मर जाना एक बहुत बड़ी त्रासदी है. शायद सबसे बड़ी. तमाम दुख, तकलीफें, खुशियां,असंतुष्टि, नेम, फेम या बदनामी का अस्तित्व तभी तक है, जब तक सांसें चल रही हों. एकबार दम निकला नहीं कि सब कुछ निरर्थक हो जाता है. फिर भी लोग मर जाते हैं.ख़ुशी-ख़ुशी. पूरे होशो-हवास में जान जैसी चीज़ लुटा देते हैं, जिसको वापस पाने का कोईज़रिया नहीं. 14 जून 2020 को मुंबई में एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने अपनी जान लेली. मौत को गले लगाने को तत्पर एक मनुष्य की ज़िंदगी के प्रति वो उदासीनता विचलितकरने वाली थी. उसे देख कर एक ज़हन में बार-बार बज रहा है कि जो लोग मौत को गले लगानेका इरादा कर लेते हैं, उनके अंदर क्या चल रहा होता है!मर जाना एक त्रासदी है. वो अंत है, दुखों का और खुशियों का भी.मेरा एक करीबी मित्र है. इतना अज़ीज़ जैसे अपना ही एक हिस्सा हो. वो भी लगभग छू चुकाथा उस सीमा रेखा को, जिसे अगर क्रॉस कर लिया जाए तो लौटना नामुमकिन है. किसी वजह सेवो उस लकीर को पार करने में नाकामयाब रहा. मुझसे सब कुछ शेयर किया उसने. तब कीमनस्थिति, उपायों के लिए किए गए प्रयास, ज़हन में हर वक़्त चलने वाली बातें, उसके बादकी ज़िंदगी की तरफ देखने का नज़रिया. सब कुछ. उसकी इजाज़त से आपसे शेयर कर रहा हूं.ज़ाहिर है नाम नहीं बताऊंगा. जब इंसान मरने की ठान लेता है, उसके दिमाग में एकपैरेलल यूनिवर्स जन्म ले लेता है. एक और दुनिया! जहां सिर्फ मौत से जुड़ी चीज़ों केविजुअल्स चलते रहते हैं. उसी से जुड़े ख़याल ज़हन पर हावी रहते हैं. कुछ भी कर रहे हो,बैकड्रॉप में एक ही सीन चलता रहता है. मौत का, उसे अंजाम देने वाले संभावित पलोंका. उन संभावित घटनाओं और प्रतिक्रियाओं का, जो उसकी मौत के बाद वजूद में आएंगी.इंसान मौत के अलावा और कुछ सोचता ही नहीं. नीचे कुछ ऐसी बातें हैं जो मौत की राह काराही बनने के ख्वाहिशमंद शख्स के दिमाग में चलती रहती हैं. उसके साथ होती रहती हैं.सुसाइड की चाहत रखने वाले शख्स को एक अलग दुनिया नज़र आती है.1 उसकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में एक अजीब किस्म का थ्रिल घुस आता है. दुनिया को देखनेका नज़रिया ही बदल जाता है. जो कुछ भी आस-पास हो रहा है, वो सब निरर्थक लगने लगताहै. बल्कि हास्यास्पद. 2 मरने वाला आदमी जीने की जद्दोजहद में लगी दुनिया को मूर्खसमझने लगता है. उसे लगता है कि कितने बेवक़ूफ़ हैं ये लोग, जो ज़िंदगी जैसी ‘फ़ालतू’चीज़ के मोह में पड़े हैं. उसे खुद के फैसले पर गर्व होता है कि उसने बेवक़ूफ़ होनाकबूल नहीं किया. बल्कि इस सबमें ठोकर लगाने का जिगरा है उसके पास. 3 जान देने जैसेएक्स्ट्रीम कदम को जस्टिफाई करने के लिए वो तर्क खोजने लगता है. ऐसे शब्द ढूंढताहै, ऐसी दलीलें इजाद करता है जो इस बात पर मुहर लगा सके कि मर जाना ही इकलौता औरबेहतरीन हल था. खुद को यकीन दिला देता है कि यही बेस्ट है उसके लिए. 4 अपने से पहलेख़ुदकुशी कर चुके लोगों के बारे में जानकारियां जुटाता है. उनके फैसले की दुनिया नेजो आलोचना की, उसे रद्द करता है और इस बात में संतुष्टि महसूस करता है कि वो उनकीमन:स्थिति को समझ सकता है.वो सुसाइड को बहादुरी का तमगा देने लगता है.5 लोगों से बहस भी करता है इस बारे में कि कैसे जान देना कायरता नहीं, बहादुरी है.संवेदनशीलता की पराकाष्ठा है. ज़िंदगी जैसी चीज़ को लुटा देने का फैसला करने वालों कोये कह के डिफेंड करने लगता है कि एक ऐसा फैसला लेना जो बदला न जा सके, बहुत हौसलेका काम है. 6 एक बार मरने का तय कर लेने के बाद उपायों की खोज शुरू हो जाती है.ज़हर, फांसी, बिल्डिंग से कूदना, रेल की पटरी जैसे तमाम विकल्पों के बारे मेंसंजीदगी से सोचता है. ज़हन में मौत के सौंदर्यशास्त्र से जुड़ी बातें भी चलती है. वोमरने के बाद बदसूरत नहीं दिखना चाहता. साथ ही ये भी चाहता है कि मौत दर्दरहित हो.जो भी होना है वो बस हो जाए जल्दी से. सिलसिला लंबा न हो. 7 सबसे दिलचस्प हिस्साहोता है उन संभावित प्रतिक्रियाओं के बारे में सोचना, जो उसकी मौत की ख़बर सुन करआएंगी. पहले अपने करीबी दोस्तों के बारे में सोचता है कि फलां दोस्त ये सोचेगा, तोफलां ये कहेगा. जो शब्द वो कहेंगे उन्हें भी खुद ही इमैजिन करने लगता है. हर एक कोअलग-अलग सोच के थ्रिल महसूस करता है कि उसे कितना शॉक लगेगा! 8 सिर्फ दोस्त ही नहींबल्कि रैंडम लोग भी ज़हन में आते हैं. किसी पल अचानक कोई बचपन का सहपाठी याद आता है,जिससे सालों से राब्ता न हो. दिमाग में ख़याल आता है कि उसे देर-सवेर जब ख़बर लगेगी,वो कैसे रिएक्ट करेगा! यही नहीं घर में कूड़ा उठाने आने वाला शख्स, उसका धोबी,उसका परमानेंट रिक्शा वाला, मोहल्ले का पंसारी सब-सब ज़हन में आते हैं. हर एक कोलेकर उनके संभावित रिएक्शन की एक काल्पनिक फिल्म चलती रहती है आंखों के आगे.कई ख्याल एक साथ उसे दबोचे रहते हैं.9 वो अपने आस-पास के लगभग सभी लोगों की प्रतिक्रिया जी लेता है मरने से पहले. शायदइसके पीछे ये एहसास हो कि मरने के बाद उसको पता नहीं चलेगा कि किसने क्या कहा.इसलिए जीते जी ही सोच लिया जाए. 10 एक बड़ा मसला उन जिम्मेदारियों का होता है, जोउसके कंधों पर होती हैं. उनसे मुंह चुराना सबसे विकट काम होता है. उसकी फैमिली,उसकी संतान का उसके बाद क्या होगा, ये ख़याल सबसे ज़्यादा विचलित करता है. ऐसे में वोजबरन ऐसे लोगों को सीन में फिट करता है जो उसकी जगह को भरेंगे. पत्नी के मायकेवाले, अपना बड़ा भाई, पत्नी की दूसरी शादी की कल्पना, कुछ भी. मकसद सिर्फ इतना होताहै कि उस मानसिक छटपटाहट से मुक्ति पा सके, जो कम से कम एक फ्रंट पर उसके बुरी तरहनाकाम हो जाने की भविष्यवाणी कर रही हो. 11 एक और बड़ा बदलाव ये आता है कि आदमी संत,फ़रिश्ता वगैरह-वगैरह हो जाता है. अचानक से लोगों के प्रति नफ़रत, गुस्सा या चिढ़ ख़त्महो जाती है. अपने बड़े से बड़े दुश्मन को भी दिल से माफ़ कर देता है. जिन लोगों को अबतक सख्त नापसंद करता आया है, उनके बारे में अच्छी बातें सोचने लगता है. मरते हुएकिसी नकारात्मकता को जगह नहीं देना चाहता अपने दिल में. 12 दिमाग उन फिल्मों केबारे में भी सोचता है, जो आने वाली हैं और जिन्हें वो देख नहीं पाएगा. इस सूरतेहालपर हंसता भी है कि उन फिल्मों को देखने की उसे कितनी तलब थी. इसी तरह वो तमामसंभावित घटनाएं ज़हन से गुजारता है, जो उसकी मौत की संभावित तारीख़ के बाद वजूद मेंआएंगी और जिनमें उसकी शिरकत नहीं होगी.वो अपने सुसाइड नोट को बड़ा दिलचस्प बनाना चाहता है.13 सबसे बड़ा मसला होता है सुसाइड नोट को आकर्षक बनाने का. वो तरह-तरह के लफ्ज़,वाक्यप्रयोग खोजता है जो उसके दुनिया के साथ अंतिम संवाद को कालजयी बना के रख दें.वो चाहता है कि उसका आखिरी वार्तालाप आकर्षक हो. साथ ही वो अपने फैसले को हर तरह सेजायज़ ठहराकर जाना चाहता है. इसके लिए वो जीवन के निरर्थक होने की ढेर सारी दलीलेंइकट्ठी करता है. वो नहीं चाहता कि कोई उसके पीछे उसे मूर्ख कहे, कायर कहे. इसलिए वोहर तीसरी लाइन में ये बात दोहराता है कि मरना सबसे शानदार हल था तकलीफों से निजातपाने का. इन सबके अलावा भी बहुत कुछ ऐसा चलता रहता है ज़हन में. तमाम बातें शब्दबद्धकरना नामुमकिन है. डर भी लगता है उसे. और फिर उस डर को ओवरटेक करने की संभावना सेबहादुर वाली फीलिंग भी आती है.मेरे उस दोस्त ने उन दिनों – जब उसके ज़हन पर मौत सवार थी – अपनी डायरी के पन्नेकाले किए थे. नीचे लिखा पैराग्राफ उसी डायरी से उठाया गया है. एक भी शब्द नहीं बदलाहै. पढ़िए इसमें उसने कैसे दार्शनिक टच देकर मौत को एक सामान्य घटना साबित करने कीकोशिश की है. आज इस पन्ने को पढ़ कर वो खुद भी दहल जाता है.हर किसी को दिलचस्पी है ये जानने में कि मौत के आगे क्या है.“मौत पर मातम का रिवाज़ बेहद अटपटी चीज़ है. सांसें बंद होने को उतनी ही सहज सामान्यघटना मान लिया जाना चाहिए जितना मोबाइल की बैटरी ख़त्म हो जाना. असुविधाजनक लेकिनपूरी तरह काबिले-क़बूल. मौत को एक अमूर्त, अकल्पित शय का जामा पहना कर हमने उसकेइर्द-गिर्द एक दहशत का आवरण बुन रखा है. जबकि हक़ीक़त में ये हो सकता है कि रूह आज़ादकरा देने वाली ये घटना चैन-ओ-सुकून के नए दरवाज़े खोलती हो! किसे पता!इस कशमकश से निकलना मुश्किल है, नामुमकिन नहीं.जीने का जश्न यकीनन एक खुशनुमा उपलब्धि है, लेकिन हयात की बेड़ियों से अपनी शर्तोंपर आज़ादी पाने का हक़ भी होना चाहिए हर एक को. मौत पर विलाप के पीछे आखिर क्या वजहहो सकती है? आप चाहे हज़ार दुनियावी वजहें गिना दो, मरने वाले से पीछे रह गए लोगोंकी मुहब्बत के दावे पेश करो, लेकिन मेरी निगाह में इसकी एक सिंपल सी एक्सप्लेनेशनहै. हमें मौत की दहलीज़ के उस पार क्या है, ये नहीं पता और ऐसी अनिश्चित राहों परअपने अज़ीज़ को तनहा सफ़र पे भेजते हुए दिल तो लरज़ेगा ही. लेकिन अगर किसी करिश्मे सेये अनिश्चितता ख़त्म हो जाए तो फिर? अगर पता चल जाए कि सांसें थम जाने के बाद बंदाकौन सी राह का राही बना तो फिर? क्या चुनाव आसान नहीं हो जाएगा? और फिर क्या मौत सेलिपटे हुए मनहूसियत के टैग हवा नहीं हो जाएंगे?यूं तो चमत्कारों में मेरा यकीन नहीं लेकिन ऐसे किसी मोज़िज़े का मैं खुले दिल सेस्वागत करूंगा. कभी-कभी दिल करता है ज़िंदगी-मौत के इस खेले को इस ग्रह से बाहर निकलकर तटस्थ निगाहों से देखूं. कहीं किसी बहुत ऊंची जगह से. जहां से ये महसूस हो कि उससीमारेखा पर असल में होता क्या है, जहां शरीर से रूह जुदा हो जाती है. क्या वो वाकईमातम का, अफ़सोस का, विलाप का मुकाम है? या फिर जश्न का मरकज़! मौत से जुड़े हुए तमामडर लांघकर देखना है मुझे. क्या पता कोई आबेहयात उस पार छुपा हो, जिसे हम यहां खोजतेहुए अपनी सांसें फुलाये दे रहे हैं! क्या पता ये ज़िंदगी का तमाम सफ़र ही पॉइंटलेसहो! या कम से कम उस अटेंशन के लायक ना हो, जो इसे सहज ही प्राप्त है! मुझे बेहदउत्सुकता है जानने की.” इसे गौर से पढ़िएगा दोस्तों. ये वो रोजनामचा है, जो आपकोबताएगा कि ज़िंदगी जैसी कीमती चीज़ फेंक देने का इरादा करने से पहले दिमाग किस हद तकआपको कायल करने की कोशिशें करता है. आज मेरा वो दोस्त वो सब याद करता है, तो उस घड़ीको शुक्रिया अदा करता है, जब वो मौत के सम्मोहन से खुद को छुड़ा सका.अब वो उन तमामपलों को याद करता है, जो उसने उस भयानक रात के बाद जिए. और फिर उसे एहसास होताहै कि मर जाना भी उतना ही निरर्थक है, जितनी कभी-कभी ज़िंदगी लगती है.--------------------------------------------------------------------------------एक वीडियो देख लें: