जमीन से ऊपर उठ चुके लोगों का है जेएलएफ
अभी तक खत्म नहीं हुए जयपुर लिट फेस्ट के चौथे दिन का हाल.
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जयपुर लिट फेस्ट (जेएलएफ) के दसवें संस्करण के चौथे रोज के सेशन सुनने के लिए आप स्कैन होने जा ही रहे होते हैं कि एक सुकन्या ‘गिफ्ट योर वैलेंटाइन समथिंग स्पेशल’ कहते हुए एक पैम्फलेट आपको पकड़ा देती है. यह पैम्फलेट ‘हैरिटेज ऑन एयर’ का है जो 12-14 फरवरी के बीच वैलेंटाइन हैलिराइड दे रहा है. इसके अंतर्गत आप अपने वैलेंटाइन के साथ जमीन से ऊपर उठ सकते हैं. पैम्फलेट के पीछे ‘सपनों की उड़ान अब हकीकत’ में बदल चुकी है. 17-23 फरवरी तक जयपुर हैलिराइड फेस्टिवल होना है जिसमें बुकिंग वगैरह पर 40 प्रतिशत (अपटू) डिस्काउंट मिल रहा है.
यह सब कुछ पढ़ने में विज्ञापन या किसी उत्पाद के प्रचार सरीखा भी लग सकता है, लेकिन यहां यह बताने का मकसद बस इतना है कि जयपुर लिट फेस्ट में पधारे साहित्य के नए कंज्यूमर इस प्रकार के लोग ही हैं जो जमीन से ऊपर उठ गए हैं.
चौथे रोज के पहले सेशन में (फ्रंट लॉन) रॉबर्तो क्लासो से देवदत्त पटनायक आर्डर : ऑन द वेदाज पर बातचीत कर रहे हैं. थोड़ी देर बाद इस जगह पर रिमेंबरिंग द राज पर शशि थरूर से माइकल डॉयर बात करेंगे. ब्रिटिश साम्राज्यवाद के इतिहास को शशि थरूर बहुत पैनी नजर से देखते हैं. उनकी बातें अकाट्य तर्कों के अभिमान से भरी हैं : ‘‘ईस्ट इंडिया कंपनी आई व्यापार के लिए, लेकिन उसने ‘लूट’ को भारत पर कब्जे के लिए अपनी कार्रवाई का हिस्सा बनाया.’’
इस समय के आस-पास ही दरबार हॉल में इंगेजिंग विद इंडिया : द ‘मार्जिंस’ एंड द ‘मेनलैंड’ नाम का सेशन भी चल रहा है. असमिया संभ्रांत शैली में बहुत गंभीर विमर्श पूरी विश्रांति में घट रहा है, लगता ही नहीं कि भारतीय लोकतंत्र में हाशिए हाहाकार से भरे हुए हैं. ध्रुबा ज्योति बोहरा और संजोय हजारिका के कुछ विचार सुनकर लगने लगता है कि इन बहसों का कोई अंत नहीं. एक घंटे में सारी बातें बस बातें हैं बातों का क्या...
जेएलएफ के वे सभी सेशंस जो अपने शीर्षकों में बहुत सारवान प्रतीत होते हैं, अपने कुल असर में इतने सारहीन हैं कि उनका कोई सार संक्षेप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है. भीड़खेंचू चेहरे माहौल रच सकते हैं, विवेचना नहीं... इसका आभास संवाद में प्रसून जोशी से पुनीता रॉय की बातचीत सुन कर भी होता है.
प्रसून कहते हैं कि जिंदगी में कन्फ्यूज रहना बहुत जरूरी. कन्फ्यूज रह कर ही कहीं पहुंचा जा सकता है.
यहां बगल में खड़े एक हिंदी लेखक से यह पूछने पर क्या आपको जेएलएफ का स्वरूप कन्फ्यूज लगता है? वह कहते हैं कि बिल्कुल नहीं. उसे अपने रास्ते बहुत अच्छे से स्पष्ट हैं.
दो लड़कियां पास से यह कहते हुए गुजर जाती हैं कि यार यह आदमी हर फेस्टिवल में पहुंच जाता है, पका दिया है इसने ज्ञान दे- देकर. प्रसून जारी हैं :
‘‘कविता तो मुझे पाल नहीं सकती थी. इसलिए मैंने ही कविता को पाल लिया.’’
कविता को पालतू बना चुके इस प्रसून को वही बंधा छोड़ कुछ खाने का मन करने लगता है. अस्सी रुपए के दो समोसे खा कर कुछ राहत मिलती है और सारे सेशंस अपने शीर्षकों में बगैर सुने ही बहुत बोरिंग लगने लगते हैं.
बाहर निकलते हुए ‘स्लीपिंग ब्यूटी’ नाम की एक फिल्म याद आ जाती है. इस फिल्म में बूढ़ों की कामोत्तेजना को मंथर करने के मकसद से एक संस्थान ‘स्लीपिंग ब्यूटी चेंबर’ का निमार्ण करता है. इस जॉब के लिए एक अश्लील ऑडिशन के बाद एक कॉलेज गोइंग गर्ल और साथ ही इस फिल्म की नायकहीन नायिका का चयन होता है. यह नायिका निर्वस्त्र होकर बेहोशी की हालत में हर रात अलग-अलग बूढ़ों के विकृत यौन-संपर्क में आती है. ऐसे खतरनाक इरोटिक अनुभव की बेहोश जद से बाहर आने के बाद अकेली छूट गई इस नायिका के साथ ‘कास्ट एंड क्रेडिट’ दिखने लगते हैं, मतलब यह कि फिल्म खत्म हो जाती है.
लेकिन जेएलएफ अभी खत्म नहीं हुआ है...
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