तारीख 7 से 15 जनवरी के बीच नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तकमेले का हाल जानने की दिलचस्पी जैसे आप सबको है, वैसे ही धृतराष्ट्र को भी है. अपनीइस आकांक्षा की पूर्ति के लिए वह संजय के सिवा भला और किसके पास जाते, लिहाजा...धृतराष्ट्र बोले : ‘‘हे संजय (चतुर्वेदी)! प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तकमेले के उद्घाटन के अवसर पर मेरे पुस्तक-विक्रेताओं और मेरे पुस्तक-प्रेमियों नेपुस्तक-संस्कृति के रक्षार्थ क्या-क्या किया?’’ संजय बोले : ‘‘वह बताऊंगा, लेकिनउससे पूर्व मैं अपनी वह कविता सुनाना चाहूंगा जो मैंने आज ही फेसबुक पर पोस्ट की है: हुईं ज्ञान से बड़ी किताबें अर्थतंत्र के पुल के नीचे रखवाली में खड़ी किताबें जंगलकटे किताब बनाई लेकिन चाल खराब बनाई आदम गए अकील आ गए आकर अजब शराब बनाई श्रम कीपूजा करते-करते मजदूरों से लड़ीं किताबें जैसे अपना हक आजादी ज्ञान हमारा हकबुनियादी लेकिन उस तक जाने वाली राह नहीं है सीधी-सादी नीम फरेबी उनवानों कीबद-आमोज गड़बड़ी किताबें ये कैसी तालीम हो गई अच्छी दवा अफीम हो गई जैसे-जैसे बढ़ींकिताबें दुनिया ही तकसीम हो गई जब दो कौमें मिलना चाहीं आपस में लड़ पड़ी किताबेंशब्दों के शौकीन झमेले इस दुनिया के पुस्तक मेले इसके बदले में तू दे दे ख़ुदा हमेंदो दर्जन केले अगर मुदर्रिस ही खोटे हों क्या कर लेंगी सड़ी किताबें नई किताबें नयाआदमी बना सकें तो ठीक बात है नया आदमी अधिक सभ्य हो ये थोड़ी बारीक बात है नईकिताबें मेहनत करके नए रास्तों को पहचानें और उन्हें धनवान बनाएं स्मृतियों में गड़ीकिताबें न हों ज्ञान से बड़ी किताबें’’ धृतराष्ट्र बोले : ‘‘तुम्हारा कविता-संग्रहक्या इस पुस्तक मेले में भी नहीं आएगा संजय?’’ संजय बोले : ‘‘उसकी छोड़िए आचार्य,राजकमल प्रकाशन से इतने कविता-संग्रह इस पुस्तक मेले में आ रहे हैं किकविता-प्रेमियों के कई जन्मों के लिए पर्याप्त ठहरेंगे. नोटबंदी की मार और कविता सेकिसी प्रकाशक का इतना प्यार दुर्लभ है. वैसे राजकमल प्रकाशन समूह सहित कई औरप्रकाशकों ने पुस्तक-प्रेमियों की सहूलियत के लिए मेले में कई जरूरी इंतजाम किएहैं. डेबिट कार्ड से किताबें खरीदनी हों या पेटीएम से, इन्हें सब कुछ नियति औरसेल्फी की तरह स्वीकार्य है. ई-भुगतान में नेटवर्क किसी तरह की कोई बाधा न डालेइसके लिए आईटीपीओ ने बीएसएनएल के साथ मिलकर विशेष इंतजाम किए हैं. आधा दर्जन सेज्यादा एटीएम का इंतजाम है और कई सचल एटीएम भी हैं. 7 से 15 जनवरी के बीच इसकेनतीजे मैं आपको बताता रहूंगा. धृतराष्ट्र बोले : ‘‘इस बार पुस्तक मेले का उद्घाटनकिसने किया और इसके पश्चात क्या-क्या हुआ?’’ संजय बोले : ‘‘मानव संसाधान विकासराज्य मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय ने इस बार इस नौ दिवसीय मेले का उद्घाटन किया.इसके बाद क्या होना था, इसे लोगों के लिए खोल दिया गया. उद्घाटन समारोह में बतौरचीफ गेस्ट ज्ञानपीठ अवार्ड पा चुकीं मशहूर उड़िया लेखक प्रतिभा राय और विशेष मेहमानके तौर पर डेलिगेशन ऑफ द यूरोपियन यूनियन टू इंडिया के एंबेसेडर तोमास कोजलोवस्कीमौजूद रहे. इस मेले के आयोजक और अपना 60वां स्थापना दिवस मना रहे नेशनल बुक ट्रस्टके मुताबिक इस बार मेले की थीम ‘मानुषी’ है. ‘मानुषी’ से आशय स्त्री-केंद्रित लेखनऔर उसकी समृद्ध परंपरा से है जिसका प्रदर्शन इस मेले में किया जाएगा. इस मौके परनेशनल बुक ट्रस्ट की ओर से एक कैलेंडर भी तैयार किया जा रहा है. इस कैलेंडर काविमोचन 10 जनवरी को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर करेंगे. बच्चों सेजुड़ी किताबें इस बार हॉल नंबर 14 में पाई जाएंगी. बाल साहित्य से संबंधितगतिविधियां भी यहीं होंगी. लगभग 20 देशों के लगभग 800 प्रकाशक इस बार इस मेले काहिस्सा बन रहे हैं. पाकिस्तान और भूटान से इस बार कोई आवेदन नहीं आया. यह जरूर हैकि पाकिस्तानी पुस्तकों का एक वितरक मेले में भाग ले रहा है. यहां तक आकर यह बतानेकी जरूरत तो नहीं है फिर भी बताए देते हैं कि मेले में तमाम तरह की किताबें हैं औरनकदरहित भुगतान की भी पूरी व्यवस्था है. छात्रों का प्रवेश नि:शुल्क है, लेकिनउन्हें स्कूल की ड्रेस में आना होगा. मेले के टिकट प्रगति मैदान के अलावा 50 मेट्रोस्टेशनों से भी लिए जा सकते हैं. वयस्कों के लिए 30 रुपए और 12 साल की उम्र से कमके बच्चों के लिए टिकट की कीमत 20 रुपए रखी गई है. धृतराष्ट्र बोले : ‘‘उद्घाटन केबाद हिंदी किताबों वाले हॉल का हाल सुनाओ वत्स?’’ संजय बोले : ‘‘उद्घाटन के बादपुस्तकों के प्रकाशन लिए पाठकों की आशा त्याग देने वाले बहुत से साहित्यकार,साहित्यकारों में उम्मीद खो चुके बहुत से पाठक और इनके बीच खुद को पुल समझने कीगलतफहमी से दूर हिंदी के कई शूरवीर प्रकाशकों ने हॉल नंबर 12 और 12ए से अपने-अपनेशंख बजाए. राजकमल प्रकाशन समूह ने स्टॉल नंबर 303-318 में अपने अलग-अलग उपक्रमों सेक्रमश: ‘अकबर’ और ‘गंदी बात’ जैसे शंख बजाए. वाणी प्रकाशन ने स्टॉल नंबर 277-288 से‘ताकि शब्द गवाही देते रहें’ इस यकीन के साथ ‘पतनशील पत्नियों के नोट्स’ नामक शंखबजाया. इसके पश्चात कई अन्य छोटे-बड़े प्रकाशकों ने भी अपने-अपने शंख, नगाड़े और ढोलबजाए. इससे बड़े भयंकर शब्द उत्पन्न हुए. हे धृतराष्ट्र! इसके बाद इस मेले में सजींबहुत सारी सालजयी किताबों के बीच अज्ञेय की कालजयी किताब ‘शेखर : एक जीवनी’ से निकलकर शेखर वहां प्रगट हुआ. मेले में डटे हुए पुस्तक-पीड़ित और पुस्तक-अभिलाषी समुदायको देख कर उसके अंग शिथिल होने लगे. मुंह सूखने लगा. कंपकंपी और रोमांच-सा भी होनेलगा. उसका एटीएम उसके हाथ से गिर गया. उसकी त्वचा जलने लगी और मन भ्रमित-सा होनेलगा. तभी उसे कृष्ण (कल्पित) दिखे...[ टू बी कंटीन्यूड... ]