बेनिटो मुसोलिनी. ऐसा तानाशाह जो जनता को प्यारा था. जिसे जनता पूजे जाने की हद तकचाहती थी. जिसके पीछे पूरी ताकत से खड़ी थी. और फिर एक दिन, उसी जनता ने उसकी लाश कोचौराहे पर टांग कर जूते मारे. एक तानाशाह के अविश्वसनीय उत्थान और उससे भीअविश्वसनीय की पतन की कहानी है बेनिटो मुसोलिनी की जीवनयात्रा.कौन था मुसोलिनी?मुसोलिनी वो था, जो कई मामलों में हिटलर भी नहीं था. लेकिन हिटलर के काले कारनामोंका शोर-शराबा इतना ज़्यादा हो गया कि उसके हल्ले में मुसोलिनी को इतिहास ने भुला सादिया. आधुनिक इतिहास में दुनिया के तख्ते पर जितने भी अतिवादी तानाशाह हुए हैं,उनमें मुसोलिनी का नाम प्रमुखता से आता है. लोकतंत्र का टेंटुआ दबाने का काम जितनेबड़े पैमाने पर मुसोलिनी ने किया, उतना शायद ही किसी और ने किया हो. मुसोलिनी इटलीकी नेशनल फासिस्ट पार्टी का नेता था. 1922 से लेकर 1943 तक लगातार 21 वर्षों तकउसने इटली पर राज किया. वो इटली के इतिहास में सबसे कम उम्र का प्रधानमंत्री था.अपने कार्यकाल के शुरुआती तीन-चार साल उसने लोकतंत्र की इज्ज़त करते हुए शासन किया.उसके बाद अपने ज़लाल पर उतर आया.बेनिटो मुसोलिनी.कुछ दिनों की भलमनसाहत के बाद मुसोलिनी इटली को अपनी सल्तनत मान कर उसपर निरंकुशशासन करने लगा. जो भी मुखालफ़त में उतरा, उसको दूसरी दुनिया में पहुंचाकर ही दमलिया. ऐसे-ऐसे क़ानून बनाएं, जिनसे इटली में उसके एकछत्र राज का रास्ता प्रशस्त होसके.भगौड़ा, जो पत्रकार बन गयामुसोलिनी का जन्म 1883 में उत्तरी इटली के रोमान्या में हुआ था. विचारों की उग्रताउसे अपने पिता से हासिल हुई थी, जो एक सोशलिस्ट थे. मुसोलिनी की मां एक टीचर थी. वोखुद भी 18 साल की उम्र में एक स्कूल में पढ़ाने लग गया था. उस समय में इटली मेंअनिवार्य सैनिक सेवा का नियम था. मुसोलिनी इससे बचने के लिए स्विट्ज़रलैंड भाग गया.जब लौटा, तो कुछ समय के लिए सेना में काम किया. फिर पत्रकारिता शुरू कर दी. 1914में जब पहला विश्वयुद्ध छिड़ गया तब मुसोलिनी का मानना था कि इटली को निष्पक्ष नारहकर ब्रिटेन और फ़्रांस के पक्ष में लड़ाई में उतरना चाहिए. 1919 में मुसोलिनी ने एकराजनितिक संगठन की स्थापना की. इसमें उसने अपने हमखयाल लोगों की भरती की. ये वक़्तइटली में प्रखर राष्ट्रवाद के उभार का था. इटली में ही क्यों, मुसोलिनी के यारहिटलर के जर्मनी में भी यही हो रहा था. ‘राष्ट्र सर्वप्रथम’ का नारा लुभावना साबितहो रहा था. इसी हल्ले में मुसोलिनी को वो अभूतपूर्व समर्थन हासिल हुआ, जो आगे चलकेउसकी निरंकुश तानाशाही का बेस बना.सत्ता पर कब्ज़ा1922 में 27-28 अक्टूबर की रात को लगभग 30,000 फासिस्ट लोगों के समूह ने तत्कालीनप्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग लेकर रोम पर चढ़ाई कर दी. इसका नेतृत्व मुसोलिनी नेकिया. लोकतांत्रिक सरकार की रक्षा से सेना ने भी हाथ खींच लिए. मार्शल लॉ लगाने सेइंकार कर दिया. परिणाम ये रहा कि प्रधानमंत्री को सत्ता छोड़नी पड़ी. किंग विक्टरइमैनुअल ने सत्ता मुसोलिनी को सौंप दी. इतिहासकार बताते हैं कि इसके पीछे मुसोलिनीका खौफ़ ही था.हिटलर से याराना भी, जलन भीहिटलर और मुसोलिनी एक ही कालखंड में पनपे. और उनका खात्मा भी लगभग एक ही समय हुआ.दो दिन के अंतराल पर दोनों को मौत आई. फर्क बस इतना था कि हिटलर ने खुद मौत को गलेलगाया था और मुसोलिनी को जनता ने सज़ा दी. मुसोलिनी हिटलर को एक उदार इंसान मानताथा. लेकिन अंदर ही अंदर वो हिटलर की व्यापक लोकप्रियता से जलन भी रखता था. उसे सबसेज़्यादा चिढ़ इस बात से थी कि मुसोलिनी के काफी बाद राजनीति में सक्रीय होने केबावजूद हिटलर ज़्यादा प्रसिद्ध था.हिटलर संग मुसोलिनी. सोर्स: Pinterest.com2009 में मुसोलिनी की प्रेमिका क्लेरेटा पेतासी की कुछ डायरियां सार्वजनिक हुई थी.डायरियों में दर्ज जानकारी से पता चलता है कि मुसोलिनी खुद को हिटलर का जूनियरसहयोगी माने जाने से खीझा हुआ था. इटली द्वारा ब्रिटेन पर हमला बोलने से दो सालपहले चार अगस्त 1938 को नौका विहार करते हुए मुसोलिनी ने बड़े गर्व से अपनीक्लेरिटा को बताया था, “मैं 1921 से नस्लवादी हूं. मुझे समझ नहीं आता कि किस प्रकारवे कहते हैं कि मैं हिटलर की नकल करता हूं. उस समय तो वह (राजनीतिक तौर पर) पैदा भीनहीं हुआ था.”हिटलर का साथ देना भारी पड़ गयादूसरे विश्वयुद्ध में मुसोलिनी ने जर्मन तानाशाह का साथ दिया था. लेकिन 1943 केआते-आते ये फैसला डिजास्टर साबित हुआ. इटली में मुसोलिनी के इस फैसले को लेकरअसंतोष फैलने लगा. उसके नेतृत्व पर सवाल उठने लगे. आखिरकार 1943 की 25 जुलाई कोइटली के राजा ने उसकी सरकार बर्खास्त कर दी. मुसोलिनी को गिरफ्तार किया गया.हालांकि वो ज़्यादा दिनों तक जेल में नहीं रहा. सितंबर में ही उसे हिटलर ने छुड़ालिया. 1945 में जब ये बिल्कुल ही साफ़ हो गया कि जर्मनी दूसरा विश्वयुद्ध हारने वालाहै, तब मुसोलिनी ने स्विट्ज़रलैंड भागने की कोशिश की. कोशिश नाकामयाब रही. अपनीप्रेमिका और कुछ विश्वासपात्र लोगों के साथ उसे पकड़ लिया गया. तारीख थी 27 अप्रैल1945. दूसरे दिन 28 अप्रैल को मुसोलिनी, उसकी प्रेमिका क्लेरेटा पेतासी और उनकेअन्य पंद्रह साथियों को गोली मार दी गई.लाशों की दुर्गतिइन सबकी लाशों को दूसरे दिन एक वैन में भरा गया और मिलान लाया गया. सबको एक मैदानमें डंप किया गया. जहां पर लोगों ने उसपर लात-घूंसे बरसाए, घृणा से थूका. उसके बादउनको एक गैस स्टेशन की छत से टांगा गया. लोगों ने नीचे से उनपर पथराव किया. फासिज्मसे लोगों की नफरत का नमूना था वो पथराव. जी भर के लाश की तौहीन करने के बाद उन्हेंएक गुमनाम जगह पर दफनाया गया.मुसोलिनी और उसकी प्रेमिका की लाशें. सोर्स: Pinterest.comमुसोलिनी की मौत के महज़ दो दिन बाद 30 अप्रैल 1945 को हिटलर ने भी आत्महत्या कर ली.इस तरह दो दिनों के अंतराल पर तानाशाही की दुनिया के करण-अर्जुन का अंत हुआ.दुनियाभर के तानाशाह ऐसे ही अंत तक पहुंचने के लिए अभिशप्त हैं.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें:‘मेरी जिंदगी का सबसे महान सीन, 17 साल की वो हिम्मती लड़की’‘फुले, बाबा साहेब के ख्यालों को कांशीराम ने देश में फैलाया’‘अंग्रेजी मैया का दूध पियो, वही पोसती है शूद्रों को’वो हिंदुस्तानी फेमिनिस्ट जिससे विवेकानंद परेशान रहते थे