अपने 10वें बरस में प्रवेश कर गए जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) का आज सुबह 10बजे के आस-पास शुभारंभ हुआ. माननीय अतिथि औपचारिक दीप-प्रज्ज्वलन करें, इससे पहलेमंच के नजदीक ही आतिशबाजी हुई. आतिशबाजी से पहले शिलांग चेंबर कोयर बैंड ने एकसंगीतमय प्रस्तुति दी. इस प्रस्तुति में पश्चिमी संगीत के साथ-साथ हिंदी फिल्मीगीतों को भी खास जगह दी गई. जहां यह सब हुआ उस मंच को फ्रंट लॉन का नाम दिया गयाहै. फ्रंट लॉन डिग्गी पैलेस में है और डिग्गी पैलेस जयपुर में. लेकिन जयपुर मेंडिग्गी पैलेस कोई बहुत मशहूर जगह नहीं है, यों प्रतीत होता है. जयपुर के आम जन नहींजानते कि उनके शहर में संसार के तथाकथित सबसे बड़े साहित्य उत्सव का आयोजन हो रहा हैऔर जिसे पांच दिन तक जारी रहना है. डिग्गी पैलेस सूचना केंद्र के नजदीक है, यहसूचना देने पर ऑटो वाले कुछ सशंकित-से आपको वहां ले जाने की कोशिश करते हैं, जहांघुसते ही आपको अपनी आंखों के आगे पूरा राजस्थान वैसे ही नजर आता है, जैसे अगर आपकीआंखों के आगे पेठा रख दिया जाए तो आपको पूरा आगरा नजर आ जाएगा. आप चाहे तो आगरे कोखा भी सकते हैं. खैर, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, ईशा फाउंडेशन केसंस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव, गीतकार-फिल्मकार गुलजार और अमेरिकी कवि एन्नेवाल्डमैन इस साहित्य उत्सव के आगाज के मौके पर बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे.राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति और कुख्याति दोनों ही अर्जित कर चुके इसउत्सव में इस बार 176 सेशंस में 250 से ज्यादा लेखक और सेलिब्रेटी हिस्सा लेंगे.आयोजकों के अनुसार इस बार दर्शकों की तादाद गए संस्करण में आए 3,30,000 दर्शकों सेकहीं ज्यादा होगी. इस फसल के फायदे बहुत तत्काल दिखाई देंगे, क्योंकि यह रबी की फसलनहीं है. वसुंधरा राजे ने इस मौके पर कहा कि जेएलएफ की लोकप्रियता काफी तेजी सेबढ़ी है और इसकी नकल में दूसरे उत्सव भी शुरू हुए हैं. इसे उन्होंने गंदी बात कीतरह नहीं एक अच्छी बात की तरह स्वीकार किया. गुलजार ने पूर्वोत्तर में किए जा रहेलेखन को बेहद महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है. यहांरोशनियों और रंगों के त्योहार मनाए जाते रहे हैं, वैसे ही अब किताबों के त्योहार भीमनाए जाने लगे हैं. उन्होंने जेएलएफ के कर्ता-धर्ताओं से भारतीय लेखकों पर खासध्यान देने की अपील भी की. भारतीय भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा कहे जाने पर अपनीआपत्ति जाहिर करते हुए गुलजार ने कहा कि ये सभी राष्ट्रीय भाषाएं हैं और इन्हेंपर्याप्त महत्व दिया जाना चाहिए. इस बार जेएलएफ की थीम ‘द फ्रीडम टू ड्रीमः इंडियाएट 70’ है. देश भर के स्कूलों से आए हुए बच्चों और घूमने-फिरने, खाने-पीने या केवलपीने-पीने के शौकीन लोगों की भीड़ यहां मनोरंजन को अपना मूल धर्म मानते हुएउत्सवधर्मी हुई जा रही है. फ्रंट लॉन के अलावा, चार बाग, मुगल टेंट, बैठक, दरबारहॉल, संवाद... जैसे स्थलों पर भी डिग्गी पैलेस में एक साथ एक ही दिन में एक ही समयपर कई कार्यक्रम चल रहे हैं. सब इतनी जल्दी में, संक्षेप में और भीड़ में हैं कियहां आकर ही पता चलता है कि साहित्य और कुछ नहीं एक धक्का है. हालांकि पॉल बेट्टीसे मेरु गोखले की बातचीत और द लिगेसी ऑफ द लेफ्ट जैसे सेशन बहुत अच्छे गुजरे. पहलेदिन के आखिरी सेशन में फ्रंट लॉन में स्वानंद किरकिरे और मानव कौल से सत्यानंदनिरुपम की बातचीत हिंदी के स्तर की ही रही. सब कुछ कम तैयार लग रहा था जबकि सेशन काशीर्षक ‘कितना कुछ जीवन’ था. स्वानंद के अप्रैल में प्रकाशित होने जा रहेकविता-संग्रह ‘आपकमाई’ का ‘पहला लुक’ जब जारी किया गया, तब मुझे केदारनाथ सिंह केएक कविता-संग्रह का शीर्षक याद आ गया : ‘यहां से देखो.’ स्वानंद ने कहा कि संगीतउनकी बापकमाई है, बाकी जो कुछ भी है वह आपकमाई है. मानव इस अवसर पर बहुत सुलझे हुएनजर आए. वह उतने ही स्पष्ट थे जितने कि स्वानंद उलझे हुए. मानव : मेरा ब्लेसिंग हैकि मैं लिख सकता हूं. स्वानंद : मेरी कविता की कोई जात नहीं. मानव : मुझे विनोदकुमार शुक्ल पसंद हैं. स्वानंद : मुझे गुलजार साहब अच्छे लगते हैं, उनको पढ़ करमैंने साहिर और शैलेंद्र को पढ़ना सीखा. सत्यानंद : संक्षेप में बताइए. स्वानंद :संक्षेप ही तो समस्या है. मानव : विनोद कुमार शुक्ल को भी मर्सिडीज में चलना चाहिए.स्वानंद : उन्हें मानव की तरह लाल रंग की जर्सी भी पहननी चाहिए. सत्यानंद : अब हमेंसवाल ले लेने चाहिए. स्वानंद : तू किसी रेल-सी गुजरती है, मैं किसी पुल-सा थरथराताहूं. मानव : हिंदी मरती है तो उसे मरने दो. स्वानंद : मरती हुई चीजों को बचाया नहींजा सकता.