The Lallantop
X
Advertisement

लोकसभा चुनाव जीत कर संसद आ रहे ये दलित सांसद, जानें किस पार्टी से है ताल्लुक

कम से कम एक दलित सांसद ऐसे हैं जो फैजाबाद जैसी सामान्य सीट से चुनकर आए हैं.

Advertisement
Dalit mps in lok sabha
चंद्रशेखर आजाद, संजना जाटव और अवधेश प्रसाद. (फाइल फोटो)
pic
साकेत आनंद
6 जून 2024 (Published: 17:49 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

दलितों के हाथ में सत्ता की चाबी थमाने के लिए बनी बहुजन समाज पार्टी लोकसभा चुनाव 2024 में शून्य पर सिमट गई. लेकिन दूसरे दलों से चुने गए दलित सांसदों की खूब चर्चा हो रही है. कुछ दलित सांसद तो आरक्षित सीटों से ही नहीं, बल्कि फैजाबाद जैसी सामान्य सीट से भी चुनकर आए हैं. वहीं कुछ ऐसे भी दलित सांसद हैं जिनकी उम्र सिर्फ 25-26 साल है.

चंद्रशेखर आजाद

कुछ साल पहले 'भीम आर्मी' बनाकर चर्चा में आए चंद्रशेखर आजाद अब सांसद बन चुके हैं. चंद्रशेखर ने उत्तर प्रदेश की नगीना सीट से बीजेपी उम्मीदवार ओम कुमार को डेढ़ लाख से भी ज्यादा वोटों से हराया है. चंद्रशेखर आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. अपनी पार्टी से ही उन्होंने चुनाव जीता है. यहां चंद्रशेखर के खिलाफ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी अपने उम्मीदवार उतारे थे. चंद्रशेखर का कहना था कि वे बहुजनों को सुरक्षा दिलाने के लिए चुनाव में उतरे हैं.

चंद्रशेखर पेशे से वकील रहे हैं. उत्तराखंड से उन्होंने कानून की पढ़ाई की. अक्टूबर 2015 में उन्होंने 'भीम आर्मी' बनाई थी. इसका उद्देश्य दलित समुदाय में शिक्षा को बढ़ावा देना था. सितंबर 2016 में सहारनपुर के एक कॉलेज में दलित छात्रों की पिटाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान चंद्रशेखर और उनका संगठन सुर्खियों में आया था. इसके बाद चंद्रशेखर दलितों के बीच लगातार लोकप्रिय होते चले गए. 15 मार्च 2020 को कांशीराम के जन्मदिन पर उन्होंने अपनी पार्टी बनाने का एलान किया था. 2022 के विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर ने गोरखपुर शहरी सीट से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था. लेकिन हार गए थे. इस बार चुनाव जीत गए हैं.

संजना जाटव

राजस्थान के भरतपुर से सांसद बनीं संजना जाटव सिर्फ 26 साल की हैं. राजस्थान में सबसे कम उम्र की उम्मीदवार थीं. संजना ने बीजेपी उम्मीदवार रामस्वरूप कोली को 51,983 वोटों से हराया है. जीत के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ गाने पर डांस करता हुआ उनका एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है. पिछले कुछ समय में संजना पार्टी के भीतर एक चर्चित चेहरा बनकर उभरी हैं. पिछले साल कांग्रेस की टिकट पर संजना ने अलवर जिले की कठूमर सीट से विधानसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन 409 वोट से हार गई थीं.

कठूमर से चार बार के विधायक रहे बाबूलाल बैरवा का टिकट काटकर संजना को उतारा गया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, संजना कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की खास मानी जाती हैं. उनके 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' अभियान से जुड़ी रहीं. विधायकी से पहले अलवर जिला परिषद का चुनाव भी लड़ा था, जहां वो वार्ड-29 से चुनी गई थीं. उन्होंने साल 2019 में महाराजा सूरजमल बृज यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया था. उनके पति कप्तान सिंह राजस्थान में पुलिस कॉन्स्टेबल हैं.

शांभवी चौधरी

शांभवी चौधरी इस बार चुने गए सबसे युवा सांसदों में एक हैं. उनकी उम्र महज 25 साल है. बिहार की समस्तीपुर लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. शांभवी पासी जाति से ताल्लुक रखती हैं. उनके पिता अशोक चौधरी बिहार सरकार में मंत्री हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं. शांभवी ने बिहार सरकार के ही सूचना जनसंपर्क मंत्री महेश्वर हजारी के बेटे सन्नी हजारी को चुनाव में हराया. उनको 1 लाख 87 हजार वोटों से जीत मिली है. सन्नी हजारी कांग्रेस से जुड़े हैं.

पटना के नॉट्रेडैम एकेडमी से स्कूली पढ़ाई के बाद शांभवी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. फिर, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर डिग्री हासिल की. उनकी शादी बिहार के चर्चित IPS किशोर कुणाल के बेटे सायण कुणाल से हुई है. सायण कुणाल भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं. चर्चा चली थी कि सायण खुद चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि शांभवी को चुनाव मैदान में उतरना पड़ा.

चुनाव प्रचार के दौरान शांभवी चौधरी (फोटो- पीटीआई)
अवधेश प्रसाद

उत्तर प्रदेश की फैजाबाद लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद 54,567 वोटों से जीते. उन्होंने इस सीट से दो बार के BJP सांसद लल्लू सिंह को हराया है. उनकी चर्चा इसलिए भी हो रही है कि यहां राम मंदिर निर्माण के बाद बीजेपी की जीत आसान मानी जा रही थी. अवधेश प्रसाद सपा के संस्थापक सदस्यों में एक हैं. 9 बार विधायक रह चुके हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में वे मिल्कीपुर से विधायक चुने गए थे. 78 साल के अवधेश प्रसाद अयोध्या में सपा का चर्चित दलित चेहरा हैं.

फैजाबाद सामान्य लोकसभा सीट होने के बावजूद अखिलेश यादव ने एक प्रयोग के तहत अवधेश प्रसाद को उम्मीदवार बनाया. फैजाबाद से सपा के दलित चेहरा उतारने के बाद एक नारा दिया गया, 'अयोध्या में न मथुरा न काशी, सिर्फ अवधेश पासी.' माना जा रहा है कि दलित उम्मीदवार के पीछे न सिर्फ दलित जातियां बल्कि कुर्मी जैसी OBC जातियां भी गोलबंद हो गईं.

कुमारी शैलजा

कुमारी शैलजा मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं. कांग्रेस में एक प्रमुख दलित नेता के तौर पर उन्हें गिना जाता है. शैलजा एक बार फिर हरियाणा की सिरसा लोकसभा सीट से सांसद चुनी गई हैं. उन्होंने बीजेपी के अशोक तंवर को 2 लाख 68 हजार वोटों से हराया है. पिछले लोकसभा चुनाव में वो अंबाला से हार गई थीं. शैलजा के पिता चौधरी दलवीर सिंह हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके थे.

1990 में महिला कांग्रेस से राजनीति शुरू करने वालीं शैलजा कई बार केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं. पहली बार 1991 में सिरसा से ही लोकसभा पहुंची थीं. तब उन्हें नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री बनाया गया था. उन्हें गांधी परिवार के करीबियों में गिना जाता है. फिलहाल कांग्रेस वर्किंग कमिटी (CWC) की सदस्य भी हैं. 2014 से 2020 तक हरियाणा से राज्यसभा सांसद रह चुकी हैं. पिछले हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी बनाया गया था. अप्रैल 2022 तक वो इस पद पर थीं.

चरणजीत सिंह चन्नी

चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. राज्य में सीएम पद तक पहुंचने वाले वे पहले दलित नेता हैं. कांग्रेस ने इस बार उन्हें जालंधर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया. चन्नी ने बीजेपी के सुशील कुमार रिंकू को 1 लाख 75 हजार 993 वोट से हरा दिया. चरणजीत सिंह चन्नी के लिए ये बहुत बड़ी जीत मानी जा रही है. क्योंकि 2022 विधानसभा चुनाव में दो जगहों से वे चुनाव हार गए थे. जालंधर लोकसभा सीट पर 1999 से लेकर 2019 तक कांग्रेस का दबदबा रहा. हालांकि पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी ने यहां से जीत दर्ज की थी.

लोकसभा चुनाव जीतने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी (फोटो- पीटीआई)

चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब कांग्रेस का प्रमुख दलित-सिख चेहरा हैं. चमकौर साहिब से तीन बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने विधायकी का अपना पहला चुनाव साल 2007 में जीता था. साल 2015-16 में वे पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे. कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई वाली सरकार में उन्हें टेक्निकल एजुकेशन और इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग विभाग का कार्यभार सौंपा गया था. लेकिन जब अगस्त 2021 में अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत हुई तो उसका नेतृत्व करने वालों में चन्नी भी थे. चन्नी MBA करने के साथ, पंजाब यूनिवर्सिटी से LLB और PhD भी कर चुके हैं.

डॉ. वीरेंद्र कुमार

भाजपा नेता डॉ. वीरेंद्र कुमार लगातार आठवीं बार लोकसभा सांसद बने हैं. मध्य प्रदेश की टीकमगढ़ लोकसभा सीट से उनकी ये लगातार चौथी जीत है. उन्होंने कांग्रेस के पंकज अहिरवार को 4 लाख 3 हजार वोटों से हराया है. इससे पहले वीरेंद्र कुमार खटीक मोदी सरकार में अलग-अलग विभागों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. अभी वे केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थे. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वे अल्पसंख्यक कल्याण और महिला एवं बाल विकास विभाग में राज्य मंत्री भी रहे थे.

ये भी पढ़ें- अयोध्या में मंदिर बनवाकर भी कैसे हारी BJP? असली खेल यहां समझ लीजिए

वीरेंद्र कुमार सागर की डॉ. हरिसिंह गौर यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर चुके हैं. पहली बार 1996 में वे सागर से ही लोकसभा पहुंचे थे. वहां से लगातार 2004 तक वे सांसद रहे. उसके बाद वे टीकमगढ़ से जीतते आए हैं.

आरक्षित सीटों पर BJP को झटका

लोकसभा में अनुसूचित जातियों (SC) के लिए 84 और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. यानी इन 131 सीटों पर उसी समुदाय के उम्मीदवार चुनाव लड़ सकते हैं. इन समुदायों से संसद में प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए सीटों को आरक्षित किया गया था. इसी तरह, विधानसभाओं में भी इन समुदायों के लिए सीटें आरक्षित होती हैं.

इस चुनाव में आरक्षित सीटों पर भी भारतीय जनता पार्टी को बहुत बड़ा झटका लगा है. साल 2019 के चुनाव में बीजेपी ने SC आरक्षित 46 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार ये आंकड़ा 30 पर सिमट गया. वहीं अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस के सांसदों की संख्या 6 से बढ़कर 19 हो गई. इसी तरह अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा का आंकड़ा 31 से घटकर 26 पहुंच गया. और कांग्रेस ने पिछले चुनाव में जीती गई 4 सीटों के मुकाबले इस बार 12 पर जीत हासिल की.

वीडियो: लल्लनटॉप चुनाव यात्रा : बिहार की महादलित महिलाओं ने जातिगत भेदभाव पर जो कहा, सबको सुनना चाहिए

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement