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Chandrayaan 3 के लैंडर पर 'सोने की चादर' देखी है, उसके पीछे की साइंस आखिर क्या है?

सोने की इस पतली पन्नी के फायदे जान आप सोना दान दे देंगे!

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chandrayaan 3 lander gold foil wrapped for what
लैंडर (बाएं) पर लिपटी दिख रही सुनहरी पन्नी में कई लेयर्स होती हैं (फोटो सोर्स- इंडिया टुडे और Quora C Stuart Hardwick)
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शिवेंद्र गौरव
22 अगस्त 2023 (Updated: 25 अगस्त 2023, 13:39 IST)
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Chandrayaan-3 का लैंडर (Vikram Lander) 23 अगस्त की शाम चांद की जमीन को छुएगा (Soft Landing). ऐसा अभी तक ISRO ने तय कर रखा है. लैंडर की तस्वीर देखते हैं तो मन में एक सवाल आता है. इसके ऊपर चमकीली सुनहरी पन्नी जैसी चीज क्या है? इसे लैंडर के ऊपर लपेटने से क्या फायदा है? आइए जानते हैं-

फिजिक्स में हमने इंसुलेटर शब्द सुना है. कोई भी ऐसी चीज या उपकरण या तत्व जिसके आर-पार ऊष्मा या किसी भी दूसरी तरह की एनर्जी ना आ सकती है ना जा सकती है. आप इसे कुचालक या नॉन-कंडक्टर भी कह सकते हैं. स्पेसक्राफ्ट या किसी सैटेलाइट पर पन्नी जैसी दिखने वाली ये चीज असल में मल्टी-लेयर इंसुलेशन (MLI) है. ये मल्टी-लेयर इंसुलेशन यानी MLI, कई सारी रेफ्लेक्टिव फिल्म्स का बना होता है. जो बहुत हल्की होती हैं और इनकी मोटाई अलग-अलग होती है. MLI की सभी लेयर्स सामान्य तौर पर पॉलीमाइड या पॉलिएस्टर (एक तरह की प्लास्टिक) की बनी होती हैं. और इन लेयर्स पर एल्युमीनियम की कोटिंग भी होती है. प्लास्टिक, एल्युमीनियम और बाकी लेयर्स में कौन कितनी पतली या मोटी है, किस अनुपात में इनका इस्तेमाल किया गया है, ये इस बात पर निर्भर करता है कि सैटेलाइट या स्पेसक्राफ्ट किस तरह के ऑर्बिट में चक्कर लगाएगा, MLI को इस स्पेसक्राफ्ट में लगे किस टाइप के इंस्ट्रूमेंट्स को प्रोटेक्ट करना है और इस पर सूरज की कितनी रौशनी पड़ेगी.

विक्रम लैंडर के ऊपर जो सुनहरी पीली शीट या किसी और स्पेसक्राफ्ट की सिल्वर कलर की शीट अक्सर एल्युमीनियम कोटेड पॉलीमाइड की सिंगल लेयर होती है. इसमें एल्युमीनियम अंदर की तरफ होता है. और बाहर की तरफ के सुनहरे रंग की वजह से ऐसा लगता है कि इसे सोने की शीट से कवर किया गया है.

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इस सुनहरी चादर का इस्तेमाल क्या है?

सैटेलाइट या किसी स्पेसक्राफ्ट पर लपेटे गए इस MLI का सबसे ख़ास इस्तेमाल है थर्मल कंट्रोल. स्पेस में बहुत कम या बहुत ज्यादा तापमान हो सकता है. कोई स्पेसक्राफ्ट किस ऑर्बिट में है, इस पर निर्भर करता है कि उसे किस तापमान का सामना करना पड़ेगा. किसी ऑर्बिट में माइनस 200 डिग्री फारेनहाइट तो किसी दूसरे ऑर्बिट में 300 डिग्री फारेनहाइट तक गर्मी हो सकती है. ऐसे में MLI, किसी ऑर्बिट में चक्कर लगा रहे स्पेसक्राफ्ट के टेम्प्रेचर को संतुलित रखते हुए इसमें लगे उपकरणों को प्रोटेक्ट करता है.

असल में हीट ट्रांसफर माने किसी एक चीज से दूसरी तक ऊष्मा पहुंचने के तीन तरीके हैं. कंडक्शन, कन्वेक्शन और रेडिएशन. लेकिन जैसा कि हम जानते हैं, स्पेस में सूरज की रौशनी (लाइट वेव्स) और उनके साथ ही साथ हीट सिर्फ रेडिएशन के जरिए ट्रैवेल करती है. कंडक्शन और कन्वेक्शन के लिए हवा जैसा कोई माध्यम चाहिए जो कि स्पेस में होता नहीं. MLI भी किसी स्पेसक्राफ्ट को कंडक्शन और कन्वेक्शन से पूरी तरह नहीं बचा सकता. माने ऐसे समझिए कि अगर गर्म तवे को MLI के ऊपर रख दें तो स्पेसक्राफ्ट तक गर्मी पहुंचेगी. लेकिन स्पेस में MLI, स्पेसक्राफ्ट को रेडिएशन से बचा लेता है. इसकी डिज़ाइन कुछ यूं है कि ये सूरज की रौशनी को वापस स्पेस में ही परावर्तित कर देता है. इससे स्पेसक्राफ्ट के उपकरण गर्म नहीं होते और उनकी कार्यक्षमता प्रभावित नहीं होती. और जैसा हमने आपको शुरू में बताया, इसके हीट इन्सुलेशन के फीचर का फायदा ये भी है कि ये स्पेसक्राफ्ट के अंदर के तापमान को भी बचाकर रखता है. माने अगर स्पेसक्राफ्ट किसी बहुत ठंडे इलाके (मिसाल के लिए जहां इस पर पृथ्वी की छाया पड़ रही हो और सूरज की रौशनी का एक कतरा भी न पहुंच रहा हो) में है तो भी इसके उपकरण भीषण ठंड के चलते ख़राब होने से बच जाते हैं.

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ये फायदे बोनस में हैं

MLI के कुछ और भी फायदे हैं. चांद को छूते वक़्त लैंडर को चांद की धूल से बचाना होगा, MLI वहां भी काम आएगा. इसके सेंसर और बाकी छोटे-छोटे लेकिन जरूरी उपकरण धूल से ख़राब नहीं होंगे. 

एक और सवाल, आपके मन में होगा. अगर ढकना ही है तो गोल्ड की ही परत क्यों? असल में पूरे स्पेसक्राफ्ट या सेटेलाइट पर सोने की परत का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसके कुछ ही जरूरी हिस्सों को MLI से ढका जाता है. स्पेस में सोने की कोटिंग वाली फिल्म्स के कई फायदे हैं. स्पेस में सनलाइट के रेडिएशन के अलावा भी कई तरह के रेडिएशन होते हैं. सोना, स्पेसक्राफ्ट को X-रे, अल्ट्रावायलेट रे जैसे रेडिएशन के चलते होने वाले कोरोजन (जंग लगना) से बचाता है.

Nasa अपने एस्ट्रोनॉट्स के लिए जो स्पेससूट बनाता है उनमें भी सोने का इस्तेमाल किया जाता है. सूट्स में लगी सोने की परत एस्ट्रोनॉट्स को इन्फ्रारेड रेडिएशन से बचाती है. एस्ट्रोनॉट्स के हेड-वाइजर में गोल्ड की पतली लेयर होती है. एस्ट्रोनॉट्स जब सूरज की सीधी रौशनी में आते हैं तो ये लेयर उन्हें सूरज की रौशनी के हानिकारक कॉम्पोनेंट्स से भी बचाती है.

वीडियो: चंद्रयान-3 का लैंडर अलग हुआ, सबसे ज्यादा नाजुक मौका अब शुरू, यहीं कैसे फेल हुआ था चंद्रयान-2?

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