25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोपा था. आपातकाल लगने के बाद जनसंघके कई बड़े-बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया. सारे चुनाव रद कर दिए गए. नागरिकअधिकारों को खत्म कर दिया गया और हर तरह की मनमानी की गई. इसके साथ ही प्रेससेंसरशिप, नसबंदी, दिल्ली के सुंदरीकरण के लिए जबरन झुग्गियों को उजाड़ा जाना और कईऐसे फैसले रहे, जिसकी वजह से भारत के आपातकाल को देश का सबसे काला दिन कहा जाता है.इस फैसले के पीछे सीधे तौर पर इंदिरा गांधी थीं, लेकिन आपातकाल के दौरान जो जुल्मऔर ज्यादतियां हुईं उसके पीछे कांग्रेस के कुछ नेताओं का हाथ था. इनमें से कई नेताऐसे थे, जो बाद में उस बीजेपी में शामिल हो गए, जिसने आपातकाल का विरोध किया था औरउसके कई नेता जेल में डाल दिए गए थे. आपातकाल के ये खलनायक समय के साथ बीजेपी केनायक बन गए. जगमोहनदिल्ली विकास प्राधिकरण के वाइस चेयरमैन रहने के दौरान जगमोहन संजय गांधी के काफीकरीब थे. आपातकाल के दौरान दिल्ली को लेकर लिए गए फैसलों के पीछे जगमोहन का ही हाथथा.जगमोहन का पूरा नाम जगमोहन मलहोत्रा था. वो एक आईएएस अधिकारी थे और दिल्लीडेवलपमेंट अथॉरिटी के वाइस चेयरमैन थे. इस दौरान वो संजय गांधी के काफी करीब आ गए.आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने दिल्ली को खूबसूरत बनाने का काम जगमोहन के जिम्मेसौंपा, जिसके बाद जगमोहन ने कई झुग्गियों को हटाना शुरू कर दिया. इसका खासा विरोधहुआ, लेकिन संजय-जगमोहन के सामने विरोध सफल नहीं हो सका.कैसे बने बीजेपी के नायकवाजपेयी सरकार में जगमोहन केंद्रीय मंत्री थे.1982 में जगमोहन को दिल्ली का उपराज्यपाल बना दिया गया और एशियन गेम्स के आयोजन काजिम्मा मनमोहन को सौंपा गया. बाद में जगमोहन को जम्मू-कश्मीर का गवर्नर बनाया गया.वो 1984-1989 तक इस पद पर रहे. संजय गांधी के करीबी रहे जगमोहन राजीव गांधी के भीकरीबी रहे, लेकिन जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर वो राजीव गांधी से इत्तेफाक नहीं रखतेथे. लिहाजा उन्होंने कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए.1990 में उन्हें बीजेपी की ओर से राज्यसभा में भेज दिया गया. बीजेपी में रहते हुएजगमोहन 1996, 1998 और 1999 का लोकसभा चुनाव लगातार जीते. 1998 में जब अटल बिहारीवाजपेयी प्रधानमंत्री बने, तो जगमोहन को शहरी विकास, पर्यटन मंत्रालय और सूचनामंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया था.बंसीलालबंसीलाल (दाएं) इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों के ही करीबी थे.कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे बंसीलाल आपातकाल लगाने वाली इंदिरा गांधी और उनके बेटेसंजय गांधी के बेहद करीबी थे. देश में 1975 में जब आपातकाल लगा था, तो बंसीलाल हीदेश के रक्षा मंत्री थे और आपातकाल को लागू करवाने के बाद जो ज्यादातियां हुईं,उनमें उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. बीके नेहरू अपनी आत्मकथा, 'नाइस गाइज़ फ़िनिशसेकेंड' में लिखते हैं कि बंसीलाल इंदिरा गांधी को कितना पसंद करते थे, इसका अंदाजाइस बात से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने सीधे-सीधे कहा था कि इंदिरा गांधी कोप्रेसिडेंट फॉर लाइफ़ बना दीजिए. बाकी कुछ करने की ज़रूरत नहीं है.'कैसे बने भाजपा के नायकबीजेपी से गठबंधन करने के बाद बंसीलाल की पार्टी हरियाणा विकास पार्टी सत्ता में आगई.बंसीलाल 1996 में कांग्रेस से अलग हो गए और अपनी पार्टी बनाई हरियाणा विकास पार्टी.1996 के हरियाणा के विधानसभा चुनाव में बंसीलाल को बहुमत नहीं मिल पाया था. इसकेबाद उन्होंने बीजेपी के सहयोग से तीन साल तक सरकार चलाई. हालांकि इस गठबंधन का सबसेज्यादा फायदा बीजेपी को ही मिला. जब बीजेपी अकेले चुनाव लड़ी थी, तो उसने 89 सीटोंपर चुनाव लड़ा था, जिसमें सिर्फ दो पर ही जीत हासिल हुई थी. हरियाणा विकास पार्टीके साथ गठबंधन में बीजेपी को 25 सीटें ही मिलीं और उसने 11 सीटों पर जीत हासिल की.वहीं लोकसभा में भी बीजेपी को 4 सीटें हासिल हुईं. हरियाणा विकास पार्टी को तीनसीटें मिली थीं और हरियाणा विकास पार्टी वाजपेयी सरकार में शामिल हो गई थी. हालांकि1998 के चुनाव में इस गठबंधन को सिर्फ दो ही सीटें मिली थीं, जिसके बाद 1999 केचुनाव में बीजेपी ने हरियाणा विकास पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ दिया था. और राज्यसरकार से भी समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद हरियाणा विकास पार्टी में टूट होगई. बंसीलाल का अपना नुकसान तो हो गया, लेकिन वो बीजेपी को फायदा पहुंचाने मेंकामयाब रहे.विद्या चरण शुक्लविद्या चरण शुक्ल को इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान सूचना और प्रसारण मंत्रीबनाया था.1975 में इमरजेंसी लगने से पहले विद्याचरण शुक्ल रक्षा राज्यमंत्री थे और इंद्रकुमार गुजराल सूचना मंत्री थे. 20 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने दिल्ली में एक रैलीकी थी, लेकिन दूरदर्शन पर उसका लाइव कवरेज नहीं हो पाया था. इसकी वजह से इंदिरागांधी नाराज हो गईं और उन्होंने इंद्र कुमार गुजराल को सूचना मंत्री के पद से हटाकररूस का राजदूत बना दिया. इसके बाद विद्याचरण शुक्ल को सूचना-प्रसारण मंत्रालय सौंपदिया गया. आपातकाल के दौरान विद्याचरण शुक्ल ने आकाशवाणी और दूरदर्शन पर किशोरकुमार के गानों पर रोक लगा दी थी, क्योंकि किशोर कुमार ने मुंबई में कांग्रेस कीरैली में गाने से इनकार कर दिया था. इसके अलावा प्रेस पर लगी सेंसरशिप के लिए भीसीधे तौर पर विद्याचरण शुक्ल को ही जिम्मेदार ठहराया गया था. फिल्म ‘किस्सा कुर्सीका’ की रिलीज रोकने और उसके प्रिंट नष्ट करने के लिए भी विद्याचरण शुक्ल हो हीजिम्मेदार ठहराया गया. इसके अलावा गुलजार की फिल्म ‘आंधी’ और दूसरी कई फिल्मों परभी रोक लगा दी गई थी.कांग्रेस का साथ छोड़ा, बीजेपी में शामिल हो गएकांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए विद्याचरण शुक्ल बाद में फिर कांग्रेस मेंचले गए थे.विद्याचरण शुक्ल आपातकाल के सबसे बड़े खलनायकों में से एक थे. आपातकाल के बाद हुएचुनाव में इंदिरा के हारने के बाद विद्याचरण शुक्ल कांग्रेस में किनारे चले गए.1984 में जब कांग्रेस की कमान राजीव गांधी के हाथ में आई, तो राजीव ने फिर सेविद्याचरण शुक्ल को ऐक्टिव किया. लेकिन 1989 में जब राजीव गांधी की सरकार बोफोर्सघोटाले पर घिरी हुई थी, विद्याचरण शुक्ल ने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया और वीपीसिंह के साथ चले गए. वीपी सिंह की सरकार में मंत्री बन गए. 1990 में जब ये सरकारगिर गई, तो विद्याचरण शुक्ल चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी में शामिल हो गए औरचंद्रशेखर सरकार में मंत्री बने. जब 1991 में चुनाव हुए तो विद्याचरण शुक्लकांग्रेस में शामिल हो गए. नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने तो विद्याचरण शुक्लजलसंसाधन मंत्री बने. 2004 में शुक्ल ने एक बार फिर कांग्रेस छोड़ दी और शरद पवारकी बनाई हुई पार्टी एनसीपी में शामिल हो गए. यहां भी वो एक साल तक ही रहे और 2005में इमरजेंसी का एक खलनायक बीजेपी में शामिल हो गया. उन्हें पार्टी में केंद्रीयसमिति का सदस्य भी बनाया गया. बाद में 2007 में विद्याचरण शुक्ल एक बार फिर सेकांग्रेस में शामिल हो गए थे.मेनका गांधीआपातकाल के मुख्य खलनायक के तौर पर याद किए जाने वाले संजय गांधी की पत्नी मेनका हरफैसले में उनके साथ रही थीं.देश में आपातकाल लगने के बाद अगर किसी की सबसे ज्यादा चर्चा हुई तो वो थे संजयगांधी. संजय गांधी और उनकी फौज ने आपातकाल के दौरान इतने जुल्म किए कि उस वक्त केलोगों को आज भी याद कर सिहरन हो जाती है. मेनका गांधी संजय गांधी की पत्नी थीं औरसंजय के हर फैसले में उनकी सहमति हुआ करती थी. इसके अलावा मेनका गांधी ने एक न्यूज़मैगजीन सूर्या भी शुरू की थी, जिसमें वो कॉलम लिखती थीं और संजय के साथ ही खुद कोकांग्रेस की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित करने की कोशिश करती थीं.बीजेपी की नायक, जो केंद्रीय मंत्री बनींवाजपेयी के जमाने में बीजेपी में शामिल हुई मेनका गांधी मोदी सरकार में केंद्रीयमंत्री हैं.23 जून 1980 को हादसे में संजय गांधी की मौत हो गई. सियासी गलियारों में ये बात एकतथ्य की तरह सामने रखी जाती थी कि इंदिरा गांधी के प्रिय बेटे संजय गांधी हैं,लेकिन उनकी प्रिय बहू सोनिया गांधी हैं. जब संजय गांधी की मौत हो गई, तो सोनिया कीवजह से इंदिरा राजीव के ज्यादा करीब हो गईं और मेनका से उनकी दूरी और भी बढ़ गई. 28मार्च 1982 को जब इंदिरा गांधी अपने लंदन दौरे से वापस आईं, तो उन्होंने मेनकागांधी उन्हें नमस्कार करने पहुंची, लेकिन इंदिरा ने सख्ती से कहा कि वो उनसे बादमें बात करेंगी. दोपहर एक बजे इंदिरा ने मेनका से मिलने का संदेश भेजा. मुलाकात केदौरान इंदिरा और मेनका के बीच इतनी तीखी नोकझोंक हुई कि इंदिरा ने मेनका को कई बारगेटआउट कहा. इसके बाद खूब कहासुनी हुई और मेनका गांधी रात को 11 बजे वो घर छोड़करबेटे वरुण के साथ बाहर आ गईं. इसके बाद मेनका ने संजय के खास रहे अकबर अहमद डंपी केसाथ मिलकर राष्ट्रीय संजय मंच बनाया, जो लोगों को रोजगार देने के उद्देश्य से बनायागया था. 1984 में मेनका ने अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन वो हारगईं. इसके बाद 1988 में वो वीपी सिंह के जनता दल में शामिल हो गईं. 1989 में जनतादल के टिकट पर पीलीभीत से चुनाव लड़ा और जीतकर लोकसभा पहुंचीं. 1999 में बतौरनिर्दलीय उम्मीदवार पीलीभीत से सांसद बनी मेनका गांधी ने उस वक्त अटल बिहारीवाजपेयी का केंद्र में समर्थन किया और उन्हें केंद्र में मंत्री भी बनाया गया. 2004में आधिकारिक तौर पर मेनका गांधी बीजेपी में शामिल हो गईं. उनके बेटे वरुण गांधी भीबीजेपी से सांसद हैं .--------------------------------------------------------------------------------ये भी देखें: इंदिरा गांधी ने संजय की लाश को देख कर क्या कहा