गौरव सोलंकी. कविताओं में प्रेम और सिनेमा में राजनीति लिखते हैं. कभी कविता मेंराजनीति भरी हो जाती है, तो कभी सिनेमा में भी प्रेम छलक आता है. गौरव सोलंकी अपनीफिल्म आर्टिकल 15 के लिए जाने जाते हैं. मुझे ये आखिरी लाइन लिखने के लिए गूगल कीज़रूरत नहीं पड़ी क्योंकि लल्लनटॉप में सौरभ द्विवेदी ने मेरा इंटरव्यू लेते वक़्तमुझसे पूछा था कि आखिरी फिल्म जो देखी हो उसके राइटर का नाम बताओ. मैंने झट से गौरवसोलंकी का अनाम आगे बढ़ा दिया. 2-3 सवालों के जवाब नहीं दे पाने के बाद ये जवाबसुनकर सौरभ द्विवेदी ने मुझसे कहा था, थोड़ी ट्रेनिंग की ज़रूरत है. आज उसी जवाब कीकविता पोस्ट कर रहा हूं. पढ़िए गौरव सोलंकी की कविता - मैं कोई उल्लेखनीय कवि नहींथा. मैं कोई उल्लेखनीय कवि नहीं थालेकिन कुछ लोगों को तो याद होगा ही किमैंने पुलिस के सायरनोंऔर खिड़की पर खड़े होकर कूदने का सोचने वाली लड़कियों के बारे में कविताएं लिखींमैंने केक की दुकान में काम करने वाले उदास लड़कोंऔर साहसी अपराधियों पर काफ़ी कुछ लिखाऔर मैं अपना पलंग तोड़ देने और फिर बुनने के बारे मेंऔर दिसम्बर के डर के बादगुलमोहर के फूलों से आने वाली उम्मीद के बारे में सोचता थाजब मैंने लिखाकि औरतों के उघड़े कंधों के बारे मेंकुछ भी अश्लील कहना मुमकिन नहीं हैउसके बाद सब ख़त्म होता गयामार्च में तो मैंने हथेली तक पर कविता लिखीजो मैंने तुमसे अलग होते वक़्त वादा किया थाकि नहीं लिखूंगाफिर एक दिन मुझे सोते हुएठंडा लोहा महसूस हुआ अपने गाल परऔर मैं उठ बैठाफिर तुम्हें फ़ोन भी किया थाजो मिला नहींऔर फिर मैं नौकरी पर चला गयाअप्रैल तक मैं ज़िंदा थाफिर मई में वो एक रेलवे स्टेशन थाजहाँ मैं भरभराकर गिर सा गयाजब मुझे यक़ीन हुआकि अब नहीं लिख पाऊंगा मैं कविताशुरू से पता था यह तो मुझेकि मेरी भी है एक मियादऔर हर कवि को एक गरम साँकल जैसे बजते हुए लम्हे के बादपूर्व कवि होना ही होता हैलेकिन मुझे उम्मीद करना सिखाया गया थामैंने अपने बिस्तर के ऊपर लगे हुक में,नाइंसाफ़ियों और चूमती हुई लड़कियों में ढूंढ़ी कविताएंमैंने मनुष्यों पर भी भरोसा कियापर वह गई तो लौटी नहीं