कई बार हम कोई ऐसा शेर सुनते हैं जो बहुत मशहूर होता है पर हम उसके शायर के नाम सेअंजान होते हैं. यहां तक कि कई शेर ऐसे हैं जिनके शायर उस इकलौते शेर की वजह सेमशहूर हुए. ऐसे शेरों को मिसाली शेर बोला जाता है. मतलब आम बातचीत में भी मिसालदेने के लिए ये शेर खूब इस्तेमाल किए जाते हैं. कुछ ऐसे ही शेर - शायरों के नाम केसाथ - मुलाहिजा फरमाइए.आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं सामान सौ बरस का है पल की खबर नहीं-हैरत इलाहाबादीज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं-नासिख लखनवीकरीब है यारो रोज़े-महशर, छुपेगा कुश्तों का खून क्योंकर जो चुप रहेगी ज़ुबाने–खंजर,लहू पुकारेगा आस्तीं कारोज़े-महशर = प्रलय का दिन-अमीर मीनाईकैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो खूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो(कैस = मजनू)-मियांदाद सय्याह (मिर्ज़ा ग़ालिब के शागिर्द)बड़े गौर से सुन रहा था जमाना तुम्ही सो गये दास्तां कहते कहते-साक़िब लखनवीहम तालिबे-शोहरत हैं, हमें नंग से क्या काम बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा-नवाब मुहम्मद मुस्तफा खान शेफ़्ताखंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है-अमीर मीनाईउम्र सारी तो कटी इश्के-बुतां में मोमिन आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे-हकीम मोमिन खां मोमिनहम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता-अकबर इलाहाबादीलोग टूट जाते हैं एक घर के बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में.-बशीर बद्रकौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊंगा मैं तो दरिया हूं समन्दर में उतर जाऊंगा-अहमद नदीम क़ासमीख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरीरज़ा क्या है.-अल्लामा इकबालचल साथ कि हसरतें दिल-ए-महरूम से निकले आशिक का जनाज़ा है, ज़रा धूम से निकले-मुहम्मद अली फिदवीये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै इक आग का दरिया है और डूब के जाना है-जिगर मुरादाबादीयहां लिबास की कीमत है आदमी की नहीं मुझे गिलास बड़ा दे, शराब कम कर दे-बशीर बद्रबर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजामऐ गुलिस्तां क्या होगा-रियासत हुसैन रिजवी उर्फ ‘शौक बहराइची’कुछ ना कहने से भी छिन जाता हैं ऐजाज़े सुखन जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होतीहैं..- मुजफ्फर वारसी.मज़ा आया? तो चिपकाओ आगे और शान झाड़ो.--------------------------------------------------------------------------------इसे भी पढ़िए खुशनसीब थे ग़ालिब जो फेसबुक युग में पैदा न हुएवो 'औरंगज़ेब' जिसे सब पसंद करते हैंव्हाट्सऐप पर चल रही है नोटबंदी के ऊपर ये शायरी