यह लेख डेली ओ से लिया गया है जिसे हर्षल सोनकर ने लिखा है. दी लल्लनटॉप के लिएहिंदी में यहां प्रस्तुत कर रही हैं शिप्रा किरण.--------------------------------------------------------------------------------जब भी कोई मुझसे ये कहता है कि अब हमारे समाज में जाति के नाम पर किसी तरह काभेद-भाव नहीं किया जाता, या जातिवाद जैसी चीज ख़त्म हो चुकी है, तब मैं ये समझ नहींपाता कि मैं ऐसे लोगों से क्या कहूं? मुझे अफ़सोस होता है ऐसी बातें सुनकर. येवो लोग हैं जो हमारे समाज की सच्चाई से बिलकुल वाकिफ़ नहीं. इन्हें नहीं पता कि इनकेआसपास क्या हो रहा है. हकीकत क्या है.इसी बारे में मैं अपने कुछ अनुभव शेयर करना चाहता हूं. ये तब की बात है जब मैं टाटाइंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज (TISS), मुम्बई में पढ़ता था. वहां फील्ड पर जानासिलेबस में शामिल होता है. तो 2014 में मुझे भेजा गया मुज़फ्फरनगर. वहां दंगे हुएथे, और मुझे पुनर्वास का काम देखना था. साथ में सांप्रदायिक तनाव से सम्बंधित कुछअध्ययन करने थे.उसी दौरान मैं स्कूल के कुछ बच्चों के साथ काम कर रहा था. एक दिन मैंने देखा किमिड-डे मील यानी दोपहर के वक्त स्कूल में मिलने वाले सरकारी मध्याह्न भोजन के हीसमय कुछ मुसलमान बच्चे घर लौट रहे थे. मुझे आश्चर्य हुआ कि जब स्कूल में दोपहर काखाना दिया जाता है तो ये बच्चे इस समय घर क्यों जा रहे हैं? मैंने बच्चों से बातकरने की कोशिश की पर किसी बच्चे ने कुछ नहीं बताया. स्कूल की छुट्टी के बाद मैं उन बच्चों के पीछे-पीछे उनके कैम्प (जहां वे रहते थे)गया. मैंने इन बच्चों की मां से वही सवाल पूछा. बहुत जोर देने पर उनमें से एक बच्चेने पहले अपनी मां की तरफ देखा. फिर बड़ी हिम्मत दिखाते हुए उसने बताया कि स्कूल मेंजो महिला खाना बनाती है वो चमार जाति ('नीची' समझी जाने वाली एक जाति) से है. औरइसलिए हम स्कूल का खाना नहीं खाते.ये सुनकर मैं दहल गया. क्योंकि मैं इसी जाति का हूं. और मैं हफ़्तों से इन्हीं लोगोंके लिए काम कर रहा था. मैं बहुत गुस्से में था. मैंने उस कैम्प के एक बुज़ुर्ग से इसबारे में बात की. मैंने कहा कि आप लोग अपने बच्चों को ऐसी चीजें क्यों सिखाते हैं?उसका जवाब था- 'कभी चिड़िया और कौवे का मेल हो सकता है? जब खुद हिन्दू उनको अपने पासनहीं रखते तो हम तो मुसलमान हैं, हम कैसे उनके हाथ का खाएं?'मुझे ये देखकर आश्चर्य हुआ कि मुसलमानों के भीतर फैले जातिवाद को जानबूझकर अनदेखाकरने वाला वो बुज़ुर्ग हिन्दुओं के भीतर फैले जातिगत भेदभाव को अपना ही नहीं रहाथा, उसे और मजबूत भी कर रहा था. आगे मुझे ये भी पता चला कि एक महिला को स्कूल कीनौकरी से इसलिए निकाल दिया गया था क्योंकि वो चमार समुदाय से थी और कोई भी उसके हाथका खाने को तैयार नहीं था.2015 में जब मैंने अपने करियर की शुरुआत की, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रीसर्च(ICMR) के एक प्रोजेक्ट के तहत मुझे गुजरात भेजा गया. वहां मुझे कुछ इंटरव्यू लेनेथे. एक इंटरव्यू के सिलसिले में जब मैं एक परिवार से मिला तो उन्होंने सबसे पहलेमेरी जाति पूछी. मुझे उनसे झूठ बोलना पड़ा. मैंने उन्हें बताया कि मैंमहाराष्ट्र में 'ऊंची' समझी जाने वाली मराठा जाति से हूं. इसके बाद ही उन्होंनेमुझे अपने घर के अंदर आने दिया.ऐसे ही दो और अनुभव हुए. ICMR वाले प्रोजेक्ट के दौरान मैं अक्सर एक दुकान पर चायपिया करता था. दुकान के मालिक से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी. एक दिन बातचीत केदौरान उसने मेरी जाति पूछ ही ली. मैं सच बताने से डरता था. उसे भी मैंने वही झूठबोला. जब उसे पता चला कि मैं किसी 'नीची' जाति का नहीं, तब वो खुलकर बोला-''हमारे तरफ़ अगर लोअर कास्ट आईएएस ऑफ़िसर भी आता है तो वो हमारे साथ बैठने की कोशिशनहीं करता. वो हमेशा नीचे बैठता है. हम उसे अपने साथ अपनी बराबरी में नहीं बैठनेदेते.''इसी तरह एक दिन मैं ढोकला खाने एक दुकान में गया था. उस दुकानदार से भी मेरीठीक-ठाक जान-पहचान थी. मैंने उससे ढोकला की रेसिपी पूछी. उसने कहा-''सर, आप जैसे लोग ढोकले का टेस्ट समझ सकते हैं. नीची जातियों के लोगों को तो पताभी नहीं कि ढोकले का टेस्ट क्या होता है.''उसे मेरी जाति के बारे में कुछ भी पता नहीं था. बस उसे मेरे बारे में इतना पता थाकि मैं सरकारी नौकरी करता हूं और उसे विश्वास था कि कोई नीची जाति का आदमी अच्छीसरकारी नौकरी नहीं कर सकता. इसलिए उसने खुल कर अपनी बात कह दी थी मुझसे.जाति के नाम पर किए जाने वाले भेदभाव में अब भी कोई ख़ास कमी नहीं आई है. जातिवाद कोजड़ से खत्म करने के लिए अभी बहुत संघर्ष करना बाक़ी है. एससी/एसटी एक्ट का शिथिलकिया जाना इसी बात की निशानी है कि जाति ज़िंदा है.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें-'नीची जाति' वाले कमेंट पर नरेंद्र मोदी के वो चार झूठ, जो कोई पकड़ नहीं पाया''योगी के मंत्री ने दलित के घर खाया, घरवालों को पता नहीं खाना किसने बनाया''दलित दूल्हे को दुल्हन के भाई ने मार डाला, केरल पुलिस ने कहा - हम CM दौरे मेंबिज़ी हैं''सरकार कौन है जो तय करे कि दलित की बारात किस रास्ते से गुज़रेगी'