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क्या होता है सेंसेक्स, जिसके उछलने से बहार आती है और गिरने से मुर्दनी छा जाती है

जानिए शेयर मार्केट, सेंसेक्स, निफ़्टी सबके बारे में.

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शेयर मार्केट की सांकेतिक फोटो
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गौरव
25 सितंबर 2019 (Updated: 25 सितंबर 2019, 09:16 IST)
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सेंसेक्स इतना अंक बढ़ा. निफ्टी में भारी गिरावट. आज सेंसेक्स 35 हज़ारी हो गया.....आज 40 हज़ारी हो गया. कभी रेकॉर्ड स्तर पर उछला. तो कभी रेकॉर्ड स्तर पर लुढ़का.
ये आए दिन की हेडलाइन्स हैं. सेंसेक्स, निफ्टी और शेयर बाजार. हमारी रोज़ाना की डिक्शनरी का हिस्सा हैं. मगर हम में से ज़्यादातर लोग इनके बारे में कुछ जानते नहीं. अख़बार का बिजनस वाला पन्ना छोड़ आगे बढ़ जाते हैं. जबकि पैसा-रुपया तो सबके मतलब की बात है. हमें लगा, कहीं ऐसा तो नहीं कि भारी-भरकम बातों के कारण लोग इन्हें समझने में कन्नी काटते हों. इसीलिए हम आपको बता रहे हैं सेंसेक्स और शेयर बाज़ार का पूरा हिसाब-किताब. इससे जुड़े सारे शब्दों का मतलब. एकदम आसान भाषा में.
बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया अपने यहां तीन तरीके से धंधा होता है.
1. जेब में पैसा है. दिमाग में प्लान है. पैसा लगाया और बिज़नस शुरू कर दिया. किसी ने किराने की दुकान खोल ली. कोई रेस्तरां चलाने लगा.
2. जेब में पैसा नहीं. या जितने की ज़रूरत है, उतना नहीं. मगर दिमाग में प्लान है प्रॉपर. तो लोन लेकर पैसे का इंतज़ाम किया. बैंक से. या किसी प्राइवेट लैंडर (जैसे महाजन) से लोन ले लिया. शुरू हो गया बिजनस. मगर इसमें नियम-शर्तों वाले कई स्टार होते हैं. आख़िरकार कोई पैसा दे रहा है आपको. तामझाम तो करेगा ही. एक और भी चीज होती है इसमें. कई बार लोग बिजनस बढ़ाने के लिए भी लोन लेते हैं.
3. मान लीजिए एक शहर में आपके पांच रेस्तरां हैं. आपको लग रहा है, थोड़ा और बड़ा हुआ जाए. दिल में आया, पूरे देश में अपने रेस्तरां की चेन खोलूं. तब आप बिजनस फैलाने का अपना प्लान और पूंजी लेकर पब्लिक में जाते हैं. लोगों को अपने प्लान के बारे में बताते हैं. पूंजी दिखाते हैं. कहते हैं कि हमारे पास थोड़ा है, थोड़े की ज़रूरत है. साथ आइए. पैसा लगाइए. हिस्सेदार बनिए. कंपनी शेयर बाजार का हिसाब-किताब रखने वाली संस्था सेबी को बताती है. कागज-पत्तर का पूरा काम करती है. उसके बाद स्टॉक एक्सचेंज में जाती है. खुद को रजिस्टर करती है. वहां पैसा लगाने वाले लोग आते हैं. फिर शुरू हो जाता है बिजनस. यहीं से शुरू होता है शेयर बाजार का खेल.
Share market sensex

अथातो शेयर बाज़ार जिज्ञासा... कभी सिनेमा में. कभी ख़बरों में. कभी किसी तस्वीर में. बहुत संभावना है कि किसी-न-किसी तरीके से आपने शेयर बाज़ार के बारे में देखा या सुना ही होगा. दो तस्वीरें जुड़ी हैं इससे. एक तो वो इलेक्ट्रॉनिक पट्टी, जहां कभी लाल और कभी हरे रंग के अक्षर चलते रहते हैं. फलां कंपनी का शेयर इतना रुपया, फलां का उतना रुपया. शेयर बाज़ार की दूसरी प्रचलित इमेज है- कंप्यूटर के सामने बैठे की-बोर्ड पर उंगलियां पीटते लोग. कभी सोचा है, ये लोग काम क्या करते हैं? किस बात में इतना बिज़ी रहते हैं?
बाज़ार तो समझे. मगर शेयर बाज़ार क्या हुआ? शेयर मतलब हिस्सा. शेयर बाज़ार यानी हिस्सेदारी का बाजार. जो लिस्टेड कंपनियां होती हैं, उनकी संपत्ति और मालिकाना हक़ शेयरों में बंटा रहता है. आपके पास शेयर है, आपका भी हिस्सा हुआ. ये शेयर बेचने और ख़रीदने का काम होता है शेयर मार्केट में. इस बाज़ार का हिस्सेदार बनने के लिए स्टॉक एक्सचेंज (यानी NSE और BSE) और SEBI के पास रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है. SEBI यानी सिक्यॉरिटी ऐंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया. SEBI को समझिए शेयर बाजार का रेफरी. ये चौकीदार भी है, निरीक्षक भी है.
शेयर खरीदने का मतलब? आपने किसी कंपनी का शेयर खरीदा. मतलब, आप उस कंपनी के हिस्सेदार हैं. उसके घाटे-मुनाफ़े में हिस्सा है आपका. आपको कितना हिस्सा मिलेगा, ये इस बात से तय होता है कि आपने कितनी हिस्सेदारी ख़रीदी है. शेयर ख़रीदने-बेचने का काम कौन करता है?
ज़्यादातर ये काम करते हैं दलाल. जिनको अंग्रेज़ी में कहते हैं ब्रोकर्स. दलाल शब्द बड़े ग़लत मायनों में प्रचलित है. मगर शेयर बाज़ार के जिन दलालों की हम बात कर रहे हैं, ये कंपनी और आपके बीच की एक अहम कड़ी हैं. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के सामने वाली सड़क है न. उसका नाम ही है दलाल स्ट्रीट.
आपको कैसे पता चलेगा कि कंपनी को धंधे के लिए पैसा चाहिए? इस प्रक्रिया को कहते हैं- IPO. इनिशिअल पब्लिक ऑफरिंग. जब कोई कंपनी वित्तीय जरूरतों के लिए पहली बार अपने शेयर जारी करने का प्रस्ताव लाती है, तो कहते हैं वो IPO लाई है. या लाने वाली है. ये प्राइमरी मार्केट, यानी शुरुआती स्टेज होता है. इससे आगे की सीढ़ी है मार्केट में आ जाने के बाद स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड कंपनियों के शेयर खरीदा-बेचा जाना. इसको पुकारते हैं सेंकेडरी मार्केट.
इस सेंकेडरी मार्केट में दूसरे लेवल की ख़रीद-फ़रोख़्त होती है. जिसका कंपनी से सीधे-सीधे कोई लेना देना नहीं होता. शेयर बाज़ार में डीलिंग करने वाले पल-पल की ख़बर रखते हैं. कंपनियों के प्रॉफिट, उनकी साख, उनकी प्लानिंग वगैरह देखकर शेयर खरीदते-बेचते रहते हैं. लोगों के अलावा ऐसा करने वाली कई फर्म्स हैं. इनकी कोशिश होती है कि कम दाम पर शेयर खरीदें और ज्यादा दाम पर उसे बेच दें. इसी को मुनाफ़ा कहते हैं. इस काम में जरूरी नहीं कि हमेशा मुनाफा ही हो. ये फर्म्स और लोग पैसा गंवाते भी हैं. सरकार को भी इससे टैक्स मिलता है. टैक्स का भी नियम है. इतने दिन तक शेयर्स होल्ड करके रखिएगा और तब बेचिएगा, तो टैक्स फ्री हो जाएगा. उससे पहले किया, तो अपने मुनाफ़े में से सरकार का तय हिस्सा टैक्स के तौर पर देना होगा.
बीएसई का बुल, जिसे मार्केट में तेजी का प्रतीक माना जाता है. (पीटीआई)
ये है बंबई स्टॉक एक्सचेंज, यानी BSE का मशहूर सांड (बुल). इसे मार्केट में तेजी का प्रतीक माना जाता है (PTI)

आगे बढ़ें...सेंसेक्स समझें
संधि जानते हैं? बचपन में पढ़ते थे. हिम का आलय=हिमालय. ऐसे ही सेंसेक्स बना है दो शब्द जोड़कर.  Sensitive और Index. सेंसेटिव माने संवेदी (संवेदनशील). इंडेक्स माने सूचकांक. जमा किया तो बना सेंसेक्स का हिंदी अनुवाद संवेदी सूचकांक. अच्छा, ये इंडेक्स सेंसेटिव क्यों है? क्योंकि ये अंदर-बाहर के कारणों, प्रभावी तत्वों की वजह से ऊपर और नीचे होता है. माने, घटता-बढ़ता रहता है. यही आंकडे़ स्टॉक मार्केट में आए उतार-चढ़ाव को बताते हैं. तेजी और मंदी के बारे में बताते हैं. अपने वतन में दो बड़े स्टॉक एक्सचेंज हैं. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE). बंबई स्टॉक एक्सचेंज (BSE).
शेयर मंडी
स्टॉक एक्सचेंज. इन्हें शेयर की मंडी कह सकते हैं. जैसे दिल्ली में सब्जी की मंडी है आजादपुर और गाज़ीपुर मंडी. कोई व्यक्ति प्याज उगाता है. और उसे मंडी में बेंचने के लिए ले जाता है. वो उसे गाज़ीपुर में भी बेच सकता है और आज़ादपुर में भी. इसी तरह शेयर की भी मंडी है. बंबई स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज. कोई व्यक्ति दोनों जगह शेयर खरीद बेच सकता है. BSE और NSE दोनों सबसे बड़े और महत्वपूर्ण स्टॉक एक्सचेंज हैं. इनके अलावा कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज, अहमदाबाद स्टॉक एक्सचेंज, इंडिया इंटरनेशनल एक्सचेंज, मेट्रोपॉलिटन स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया और NSE IFSC लिमिटेड. बीएसई और एनएसई दुनिया के 10 सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज में शामिल हैं. शेयर बाजार का जिक्र होते ही जो बिल्डिंग दिखाई जाती है वो बीएसई की ही बिल्डिंग है.
SENSEX पर दो शब्द एक घालमेल को हम नहीं समझ पाते वो है सेंसेक्स क्या है और बीएसई क्या है. 'बंबई स्टॉक एक्सचेंज' का इंडेक्स है SENSEX. मतलब ये हुआ कि BSE में उस वक्त कारोबार कर रही 30 कंपनियों की हालत कैसी है इसको मापने का पैमाना है सेंसेक्स. इसकी पैदाइश का दिन है 1 जनवरी, 1986. ये SENSEX बनता है BSE में लिस्टेड 30 मुख्य कंपनियों के परफॉरमेंस के आधार पर. इन्होंने अच्छा किया, तो SENSEX अच्छा रहेगा. इन्होंने बुरा परफॉर्म किया, तो वो भी बिगड़ेगा. ये 30 कंपनियां होती हैं सबसे बड़ी खिलाड़ी. इंडस्ट्री के अलग-अलग सेक्टर्स की सबसे बड़ी, सबसे मज़बूत और साख वाली कंपनियां. जैसे- ऑटो सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी मारुति और टाटा मोटर्स. बैंकिंग सेक्टर में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया. ऐसा नहीं कि एक बार इस 30 की लिस्ट में घुस गए, तो स्थापित रहेंगे हमेशा-हमेशा के लिए. लिस्ट समय-समय पर बदलती रहती है. मगर एक समय में लिस्ट के अंदर कंपनियों की संख्या 30 ही रहेगी. एक लाइन में बस इतना समझ लीजिए. कि अलग-अलग क्षेत्रों की सबसे बड़ी और बढ़िया खेल रही कंपनियों का नाम आपको इस लिस्ट में मिलेगा. अच्छा, ये मनमर्ज़ी का खेल नहीं है. कि किसी को निकाल लिया. किसी को घुसा लिया. इन 30 कंपनियों को चुनने की एक कमिटी है बाक़ायदा. इसको कहते हैं- इंडेक्स कमिटी.
NIFTY का परिचय पत्र 'नैशनल स्टॉक एक्सचेंज' (NSE) का सूचकांक है NIFTY. ये शुरू हुआ था नवंबर 1994 में. NIFTY का संधि विच्छेद है- National और Fifty. नाम में ही हिंट है. यहां का सूचकांक तय होता है अर्ध शतक, यानी 50 कंपनियों के कामकाज और उनकी परफॉर्मेंस से. ये कंपनियां 22 अलग-अलग सेक्टर्स से होती हैं.
ऐसा मत समझ बैठिएगा कि सेंसेक्स और निफ़्टी, ये ही दुलौते इंडेक्स हैं. और भी कई इंडेक्स हैं BSE और NSE के.
सेंसेक्स और निफ्टी के अलावा भी इंडेक्स है. एनएसई के इंडेक्स (बाएं) और बीएसई के इंडेक्स (दाएं).
सेंसेक्स और निफ्टी के अलावा भी इंडेक्स है. NSE के इंडेक्स (बाएं) और BSE के इंडेक्स (दाएं).

सेंसेक्स और निफ्टी तय कैसे होता है? सेंसेक्स और निफ्टी का काम होता है स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर्स का भाव देखना. यहां रोज़ की मज़दूरी है. ये दोनों दिन भर के कामकाज के पर एक औसत वैल्यू देते हैं. ताकि इससे लिस्टेड कंपनियों के भाव में होने वाली तेजी और मंदी को आसानी से समझा जा सके. क्या कुछ देखकर कंपनियों की वैल्यू तय होती है, इसके कुछ फॉर्मुला हैं. एक-एक करके इनको समझिए-
बाजार पूंजीकरण या मार्केट कैप चार दोस्तों ने मिलकर एक कंपनी शुरू करने की सोची. उनके पास थे कुल मिलाकर 40 लाख रुपए. उन्हें अभी और पैसों की जरूरत थी. चारों ने मिलकर एक प्लान बनाया. कंपनी की 40 फीसद हिस्सेदारी अपने पास रखी. बाकी का 60 फीसद हिस्सा बेचने का फैसला किया. 60 फीसद हिस्सा खरीदने के लिए उन्होंने लोगों को अपना प्लान दिखाया और कंपनी में पैसा लगाने के लिए IPO निकाल दिया. IPO में शेयर्स की संख्या तय की एक लाख. मतलब जो पैसा लगाने आएंगे, वो इन्हीं एक लाख शेयरों में से अपने मुताबिक शेयर खरीद सकते हैं. एक शेयर की कीमत रखी 10 रुपए. तो इनकी मुताबिक, 10 रुपये प्रति शेयर के हिसाह से एक लाख शेयरों की कुल पूंजी हुई दस लाख रुपए.
ये वो कीमत है, जो इन्होंने तय की. मगर ये फाइनल नहीं है. बाज़ार में इनके IPO को कैसा रेस्पॉन्स मिला, ये तय करेगा शेयर्स की असली कीमत. अब ये रकम ज़्यादा भी हो सकती है और कम भी हो सकती है. मान लीजिए कि IPO होने के बाद मार्केट में इनके एक शेयर की कीमत लगी 60 रुपए. मतलब इनकी सोची रकम से कहीं ज़्यादा. तो कंपनी की कुल बाजार पूंजी हो गई 60 लाख रुपए. इस प्रक्रिया को कहते हैं मार्केट कैप ( market Capitalization).
जब कोई कंपनी पहली बार नए शेयर मार्केट में लाती है तो उसे आईपीओ कहा जाता है.
जब कोई कंपनी पहली बार नए शेयर मार्केट में लाती है, तो उसे IPO कहा जाता है.

फ्री फ्लोट फैक्टर पहले वाले उदाहरण को ही जारी रखते हैं. लोगों ने शेयर खरीदे और कंपनी की 60 फीसद हिस्सेदारी उनके बीच बंट गई. कंपनी के इसी 60 फीसद हिस्से को इंडेक्स यानी सूचकांक को गिनने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसको 'फ्री फ्लोट फैक्टर' कहा जाता है. फ्री फ्लोट यानी तैरने के लिए आजाद. मतलब ऊपर जाएगा कि नीचे जाएगा, कंपनी का इतना हिस्सा इस अड़ाम-धड़ाम के लिए उपलब्ध है. तो हमारे उदाहरण वाली कंपनी के हिसाब से उसका फ्री फ्लोट फैक्टर होगा 0.6. इंडेक्स की गिनती में कंपनी के मार्केट कैप का 60 प्रतिशत हिस्सा ही असरदार माना जाएगा. क्योंकि उतना ही हिस्सा पब्लिक ऑफरिंग में है. पूरे इंडेक्स का फ्री फ्लोट फैक्टर निकालकर उसे इंडेक्स डिवाइजर से भाग दे दिया जाता है. बेस ईयर यहां नॉस्टेलजिया है. मतलब शुरुआत जहां से की थी, उसको बुनियादी ईकाई मान लिया गया है. इस हिसाब से सेंसेक्स का बेस ईयर है 1978-79 को. मान लिया गया है कि 1979 में सेंसेक्स 100 पर था. ऐसे में बेस वैल्यू मान ली गई है 100. आज की तारीख़, यानी कि 25 सितंबर 2019 को ये वैल्यू है 39 हजार पर. इसका मतलब ये हुआ कि पिछले 40 साल में सेंसेक्स 390 गुना बढ़ गया है.
वापस मुद्दे पर आते हैं. मान लीजिए बेस ईयर में मार्केट कैप था 50,000. और इस समय मार्केट कैप है 60 लाख. तो इंडेक्स डिवाइजर होगा 100/50000= 0.002. और इंडेक्स होगा 6000000x 0.002= 12000
ऐसे ही निफ्टी का बेस ईयर 1995 है और बेस वैल्यू 1000. बाकी गिनती सेंसेक्स की ही तरह है निफ्टी की भी.
कंपनी के शेयर खरीदने वाले लोग अधिक हों और उसके कम शेयर बिक्री के लिए उपलब्ध हों तो शेयर का भाव बढ़ जाता है.
कंपनी के शेयर खरीदने वाले लोग अधिक हों और उसके कम शेयर बिक्री के लिए उपलब्ध हों तो शेयर का भाव बढ़ जाता है.

सेंसेक्स में उछाल और गिरावट कैसे तय होती है? सबसे बड़ा फैक्टर है कंपनी की परफॉरमेंस. अगर कंपनी का प्रदर्शन अच्छा है, तो शेयर के दाम बढ़ेंगे. परफॉरमेंस खराब होती है, तो लोग शेयर बेचना शुरू कर देते हैं. इससे शेयर के भाव गिरने लगते हैं.
शेयर का चढ़ना या उतरना किसी एक दिन उस कंपनी के इर्द-गिर्द के कारोबारी माहौल पर भी निर्भर करते हैं. मसलन एक दिन एक कंपनी के शेयर, बाजार में बहुत पसंद किए जा रहे हों तो वो चढ़ जाता है. अगले दिन उसी कंपनी के शेयर को पसंद करने वाले कम हुए तो वो गिर जाता है.  कंपनी जब बढ़िया बिजनस कर रही होती है, तो ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग उसके शेयर खरीदना चाहते हैं. यहां बिल्कुल सप्लाई और डिमांड वाला गणित चलता है. जब किसी कंपनी के शेयर खरीदने वाले लोग अधिक हों और उसके कम शेयर बिक्री के लिए उपलब्ध हों, तो शेयर का भाव बढ़ जाता है. जब शेयर के भाव बढ़ते हैं, इसका मतलब सेंसेक्स में उछाल. भाव गिरने का मतलब गिरावट.
और भी कई कारण हैं, जिनकी वजह से शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव आता है. इनमें से प्रमुख फैक्टर्स ये रहे-
मानसून- अच्छी बारिश के अनुमान से शेयर बाजार में तेजी आती है. वजह ये कि हमारा देश कृषि प्रधान है. अच्छी बारिश मतलब ज़्यादा उत्पादन. शेयर खरीदने वाले निवेशकों को लगता है कि इससे कारोबार में तेजी आएगी और शेयर्स की खरीदारी बढ़ जाती है. देश-विदेश का घटनाक्रम- देश और विदेश में होने वाली कई घटनाओं से भी शेयर बाज़ार प्रभावित होता है. जैसे, अभी सऊदी अरब की तेल कंपनी Saudi Aramco पर हमले के बाद दुनिया भर के मार्केट प्रभावित हुए. तेल कंपनियों के शेयर में ख़ास गिरावट देखी गई. मार्केट को तरक्की के लिए अच्छा माहौल चाहिए. टेंशन बढ़ने, जंग छिड़ने, दो मुल्कों के बीच का ट्रेड वॉर, ऐसी वजहों से मार्केट में उदासी आती है. उसका मुंह लटक जाता है. मतलब गिरावट.
सेंसेक्स में शामिल 30 कंपनियां और 24 सितंबर 2019 को मार्केट बंद होने से पहले इनके शेयर भाव में दर्ज उतार-चढ़ाव.
ये है सेंसेक्स का भाव. 24 सितंबर 2019 को इसी भाव पर मार्केट बंद हुआ . यही 30 कंपनियां हैं अभी  BSE के सेंसेक्स में. 

चुनाव/स्थिर सरकार- 23 मई, 2019 को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA की पूर्ण बहुमत वाली सरकार आई. शेयर बाजार को लगा, आई मज़बूत सरकार. वो खुश हुआ और सेंसेक्स रेकॉर्ड 40 हजार के पार चला गया. सरकार की स्थिरता भी शेयर मार्केट को प्रभावित करती है. निवेशकों को लगता है, बहुमत वाली सरकार मज़बूत फैसले ले सकेगी. यही वजह है कि निवेशक गठंबधन सरकार के मुकाबले बहुमत वाली सरकार के आने पर निवेश करना ज़्यादा पसंद करते हैं.
मौद्रिक नीति- मौद्रिक नीति (ब्याज दर में कमी या वृद्धि), राजकोषीय नीति (कर की दरों में कमी या वृद्धि), वाणिज्य नीति, औद्योगिक नीति, कृषि नीति. और भी बहुत सारी अर्थव्यवस्था से जुड़ी नीतियां. जिन्हें तय करना सरकार के हाथ में होता है. यदि सरकार इनमें कोई भी बदलाव करे, तो मार्केट पर असर पड़ता है. अच्छा भी, बुरा भी. फैसले को मार्केट किस नज़र से देखता है, उसमें उम्मीद देखता है कि निराशा, इससे उतार-चढ़ाव तय होता है.
सरकार के द्वारा किए सुधार प्रयासों से- इस वक़्त देश में आर्थिक सुस्ती का दौर है. इससे निपटने के लिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 सितंबर को कॉरपोरेट टैक्स रेट में कटौती की घोषणा की. सेंसेक्स को मज़ा आया. वो 2200 अंक उछल गया. आंकड़ों के चश्मे से देखें,तो एक दिन में आई करीब 6 फीसद की ये उछाल अब तक की सबसे बड़ी उछाल है. इससे पहले 18 मई, 2009 को बाजार ने 2,110 पॉइंट जंप मारा था. तब UPA की लगातार दूसरी बार सरकार बनी थी. सरकारी नीतियों और सुधार के प्रयासों का शेयर बाजार पर व्यापक प्रभाव पड़ता है.
इसके अलावा और भी कई बातें हैं. जैसे- कंपनी से जुड़ी ख़बरें. बजट. बाज़ार से संबंधित नए कानून. कंपनी की सालाना बैठक. भविष्य की उसकी योजनाएं. शेयर मार्केट के नफा-नुकसान में सबका हिस्सा है.
शेयर में होने वाली हलचल का आम लोगों पर सीधा तो नहीं लेकिन परोक्ष रूप से प्रभाव जरूर पड़ता है.
शेयर में होने वाली हलचल का आम लोगों पर सीधा तो नहीं, लेकिन परोक्ष रूप से प्रभाव जरूर पड़ता है.

सेंसेक्स में उछाल और गिरावट से प्रभावित कौन होता है?
सबसे पहले तो निवेशक. वो झेलते हैं घाटा कि नफा. ये निवेशक तीन तरह के होते हैं-
फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट (FPI)- ये विदेशी संस्थाएं होती हैं. जो माहौल देखकर किसी देश के स्टॉक मार्केट में अपना पैसा लगाती हैं.
घरेलू निवेशक- इस कैटगरी में अधिकतर बीमा, बैंकिंग और म्यूचुअल फंड का कारोबार करने वाली कंपनियां होती हैं. हम अपना पैसा बीमा, बैंक और म्यूचुअल फंड्स में लगाते हैं. ये कंपनियां स्टॉक मार्केट में निवेश कर मुनाफा कमाती हैं. फिर अपने फ़ायदे का एक हिस्सा हमको भी दे देती हैं.
ई से ईकाई- ये होते हैं लोग, जो पैसा लगाते हैं. हमारी-आपकी तरह. बाजार में इनकी हिस्सेदारी बहुत कम है. FPI और घरेलू निवेशक की मार्केट में हिस्सेदारी 90 फीसद है. बाकी के 10 फीसद में ई से ईकाई वाले इन्डिविज़ुअल निवेशक. इन्हें रिटेल इन्वेस्टर भी कहते हैं. ये तो थी सीधे-सीधे उन निवेशकों की बात, जिनका पैसा लगा है बाज़ार में. जिनके ऊपर सीधा असर पड़ता है मार्केट गिरने-बढ़ने का. मगर पीछे वाले रास्ते से इसका असर आम लोगों पर भी पड़ता है. सेंसेक्स और निफ्टी में अपने-अपने क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां होती हैं. इनकी सेहत इकॉनमी की भी सेहत बताती हैं. मसलन- मारूति के शेयर में गिरावट ऑटो सेक्टर में आई मंदी का एक थर्मामीटर है. भारती एयरटेल के शेयर में बढ़त टेलिकॉम सेक्टर की तबीयत दिखाती है.
कुल मिलाकर हम ये कह सकते हैं कि बाज़ार चेहरा है. इसका मूड कैसा है, इसकी हेल्थ कैसी है, ये सब हमें बताते हैं सेंसेक्स और निफ्टी. बढ़त माने खुशी. गिरावट माने चिंता. हालांकि कई बार सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट के बावजूद कई बार शेयर बाजार में अच्छा कारोबार देखने को मिलता है. इसकी वजह ये कि मिडकैप कंपनियां अच्छा कारोबार करती हैं. ये कंपनियां सेंसेक्स और निफ्टी की गिनती से बाहर होती हैं. BSE और NSE में सेंसेक्स और निफ्टी के अलावा भी कई सारे इंडेक्स हैं. फिलहाल BSE में 5,500 से अधिक कंपनियां रजिस्टर्ड हैं. जबकि सेंसेक्स में कुछ 30 कंपनियों की ही गिनती होती है.


वीडियो: क्या निर्मला सीतारमण का विटामिन टैक्स अर्थव्यवस्था की सेहत सुधार पाएगा?

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