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रूस का जहाज, यूक्रेन का इंजन और इंडियन नेवी में तैनाती, INS Tushil में और क्या खास है?

Indian Navy: रूस में बना INS Tushil जंगी जहाज एक Stealth Guided Missile Frigate है. रूस से इस तरह के दो और फ्रिगेट भारत आने हैं. बाकी 2 को भारत में ही बनाया जाएगा.

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defence minister rajnath singh commission ins tushil russian made frigate commisssioned in indian navy destroyers vs frigates comparison
भारतीय नौसेना का एक फ्रिगेट (फोटो- इंडिया टुडे)
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मानस राज
11 दिसंबर 2024 (Updated: 11 दिसंबर 2024, 13:46 IST)
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भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का तीन दिवसीय रूस दौरा पूरा हो चुका है. इस दौरे पर रक्षा मंत्री ने भारतीय नौसेना के लिए एक मल्टी रोल स्टेल्थ गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट (multi-role stealth guided missile frigate) आईएनएस तुशिल (INS Tushil) को भारतीय नौसेना में कमीशन कर दिया. इस मौके पर भारत के नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश त्रिपाठी भी मौजूद रहे. रक्षा मंत्री ने कैलिनिनग्राड के यंतर शिपयार्ड में आयोजित एक कार्यक्रम में INS Tushil को नौसेना में कमीशन किया. दरअसल ये मौका था भारत-रूस के बीच 21वीं India-Russia Inter-Governmental Commission on Military and Military Technical Cooperation (IRIGC-M&MTC) का. इसीलिए जहाज को कमीशन करने के लिए ये दिन चुना गया.

INS Tushil एक अपग्रेडेड Krivak III क्लास का फ्रिगेट है. ये रूस के साथ हुई 2.5 बिलियन डॉलर की उस डील का हिस्सा है जिसमें चार ऐसे ही और फ्रिगेट शामिल हैं. इनमें से दो और फ्रिगेट्स का निर्माण रूस के यंतर शिपयार्ड में ही किया जाएगा. जबकि बाकी के दो फ्रिगेट्स को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत भारत में बनाया जाएगा. भारत में इसका निर्माण गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) में किया जाएगा. तुशिल के बाद दूसरे फ्रिगेट का निर्माण यंतर शिपयार्ड में जारी है और उम्मीद जताई जा रही है कि 2025 के मध्य तक इसका निर्माण पूरा हो जाएगा. दूसरा फ्रिगेट जिसका नाम Tamal है. ये 2025 के मध्य तक इंडियन नेवी में कमीशन हो सकता है.

ins tushil rajnath singh
आईएनएस तुशिल की कमिशनिंग के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (PHOTO-PTI)

वर्तमान में कमीशन हुए आईएनएस तुशिल का समंदर में 3850 टन का डिस्प्लेसमेंट है. समुद्र में डिसप्लेसमेंट का मतलब है कि जब जहाज़ पानी में रहता है, वो जितने पानी को उसकी जगह से डिसप्लेस, माने हटाता है; इसी को मैरीटाइम या नेवी की भाषा में डिस्प्लेसमेंट कहते हैं. इसमें जहाज़ का वज़न भी शामिल होता है.

आईएनएस तुशिल की लंबाई 409.5 फुट है. समंदर में इसके पास 59 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलने की क्षमता है. 18 ऑफिसर  और 180 सैनिकों को लेकर ये जहाज एक महीने तक समंदर में रह सकता है. तुशिल इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम से लैस है. साथ ही इसमें 4 केटी-216 डिकॉय लॉन्चर्स लगे हैं. इसमें 24 Shtil-1 मीडियम रेंज की मिसाइलें तैनात हैं. रूस और यूक्रेन से जंग के बीच भी भारत के लिए ये दोनों देश एक साथ आए हैं. वजह है आईएनएस तुशिल में लगा इंजन. जहाज़ भले रूस में बना है पर इसमें जो इंजन लगा है वो एक यूक्रेनी कंपनी ने बनाया है. तुशिल में यूक्रेन की कंपनी जोर्या-मैशप्रोएक्ट द्वारा बनाए गए गैस टर्बाइन लगे हैं. यानी रूस और यूक्रेन जंग के बीच भी भारत के लिए एक साथ खड़े दिख रहे हैं.

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आईएनएस तुशिल को सलामी देते रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (PHOTO- X)

इस बीच मन में आता  एक सवाल की ये फ्रिगेट क्या होते हैं? होते तो ये भी जंगी जहाज ही. तो क्या अंतर है इनमें और डिस्ट्रॉयर कहे जाने वाले जहाजों में? एक-एक करके समझते हैं.

फ्रिगेट vs डिस्ट्रॉयर 

आमतौर पर देखें तो एक फ्रिगेट का काम बड़े जहाजों के साथ चलना और किसी हमले की सूरत में उनकी हिफाजत करना होता है. जबकि डिस्ट्रॉयर का काम सीधे तौर पर दुश्मन के जहाजों से सीधी लड़ाई करना है. इन दोनों तरह के जहाजों को इस तरह बनाया जाता है जिससे वो तेज़ चल सकें. हालांकि कई बार दोनों के काम एक से होते हैं. दोनों ही हथियारों से भी लैस होते हैं. पर फिर भी दोनों के बीच कुछ अंतर हैं. 

- फ्रिगेट हमेशा आकार में डिस्ट्रॉयर से छोटा होता है और उसपर हथियार भी कम होते हैं.

- डिस्ट्रॉयर आकार में बड़े होते हैं. चूंकि इन्हें डायरेक्ट कॉम्बैट (सीधी लड़ाई) के लिए बनाया जाता है इसलिए इन पर हथियारों की संख्या भी अधिक होती है.

- दुनिया की अधिकतर देशों की नौसेना के पास फ्रिगेट है जबकि ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स के मुताबिक दुनिया में सिर्फ 14 देशों की नेवी के पास डिस्ट्रॉयर जहाज हैं.

- भारत के पास वर्तमान में 12 डिस्ट्रॉयर हैं. फ्रिगेट्स की संख्या देखें तो हाल में रूस से आया तुशिल इस लिस्ट में शामिल नहीं है. तुशिल को भी शामिल करें तो भारत के पास कुल 13 फ्रिगेट्स हो जाएंगे.

Destroyer vs Frigate
 फ्रिगेट हमेशा आकार में डिस्ट्रॉयर से छोटा होता है (PHOTO- Reddit)
इतिहास

फ्रिगेट्स की किताब के पन्ने पलटें तो कहानी जाती है 17वीं से 18वीं शताब्दी में. साल 1756 में एक जंग शुरू हुई जो 1763 तक चली. इस जंग को Seven Years War के नाम से जाना जाता है. इसमें एक तरफ फ्रांस, ऑस्ट्रिया, प्राचीन सैक्सोनी (आज के नीदरलैंड, जर्मनी और चेक गणराज्य), स्वीडन और रूस एक तरफ थे. दूसरी ओर प्रशिया, हैनोवर और ग्रेट ब्रिटेन थे. Silseia नामक एक जगह पर कब्जे के लिए शुरू हुई. इस जंग में पहली बार फ्रिगेट्स के इस्तेमाल की जानकारी मिलती है.

early frigatte
शुरुआती दौर के फ्रिगेट (PHOTO-Wikipedia)

उस समय ये तीन डेक वाला एक जहाज हुआ करता था. जिस पर ठीक-ठाक गोला-बारूद होता था. इसपर एक में बंदूक के अलावा और भी कुछ बंदूकें लगी रहती थीं. Britanicca के अनुसार तो कई फ्रिगेट्स पर 30 से 40 बंदूकें हुआ करती थीं. फ्रिगेट्स उस समय जहाजों की कतार जिसे फ्लीट कहा जाता है, उसमें नहीं बल्कि मुख्य जहाजों से कुछ आगे चला करते थे. इनकी रफ्तार तेज़ होती थी इसलिए इन्हें मुख्य जहाजों पर होने वाले हमलों से बचने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. आमतौर पर एक फ्लीट में एक एयरक्राफ्ट कैरियर के साथ 2 क्रूज़र, 2-3 डिस्ट्रॉयर, और 2-3 फ्रिगेट चलते हैं. इस पूरे जत्थे को कैरियर बैटल ग्रुप कहा जाता है. हालांकि अलग-अलग मिशन और काम के मुताबिक ये संख्या घट या बढ़ भी सकती है. भारत के संदर्भ में देखें तो INS Vikrant कैरियर बैटल ग्रुप के साथ आमतौर पर 3 डिस्ट्रॉयर और 3 फ्रिगेट दिखते हैं. पर जैसा कि हम जानते हैं, कितने जहाज़ किस कैरियर के साथ कहां तैनात हैं, ये जानकारी गुप्त रहती है. हालांकि दूसरी सेनाओं के साथ जॉइंट एक्सरसाइज के दौरान समय-समय पर इनकी तस्वीरें सामने आती रहती हैं.

USS Constitution
1812 का फ्रिगेट USS Constitution (PHOTO-Britannica)

समय के साथ जहाजों की तकनीक में प्रगति हुई और द्वितीय विश्वयुद्ध आते-आते इनका जमकर इस्तेमाल होने लगा. खासकर ब्रिटेन, जिसके पास कई बड़े जहाज और एयरक्राफ्ट कैरियर थे, उसने उनकी सुरक्षा के लिए फ्रिगेट्स का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया. आजकल के मॉडर्न फ्रिगेट्स में हेलीपैड भी दिखते हैं. जिससे ये सबमरीन पर हमला करते हैं. क्योंकि फ्रिगेट के पानी में रहने के दौरान उनपर सबमरीन से हमला होने के खतरा बना रहता है. वहीं, हेलीकॉप्टर्स आसमान से पानी में माइंस आदि का इस्तेमाल कर आसानी सबमरीन को निशाना बना सकते हैं.

Russian Vyborg Shipyard laid the Purga ice class coastguard ship of project 23550 925 001
सिंगपुर के एक फ्रिगेट से फायर होती मिसाइल (PHOTO- X/Ryan Chan

आगे चलकर कई तरह के जंगी जहाज आए. इनमें मुख्य अंतर था आकार और हथियार का. इसी कड़ी में फ्रिगेट्स का इस्तेमाल भी बढ़ा. आज की बात करें तो वर्तमान में कई देशों की नेवी इनका इस्तेमाल बड़े जहाजों को सुरक्षा देने, निगरानी करने या पानी से जमीन ओर हमले करने के लिए भी करती हैं. 1971 के भारत-पाक युद्ध में ऑपरेशन ट्राइडेंट के समय भारत ने फ्रिगेट्स का इस्तेमाल कर पाकिस्तान के कराची बंदरगाह को तहस-नहस कर दिया था.

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