कहानी डॉली की, जो पैदा नहीं हुई थी बल्कि वैज्ञानिकों ने जिसे लैब में बनाया था
जिसे दवाइयों का ओवरडोज़ देकर मार दिया गया.
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डॉली नाम तो सुना ही होगा. न न न हम ‘ऐ बाप पे मत जाना’ वाली डॉली बिंद्रा की बात नहीं कर रहे हैं. हम जिस डॉली की बात करने वाले हैं, वो इंसान नहीं भेड़ है. ये दुनिया की पहली क्लोन है. क्लोन किसी इंसान के जुड़वा की तरह ही दिखता है. फर्क सिर्फ इतना होता है कि क्लोन को साइंस की मदद से तैयार किया जाता है. जबकि जुड़वा साथ में पैदा होते हैं.डॉली साइंस का अजूबा थी. जो अपनी मां की क्लोन थी और बिलकुल अपनी मां जैसी दिखती थीं.
# कैसे बनाई गई थी डॉली?
कई सालों से साइंटिस्ट क्लोन बनाने की कोशिश में जुटे हुए थे. बार-बार फेल हो जाते. फिर सोचा कि क्यों न इस बार भेड़ों पर ही एक्सपेरिमेंट कर लिया जाए. आसान नहीं था डॉली को बनाना. डॉली को ‘न्यूक्लियर ट्रांसफर’ तकनीक के जरिए बनाया गया. ‘न्यूक्लियर ट्रांसफर’ में दो भेड़ो के 'सेल' लिए गए. फिन डॉरसेट सफेद भेड़ के सेल से न्यूक्लियस निकाल कर स्कॉटिश काली भेड़ के सेल (अंडे) में डाल दिया गया. जैसे एक शहर को बिजली पावर हाउस से मिलती है. ठीक वैसे ही एक सेल को एनर्जी न्यूक्लियस से मिलती है. बिना न्यूक्लियस के सेल मर जाता है. स्कॉटिश काले मुंह वाली भेड़ के अंडे में न्यूक्लियस सफेद भेड़ का डाला गया था. नए सेल को स्कॉटिश काली चेहरे वाली भेड़ के गर्भाशय (युट्रस) में रखा गया. जो उसकी सरोगेट मां थी. सरोगेट मां सिर्फ बच्चे को पैदा करती है. 227 बार भेड़ों पर एक्सपेरिमेंट में असफल होने के बाद, 5 जुलाई 1996 को डॉली पैदा हुई. बिलकुल मां जैसी. उसकी मां पूरी सफेद थी. उसे बनाया था, रोज़लिन इंस्टिट्यूट के साइंटिस्ट्स केथ कैंपबैल और इआन विलमट ने.
डॉली का इआन विलमट से आमना-सामना
#क्या खास था डॉली में?
भले ही डॉली एक काले मुंह वाली स्कॉटिश भेड़ से जन्मी थी. मगर उसका रंग रूप सब फिन डॉरसेट भेड़ जैसा था. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि न्यूक्लियस फिन डॉरसेट भेड़ के सेल से लिया गया था. DNA न्यूक्लियस में होता है, इसलिए उसका DNA भी मैच हो गया. साइंटिस्ट ने काफी महीनों तक डॉली क्लोन के बारे में सबसे छुपा कर रखा. इस खबर के लीक होते ही हर तरफ ‘डॉली डॉली डॉली’ होने लगा.
डॉली किसी सेलिब्रिटी से कम थोड़े ही है
#डॉली का परिवार
दो साल की उम्र में डॉली ने पहले मेमने के जन्म दिया, नाम रखा बोनी. कुल मिला कर डॉली के छह मेमने हुए. जिनमें से दो जुड़वां और एक ट्रीपलेट था. 2001 आते-आते डॉली बीमार पड़ने लग गई. वो सिर्फ चार साल की थी, तब उसे अर्थराइटिस (जो़ड़ों की बीमारी) हो गया. लंगड़ा कर चलने लगीं. जल्द ही दूसरी बीमारियों ने भी घेर लिया. बाद में डॉली से चार क्लोन बनाए गए. जो 2016 तक बिलकुल तंदरूस्त थे. उस वक्त वो नौ साल के थे. अभी कैसे हैं इस बारे में कुछ बता नहीं सकते. क्योंकि ऐसी रिसर्च सिक्रेट रखी जाती है.
उड़ी बाबा चार डॉली क्लोन.
#डॉली मर गई
14 फरवरी 2003 को डॉली को युथेनेशिया (इच्छामृत्यू) से मार दिया. उसे दवाइयों का ओवरडोज़ दिया गया. क्योंकि उसके फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया था. वो छह साल की उम्र में मर गई. पोस्ट मार्टम में पता चला कि उसे लंग कैंसर था. अक्सर भेड़ों को ये बीमारी हो जाती है. ऐसी भेड़ों की खास देखभाल होती है. उन्हें खुली जगहों पर रखा जाता है. चूंकि डॉली पर रिसर्च की जा रही थी. इसलिए उसे सिर्फ चार दीवारी में रखा गया था. डॉली के मरने के बाद उसकी बॉडी स्कॉटलैंड के नेशनल म्यूजियम को डोनेट कर दी गई. आज भी डॉली उस म्यूजियम में है.
डॉली को अगर और करीब से जानना है तो ये वीडियो देखें-
#डॉली के बाद क्लोनिंग में आया बदलाव
डॉली के बाद दूसरों जानवरों की क्लोनिंग के रास्ते खुल गए. बाद में सूअर, घोड़े, हिरण और बैलों के क्लोन भी बनाए गए. इंसानों पर भी ये एक्सपेरिमेंट करने के बारे में सोचा गया था. पर इंसानों की बनावट बहुत कॉम्प्लेक्स होती है. इसलिए सफल नहीं हो सका. साइंटिस्ट ने लुप्त हो रही जानवरों की प्रजातियों को बचाने के लिए भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया. जंगली बकरी की खत्म हो चुकी प्रजाति को बचाने के लिए एक बार उसका क्लोन बनाया. मगर उस क्लोन की मौत भी लंग की बीमारी से हो गई. अभी भी क्लोनिंग में नए एक्सपेरिमेंट जारी हैं.
जंगली बकरी जो अब लुप्त हो चुकी है
ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रही कामना ने की है.
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