क्या भूटान, चीन को डोकलाम सौंपने वाला है?
2016 से सीमा विवाद पर भूटान और चीन में बातचीत बंद थी. अब हुई मीटिंग में कहा जा रहा है कि जमीन की अदला-बदली हो सकती है. ये भारत के लिए बहुत बुरा होगा.
दो देशों के बीच सीमा विवाद सुलझे, इससे अच्छी बात और क्या होगी? लेकिन जैसा किसी सयाने आदमी ने कभी कहा था - समाधान भी अपने साथ कुछ समस्याएं लेकर आते हैं. ये बात चीन और भूटान के बीच चल रही सीमा वार्ता पर बिलकुल फिट बैठती है. भारत चिंतित है. कि चीन और भूटान के बीच चल रही सीमा वार्ता (China Bhutan border resolution) से भारत का नुकसान तो नहीं हो जाएगा.
चीन की सीमा जितने देशों से लगती है, उनमें से इक्का-दुक्का को छोड़कर वो हर किसी से ज़मीन के लिए झगड़ रहा है. भूटान भी इसी लपेटे में है. साल 2016 से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर बातचीत बंद थी. लेकिन 24 अक्टूबर को चीन की राजधानी बीजिंग में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच फिर से बात शुरू हुई है. और 'जल्द से जल्द' सीमा विवाद सुलझाने और राजनयिक संबंध कायम करने पर सहमति बनी है. ऐसे में ये आशंका भी जताई जा रही है कि भूटान ज़मीन की अदला-बदली में डोकलाम चीन को देने पर राजी हो सकता है. ये भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है.
चीन-भूटान के बीच सीमा विवाद (China Bhutan Border Dispute) की कहानी क्या है, उस पर कैसी सहमति बनी है, और इससे भारत के हितों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, समझते हैं.
चीन-भूटान सीमा विवादचीन और भूटान के बीच तकरीबन 477 किलोमीटर लंबी सीमा को लेकर 80 के दशक से विवाद चल रहा है. दोनों के बीच अब तक राजनयिक संबंध भी नहीं हैं. जिन दो इलाकों को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है, उनमें एक है 269 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का डोकलाम इलाका. और दूसरा इलाका भूटान के उत्तर में 495 वर्ग किलोमीटर का जकारलुंग और पासमलुंग घाटी का है. अक्टूबर 2021 में चीन और भूटान ने 'थ्री-स्टेप रोडमैप' के समझौते पर दस्तखत किए थे. और अब जो मीटिंग हुई है, कहा जा रहा है कि उससे सीमा विवाद को सुलझाने में तेजी आएगी.
मीटिंग के मायनेभूटान और चीन के बीच बातचीत का ये 25वां दौर था. भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोर्जी और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बैठक की. जिसके बाद दोनों पक्षों के बीच इस बात पर सहमति बन गई है कि सीमा विवाद जल्द हल होना चाहिए.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भूटान के विदेश मंत्री का ये चीन में पहला आधिकारिक दौरा था. इस दौरान "भूटान-चीन सीमा के निर्धारण और सीमांकन" को लेकर एक संयुक्त तकनीकी टीम बनाने को लेकर भी एक "सहयोग समझौते" पर हस्ताक्षर हुए हैं.
एक साझा बयान भी जारी किया गया है. इस मौक़े पर दोर्जी के साथ भारत में भूटान के राजदूत मेजर जनरल वी नामग्याल (रि) भी मौजूद थे. चीन की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि बैठक के दौरान वांग यी ने ये उम्मीद जताई कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ राजनयिक रिश्ते कायम करेंगे. ये बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के किसी भी स्थायी सदस्य के साथ भूटान के कूटनीतिक संबंध नहीं हैं.
अख़बार के मुताबिक, वांग यी ने कहा,
भारत ने क्या कहा?"चीन और भूटान के बीच सीमा को लेकर समाधान निकलने और राजनयिक संबंध कायम होने में दोनों देशों का दूरगामी हित हैं."
सूत्रों के मुताबिक भारत का इस मामले पर ये कहना था कि दोनों देशों के बीच की बातचीत पर उसकी नज़र है. क्योंकि इसका सीधा संबंध उसकी सुरक्षा से है, ख़ास तौर पर डोकलाम से. हालांकि इस बैठक पर भारत की तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. भूटान ने भी अभी कोई बयान जारी नहीं किया है. लेकिन बीते कुछ वक़्त में भूटान का चीन के प्रति रुख कुछ बदला जरूर है.
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भूटान का रुख क्या है?साल 2019 तक डोकलाम को लेकर भूटान का स्टैंड, भारत के जैसा ही था. लेकिन बीते कुछ सालों में भूटान का रुख चीन के प्रति नरम हुआ है. कैसे?
तब शेरिंग ने द हिंदू को दिए एक इंटरव्यू में कहा था,
“डोकलाम में कोई भी देश एकतरफा तौर पर बदलाव नहीं कर सकता. इंटरनेशनल मैप्स पर ये जगह बाटांग ला के तौर पर है. जिसके उत्तर में चीन की चुंबी वैली, दक्षिण में भूटान और पूर्व में भारत का सिक्किम है.”
ये बयान भारत के लिहाज से कुछ संतुलित था. क्यों? ये समझने के लिए पहले डोकलाम इलाके की भौगोलिक स्थिति को भारत की सीमाई संवेदनशीलता और सुरक्षा के लिहाज से समझ लीजिए. ये ऊंचा पठारी इलाका, नाथू ला दर्रे से बमुश्किल 15 किलोमीटर दूरी पर है. जो भारत और चीन को एक-दूसरे से अलग करता है. भारत इसे डोकलाम कहता है और चीनी इसे डोंगलांग कहते हैं. चीन चाहता है, इस ट्राईजंक्शन को इंटरनेशनल मैप पर 7 किलोमीटर दक्षिण में दिखाया जाए. यहां माउंट गिप्मोची है. ऐसे में तकनीकी तौर पर पूरा डोकलाम इलाका चीन के कब्जे में आ जाएगा. जो भारत नहीं चाहता. क्यों?
क्योंकि यह हिस्सा भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर से करीब है. सिलिगुड़ी कॉरीडोर में ज़मीन का एक संकरा टुकड़ा पूर्वोत्तर को भारत के बाकी राज्यों से जोड़ता है. इसीलिए भारत के लिए ये इलाका बहुत संवेदनशील है. चीन जितना हो सके, सिलिगुड़ी कॉरिडोर के करीब आ जाना चाहता है. ताकि युद्ध की स्थिति में पूर्वोत्तर को भारत से अलग किया जा सके. और सिलीगुड़ी कॉरिडोर में आता है डोकलाम. इसीलिए चीन डोकलाम में स्थिति को मज़बूत करने में लगा हुआ है. उसने सड़कें बना रखी हैं, उसके गांव बसे हुए हैं, जो युद्ध की स्थिति में उसके लिए मिलिट्री बेस का काम करेंगे.
भूटान के PM लोटे शेरिंग का बदला रुख इसी साल बेल्जियम के अख़बार, 'ला लिब्रे' को दिए एक इंटरव्यू में सामने आया. उन्होंने डोकलाम विवाद को अब तीन देशों का विवाद करार दिया. उनके मुताबिक, डोकलाम पठार का समाधान निकालने में चीन की भी बराबर की हिस्सेदारी है. इंटरव्यू में शेरिंग कहते हैं,
"समस्या का समाधान अकेले भूटान नहीं निकाल सकता. इस मामले से हम तीन देश जुड़े हैं. कोईभी देश बड़ा या छोटा नहीं है. तीनों देश बराबर हैं. भूटान चर्चा के लिए तैयार है. जैसे ही अन्य दो पक्ष तैयार होते हैं. हम चर्चा कर सकते हैं."
शेरिंग का ये बयान, भारत के लिहाज से बिल्कुल उलट है. क्योंकि भारत डोकलाम पर चीन के किसी भी दावे से इनकार करता है और एक अच्छे पड़ोसी देश की तरह उसे भूटान का हिस्सा मानता है. शेरिंग ने ये भी कहा कि उनके इलाके में चीनी घुसपैठ नहीं हुई है. जबकि नक़्शे और सैटेलाइट तस्वीरें झूठ नहीं बोलतीं. भूटानी जमीन पर चीनी के बसाए गांवों की तस्वीरें हम सबने देखीं. इस हिस्से में चीन गांव पर गांव बनाता जा रहा है. मज़े की बात ये है कि इस इलाके में चीनी गांव ऐतिहासिक रूप से मौजूद नहीं थे. और न ही इन गांवों में आम चीनी नागरिक रहते हैं. ये गांव दिखावे के हैं. और इनका इस्तेमाल करती है चीन की सेना PLA. ज़ाहिर है, भारत के लिहाज से ये ठीक नहीं है.
चीनी घुसपैठ के बारे में 'ला लिब्रे' के साथ इंटरव्यू में शेरिंग कहते हैं,
"जिन गांवों के बारे में खबरें आई थीं, वो भूटान में नहीं हैं. हमने साफ़ कहा है कि भूटानी सीमा में कोई घुसपैठ नहीं हुई है. ये इंटरनेशनल बॉर्डर का इलाका है. हमारी जमीन कहां तक है ये हमें पता है."
ये पहली बार था कि भूटान ने चीनी घुसपैठ को लेकर कोई बयान दिया. और बयान में सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर आई मीडिया रिपोर्ट्स को खारिज किया. एक्सपर्ट्स का मानना था कि भूटान अपनी साख बचाने के लिए दावा कर रहा है कि चीन ने जिन इलाकों पर धीरे-धीरे कब्जा जमाया है ये उसके इलाके नहीं हैं.
और लोटे शेरिंग का एक बिल्कुल ताजा (क़रीब एक महीना पहले का) एक बयान, ये साफ़ करता है कि चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने में भूटान ने कुछ कदम और आगे बढ़ाए हैं. इस बयान में लोटे शेरिंग ने कहा था कि चीन के साथ बातचीत जारी है और सीमा तय करने को लेकर जल्द ही तीन बातों पर सहमति बन सकती है. ये तीन बातें हैं-
बातचीत में सीमांकन को लेकर सहमति;
सीमांकन वाली जगहों का औपचारिक दौरा; और
सीमा का निर्धारण.
भूटान के पीएम ने ये भी कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि नक़्शे पर एक लाइन खींची जाएगी, जिसके एक तरफ़ का भूटान का हिस्सा होगा और दूसरी तरफ़ का चीन का.
भारत के लिए चिंता क्यों?डोकलाम के इलाके में चीन की सेना की मौजूदगी, भारत और भूटान के बीच हुए एक वादे को भी धता बताती है. ये वादा क्या था? अगस्त, 1949 में भारत और भूटान के बीच दार्जीलिंग में एक समझौता हुआ, जिसे कहा जाता है ट्रीटी ऑफ फ्रेंडशिप. इसके आर्टिकल 2 के मुताबिक, भूटान अपने विदेश मामलों में भारत सरकार की सलाह लेगा. और इसके बाद से भूटान की विदेश नीति में भारत की भी भूमिका रहती है.
भूटान की ज़मीन पर विदेशी आक्रमण/अतिक्रमण उसकी विदेश नीति का विषय है, इसीलिए भारत इसमें दिलचस्पी लेता है. भारत और भूटान के बीच 2007 में फिर एक समझौता हुआ, जिसे कहा जाता है INDIA-BHUTAN FRIENDSHIP TREATY. इसके आर्टिकल 2 में भी लिखा है कि दोनों देश राष्ट्रहित के मुद्दों पर करीबी सहयोग रखेंगे और कोई देश अपनी ज़मीन का इस्तेमाल दूसरे के हितों के खिलाफ नहीं होने देगा. 1949 और 2007 के समझौतों को दोनों देशों की संसद से मान्यता मिली हुई है. इसीलिए भूटान में चीनी अतिक्रमण का जवाब देना भारत सरकार की नैतिक से ज्यादा कानूनी ज़िम्मेदारी है.
दी प्रिंट अख़बार के डिप्टी एडिटर स्नेहेश कहते हैं,
"अभी हम ये नहीं कह सकते कि भूटान का रुख बहुत बदल गया है. मुझे नहीं लगता कि उसका चीन की तरफ कोई झुकाव है, लेकिन अगर ऐसा है तो ये असल में भारत की विफलता है. क्योंकि उनकी विदेश नीति को हम डिक्टेट तो नहीं करते लेकिन उसमें हमारा भी हित है. आप इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते कि भूटान और चीन के बीच ये बातचीत उस वक़्त में हो रही हैं, जब चीन बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को लेकर बहुत उत्साहित है. चीन ने जो BRI कॉन्फ्रेंस की थी, उसमें नेपाल, श्रीलंका जैसे हमारे पड़ोसी देश शामिल हुए थे."
स्नेहेश कहते हैं कि एक कहावत है, जो हम गाड़ियों के साइड मिरर पर देखते हैं- Object in the mirror are closer than they appear. चीन पर ये कहावत बहुत सटीक है. आप सोचते हैं कि वो बहुत दूर है, लेकिन असल में वो हमारे बहुत पास आ गया है.
जमीन की अदला बदली होगी?सिलीगुड़ी कॉरिडोर को सुरक्षित रखने के लिए डोकलाम, भारत के लिए बहुत अहम है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि चीन और भूटान के बीच सीमा निर्धारण को लेकर ऐसा समझौता भी हो सकता है, जिसमें पश्चिम में डोकलाम के और उत्तर में जाम्परलुंग और पासमलुंग घाटियों की अदला-बदली की बात हो. ये भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता होगी.
स्नेहेश कहते हैं,
“चीन का इस इलाके पर ऐतिहासिक दावा नहीं है. और भूटान, भारत और चीन के बीच के तनाव में पिस रहा है. वो खुद को बचाए रखने के लिए सालों से चीन के साथ सीमा-विवाद के समाधान के लिए बात कर रहा है. लेकिन इस बातचीत और चीन के दावे में '2017 डोकलाम क्राइसिस' (जब भारत और चीन के सैनिक एक-दूसरे के सामने आ गए थे) के बाद तेजी आई है. उसके बाद चीन ने भूटान के जंगली इलाके पर दावा किया है.”
स्नेहेश कहते हैं कि डोकलाम क्राइसिस के वक़्त चीन पीछे हट गया था. लेकिन अब चीन ने उसे पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया है. मिलिट्री बेस के तौर पर काम करने वाले गांव बसा लिए हैं. ऐसे में इस बात पर कोई शक नहीं है कि चीन चाहता है कि अब भूटान के साथ समझौते में, इलाकों की अदला बदली की जाए.
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