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चंद्रयान-3 को जो LVM3 रॉकेट लेकर जाएगा, वो अंतरिक्ष में जलकर कहां गिरता है?

भारत का सबसे भारी रॉकेट LVM3 चंद्रयान-3 को लेकर कब उड़ेगा, पता चल गया है...

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Chandrayaan LVM3
LVM3 रॉकेट ही चंद्रयान-2 मिशन को लेकर गया था. (फोटो सोर्स- इंडिया टुडे)
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शिवेंद्र गौरव
6 जुलाई 2023 (Updated: 6 जुलाई 2023, 18:51 IST)
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चंद्रयान-3. भारत का सबसे महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियान. इस मिशन को लॉन्च करने की तैयारियां शुरू हो गई हैं. इसरो ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे इसे लॉन्च कर दिया जाएगा. इससे पहले 5 जुलाई को ISRO ने बताया था कि श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) के सतीश धवन स्पेस सेंटर में चंद्रयान-3 के स्पेसक्राफ्ट को इसके लॉन्च व्हीकल से जोड़ दिया गया है. ये लॉन्च-व्हीकल LVM3, वो रॉकेट है जो चंद्रयान को अपने साथ स्पेस में लेकर जाएगा. इसरो ने ट्वीट करके इसकी जानकारी दी है.

चांद की सतह पर स्पेसक्राफ्ट उतारने की भारत की ये दूसरी कोशिश है. इससे पहले 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 मिशन लॉन्च किया गया था. चंद्रयान-3 असल में चंद्रयान-2 का फॉलो-ऑन मिशन है. चंद्रयान-2 के लॉन्च के बाद के इसके कई चरण सफलता से पूरे हुए थे. लेकिन 47 दिन बाद 6 सितंबर, 2019 को स्पेसक्राफ्ट के दो हिस्से- लैंडर और रोवर क्रैश हो गए थे. लैंडर विक्रम से जब इसरो का संपर्क टूटा, तब उसकी चांद की सतह से दूरी सिर्फ 2.1 किलोमीटर बची थी. चंद्रयान-2 मिशन की तरह ही चंद्रयान-3 को भी LVM3 लॉन्च व्हीकल के सहारे लॉन्च किया जाएगा.

अब जानते हैं कि LVM3 क्या है और स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च करने के लिए इसकी जरूरत क्यों पड़ती है-

लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3) क्या है?

LVM3 यानी लॉन्च व्हीकल मार्क-3, देश का सबसे भारी रॉकेट है. इसका कुल वजन 640 टन यानी करीब 5 लाख 80 हजार किलोग्राम से ज्यादा है. इसकी कुल लंबाई 43.5 मीटर है जबकि इसके जिस हिस्से में विस्फोटक ईंधन रहता है उसका व्यास 5 मीटर है. ये रॉकेट पृथ्वी की निचली ऑर्बिट (जो पृथ्वी की सतह से करीब 200 किलोमीटर ऊपर है) तक करीब 8 टन पेलोड ले जा सकता है. लेकिन इसके ऊपर की कक्षाओं, यानी जियोस्टेशनरी ऑर्बिट, जो कि 35 हजार किलोमीटर की ऊंचाई तक हैं, वहां तक इसका आधा वजन ही ले जा सकता है. 
दूसरे देशों और उनकी स्पेस रिसर्च कंपनियों और संस्थानों के रॉकेट्स की तुलना में LVM3 रॉकेट बहुत कमजोर नहीं है. यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) का Ariane5 का कुल वजन 7 लाख किलोग्राम से ज्यादा है. और ये पृथ्वी की निचली कक्षा तक करीब 20 टन और जियोस्टेशनरी ऑर्बिट्स तक 10 टन वजन ले जा सकता है.

LVM3 की जरूरत क्या है?

चंद्रयान-3 एयरक्राफ्ट के तीन हिस्से हैं या ऐसे कह सकते हैं कि इसमें तीन अलग-अलग काम करने वाले उपकरण हैं. लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल. जैसे कि नाम से जाहिर, लैंडर, चौपाए जैसी आकृति का ये बड़ा सा उपकरण चांद की जमीन पर उतरेगा. इसी के अंदर रोवर रखा होगा. लैंडर जब चांद पर उतर जाएगा तब रोवर चांद की जमीन पर चलेगा.

इसरो की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, प्रोपल्शन मोड्यूल का काम तब शुरू होगा जब लैंडर, लॉन्च व्हीकल से अलग हो जाएगा, इसके बाद प्रोपल्शन मॉड्यूल ही लैंडर को चांद की आख़िरी कक्षा तक ले जाएगा. फिर ये लैंडर से अलग हो जाएगा. लैंडर मॉड्यूल का वजन 1 हजार 752 किलोग्राम है. इसी के अंदर 26 किलो का रोवर भी है. वहीं प्रोपल्शन मॉड्यूल का वजन 2 हजार 148 किलोग्राम है. इस तरह स्पेसक्राफ्ट का कुल वजन 3 हजार 900 किलोग्राम है. हालांकि चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर नहीं है, इसरो, चंद्रयान-2 के साथ भेजे गए ऑर्बिटर के जरिए या फिर सीधे लैंडर के जरिए चंद्रयान-3 से संपर्क साधेगा.

इतने वजन का स्पेसक्राफ्ट खुद स्पेस में नहीं जा सकता. स्पेस में ले जाने के लिए इसे किसी लॉन्च व्हीकल या रॉकेट की जरूरत होती है. ठीक उसी तरह जैसे सैटेलाइट के लॉन्च के लिए होती है. चंद्रयान-3 के लिए LVM3 ये काम करेगा. LVM3, को आप आसान भाषा में एक मजबूत प्रोपल्शन सिस्टम वाला रॉकेट ही समझिए. प्रोपल्शन माने आसान भाषा में कहें तो आगे की तरफ धक्का देना. प्रोपल्शन सिस्टम में फ्यूल के जलने से बहुत ज्यादा एनर्जी पैदा होती है जो रॉकेट को ऊपर की तरफ ले जाती है. ये एनर्जी इतनी ज्यादा होती है कि रॉकेट के साथ लगे भारी स्पेसक्राफ्ट को भी, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत दिशा में बहुत तेज गति से ले जाती है.

LVM3 कैसे काम करता है?

LVM3 एक थ्री-स्टेज रॉकेट है. इसमें कई हिस्से होते हैं जिनमें कई तरह का फ्यूल जलता है और रॉकेट को ऊपर उठने की ताकत मिलती है. एक बार, जब एक हिस्से का ईंधन ख़त्म हो जाता है तो वो हिस्सा रॉकेट से अलग हो जाता है. ये अलग हुआ हिस्सा हवा के घर्षण की वजह से जलकर गिर जाता है. LVM3, जब किसी सैटेलाइट या स्पेसक्राफ्ट को लेकर जाता है तो उसकी मंजिल तक पहुंचते-पहुंचते रॉकेट का एक बहुत छोटा हिस्सा ही बचता है. और जब आखिर में सैटेलाइट या स्पेसक्राफ्ट, रॉकेट से अलग हो जाता है तो रॉकेट का ये आख़िरी हिस्सा स्पेस का कचरा बन जाता है, या फिर वापस पृथ्वी के वायुमंडल में गिरते वक़्त जल कर ख़त्म हो जाता है.

LVM3 का इससे पहले इस्तेमाल हुआ है?

LVM3 ने साल 2014 में पहली बार स्पेस का सफ़र किया था. इसके बाद साल 2019 में चंद्रयान-2 को स्पेस तक ले जाने में इसका इस्तेमाल हुआ था. और इसी साल मार्च में LVM3 ने, करीब 6 हजार किलोग्राम वजन के OneWeb कंपनी के 36 सेटेलाइट एक साथ स्पेस में लॉन्च किए थे. माने सब ठीक दिख रहा है. इसरो इस बार अपने प्लान में सफल हो, ऐसी हमारी तरफ से शुभकामनाएं हैं.

वीडियो: चंद्रयान 3 लॉन्चिंग के लिए तैयार, इसका मिशन और खास बातें ISRO चीफ ने बता दिया

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