जयपुर लिट फेस्ट के दसवें संस्करण के आखिरी दिन का जायजा लेने से पहले जमीन से ऊपरउठ चुके एक लड़के के दर्शन हुए. वह साहित्य का कंज्यूमर नहीं था. लेकिन उसके आगेसाहित्य के नए कंज्यूमर बौने नजर आ रहे थे. वह ‘लंबू बांस’ बना हुआ ‘वैलेंटाइनहैलीराइड’ का प्रचार कर रहा था.उसका नाम ध्रुव सिंह है. यह पूछने पर कि इतनी ऊंचाई से सू-सू कैसे करते हो? उसने एकदीवार दिखाई जिसके सहारे बैठ कर और फिर खोल कर वह मूतता है. दिन में कितने घंटे इसतरह बांस पर खड़े रहना पड़ता है? इस सवाल का जवाब है : सात घंटे और इन सात घंटों कीकीमत है : दो हजार रुपए.ध्रुव भरतपुर का रहने वाला है. शादियों, पार्टियों और राजनीतिक रैलियों में उसे‘लंबू बांस’ बनने का काम मिलता रहता है. वह इस काम को आसान नहीं मानता है और कहताहै कि खतरा बहुत है. बैलेंस बनाना पड़ता है. लोग बहुत जल्दी में और भागते हुए भीआस-पास से गुजरते हैं. इससे टक्कर का डर बना रहता है. कभी-कभी मजाक में लोग बांस कोहिलाने लगते हैं, तब प्रैक्टिस काम आती है.यह पूछने पर कि कभी इस काम में चोट लगी है? वह आगे के दो दांत दिखाता है जो टूटेहुए हैं. कहता है कि एक शादी में कुछ लड़कों ने बांस पकड़ कर मुझे उठा दिया, लेकिन वेसंभाल नहीं पाए और मैं मुंह के बल गिर गया. मैं जमीन पर होता तो बैलेंस बना लेता,लेकिन हवा में उठा दिया सालों ने...बहरहाल, जेएलएफ के आखिरी दिन जावेद अख्तर दिखाई नहीं दिए. लिहाजा शुभ्रा गुप्त कोसुधीर मिश्र, रेचल डॉयर और इम्तियाज अली से ही बातचीत करनी पड़ी. सेशन - मदर इंडिया: इंडियन फिल्म्स एंड द नेशनल नैरेटिव.फ्रंट लॉन में हुई इस बातचीत के बाद खा-पीकर इम्तियाज चारबाग आ गए. सेशन – ख्वाजागरीब नवाज : ए मैसेज ऑफ लव. पैनल : कराची से आई रीमा अब्बासी, अजमेर से आए सलमानचिश्ती और मुंबई से आए इम्तियाज अली. मॉडरेशन : सादिया देहलवी.नमिता गोखले भी संयोग से इस बातचीत की शुरुआत के वक्त मौजूद रहीं. सादिया ने नमिताका शुक्रिया अदा किया कि उन्होंने उन्हें यहां बुलाया. नमिता और सादिया कॉलेजफ्रेंड्स रही हैं.रीमा अब्बासी की किताब ‘अजमेर शरीफ : अवेकनिंग ऑफ सूफिज्म इन साउथ एशिया’ केलोकार्पण के बाद नमिता यह कह कर चली गईं कि ख्वाजा अजमेर शरीफ की छाया हमेशा हमारेफेस्टिवल पर बनी रही है. इसके बाद इस छाया पर सॉरी ख्वाजा गरीब नवाज पर बातचीत शुरूहुई.सलमान : अजमेर शरीफ आने वालों के ख्यालों का भी ख्याल रखा जाता है. यहां आठ सौसालों से ख्वाजा की देग में गोश्त नहीं पका है ताकि हर मजहब का आदमी ख्वाजा कीमोहब्बत का जायका चख सके.इम्तियाज की बातों में परहैप्स बहुत था, डेफिनेट बहुत कम. रीमा बहुत उलझी हुई लगरही थीं. मानो उनकी किताब जेएलएफ में लोकार्पित हो गई, यही उनके लिए बहुत हो.इम्तियाज : ओल्ड हिंदू फिलॉसफी और न्यू सूफिज्म में आपस में काफी समानताएं हैं.सलमान : साधु और योगी अजमेर शरीफ की दरगाह में सूफियों और मुस्लिम रहस्यवादियों केसाथ मिलकर ध्यानादि का अभ्यास करते हैं.इम्तियाज : हेट इज द अनसस्टेनेबल. बिल्ड द ट्रू लव.एक पार्टीसिपेंट : अगर अजमेर शरीफ की दरगाह इतने ही प्रेम, पवित्रता और ध्यान सेभरी हुई है तो वहां घुसते ही हर आदमी पैसा-पैसा क्यों करने लगता है? जूते उतारो तोपैसे, चादर चढ़ाओ तो पैसे?सलमान : तीस से चालीस हजार लोग रोज अजमेर शरीफ आते हैं. हम कोशिश कर रहे हैं किउन्हें सूफी सुविधाएं दे सकें. गरीब लोग बहुत हैं, वे उदात्तता और ध्यान नहींसमझते. लेकिन हेट को हेट से मत देखिए, उसे लव से देखिए... क्योंकि लव से हेट कोखत्म किया जा सकता है.रीमा यहां रूमी को कोट करती हैं और एक पार्टीसिपेंट इम्तियाज से पूछता है कि ‘दरिंग’ में उन्होंने ए आर रहमान को क्यों नहीं लिया? इम्तियाज ऐसे सवालों से घिरजाएं, इससे पहले बहुत सलीके और समझदारी से ऐसे सारे सवालों को सेशन के बाद मिलने कोकहते हैं.‘सिकंदर खुश नहीं था लूट के दौलत जमाने की / कलंदर दोनों हाथों से लुटाकर रक्स करतेहैं.’इस सार के साथ यह सेशन समाप्त होता है और दरबार हॉल में राजस्थानी को भाषा कीमान्यता दिलाने के लिए एक सेशन शुरू होता है.दरबार हॉल की सिटिंग कैपेसिटी बहुत कम है. इसका मतलब यह नहीं है कि राजस्थानी कोभाषा की मान्यता दे दी जाए, यह मानने वाले भी बहुत कम हैं. नंद भारद्वाज इस सेशनमें सी पी देवल, गीता सामौर और के सी मालू से बातचीत कर रहे हैं.इससे थोड़ी दूर पर वाशरूम में मूतने के लिए भी लाइन लगी हुई है. मुझे ध्रुव सिंह यादआ रहा है, वह भी बाहर किसी दीवार से लगा बहुत ऊंचाई से मूत रहा होगा.इससे भी थोड़ी दूर पर सेल्फी प्वाइंट पर ‘ड्रामा क्वीन’ की तख्तियां लिए लड़कियां एकदूसरे से क्लिक करने के लिए इसरार कर रही हैं.इससे भी थोड़ी दूर पर बीकानेर से आया एक लड़का है. वह साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कारसे सम्मानित दक्षिण अफ्रीकी लेखक जे एम कोट्जी को पूरा पढ़ चुका है. हिंदी के किसीनए लेखक को वह नहीं जानता है. उसके हाथ में बुक स्टोर से खरीदी हुई कोट्जी की नईकिताब ‘द स्कूल डेज ऑफ जीसस’ है. वह कहता है कि वह यहां चार दिन से केवल प्लेन मैगीखा रहा है और पानी पी रहा है. मैगी की कीमत साठ रुपए है और पानी मुफ्त है. यहांक्यों आए हो? यह पूछने पर वह कहता है कि संसार के कुछ अच्छे दिमागों को एक जगहदेखने-सुनने को मिल जाता है. पढ़ने-लिखने की आदत है तो यहां आकर कुछ काम हो जातेहैं. खाने-पीने से पैसे बचा कर किताबों पर खर्च करता हूं.इससे भी थोड़ी दूर पर एक औरत एक आदमी से कह रही है कि तेरे को कुछ पढ़ने-वढ़ने का शौकहै तो बता कुछ लिंक व्हाट्सअप कर देती हूं.इससे भी थोड़ी दूर पर सौर ऊर्जा से चलने वाले टॉर्च, चूल्हे और ट्यूबलाइट बिक रहेहैं.इससे भी थोड़ी दूर पर हर तरह के कपड़े, पर्स, बैग, जूते-चप्पल इत्यादि बिक रहे हैं.इससे भी थोड़ी दूर पर बीयर और शराब बिक रही है.इससे भी थोड़ी दूर पर...इससे भी थोड़ी दूर पर राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट के छात्र आगंतुकों के मुफ्त स्केच बनाकर अपना हाथ रवां कर रहे हैं.इससे भी थोड़ी दूर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का एक पत्रकार अपने कैमरामैन के आगे मुंहकिए हुए बोल रहा है कि विवादों और हस्तियों के लिए मशहूर जयपुर साहित्य उत्सव मेंइस बार युवाओं में साहित्य को लेकर बहुत जोश दिख रहा है. यह कह सकते हैं कि साहित्यमें अब नया जोश आ गया है.इससे भी थोड़ी दूर पर फ्रंट लॉन में Kate Tempest की रैप और कविता सरीखी भाषा मेंबहुत ऊर्जावान एकल प्रस्तुति Let them Eat Chaos चल रही है.अब और दूर जाने का मन नहीं करता है. पैर यहीं रुक गए हैं. थोड़ी ही देर में यहींफ्रंट लॉन में इस जेएलएफ का आखिरी सेशन शुरू होगा. इस सेशन को दोपहर में ‘बैठक’ मेंहोना था, लेकिन तकनीकी वजहों से इसे यहां शिफ्ट करना पड़ा. सेशन - आधुनिकता एक खोज :द सर्च फॉर मॉडर्निटी. पैनल : मृणाल पांडे, सौरभ द्विवेदी, अनु सिंह चौधरी. मॉडरेशन: अदिति महेश्वरी गोयल.फोटो : सुमेर सिंह राठौर‘भाड़ में जाए आधुनिकता, कोई शेड्यूल फॉलो नहीं करते हैं ये लोग...’ यह कह कर एकनौजवान बगल से उठ कर चला जाता है. इस सेशन में भीड़ बहुत भारी है. मृणाल पांडे पद्मपुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार हैं. अनु सिंह चौधरी रामनाथ गोयनका पुरस्कारसे सम्मानित युवा पत्रकार और कथाकार हैं. सौरभ रंगीले हैं और ‘द लल्लनटॉप’ केमुखिया हैं. इस परिचय के बाद अदिति आधुनिकता की गेंद को मृणाल पांडे की तरफ पास करदेती हैं.मृणाल : जब मार पड़ती है, तब आदमी अपनी ही भाषा की शरण में जाता है. हिंदी के सामनेदो चुनौतियां हैं. एक तो उसे राजनीतिक विमर्श के लिए जगह बनानी होगी और दूसरेसर्वधर्म समभाव को लेकर चलना होगा.सौरभ : मेरे वक्त की पत्रकारिता को किस्सों और नैरेटिव में लौटना होगा. क्योंकिआखिर में किस्सा ही बचेगा और किस्सा ही जिंदा रखेगा.अनु : आधुनिकता संदर्भ से तय होती है जबकि खोज स्थायी है. पत्रकारिता के अनुभवों सेगुजरने के बाद मुझे लगा कि ट्रुथ तो फिक्शन में ही है. फिक्शन मुझे बहुत लिबरेटिंगलगता है. मुझे लगता है कि स्त्रियों की कहानियों को अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए.स्त्रियों की लिखी कहानियां, पुरुषों के लिए भी हैं.मृणाल फिक्र जताती हैं कि आज कोई भी ऐसा राजनेता नहीं है जो अच्छेपत्रकारों-कवियों-लेखकों से घिरा हुआ हो. वह राममनोहर लोहिया का उदाहरण देती हैं.अदिति सौरभ से : यह 2.0 वाली हिंदी क्या है?सौरभ : अब जमाना एक नंबरी नहीं रहा. वह दस नंबरी हो गया है. 2.0 वाली हिंदी में 2दो नंबरी वाला है. हिंदी पत्रकारिता में कंकाल बहुत इकट्ठा हो गए हैं. कालीन उठा करइसकी सफाई करने की जरूरत है. लेकिन नई हिंदी पुरानेपन को बिल्कुल छोड़ दे, यह नहींहो सकता. वह परंपरा से संवाद कर रही है. मैं अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ कर कहीं नहींजाऊंगा. आधुनिकता समय, संदर्भ और संस्कार से तय होगी.अदिति : हिंदी का जुझारू व्यक्तित्व अब खुल कर और खिल कर सामने आ रहा है.सौरभ : हिंदी वालों को यह समझना होगा कि बाजार अब हमारी सच्चाई है. अब इससे डर करकाम नहीं चलेगा.भारत में आए उदारीकरण को पी. वी. नरसिम्हा राव से जुड़े एक पॉलिटिकल किस्से से समझाकर सौरभ ने महफिल लूटने की कोशिश की और फ्रंट लॉन को ‘द लल्लनटॉप’ के न्यूज रूम मेंबदल दिया. अकुंठ और सहज रहने की वकालत करते हुए उन्होंने हिंदी की तुलना गोमुख सेनिकलने वाली गंगा से की और जम कर तालियां बटोरीं.‘हम गिरा दे अगर बीच की दीवार तो / देखना हमारा आंगन बड़ा हो जाएगा.’इस सार के साथ यह सेशन खत्म हुआ और न जाने फिर क्या-क्या कहां-कहां शुरू हुआ...अगले दृश्य की प्रतीक्षा में ध्रुव सिंह अपनी टांगों में बंधे बांस खोल रहा है.एक समाज में ‘मनी ओरिएंटेड मांइडसेट’ के हाथ में आई हुई चीजें संस्कृति और सभ्यताको कैसे तरह-तरह के नाम देकर भ्रष्ट कर सकती हैं, इसे समझने के लिए ‘जयपुर लिटरेचरफेस्टिवल’ जैसे आयोजन एक कारगर डिवाइस साबित हो सकते हैं. यहां साहित्य से इतर एकप्रचंड प्रपंच है. इस प्रपंच में इतना बाजार है कि सब बगैर दाम पूछे ही उसे मुंहमें लेने को मजबूर हैं.यहां सामंतवाद के नए किले हैं. यहां वार्तालाप नहीं वार्तालाभ के मकसद से आए हुएडेलीगेट्स, पार्टीसिपेंट और कपल्स हैं. यहां हजारों फटी जींसें और लॉन्ग कोट हैं.साहित्य के सेंस को नहीं साहित्यकारों के ड्रेसिंग सेंस को समझ चुके खोखलेव्यक्तित्व हैं. कला की मुख्यधारा में बेपहचान रहे आए कैरेक्टर आर्टिस्ट,स्ट्रगलर्स और लूजर्स हैं. ऐसे फिल्म मेकर्स हैं जो अब तक एक भी फिल्म नहीं बना पाएहैं. ऐसे एड मेकर्स हैं जिन्हें अब तक सूर्या सीएफएल का एड तक बनाने का मौका नहींमिला है.सब तरफ चमक, सब तरफ व्यापार, सब तरफ समझौते हैं. सब तरफ करार, सब तरफ झूठ, सब तरफचालें, सब तरफ जुगाड़, सब तरफ घातें हैं... अब यही भारतीय उत्सवधर्मिता का स्थायीभाव है. क्या अब यही भारतीय उत्सवधर्मिता का स्थायी भाव है? अगर अब यही भारतीयउत्सवधर्मिता का स्थायी भाव है तो जहां ऐसे उत्सव होते हैं वहां ध्वंस करके एकपार्क बनाया जाना चाहिए. इस प्रकार का एक पार्क जहां कभी-कभी झूठे संतों के सच्चेप्रवचन हों, सच्चे राजनेताओं के झूठे भाषण हों, बढ़ी दाढ़ीवाले कृपण साहित्यकारों केएकल रचना-पाठ हों... और जहां सुबह-शाम बच्चे आकर खेलें और खेल-खेल में वे न संतबनें, न राजनेता, न कलाकार, न साहित्यकार... वे वह बनें जो वे बनना चाहते हैं.* रपट का शीर्षक इस राजस्थानी लोकगीत से साभार है :https://www.youtube.com/watch?v=oC7z9HUQJRc*** इस बार के जेएलएफ के बाकी दिनों का हाल यहां पढ़ें :जमीन से ऊपर उठ चुके लोगों का है जेएलएफजेएलएफ में जा पाता है स्कैन किया हुआ ‘आदमी’मैं प्रोफेशनल मुस्लिम नहीं हूं : सईद नकवीजेएलएफ पहला दिन: संक्षेप ही तो समस्या है