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'भारत में बने कफ सिरप से' दुनियाभर में बच्चों की मौत? इतना बड़ा आरोप बार-बार लगने की वजह क्या है?

दवाओं में ब्रेक ऑइल में पड़ने वाला केमिकल मिला है. ऐसी कंपनियां दवा बनाते मिलीं, जिनपर लगातार मिलावट के आरोप लगे हैं.

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Curious case of Indian cough syrups, know all about the issue
बच्चों की मौतों पर गांबिया में प्रदर्शन हो रहे हैं (सांकेतिक तस्वीरें- Unsplash.com)
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21 जून 2023 (Updated: 21 जून 2023, 20:30 IST)
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भारतीय दवा निर्माताओं द्वारा बनाए गए सिरप को एक बार फिर विदेश में बच्चों की मौतों से जोड़कर देखा जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मिलावटी दवाओं पर अपनी एक जांच में 20 सिरप्स को असुरक्षित पाया, जिनमें से 7 भारतीय दवा निर्माताओं द्वारा बनाए जाते हैं. WHO के मुताबिक इनका संबंध दुनिया भर में हुई 300 मौतों से है. शक है कि सिरप में उस केमिकल से मिलावट कर दी गई, जो ब्रेक ऑइल में पड़ता है.

मिलावटी दवाओं में तीन तरह के सिरप हैं -

कफ सिरप
विटामिन सिरप 
पैरासिटामॉल सिरप

असुरक्षित पाए गए 20 मिलावटी सिरप भारत और इंडोनेशिया की 15 फार्मा कंपनियों द्वारा बनाए जाते हैं. इनमें से 7  को बनाने वाली भारतीय कंपनियां ये हैं -

मेडन फार्मासूटिकल्स (हरियाणा) - 4 सिरप
मैरियन बायोटेक (उत्तर प्रदेश) - 2 सिरप
क्यूपी फार्माकेम (पंजाब) - 1 सिरप

इन दवाओं को लेकर WHO ने गांबिया, उज़बेकिस्तान, माइक्रोनेशिया और मार्शल आइलैंड्स में ''मेडिकल प्रॉडक्ट अलर्ट'' भी जारी किया है. गांबिया और उज़्बेकिस्तान में भारत में निर्मित सिरप्स को कम से कम 88 मौतों से जोड़कर देखा गया था, जिनमें से अधिकतर बच्चे थे. अलर्ट का मकसद लोगों को चेताना होता है, कि अमुक दवा का सेवन न करें.

भारतीय सिरप पर कब-कब सवाल उठे?

अक्टूबर 2022 में गांबिया में 70 बच्चों की मौत को हरियाणा की मेडन फार्मा द्वारा निर्मित सिरप से जोड़कर देखा गया. तब WHO ने मेडिकल प्रॉडक्ट अलर्ट जारी किया था.

दिसंबर 2022 में उज़्बेकिस्तान सरकार ने कहा कि उनके देश में कम से कम 18 बच्चों की मौत उत्तर प्रदेश की मैरियन बायोटेक लिमिटेड द्वारा निर्मित सिरप के चलते हुई है. जनवरी में इन सिरप के लिए भी मेडिकल प्रॉडक्ट अलर्ट जारी हो गया.

अप्रैल 2023 में WHO ने मार्शल आइलैंड्स और माइक्रोनेशिया में बिक रहे क्यूपी फार्माकेम के सिरप को मिलावटी बताया. तब कंपनी की ओर से कहा कि WHO ने एक्सपायर हो चुकी दवा का टेस्ट किया था. ये भी दावा किया कि क्यूपी के कफ सिरप को ''भारत को बदनाम करने के मकसद से'' डूप्लिकेट किया गया. माने उसकी नकल तैयार की गई.

जून 2023 में खबर आई कि कैमरून में पिछले कुछ महीनों में एक दर्जन से अधिक बच्चों की मौत हुई. कैमरून के अधिकारी बच्चों की मौत को भारत में निर्मित कफ़ सिरप से जोड़कर देख रहे हैं. मिंट पर छपी अण्वेषा मित्रा की रिपोर्ट के मुताबिक कफ़ सिरप के डब्बे पर मैनुफैक्चरिंग लाइसेंस नंबर इंदौर की रीमैन लैब्स नाम की कंपनी से मेल खाता है. लेकिन उसपर कंपनी का नाम नहीं लिखा है. रीमैन लैब्स के डायरेक्टर नवीन भाटिया ने ब्लूमबर्ग से कहा है कि तस्वीरों में नज़र आ रही दवाएं, हमारी दवा जैसी दिख रही हैं. लेकिन पक्का नहीं बता सकते. क्योंकि वहां बड़े पैमाने पर नकली दवाएं बनाई जाती हैं.

सब तरफ एक ही शिकायत

ज़्यादातर जगह शिकायत एक ही तरह की थी. कफ सिरप कड़वा होता है. तो मिठास के लिए पड़ता है प्रॉपलीन ग्लाइकॉल. ये एक मेडिकल ग्रेड केमिकल है. लेकिन पैसा बचाने के लिए कुछ निर्माता इथिलीन ग्लाइकॉल और डाइथिलीन ग्लाइकॉल जैसे इंडस्ट्रियल ग्रेड केमिकल भी इस्तेमाल कर लेते हैं, क्योंकि ये सस्ते होते हैं. दिक्कत ये है कि ये दोनों केमिकल सस्ते तो होते हैं, लेकिन मानव शरीर के लिए घातक होते हैं. जहां-जहां कफ सिरप को मिलावटी बताया गया, वहां इन्हीं दो केमिकल्स का स्तर ज़्यादा होने का दावा था. जानकारी के लिए बता दें, गाड़ियों के ब्रेक्स में पड़ने वाले ल्यूब्रिकेंट में इथिलीन ग्लाइकॉल और डाइथिलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल होता है. ज़ाहिर है, ये मानव सेवन के लिए नहीं बने हैं.

रॉयटर्स पर 16 जून 2023 को छपी जेनिफर रिबी की रिपोर्ट के मुताबिक WHO यही मानता है कि पकड़ में आने के बावजूद ज़हरीले या असुरक्षित सिरप का संकट टला नहीं  है. संगठन ने 300 बच्चों की मौत के संबंध में 9 देशों में जांच शुरू की थी. अब इसमें 6 और देशों को जोड़ा गया है. जाली या गुणवत्ताविहीन दवाओं से जुड़े मामलों की जांच कर रही WHO की टीम को रूटेंडो कुवाना लीड कर रहे हैं.

इनका मानना है कि मिलावटी दवाएं आने वाले कुछ सालों तक पकड़ आती रह सकती हैं. क्योंकि मिलावट कच्चे माल (प्रॉपलीन ग्लाइकॉल) में हुई है. और ये अब भी दुनिया भर के वेयरहाउस में पड़ा हो सकता है. ये दो साल तक खराब नहीं होता.

WHO की जांच टीम की थ्योरी है कि 2021 में प्रॉपलीन ग्लाइकॉल की कीमतें अचानक बढ़ गई थीं. इसी के बाद एक (या एक से ज़्यादा) सप्लायर्स ने प्रॉपलीन ग्लाइकॉल में इथिलीन ग्लाइकॉल और डाइथिलीन ग्लाइकॉल की मिलावट करनी शुरू कर दी. चूंकि सप्लाई चेन बड़ी जटिल हैं, माल कई बार हाथ बदलता है, इसीलिए ये साबित करना मुश्किल है.

कंपनियों ने क्या कहा, भारत में क्या कार्रवाई हुई?

दुनिया भर में भारतीय कंपनियों की दवाएं खूब चलन में हैं क्योंकि ये अपेक्षाकृत कम कीमत पर मिल जाती हैं. इसीलिए भारत दवाओं के बड़े निर्यातक के रूप में उभरा है. जब दवाओं में मिलावट की बात सामने आई, तो सरकार ने दो काम किए. अव्वल तो अपने यहां जांच बिठाई, गिरफ्तारियां तक हुईं. और दूसरा WHO और संबंधित देशों से कहा कि वो मौतों और भारतीय दवाओं के बीच वैज्ञानिक तरीके से संबंध स्थापित करके दिखाएं.

अक्टूबर 2022 में ही मेडन फार्मा के यहां से दवाओं के सैंपल ज़ब्त कर लिए गए थे. और हरियाणा सरकार ने कंपनी को काम बंद करने का आदेश दे दिया था. दिसंबर 2022 में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के राज्यमंत्री भगवंत खुबा ने राज्यसभा को बताया कि कंपनी के दवा सैंपल्स में मिलावट नहीं पाई गई.

इसे एक क्लीन चिट की तरह देखा गया.

लेकिन कहानी इस क्लीन चिट पर खत्म नहीं होती है. मार्च 2023 में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन CDSCO (नॉर्थ ज़ोन) ने बताया कि नोएडा की मैरियन बायोटेक (जिसका उज़्बेकिस्तान वाले मामले में नाम आया था) के यहां से कफ सिरप के 36 सैंपल लिए गए थे, जिनमें से 22 में मिलावट मिली.  CDSCO ने इसके बाद नोएडा के फेज़ 3 थाने में FIR दर्ज करा दी. जिसके बाद कंपनी के लोगों की गिरफ्तारी शुरू हुई.

मैरियन बायोटेक वाले मामले में जो सामने आया, उससे WHO के सप्लायर द्वारा मिलावट की थ्योरी को बल मिलता है. CDSCO ने पाया कि मैरियन की दवाओं के जिन बैच में मिलावट मिली, उनके लिए प्रॉपलीन ग्लाइकॉल दिल्ली की माया केमटेक नाम की कंपनी ने सप्लाई किया था. इसके बाद CDSCO ने आदेश दिया था कि कोई भी दवा निर्माता माया केमटेक का प्रॉपलीन ग्लाइकॉल इस्तेमाल न करे. इस आदेश के पालन के लिए CDSCO ने सभी राज्यों को खत भी लिखा था.

ये सब सामने आने के बाद केंद्र और यूपी सरकार ने मैरियन की दवाओं की बिक्री पर बैन भी लगा दिया था.

मैरियन और मेडन के अलावा बाकी दवा कंपनियों के सैंपल भी जांचे गए थे और चेन्नई की ग्लोबल फार्मा और पंजाब की क्यूपी फार्मा को काम बंद करने के आदेश दिए गए थे.

नियम कड़े हुए, स्वास्थ्य मंत्री ने सबूत मांगा

चूंकि इन आरोपों के चलते भारतीय फार्मा सेक्टर की छवि प्रभावित हो रही थी, मई 2023 में केंद्र सरकार के डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड ने एक अधिसूचना लाकर कफ सिरप के निर्यात के नियम कड़े कर दिए.  1 जून 2023 से लागू इन नियमों के तहत जिन कफ़ सिरप को सरकारी लैब से ‘सर्टिफिकेट ऑफ एनालिसिस’ मिलेगा उन्हें ही निर्यात किया जा सकेगा. ये सर्टिफिकेट चार सेंट्रल टेस्टिंग लैब, दो रीजनल टेस्टिंग लैब, या NABL द्वारा मान्यता प्राप्त स्टेट टेस्टिंग लैब द्वारा ही दिए जाएंगे.

इसके बावजूद जब WHO ने 7 भारतीय दवाओं को लेकर सवाल उठाया, तो जवाब देने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडाविया आगे आए. उन्होंने कहा कि भारत दवाओं की गुणवत्ता को लेकर ज़ीरो टॉलरेंस की नीति रखता है. 125 कंपनियों के यहां दवा नियामक की टीम ने जाकर जांच की है. जिसके बाद 71 कंपनियों को नोटिस भेजा जा चुका है. और इनमें से 18 का काम बंद भी करवा दिया गया है.

WHO द्वारा की गई जांच पर मांडविया ने कहा,

“भारतीय दवाओं पर जब भी सवाल खड़ा किया जाता है तो हमें फैक्ट देखने चाहिए. गांबिया में 49 बच्चों की मौत की बात सामने आई थी. WHO के किसी व्यक्ति ने ये बात कही थी. हमने WHO को इस मामले में फैक्ट पेश करने के लिए लिखा था. लेकिन किसी ने भी हमें फैक्ट नहीं बताए."

मांडविया ने आगे बताया, 

“हमने पाया कि एक बच्चे की मौत डायरिया से हुई. जब उसे डायरिया था, उसे कफ सिरप लेने की सलाह किसने दी? हमने एक कंपनी के सैंपल भी चेक किए थे. 24 में से चार सैंपल फेल हुए. अब सवाल ये है कि अगर सिर्फ एक बैच एक्सपोर्ट के लिए बनी थी, और वो फेल हुई, तो सभी सैंपल फेल होंगे. ऐसा नहीं हो सकता कि 20 सैंपल पास हों और चार फेल हो जाएं.”

दवा कंपनियों पर कितनी लगाम है?

किसी भी प्रचलित उत्पाद का निर्माता देश बिना सबूत अपने माल को खराब नहीं मानेगा. जिस तरह अमेरिका की रक्षा कंपनियां उसकी वैश्विक हैसियत को बल देती हैं, उसी तरह भारतीय फार्मा सेक्टर, भारत को विदेशी मुद्रा देने के साथ-साथ एक भरोसेमंद मैनुफैक्चरिंग डेस्टिनेशन के तौर पर पेश करता है. इसीलिए केंद्र ने निर्यात के नियमों को सख्त तो किया ही, स्वास्थ्य मंत्री ने आक्रामक तरीके से भारतीय फार्मा सेक्टर में नियामकों और निर्माताओं दोनों की कार्यप्रणाली का बचाव भी किया.

लेकिन इसी कार्यप्रणाली या प्रॉसेस को लेकर एक खोजी रिपोर्ट ने बड़े गंभीर सवाल खड़े किये थे. 10 मार्च 2023 को रॉयटर्स पर एड्वर्ड मैकैलिस्टर, जेनिफर रिबी और कृष्ण एन दास की एक बड़ी विस्तृत रिपोर्ट छपी. इसमें गांबिया में बच्चों की मौत के पीछे मेडन फार्मा के कफ सिरप की भूमिका को लेकर पड़ताल की गई थी.

इस रिपोर्ट में नियामकों के दस्तावेज़ों के हवाले से लिखा गया कि मेडन पर गुणवत्ताविहीन या मिलावटी दवाएं बेचने का आरोप अक्टूबर 2022 में पहली बार नहीं लगा था.

2011 में बिहार ने कंपनी को पांच साल के लिए ब्लैकलिस्ट किया था. इल्ज़ाम - मिलावटी या गुणवत्ताहीन दवा बेचने का.

मार्च 2022 में केरल सरकार ने पाया कि मेडन द्वारा दो दवाएं क्वालिटी स्टैंडर्ड के मुताबिक नहीं थी. माने सही गुणवत्ता नहीं थी.

फरवरी 2023 में मेडन फार्मा के फाउंडर नरेश कुमार गोयल और टेक्निकल डायरेक्टर एमके शर्मा को हरियाणा के सोनीपत की एक अदालत ने ढाई साल की सज़ा सुनाई. आरोप - विएतनाम को घटिया दवाएं एक्सपोर्ट करना. दरअसल 2014 में विएतनाम स्थित भारतीय काउंसुलेट जनरल ने भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल को बताया था कि विएतनाम की सरकार ने क्वालिटी संबंधी नियमों को तोड़ने के चलते कई भारतीय कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया है, जिनमें से मेडन भी एक थी.

इसके बाद भारत में जांच बैठाई गई. मेडन के खिलाफ सबूत मिले, तो कानूनी कार्रवाई हुई. इसी मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने माना कि अभियोजन ने मेडन पर जो आरोप लगाए, वो साबित भी होते हैं. कोर्ट ने दोषियों को ऊपरी अदालत में अपील के लिए 1 महीने की मोहलत भी दी थी.

मेडन इस केस को आगे कहां तक ले गई है, इसकी जानकारी अभी नहीं है. लेकिन एक पैटर्न नोट किया जा सकता है - 2011 से 2022 के बीच एक दवा कंपनी पर भारत के दो अलग राज्यों और 1 विदेशी सरकार ने मिलावटी या गुणवत्ताविहीन दवाओं को बेचने का आरोप लगाया. एक बार कंपनी ब्लैकलिस्ट हुई और एक मामले में मालिक को सज़ा भी हो गई. इस रिकॉर्ड के बावजूद हरियाणा के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन FDA डिपार्टमेंट ने मेडन को निर्यात के लिए दवाएं बनाने का लाइसेंस दे दिया.

रॉयटर्स ने तब अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि लाइसेंस वाले सवाल पर केंद्र या हरियाणा की सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया था.

क्लीन चिट, कितनी क्लीन?

गांबिया मामले में मेडन को भारत सरकार ने क्लीन चिट भले दे दी हो, गांबिया सरकार और WHO अपने दावे पर कायम हैं. रॉयटर्स ने लिखा है कि गांबिया में कपनी का जो कफ सिरप बिक रहा था, उसपर WHO का लोगो लगा हुआ था और लिखा था - ''WHO-GMP सर्टिफाइड''.  जबकि WHO का कहना है कि वो गुड मैनुफैक्चरिंग प्रैक्टिस GMP के लिए कोई सर्टिफिकेट देता ही नहीं. और न ही मेडन को उसका लोगो के साथ लेबल ये सब लिखने का अधिकार था. अब WHO के वकीलों ने इस बाबत मेडन को संदेश भेजा है.

मांडविया कह रहे हैं कि डायरिया के मरीज़ को कफ सिरप क्यों दिया गया. लेकिन रॉटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक पेशंट हिस्ट्री कुछ ऐसी थी - अस्पताल में भर्ती होने वाले ज़्यादार मृतकों (बच्चों) ने कुछ दिन पहले छोटी-मोटी तकलीफ के लिए कफ सिरप लिया था. अचानक इन्हें उल्टियां होने लगीं और दस्त लग गए (डायरिया). इसके बाद उनकी पेशाब बंद हो गई और वो चेतना खोने लगे. बल्ड टेस्ट से मालूम चला कि किडनियां ठीक से काम नहीं कर रही हैं. संकेत ये है कि कफ सिरप लेने के बाद डायरिया हुआ, न कि डायरिया के मरीज़ को कफ सिर दिया गया.

अगर आपको कफ सिरप के चलते बच्चों की मौतों की ये कहानी कुछ ज़्यादा ही घुमावदार लगती है, तो एक और बात पर गौर करते जाइए. 17 मई 2023 को हरियाणा के अखबार हरिभूमि ने एक खबर छापी, कि सूबे के ड्रग कंट्रोलर मनमोहन तनेजा पर पांच करोड़ लेकर गांबिया मामले में मेडन को बचाने का प्रयास करने का आरोप लगा है. रॉयटर्स के कृष्ण एन दास की 14 जून 2023 वाली रिपोर्ट में इस आरोप पर भी विस्तार से जानकारी है.

दरअसल 29 अप्रैल को हरियाणा के एंटी करप्शन ब्यूरो ACB को यशपाल नाम के एक वकील ने खत लिखा. इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि गांबिया मामले को लेकर जब भारत सरकार ने जांच के आदेश दिए, तो कुछ सैंपल इकट्ठा किए गये. लेकिन तनेजा ने जांच से पहले सैंपल बदल दिए. यशपाल ने अपने दावों के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया. लेकिन ACB का कहना है कि शिकायत पर इंक्वायरी जारी है. तनेजा ने अभी इसपर अपना पक्ष नहीं रखा है.

वो क्लीन चिट भी सवालों के घेरे में है, जो दिसंबर 2022 में मेडन को मिली थी. क्योंकि गांबिया मामला सामने आने के बाद जब सरकार ने जांच बैठाई, तब अधिकारियों को ढेर सारी अनियमितताएं मिली थीं. मेडन फार्मा सिरप में इस्तेमाल से पहले प्रॉपलीन ग्लाइकॉल का टेस्ट करने से चूक गई थी. फिर कच्चे माल के गुणवत्ता सर्टिफिकेट पर बैच नंबर गायब थे. कई पर मैनुफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट नहीं थी.

जो दवाएं बन रही थीं, उनकी लेबलिंग में भी दिक्कत थी. बॉटल के लेबल पर लिखा था कि बैच दिसंबर 2021 में बनी. जबकि मैनुफैक्चरिंग के रिकॉर्ड्स के मुताबिक इन बोतलों में मौजूद बैच फरवरी से मार्च 2022 के बनी थी. ऐसे में कई विशेषज्ञों ने ये माना कि ये मालूम करना बेहद मुश्किल है कि जो सैंपल अक्टूबर 2022 में जांच के लिए इस्तेमाल किए गए, वो उसी बैच से आए थे, जिसे गांबिया भेजा गया था. जब ये पूछा गया कि ड्रग कंट्रोलर ने इस बात की पुष्टि कैसे की थी, तब इस मामले पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने जवाब नहीं दिया था.

बात यहां एक कंपनी या फिर कफ सिरप वाली दो या तीन घटनाओं की नहीं है, जो अचानक सामने आई हों. कफ सिरप वाली घटनाओं में ज़िम्मेदारी तय होना बाकी है. कि गड़बड़ सप्लायरों की ओर से हुई, निर्माताओं की ओर से या फिर मौतों का बिलकुल ही कोई और कारण था. लेकिन इतना ज़रूर है कि भारत में दवा नियमन को और आक्रामक और पारदर्शी होना होगा. खुलकर सवालों के जवाब देने होंगे. तभी गुणवत्ता बनी रह सकती है. ये होगा, तभी भारतीय फार्मा सेक्टर की पहचान बनी रह सकती है.

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