. जापान की ज़मीनी सीमा किसी दूसरे देश से नहीं लगती. लेकिन समुद्री सीमा कइयों के साथ मिलती है. चीन, फ़िलिपींस, रूस, नॉर्थ कोरिया, साउथ कोरिया, ताइवान और नॉदर्न मेरियाना आईलैंड्स. मेरियाना आईलैंड्स, अमेरिका का हिस्सा है. इस लिहाज से जापान की समुद्री सीमा अमेरिका से भी लगती है.

मैप (फोटो सोर्स- गूगल)

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आबादी लगभग 12 करोड़ 60 लाख है.

मुख्यत: लोग दो धर्मों को मानते हैं - शिन्तो और बौद्ध.

समय की सुई भारत की तुलना में साढ़े 03 घंटे आगे रहती है.

राजधानी टोक्यो है. नई दिल्ली से हवाई मार्ग से दूरी लगभग 06 हज़ार किलोमीटर है. 

दूसरे प्रमुख शहर हैं - ओसाका, नारा, फ़ुकुशिमा, क्योटो आदि. 

क्योटो एक समय तक जापान की राजधानी था. सबसे धार्मिक शहर माना जाता है. एक समय काशी की तुलना क्योटो से होती थी. एक फ़ैक्ट और. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान परमाणु हमले के लिए पहले क्योटो को चुना गया था. लेकिन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को देखते हुए उसको बख़्श देने का फ़ैसला हुआ.

हिस्ट्री का क़िस्सा

जापान के इलाके में इंसानी बसाहट के प्रमाण कम से कम 40 हज़ार बरस पुराने हैं. शुरुआती लोग मिट्टी की कलाकृतियां बनाने में निपुण थे. वे भोजन के लिए शिकार और कंद-मूल पर निर्भर थे. दावा किया जाता है कि 650 ईसापूर्व में सम्राट जिम्मू ने जापान की नींव रखी. किंवदंती है कि वो सूर्य देवी के वंशज थे. कई इतिहासकार जिम्मू के अस्तित्व से इनकार करते हैं. जापान का पहला लिखित इतिहास 111 ईसवी में लिखी गई ‘बुक ऑफ़ हान’ में सामने आता है.

710 ईसवी तक जापान अलग-अलग सामंतों के बीच बंटा हुआ था. सम्राट के पास नाममात्र की शक्तियां थीं. 710 में पहली बार केंद्र में मज़बूत सरकार बैठी. उन्होंने नारा को अपनी राजधानी बनाया. इसी शहर में जुलाई 2022 में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

खैर, 794 में साम्राज्य बदल गया. राजधानी भी. हेयान वंश ने क्योटो को राजधानी बनाया. इसी दौर में मुल्क पनपा. और पनपे समुराई. उन्हें शोगुन के नाम से जाना गया. समुराई योद्धा होते थे. उन्हें विशेष अधिकार मिलते थे. वे सम्राट के प्रति वफ़ादारी की कसम खाते थे. सम्राट के आदेश पर प्रांतों में शासन भी चलाते थे. 1185 में उन्होंने पूरा शासन अपने हाथों में ले लिया. सम्राट नाम भर के राजा रह गए.

13वीं सदी में दो बार मंगोलों का आक्रमण हुआ. दंतकथा है कि दोनों दफा देवताओं ने जापान की मदद की. हमले के वक़्त ख़तरनाक तूफान उठा. दुश्मनों को वापस लौटना पड़ा.

14वीं सदी में सम्राट ने समुराई व्यवस्था को हटाने की कोशिश की. इसके चलते सिविल वॉर हुआ. 61 बरसों तक चला. नतीजा क्या निकला. समुराई बरकरार रहे. सम्राट भी. लेकिन वो मार्गदर्शक मंडल के सदस्य बनकर रह गए. अब अलग-अलग समुराई वंशों के बीच वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई.

1603 में तोकुगावा समुराईयों ने आधिपत्य स्थापित किया. उसी समय यूरोप के देश धर्म-प्रचार और लूट के मकसद से निकले. जापान को डर था कि ईसाई धर्म उन्हें बर्बाद कर देगा. इसलिए, उन्होंने ख़ुद को बंद कर लिया. विदेशियों के अंदर घुसने पर पाबंदी लगा दी गई. जापानियों के बाहर जाने पर भी रोक थी. ये सिस्टम दो सौ बरस से भी लंबा चला.

फिर 1853 में अमेरिका ने नेवी भेजी. तब जाकर पाबंदी हटी और उनका संपर्क बाहरी दुनिया से हुआ.

1868 में सम्राट की गद्दी पर मेइजी वंश आया. उन्होंने समुराई व्यवस्था हटा दी. मेइजी के समय में जापान ने रूस और चीन को हराया. कोरिया पर कब्ज़ा किया. मेइजी की मौत के बाद नए सम्राट कहलाए, ताइशो. उन्होंने ब्रिटेन की तरफ़ से पहले विश्वयुद्ध में हिस्सा लिया.

1926 में शोवा वंश का शासन शुरू हुआ. पहले सम्राट हुए, हिरोहितो. वो साम्राज्यवादी थे. उन्होंने चीन पर हमले का आदेश दिया. विस्तारवाद की नीति के तहत पूर्वी एशिया के कई और इलाकों पर भी कब्ज़ा किया. दूसरे विश्वुयद्ध में पर्ल हार्बर पर हमले का आदेश दिया. इस हमले के चलते अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सीधी लड़ाई में कूदा. अमेरिका लड़ते-लड़ते जापान के मुख्य द्वीपों पर पहुंचा और 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर दो परमाणु बम गिराए. जापान को सरेंडर करना पड़ा. टोक्यो में मिलिटरी ट्राइब्यूनल बना. युद्ध में शामिल रहे जापानी मंत्रियों और अधिकारियों को सज़ा दी गई. सम्राट हिरोहितो को बख़्श दिया गया. हालांकि, जापान पर कई बरसों तक विजेता देशों ने कंट्रोल बनाकर रखा, खासकर अमेरिका ने. 1947 में जापान में नया संविधान लागू हुआ. कानून-व्यवस्था तय करने में उनकी बड़ी भूमिका रही.

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पैसे वाली बात

करेंसी का नाम है, जापानी येन.

जापान, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.

जीडीपी 4.4 ट्रिलियन डॉलर है. भारतीय करेंसी में लगभग 363 लाख करोड़ रुपये.

प्रति व्यक्ति आय करीब 28 लाख रुपये है. भारत से लगभग 14 गुना अधिक.

लेन-देन

भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ़ कॉमर्स के मुताबिक, 2022-23 में लगभग 01 लाख 72 हज़ार करोड़ रुपये का व्यापार हुआ.

भारत ने 47 हज़ार करोड़ का निर्यात किया.

जापान से 01 लाख 25 हज़ार करोड़ का आयात हुआ. 

आयात ज़्यादा है, माने जापान से व्यापार में हम उठा रहे हैं व्यापार घाटा, माने ट्रेड डेफिसिट. 

भारत क्या निर्यात करता है?

आर्गेनिक केमिकल, मछली, समुद्री जीव आदि.

जापान से क्या खरीदता है?

न्यक्लियर रिएक्टर्स, बॉयलर्स, कीमती धातुएं आदि.

2021 में जापान, भारत का 13वां सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर था. जापान पांचवां सबसे बड़ा निवेशक भी था. इसके अलावा, 2021 में 14 सौ से अधिक जापानी कंपनियां भारत में काम कर रहीं थीं. भारत और जापान के बीच गहरे होते व्यापारिक रिश्तों का सबसे बड़ा उदाहरण वो सॉफ्ट लोन हैं, जो JICA जैसी जापानी एजेंसियों ने भारत के बड़े प्रोजेक्ट्स को दिए हैं. सॉफ्ट लोन के तहत भारी भरकम रकम बड़ी लंबी अवधि के लिए मिलती है और ब्याज न के बराबर होता है. इस पैसे से मेगाप्रोजेक्ट्स खड़े करने में आसानी रहती है. जिस शहर में जी 20 सम्मेलन हो रहा है, माने दिल्ली, वहां की शान दिल्ली मेट्रो जापान से मिले लोन के चलते ही साकार हो पाई. इसी तरह मुंबई अहमदाबाद बुलेट ट्रेन का काम भी चल रहा है. 

सामरिक रिश्ते

जापान में युद्ध-अपराधों के लिए जो ट्राइब्यूनल बना था, उसमें कुल 11 जज थे. ब्रिटिश भारत की तरफ़ से जस्टिस राधाबिनोद पाल को जगह दी गई थी. पाल अविभाजित भारत में पैदा हुआ थे. आज के समय के हिसाब से देखेंगे तो बांग्लादेश में. बाद में कलकत्ता में रहने लगे थे. पाल ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले की आलोचना की. पर्ल हार्बर पर जापान के हमले के पक्ष में लिखा. नतीजतन, अमरीकियों के दबाव में पाल के फ़ैसले को जापान में पब्लिश करने पर बैन लगा दिया गया. पंडित नेहरू ने भी भारत सरकार को पाल के फ़ैसले से अलग कर लिया. हालांकि, बाद में उनका रुख बदला.

1952 में जापान से मित्र सेनाओं का कंट्रोल खत्म हुआ. तब जाकर पाल की राय बाहर आ सकी. फिर पता चला कि जस्टिस पाल की राय में दम था. उन्हें सिर्फ जापान का समर्थक बताकर खारिज नहीं किया जा सकता था. इसी फ़ैसले की  वजह से जापान की एक बड़ी आबादी उन्हें नायक मानने लगी. सम्राट हिरोहितो ने उन्हें नागरिक सम्मान दिया. उनकी याद में मेमोरियल भी बनाया गया. भारत सरकार ने भी उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया.

दिसंबर 2006 में भारत के तत्कालीन पीएम डॉक्टर मनमोहन सिंह जापान के दौरे पर गए. इस दौरे पर उन्होंने जापान की संसद डाइट में भाषण दिया. इसमें उन्होंने कहा था, ‘जस्टिस पाल ने जिस तरह का साहस दिखाया, उसे लिए आज भी बहुत सारे जापानी नागरिक उनका सम्मान करते हैं.’ द लीफ़लेट की रिपोर्ट के अनुसार, जब 2009 में शिंज़ो आबे भारत के दौरे पर आए, तब उन्होंने समय निकाल कर राधाबिनोद पाल के बेटे से मुलाक़ात भी की थी.

जापान के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर छपी जानकारी के मुताबिक,

औपचारिक डिप्लोमेटिक संबंध 1952 में बने थे. हालांकि, उससे पहले ही भारत ने दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया था.

1949 में प्रधानमंत्री नेहरू ने जापान को एक हाथी गिफ़्ट में दिया था. इसका नाम उन्होंने अपनी बेटी इंदिरा के नाम पर रखा था.

1957 में जापान के प्रधानमंत्री नोबुसुके किशी भारत के दौरे पर आए. उसी बरस नेहरू भी जापान गए. संबंधों को विस्तार मिला. भारत ने जापान को लौह अयस्क दिया. इसने विश्वयुद्ध की वीभीषिका से उबरने में मदद की.

1980 के दशक में जापानी कंपनी सुज़ुकी ने मारुति मोटर्स लिमिटेड के साथ करार किया. इसने मारुति सुज़ुकी को जन्म दिया. 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किए. तब पश्चिमी देशों ने भारत पर प्रतिबंध लगाए. जापान भी अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों का सहयोगी था. उसने भी भारत की आलोचना की और प्रतिबंध लगा दिए. 

फिर अगस्त 2000 में जापान के पीएम योशिरो मोरी भारत के दौरे पर आए. वो अपने साथ जैतून की डाल लेकर आए थे. माने ऑलिव ब्रांच, शांति का प्रतीक. उन्होंने भारत के साथ रिश्ता मज़बूत करने की पेशकश की. इससे रिश्तों पर जमी धूल थोड़ी तो छंटी, लेकिन इसमें तेज़ी आई, 2006 के साल में. उस बरस भारत के तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने जापान का दौरा किया. उस समय जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे थे. उसी समय क़्वाड जैसे संगठन की स्थापना की चर्चा शुरू हो चुकी थी. आज के समय में क़्वाड चीन को टक्कर देने वाले संगठन की तरह देखा जा रहा है. इसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान हैं.

भारत-जापान संबंधों को मज़बूत बनाने में सबसे अहम भूमिका शिंज़ो आबे की रही. वो पहले 2006 से 2007 और फिर 2012 से 2020 तक जापान के पीएम रहे. कार्यकाल में तीन बार भारत आए. 2007 में उन्होंने भारत की संसद को संबोधित किया. 2014 में 26 जनवरी की परेड में वो चीफ़ गेस्ट बनकर आए थे. उन्हीं के कार्यकाल में भारत ने जापान के साथ 2+2 डायलॉग शुरू किया. इसके तहत, दोनों देशों के रक्षामंत्री और विदेशमंत्री हर साल बैठक करते हैं. भारत ने ये व्यवस्था जापान के अलावा सिर्फ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और रूस के साथ की है. 

2016 में भारत ने जापान के साथ सिविल न्यूक्लियर पैक्ट भी किया. अब जापान को भारत के परमाणु शक्ति से लैस होने पर आपत्ति नहीं है. आबे से पीएम मोदी के दोस्ताना संबंध थे. इसका सकारात्मक असर भारत के साथ संबंधों पर भी पड़ा. जुलाई 2022 में आबे की हत्या कर दी गई. तब वो प्रधानमंत्री नहीं थे. फिर भी भारत सरकार ने उनकी याद में एक दिन के राजकीय शोक का ऐलान किया था. आबे के अंतिम संस्कार में पीएम मोदी ख़ुद हिस्सा लेने पहुंचे थे.

आबे के बाद योशिहिदे सुगा जापान के प्रधानमंत्री बने थे. अक्टूबर 2021 में उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी. फिर कुर्सी फ़ुमियो किशिदा के पास आई. तब से वो दो बार भारत आ चुके हैं.

रूस-यूक्रेन वॉर के मुद्दे पर भारत और जापान दो अलग-अलग ध्रुवों की तरह दिखे हैं. जापान ने खुले तौर पर रूस की आलोचना की है. उसने रूस पर प्रतिबंध भी लगाए हैं. इसके बरक्स भारत ने अभी तक रूस का विरोध नहीं किया है. वो रूस से तेल भी खरीद रहा है.

पॉलिटिकल सिस्टम

जापान में संवैधानिक राजशाही है. कॉन्स्टीट्यूश्नल मोनार्की.

सम्राट हेड ऑफ़ द स्टेट हैं. उनके पास सिम्बॉलिक अधिकार होते हैं.

सरकार की कमान प्रधानमंत्री के पास है.

शक्तियों का विभाजन विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच है.

विधायिका की शक्ति संसद के पास है. जापान की संसद को डाइट कहते हैं.

इसमें दो सदन हैं - निचले सदन को हाउस ऑफ़ रेप्रजेंटेटिव्स और ऊपरी सदन को हाउस ऑफ़ काउंसिलर्स कहते हैं.

निचले सदन के सदस्य 04 बरस के लिए चुने जाते हैं. इसे बीच में भंग किया जा सकता है.

ऊपरी सदन के सदस्यों का कार्यकाल 06 बरस का होता है. इस सदन को भंग नहीं किया जा सकता.

प्रधानमंत्री का चुनाव दोनों सदनों के सदस्य मिलकर करते हैं. अगर वे किसी एक नाम पर सहमति नहीं बना पाते, तब निचले सदन की राय मान ली जाती है.

सरकार की कमान

कार्यपालिका की कमान प्रधानमंत्री को मिली है.

न्यापालिका, विधायिका और कार्यपालिका से स्वतंत्र है.

जापान में बहुत सारी पार्टियां हैं. लेकिन 1955 में बनी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) सबसे ताक़तवर है. 1993 से 1994 और 2009 से 2012 के अलावा बाकी समय उसी ने सरकार चलाई है. आमतौर पर LDP के मुखिया ही जापान के प्रधानमंत्री भी होते हैं.

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सरकार की कमान

सम्राट - नारुहितो. प्रधानमंत्री - फ़ुमियो किशिदा.

किशिदा जापान के 64वें प्रधानमंत्री हैं. उनकी कहानी क्या है?

किशिदा के पुरखे हिरोशिमा में रहते थे. परिवार के कई सदस्य परमाणु हमले में मारे गए. बचा-खुचा परिवार टोक्यो आ गया. किशिदा वहीं पर 1957 में पैदा हुए. पिता सरकारी अफ़सर थे. 1963 में अमेरिका भेजा गया. किशिदा की पढ़ाई-लिखाई वहीं पर हुई. वहां नस्ली भेदभाव भी झेलना पड़ा.

फ़ाइनेंस की फ़ील्ड में कैरियर बनाया. बैंक में काम करने के बाद पॉलिटिक्स में आ गए. 1993 में LDP के टिकट पर हिरोशिमा के सांसद बने. फिर अलग-अलग सरकारों में अहम पदों पर काम किया. 2012 में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया. सितंबर 2021 में किशिदा LDP के अध्यक्ष चुने गए. और, 4 अक्टूबर 2021 को जापान के प्रधानमंत्री बने.

LDP की विचारधारा राष्ट्रवादी और रुढ़िवादी पार्टी की है.

किशिदा को उदारवादी किस्म का नेता माना जाता है. वो मिडिल-क्लास को बढ़ावा देने वाली इकोनॉमिक पॉलिसी लाने की बात करते हैं. उन्होंने साउथ कोरिया के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश की है. साउथ कोरिया और जापान के बीच कॉम्फ़र्ट वीमेन के मसले को लेकर मनमुटाव रहा है.

किशिदा ने जापान की मिलिटरी का बजट 65 फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. ये पुरानी सरकार की नीति से इतर है.

फ़ुमियो किशिदा G20 लीडर्स समिट में हिस्सा लेने भारत आ रहे हैं.

फ़ैक्ट्स

- जापान का संविधान, जापान को युद्ध का ऐलान करने से रोकता है.

- 1947 में लागू संविधान ने सम्राट से राष्ट्राध्यक्ष का दर्ज़ा वापस ले लिया. 1947 के बाद से सम्राट को स्टेट और जापानी एकता का प्रतीक माना जाता है. बेसिकली ये एक सांकेतिक पद भर रह गया है.

- आर्टिकल 9 में कहा गया था कि जापान किसी पर हमला करने के लिए सेना नहीं रखेगा. कहा ये भी गया कि जापान कभी थल, जल या वायुसेना मेंटेन नहीं करेगा. मतलब, उससे सेना रखने का अधिकार छीन लिया गया.

- 1950 में कोरिया वॉर की शुरुआत हुई. अमेरिका को जापान में कम्युनिज़्म का ख़तरा लगा. फिर संविधान में थोड़ा फेरबदल किया गया. जापान सेल्फ़-डिफ़ेंस फ़ोर्स (JSDF) की बुनियाद रखी गई. JSDF का पूरा फ़ोकस इंटरनल सिक्योरिटी और देश में शांति बनाए रखने पर रहता है.

- जापान पर बाहरी हमले की स्थिति में अमेरिका मदद करेगा. उसके कई मिलिटरी बेस भी जापान में हैं.

- जापान में बौद्ध धर्म भारत से पहुंचा था. छठी सदी में. चीन और कोरिया होते हुए.

फुटनोट्स

- जापान दुनिया का अकेला देश है जिस पर दो-दो बार परमाणु बम गिराया गया. इसके बावजूद जापान ने न्यूक्लियर एनर्जी पर भरोसा दिखाया.

- जापान में औसत आयु काफी ज्यादा है. मगर देश घटती जन्म-दर से परेशान चल रहा है.

- जापान दुनिया के सबसे शक्तिशाली गुटों में से एक G7 का सदस्य है. इस गुट में वो एशिया का इकलौता देश है. 

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