केरल के पत्रकार हैं सिद्दीक़ कप्पन. वही जो यूपी के हाथरस कांड के बाद पीड़िता केघरवालों से मिलने जा रहे थे और पांच अक्टूबर को उन्हें यूपी पुलिस ने हिरासत में लेलिया था. UAPA लगा. उनकी जमानत के लिए केरल यूनियन फ़ॉर वर्किंग जर्नलिस्ट्स नेयाचिका लगाई. यूनियन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल. 16 नवंबर कोसुप्रीम कोर्ट में ज़मानत याचिका पर सुनवाई होनी थी, पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कीतारीख़ टाल दी. तमाम प्रक्रियाओं के बीच सबसे ख़ास रही CJI एसए बोबड़े की टिप्पणी.उन्होंने कहा कि कोर्ट संविधान के आर्टिकल-32 के तहत आने वाली याचिकाओं कोहतोत्साहित करना चाहता है क्योंकि आर्टिकल-32 की बहुत सारी याचिकाएं पहले से हीकोर्ट में पेंडिंग हैं. आर्टिकल-32. इसी पर बात करते हैं. साथ ही बात करेंगेआर्टिकल-226 पर भी, जिसके बिना 32 का ज़िक्र अधूरा रह जाएगा.संविधान की आत्माएक मोटा-माटी बात तो हम सबको पता ही है. संविधान में भारत के सभी नागरिकों को सातमौलिक अधिकार दिए गए हैं. समता या समानता का अधिकार. स्वतंत्रता का अधिकार. शोषण केविरुद्ध अधिकार. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार.संवैधानिक उपचारों का अधिकार. नागरिकों के इन मौलिक अधिकारों की हिफ़ाजत होती रहे,इसके लिए संविधान में जोड़ा गया आर्टिकल-32. जिसे डॉ बीआर अंबेडकर ने Heart andSoul of the Constitution कहा था. लेकिन मौलिक अधिकारों के अलावा भी एक नागरिक केतमाम अधिकार होते हैं. जैसे कि- राइट टू वोट, राइट टू मैटरनिटी लीव, सूचना काअधिकार वगैरह. इन अधिकारों की रक्षा के लिए अस्तित्व में आता है- आर्टिकल 226. कुलमिलाकर इन दोनों आर्टिकल का निचोड़ ये है कि – जब कभी भी हमारे-आपके मौलिक अधिकारया किसी अन्य अधिकार का उल्लंघन हो, तो इन दोनों आर्टिकल के तहत सुप्रीम कोर्ट याहाईकोर्ट में याचिका लगा सकते हैं और अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं.कब-किस कोर्ट में जाना है?जब हमें लगे कि हमारे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तब तो बेझिझक सीधा सुप्रीमकोर्ट जाया जा सकता है. आर्टिकल-32 के तहत. हालांकि हाई कोर्ट भी जाते हैं तो कोईहर्जा नहीं है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट जाने की सहूलियत और अधिकार इस स्थिति में आपकेपास है. लेकिन जब मौलिक अधिकारों से इतर किसी अन्य अधिकार का उल्लंघन हो तो इसकेलिए जाना होता है हाई कोर्ट. आर्टिकल-226 के तहत. अगर सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे तोवहां पूछा जाएगा कि आप पहले हाई कोर्ट क्यों नहीं गए. संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए तोकहा जाएगा कि पहले हाई कोर्ट जाइए, फिर यहां आइएगा. इसे उदाहरण से समझते हैं. पहलाकेस – अगर मेरे राइट टू वोट का उल्लंघन हुआ है, तो मैं कहां जाऊंगा? हाई कोर्ट.आर्टिकल-226 के तहत. क्योंकि राइट टू वोट मेरा अधिकार तो है, लेकिन ये मौलिकअधिकारों में से नहीं है. दूसरा केस – अगर मेरे राइट टू स्पीच का उल्लंघन हुआ है,तो मैं कहां जाऊंगा? इस कंडीशन में मैं सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता हूं. आर्टिकल-32के तहत. क्योंकि ये मौलिक अधिकारों में शामिल है.जब आर्टिकल-32 या 226 के तहत कोई याचिका कोर्ट के सामने पहुंचती है तो कोर्ट क्याकरती है? किस तरह से अधिकारों की रक्षा की जाती है? कोर्ट तीन तरह की कार्यवाही करसकता है.पहली कार्यवाही – Writ: सबसे पहली और बड़ी कार्यवाही तो होती है रिट जारी करना. रिटक्या होती है? रिट (Writ) माने फॉर्मल लिखित आदेश, जो न्यायालय की तरफ से जारी कियाजाता है. जब कोई याचिका आर्टिकल-32 या आर्टिकल-226 के तहत कोर्ट पहुंचती है तोकोर्ट रिट जारी करता है. रिट पांच तरह की होती है, जिसके बारे में अभी आगे बात करतेहैं. दूसरी कार्यवाही – Order: मान लीजिए किसी व्यक्ति के मौलिक, संवैधानिक अधिकारका उल्लंघन हुआ है. अब वो आर्टिकल-32 या 226 के तहत कोर्ट जाता है. और माना किकोर्ट उसे उसका अधिकार वापस दिला भी देता है. लेकिन इस बीच उस व्यक्ति को जो मानसिकपीड़ा पहुंची, जो नुकसान हुए, उसका क्या? इसके लिए कोर्ट दोषी पक्ष को आदेश देती हैकि पीड़ित पक्ष को क्षतिपूर्ति करे, हर्जाना दे. तीसरी कार्यवाही - Instruction: कईऐसे मामले होते हैं, जिनके लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है. लेकिन कोर्ट को इस परफैसला देना ज़रूरी है. ऐसे में कोर्ट निर्देश जारी करती है. जैसे कि वर्कप्लेस परसेक्शुअल अब्यूज़ को लेकर जारी किए गए गाइडलाइंस.पांच तरह की रिटअभी हमने ऊपर आपसे कहा था कि रिट पांच तरह की होती है, जिसके बारे में आगे बताएंगे.पांच तरह की रिट ही हमारी आज की बात का सबसे अहम हिस्सा है. वो संकटमोचक रिट, जोहमारे-आपके अधिकारों की रक्षा करती हैं. जिन्हें लेकर हम-आप सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट जा सकते हैं. Habeas Corpus (उच्चारण- हेबियस कॉर्पस) (हिंदी नाम- बंदीप्रत्यक्षीकरण) अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि उसे ग़लत वजहों से हिरासत में रखागया है तो वो Habeas Corpus Writ डाल सकता है. रिट स्वीकार होने पर उस व्यक्ति कोन्यायालय के सामने हाज़िर करना होता है. साथ ही कोर्ट हिरासत में रखने वाली अथॉरिटी(जैसे कि पुलिस) से पूछती है कि किस आधार पर हिरासत में रखा गया है. अपराध सिद्धहोने पर हिरासत बढ़ाई जा सकती है. वरना उसे छोड़ दिया जाता है. Mandamus (उच्चारण-मैंडमस) (हिंदी नाम- परमादेश) ये रिट तब लगाई जा सकती है जब अगर कोई सरकारी संस्थाया अधिकारी अपना कर्तव्य सही से न निभाए और इसके चलते किसी व्यक्ति के अधिकारों काहनन हुआ हो. संबंधित व्यक्ति से पूछताछ होती है और उसके आधार पर फैसला लिया जाताहै. Certiorari (उच्चारण- सर्चरी) (हिंदी नाम- उत्प्रेषण) इसका मतलब होता हैप्रमाणित करना या सूचना देना. ये रिट सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की तरफ से अपनेसबऑर्डिनेट कोर्ट्स, ट्रिब्यूनल्स या प्रशासनिक प्राधिकरणों के खिलाफ जारी की जातीहै. किसी सरकारी प्रक्रिया से जुड़ी पूछताछ करने के मकसद से. Prohibition (उच्चारण-प्रॉहिबिशन) (हिंदी नाम- प्रतिषेध) प्रॉहिबिशन काफी कुछ सर्चरी की तरह ही है. एकबेसिक अंतर है. सर्चरी तब जारी की जाती है, जब किसी सबऑर्डिनेट कोर्ट्स,ट्रिब्यूनल्स या प्रशासनिक प्राधिकरणों में कोई केस चला हो. उस पर फैसला आ गया हो.लेकिन सुप्रीम या हाई कोर्ट उससे सहमत न हो. तो ये रिट जारी करके उस फैसले कोनिष्प्रभावी किया जा सकता है. प्रॉहिबिशन तब जारी की जाती है, जब किसी सबऑर्डिनेटकोर्ट्स, ट्रिब्यूनल्स या प्रशासनिक प्राधिकरणों में कोई केस चल रहा हो. आई रिपीट-चल रहा हो. माने फैसला न आया हो. लेकिन प्रक्रिया के बीच में ही सुप्रीम या हाईकोर्ट दखल देना चाहे तो ये रिट जारी करता है. Quo warranto (उच्चारण- क्यो वारंटो)(हिंदी नाम- अधिकार पृच्छा) किसी सार्वजनिक कार्यालय को संभालने वाला व्यक्ति उस पदपर बने रहने के योग्य है भी या नहीं? ये क्यो वारंटो रिट से तय होता है. जिसकेख़िलाफ ये रिट लगी है, उसे साबित करना पड़ता है कि वो उस पद के योग्य है. एक ख़ासबात ये है कि ज़रूरी नहीं कि कोई पीड़ित व्यक्ति ही क्यो वारंटो लगाए. कोई भीव्यक्ति जानकारी के लिए ये रिट डाल सकता है.