अकसर देखा जाता है कश्मीरी मुसलमानों के सरनेम पंडित, भट, गुरु, शाप्रू, रैना,मट्टू और अन्य कश्मीरी पंडितों वाले होते हैं. एेसा ऐतिहासिक वजहों से है. दरअसलजिन मुसलमानों का सरनेम हम कश्मीरी पंडितों वाला देखते हैं उनके पूर्वज कश्मीरीपंडित ही थे. जिन्होंने सूफ़िज्म से प्रभावित होकर या मजहबी हमलों की वजह से इस्लामअपना लिया था. यहां तक कि विशाल भारद्वाज की फिल्म 'हैदर' में इरफान खान का एकडायलॉग हैः"दरिया भी मैं, दरख्त भी मैं.झेलम भी मैं, चिनार भी मैं. दैर हूं, हरम भी हूं.शिया भी हूं, सुन्नी भी हूं.मैं हूं पंडित... मैं था, मैं हूं और मैं ही रहूंगा."एेसे बहुत से नाम हैं जिनकी बहुत सी कहानियां हैं. उनमें से हम आज कुछ एेसे लोगोंके बारे में जानेंगे जो चर्चित हैं.#1. अल्लामा इकबाल.अल्लामा.अल्लामा इकबाल का वास्ता कश्मीरी पंडित परिवार से रहा है. अपनी शायरियों मेंउन्होंने अपने ब्राह्मण डिसेंट का जिक्र किया है और अपने ब्राह्मण ऑरिजिन पर फख्रजताया है. हालांकि इकबाल ने हिन्दू धर्म से अपने रिलेशन को लेकर कभी कुछ नहीं लिखा.इकबाल के हिन्दू पूर्वजों की बात की जाए तो इसकी शुरुआत बीरबल सप्रू से हुई. वेशोपियां-कुलगाम रोड के पास के एक गांव सपरैन के रहने वाले थे इसलिए उनका सरनेम भीसप्रू हो गया. बाद में उनकी फैमिली श्रीनगर में बस गई. बीरबल सप्रू के पांच बेटे औरएक बेटी थी. उनके तीसरे बेटे थे कन्हैया लाल. वे अल्लामा इकबाल के दादा थे. कन्हैयालाल की पत्नी थी इंद्राणी सप्रू. कन्हैया लाल के बेटे थे रतन लाल. रतन लाल ने बादमें जाकर इस्लाम कबूला था. जिसके बाद वो नूर मोहम्मद हो गए और इमाम बीबी से शादीकी.वैसे रतन लाल के इस्लाम कबूलने के कई किस्से हैं.अल्लामा इकबाल अपने कश्मीरी ब्राह्मण फैमिली के साथ. इकबाल की दादी इंद्राणी सप्रूभी हैं.जाने-माने लेखक खुशवंत सिंह ने इकबाल के पिता के इस्लाम कबूलने की वजह पर रिसर्चकिया था. इस दौरान सैयदा हमीद से उन्हें एक किस्से के बारे में पता चला. सैयदा नेइकबाल की शायरियों को इंग्लिश में ट्रांसलेट किया था. सैयदा के मुताबिक रतन लालकश्मीर में अफगान गवर्नर के रेवेन्यू कलेक्टर के रूप में काम कर रहे थे जहां पैसोंके लेन-देन में उनसे कुछ गलती हो गई. जिसके बाद गवर्नर ने रतन लाल को दो विकल्पदिए. कहा कि या तो इस्लाम कबूल करो या सिर कलम करवाने के लिए तैयार रहो.रतन लाल ने अपनी जान बचाने के लिए इस्लाम कबूल करना ही सही समझा और मुसलमान बन गए.बाद में जाकर कश्मीर से अफगान गवर्नर को खदेड़ दिया गया और कश्मीर में सिखों का राजकायम हो गया. इस तख्ता पलट के बाद रतन लाल सियालकोट जा बसे. वहां उन्होंने पंजाबीमुस्लिम महिला इमाम बीबी से शादी की.इकबाल की पैदाइश 9 नवंबर 1877 को सियालकोट में हुई. परवरिश खांटी मुस्लिम माहौल मेंहुई. शुरुआती तालीम मदरसे में की गई. यही वजह रही कि इकबाल की शख्सियत एक मजहबीमुसलमान की बनी. इकबाल की मुलाकात अपनी पंडित दादी इंद्राणी से एक बार ही हो सकी जोअमृतसर में रहती थीं.इकबाल की शायरियों में ब्राह्मणों का जिक्र भी आता है. जैसे इन ग़ज़लों मेंः " सचकह दूं ऐ बिरहन (ब्राह्मण) गर तू बुरा न माने "सच कह दूं ऐ बिरहन गर तू बुरा न मानेतेरे सनमक़दों के बुत हो गए पुरानेअपनों से बैर रखना तूने बुतों से सीखाजंग-ओ-जदल सिखाया वाइज़ को भी ख़ुदा नेतंग आके आख़िर मैंने दैर-ओ-हरम को छोड़ावाइज़ का वाज़ छोड़ा, छोड़े तेरे फ़सानेपत्थर की मूरतों में समझा है तू ख़ुदा हैख़ाक-ए-वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता हैआ ग़ैरत के पर्दे इक बार फिर उठा देंबिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा देंसूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्तीआ इक नया शिवाला इस देस में बना देंदुनिया के तीरथों से ऊंचा हो अपना तीरथदामान-ए-आस्मां से इस का कलस मिला देंहर सुबह मिल के गाएं मंतर वो मीठे मीठेसारे पुजारियों को मै पीत की पिला देंशक्ति भी शांति भी भक्तों के गीत में हैधरती के बासियों की मुक्ती प्रीत में है" आ'न बिरहन जादगान-ए-जिंदा दिल "आ'न बिरहन जादगान-ए-जिंदा दिललालेह-ए-अहमर जी रूए शा'न खजिलतेज़ बीन-ओ-पुख्ता कार-ओ-सख्त कोशअज निगाह-ए-शा'न फरंग अंदर खरोशअस्ल-ए-शा'न अज खाके-ए-दामनगीर मस्तमतला-ए-आइन अख्तारा'न कश्मीर मस्तइस ग़ज़ल में इकबाल ने ब्राह्मण के बच्चों को बहादुर और दिलेर बताया है. और कहा हैकि वो बेहतर समझदारी और जिम्मेदारी के लिए जाने जाते हैं. "कश्मीर ब्राह्मणों कीउदय भूमि है. और दोनों से ही मेरा ताल्लुक है."" दुख्तरे बिरहने लाला रुखे समन बरे "दुख्तरे बिरहने लाला रुखे समन बरेचेश्म बरूए-ए-ओ कुशा, बाज बा खवाइशतन दीगरइकबाल ने अपनी ग़ज़ल 'पयाम-इ-मशरिक' में ब्राह्मण लड़कियों की खूबसूरती की तारीफ कीहै. इसमें कहा गया है कि ब्राह्मण लड़कियों के गाल गुलाब की तरह सुंदर होते हैं. औरशरीर जैस्मिन की तरह. आप की नज़र अगर एक बार उनकी खूबसूरती पर पड़ गई तो फिर हट नहींसकती. इकबाल ने पोएट्री दो भाषाओं में की है - उर्दू और फारसी में.कश्मीरी पंडित और उर्दू-फारसी के जाने-माने कवि सर तेज बहादुर सप्रू ने इकबाल कीतुलना कालिदास से की. और कहा कि इकबाल को सिर्फ मुस्लिम कवि के रूप में ही नहींदेखा जाना चाहिए. वो यूनिवर्सल पोएट हैं और हिन्दू-मुस्लिम दोनों का ही उन परअधिकार है. पंडित जवाहर लाल नेहरू उन्हें अपना आदर्श कवि मानते थे. हालांकिराजनीतिक रूप से दोनों की विचारधाराएं अलग थीं. कश्मीर के एक मंच पर इकबाल ने पंडितनेहरू के बारे में कहा था कि 'ये मेरा शेरदिल पुत्तर है'. #2. फारूक़ अब्दुल्लाह फारूक और उनके पिता शेख अब्दुल्लाजम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे फारूक़ ख़ुद कई बार जिक्र कर चुके हैं कि उनकेपूर्वज कश्मीरी पंडित थे. वो खुद को सारस्वत ब्राह्मण भी बताते रहे हैं. उन्होंने2014 में वर्ल्ड बुक फेयर में कश्मीरी भाषा में छपी बच्चों की किताबों का विमोचनकरते हुए कहा था, "असल में मैं कश्मीरी सारस्वत पंडित हूं जो वर्षों पहले कश्मीरीब्राह्मण से मुसलमान बने थे. कश्मीरी मुसलमान दरअसल कश्मीरी पंडितों की ही उपज हैं.इसी के चलते आज भी मुझमें कश्मीरी पंडित की जुबां है."फारूक़ के पिता शेख़ अब्दुल्ला कश्मीर के बड़े नेता थे. राजनीतिक दल 'नेशनलकॉन्फ्रेंस' की स्थापना उन्होंने की थी जिसे पहले 'मुस्लिम कॉन्फ्रेंस' कहा जाताथा. शेख़ कश्मीर के भारत में विलय से पहले उसे मुस्लिम देश बनाना चाहते थे.अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘आतिश-ए- चीनार’ में इसका ज़िक्र किया है कि कश्मीरी मुसलमानोंके पूर्वज हिंदू थे. और उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे. इस बुक में उन्होंने बतायाहै कि उनके परदादा का नाम बालमुकुंद कौल था. उनके पूर्वज मूल रूप से सप्रू गोत्र केकश्मीरी ब्राह्मण थे. अफग़ानों के शासनकाल में उनके एक पूर्वज रघुराम ने एक सूफी केहाथों इस्लाम कबूल किया था. उनका परिवार पश्मीने का व्यापार करता था. और अपने छोटेसे निजी कारख़ाने में शॉल और दुशाले तैयार कराके बाज़ार में बेचता था. किताब केमुताबिक श्रीनगर के नजदीक सूरह नामक बस्ती में शेख़ मुहम्मद अब्दुल्ला का जन्म हुआथा. फारूक़ अब्दुल्ला को कई बार मंदिरों में सांस्कृतिक विधि-विधान से पूजा करतेहुए भी देखा गया है. फारूक़ के बेटे उमर अब्दुल्ला भी कश्मीर में चीफ मिनिस्टर रहचुके हैं.#3. फराह पंडित फराह पंडितफराह पंडित अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट के लिए मुसलमान समुदायों की विशेषप्रतिनिधि के तौर पर काम करती हैं. यहां नियुक्त होने वाली वे पहली प्रतिनिधि हैं.इससे पहले वे अमेरिका के 'काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस' में सीनियर फैलो थीं. फराह काजन्म 1968 में कश्मीर के श्रीनगर में हुआ था.वो एक साल की थीं तभी मां-पिता अमेरिका शिफ्ट हो गए. फराह एक डिप्लोमैट के तौर परबहुत सारी प्रभावशाली संस्थाओं में काम कर चुकी हैं. उनका ताल्लुक कश्मीर के एकबिजनेस करने वाले परिवार से है. उनके पिता मोहम्मद अनवर पंडित मूल रूप से सोपोर केरहने वाले हैं. मां डॉक्टर हैं जो श्रीनगर से हैं. चाचा अब्दुल रशीद सोपोर के पासबरजुल्ला गांव में रहते हैं. वे कह चुके हैं, "हम सभी पंडित परिवार बरजुल्ला में हीरहते हैं. अनवर साहब का घर भी है यहां. वो सेवेंटीज में अमेरिका जा बसे. यहां हमसदियों से रह रहे हैं. हमारे पूर्वज भी कश्मीरी पंडित थे."*** *** ***ब्रिटिश इतिहासकार फ्रांसुआ गॉइटर ने अपनी बुक "Explaining Communal Violence" मेंलिखा है कि 90 फीसदी से ज्यादा कश्मीरी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे.--------------------------------------------------------------------------------ये स्टोरी आदित्य प्रकाश ने की है.