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सम्राट चौधरी की जगह दिलीप जायसवाल को बिहार प्रदेश अध्यक्ष बनाने के पीछे क्या है BJP का गेमप्लान?

बिहार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से क्यों हटाए गए Samrat Chaudhary? उनकी जगह Dilip Jaiswal क्यों चुने गए? उपमुख्यमंत्री का पद बड़ा है या प्रदेश अध्यक्ष का? कौन हैं Dilip Jaiswal? उनका राजनीतिक कद कितना महत्वपूर्ण है?

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Dilip Jaiswal and Samrat Chaudhary
दिलीप जायसवाल, बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए हैं. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)
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रवि सुमन
26 जुलाई 2024 (Published: 14:27 IST)
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बिहार BJP के अध्यक्ष बदल दिए गए हैं. इस पद के लिए सम्राट चौधरी (Samrat Choudhary) की जगह अब दिलीप जायसवाल (Dilip Kumar Jaiswal) को चुन लिया गया है. नए प्रदेश अध्यक्ष राज्य सरकार में भूमि एंव राजस्व मंत्री हैं और कलवार जाति से आते हैं जो वैश्य समाज का हिस्सा है. दूसरी तरफ, सम्राट चौधरी बिहार के उप-मुख्यमंत्री हैं. जानकारों का मानना रहा है कि भाजपा ने कुशवाहा वोटर्स को आकर्षित करने के लिए सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. लेकिन नई नियुक्ति के बाद बिहार को लेकर BJP की रणनीति बदलती नज़र आ रही है.

लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम के बाद ऐसा कहा गया कि चौधरी अपनी खुद की जाति के वोटर्स को नहीं जोड़ पाए. ऐसे में उनके लिए प्रदेश अध्यक्ष पर बने रहना थोड़ा मुश्किल था. इसके अलावा बीजेपी हमेशा से एक व्यक्ति एक पद की नीति की वकालत करती रही है. ये दलील भी उनके पक्ष में नहीं जा रही थी. फिर शुक्रवार, 26 जुलाई को खबर आई कि दिलीप जायसवाल को बिहार बीजेपी की कमान सौंप दी गई है. हालांकि, उनकी नियुक्ति में बीजेपी की एक व्यक्ति एक पद वाली नीति फिट नहीं बैठती, क्योंकि वे भी बिहार सरकार में मंत्री है. संभव है कि आने वाले दिनों में भाजपा अपनी परंपरा पर कायम रहे तो जायसवाल को मंत्री पद छोड़ना पड़ेगा. 

अब सवाल ये है कि सम्राट चौधरी की जगह दिलीप जायसवाल के चुने जाने के राजनीतिक मायने क्या निकलते हैं? 

क्यों हटाए गए Samrat Chaudhary?

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कुमार कहते हैं,

"दो पद पर एक व्यक्ति रखने से अलग-अलग समाज को साधने में दिक्कत होती है. इसलिए भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष का पद अलग व्यक्ति को दिया है. बीजेपी ने पहले सम्राट चौधरी को आगे बढ़ाया. लेकिन उसका कुछ रिजल्ट नहीं दिखा. एक वोटर वर्ग (कुशवाहा) को साधने की कोशिश की गई. लेकिन चुनाव में ऐसा कुछ नहीं दिखा."

दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार में सभी प्रमुख दलों ने कुशवाहा समाज को साधने की कोशिश की थी. ‘कुशवाहा एक्सीपेरिमेंट’ का ठीक-ठीक फायदा RJD को मिला. लेकिन भाजपा को इसका सबसे कम फायदा हुआ.

ये भी पढ़ें: यादव और कुर्मी के बाद बिहार की राजनीति में 'कुशवाहा काल' आने वाला है?

क्यों चुने गए Dilip Jaiswal?

पुष्पेंद्र आगे कहते हैं,

"दिलीप जायसवाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा अपने एक परंपरागत वोटर वर्ग (वैश्य) को जोड़कर रखना चाहती है. ऐसे में दिलीप जायसवाल को चुनना एक धन्यवाद संदेश की तरह है. वैश्य समाज के साथ कई अन्य जनरल वर्ग की जातियां भी भाजपा के लिए एक ब्लॉक की तरह वोट करती हैं."

इंडिया टुडे से जुड़े पत्रकार रोहित कुमार सिंह कहते हैं,

“भाजपा ने जाति समीकरण को साधने के लिए पहले भी कई प्रयोग किए. रेणु देवी और तारकेश्वर प्रसाद जैसे नेताओं को आगे बढ़ाया. लेकिन बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली. दिलीप जायसवाल का चुना जाना भी इसी प्रयोग का हिस्सा है. 2025 के विधानसभा चुनाव में बिहार के करीब 30 लाख वैश्य समाज के वोटर्स को साधने की कोशिश है.”

उपमुख्यमंत्री का पद बड़ा या प्रदेश अध्यक्ष का?

दिलीप जायसवाल के चुने जाने से ज्यादा इस बात की चर्चा है कि सम्राट चौधरी प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिए गए. पुष्पेंद्र कुमार कहते हैं,

“आम वोटर्स की नजर में सरकार का पद ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. ऐसे में अगर चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष पद पर बनाए रखने के लिए उप मुख्यमंत्री के पद से हटाया जाता, तो उनके समाज (कुशवाहा) में गलत मैसेज जा सकता है. इससे पहले बिहार में प्रदेश अध्यक्ष के पद पर सम्राट कुशवाहा और संजय जायसवाल रहें. इनके बाद बिहार में लोग सोचते हैं कि ये बस पार्टी आलाकमान के फैसलों को लागू करा सकते हैं. अपना मत नहीं रख सकते, बड़े फैसले नहीं ले सकते, आग्रह नहीं कर सकते, अड़ नहीं सकते या चैलेंज नहीं कर सकते. अगर कोई लोकप्रिय नेता जमीन से उठकर इस पद तक पहुंचता है तो बात अलग होती है. उसे पावर का केंद्र माना जा सकता है. लेकिन इनमें और दिलीप जायसवाल में भी ऐसी कोई बात नहीं है. ये थोपे गए नेता हैं.”

कौन हैं Dilip Jaiswal?

दिलीप जायसवाल कंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी बताए जाते हैं. खगड़िया जिले से आते हैं. 20 सालों तक बिहार भाजपा के कोषाध्यक्ष रहे हैं. तीन बार के MLC हैं. 2022 में पूर्णिया, किशनगंज, अररिया जिलों को मिलाकर बनी विधान परिषद की सीट पर उन्हें जीत मिली. उम्मीद है कि आपको पता होगा कि विधान परिषद के चुनाव में मुखिया, पंचायत समिति, जिला परिषद सदस्य और वार्ड सदस्य वोट करते हैं.

सीमांचल में हिंदुत्व की राजनीति

जायसवाल मुस्लिम बहुल सीमांचल में हिंदुत्व की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं. 2014 में BJP ने उन्हें किशनगंज (मुस्लिम बहुल) लोकसभा सीट से टिकट दिया था. कांग्रेस के मोहम्मद असरारुल हक ने उनको 2 लाख से अधिक वोटों से हरा दिया. बाद में उन्हें सिक्किम BJP का प्रभारी भी बनाया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वो किशनगंज के माता गुजरी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के एमडी भी हैं.

कितने महत्वपूर्ण हैं Dilip Jaiswal?

आम वोटर्स के लिए दिलीप जायसवाल का नाम नया है. राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेंद्र कुमार उनके राजनीतिक कद के बारे में बताते हैं,

"दिलीप जायसवाल पैन बिहार कोई चेहरा नहीं हैं. अधिक से अधिक एक विधानसभा के नेता हो सकते हैं. उनको चुनना भाजपा की एक मजबूरी भी हो सकती है. क्योंकि बिहार भाजपा में प्रभावशाली नेताओं का अभाव है."

अपनी ही सरकार के खिलाफ देते हैं बयान

हाल में दिलीप जायसवाल अपनी ही सरकार के खिलाफ बयान देने के लिए चर्चा में रहे. उन्होंने कहा था कि उनके अपने ही राजस्व विभाग में बिना घूस के काम नहीं होता. इसके बाद चर्चा थी कि उन पर बंदिशें लगाई जा सकती हैं. लेकिन हुआ बिल्कुल इसका उल्टा. 

वीडियो: डिप्टी CM बनने पर सम्राट चौधरी ने लालू को क्या चेतावनी दी?

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