हम सुनते आए हैं कि बहुत समय पहले हल्दीघाटी का युद्ध हुआ था, जिसमें अकबर नेमहाराणा प्रताप को हरा दिया था. लेकिन हाल के कुछ बरसों से नए इतिहास का दावा कियाजा रहा है. इसके मुताबिक, हल्दीघाटी के युद्ध में असल में महाराणा प्रताप ने अकबरको हराया था. राजस्थान के कुछ राजपूत संगठनों ने वहां के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोपत्र भी लिखा है. इसमें मांग की है कि भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन आने वालीराजस्थान की साइट ‘रक्त तलाई’ से वो तख़्तियां हटवाई जाएं, जिनमें लिखा है किहल्दीघाटी में अकबर ने महाराणा प्रताप को हराया था.दरअसल रक्त तलाई, हल्दीघाटी से 4 किमी दूर स्थित जगह है. ऐतिहासिक जगह है. यहां लगेबोर्ड पर लिखा है कि हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना पीछे हटी थी.लेकिन अब सदियों बाद कुछ इतिहासकारों और राजपूत संगठनों का दावा है कि इतिहास कोदोबारा अच्छे से समझने पर उन्होंने पाया कि ऐसा असल में हुआ नहीं था.कुछ समय पहले राजस्थान के इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने एक शोध पत्र जारी किया था.इसके मुताबिक महाराणा प्रताप हल्दीघाटी युद्ध के बाद ज़मीनों के पट्टे जारी करतेरहे. इस हिसाब से हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत हुई थी. क्योंकिअगर वो हारे होते तो लोगों को पट्टे कैसे जारी करते?क्या ये दावे सच हैं? हल्दीघाटी के युद्ध में असल में क्या हुआ था? महाराणा प्रतापया अकबर, कौन भारी पड़ा था? कवि कन्हैया लाल सेठिया ने एक कविता लिखी- 'पाथळ अरपीथळ'. और कर्नल जेम्स टॉड ने किताब लिखी है- ‘Annals and Antiquities ofRajasthan’. आइए इनके आधार पर समझने की कोशिश करते हैं.कहां है हल्दीघाटी?हल्दीघाटी असल में एक दर्रा है. अरावली पर्वत श्रृंखला से गुजरने वाला दर्रा.राजस्थान में उदयपुर से करीब 40 किमी दूर. इस दर्रे की मिट्टी हल्दी की तरह पीलीहै, इसलिए प्रचलित नाम हल्दीघाटी पड़ा. महाराणा प्रताप और अकबर की यहीं पर हुईलड़ाई को हल्दीघाटी की लड़ाई कहा जाता है. लेकिन असल में जो मुख्य लड़ाई थी, वोयहां से 4 किमी दूर रक्त तलाई में हुई थी. इसीलिए रक्त तलाई का काफी ऐतिहासिक महत्वहै.हल्दीघाटी नाम की जगह. संकरा सा रास्ता.कहानी महाराणा प्रताप कीचित्तौड़ का कुम्भलगढ़ किला. यहां कटारगढ़ के बादल महल में विक्रमी संवत 1596 के जेठमहीने की उजली तीज के दिन महाराणा प्रताप का जन्म हुआ. ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाबसे तारीख़ थी 6 मई 1540. महाराणा प्रताप उदय सिंह के सबसे बड़े बेटे थे. उनकी मां कानाम जैवंता बाई था. पहले बेटे के जन्म के बाद ही उदय सिंह, जैवंता बाई से विमुख होगए. वे अपनी सबसे छोटी रानी धीरबाई भटियाणी को सबसे ज्यादा पसंद करते थे. लिहाजाआगे चलकर उन्होंने महाराणा प्रताप के बजाय धीरबाई के बेटे जगमाल सिंह को अपनाउत्तराधिकारी घोषित कर दिया. हालांकि महाराणा प्रताप के कौशल को देखते हुए अधिकतरसिसोदिया सुल्तान उन्हें ही गद्दी के योग्य मानते थे.28 फरवरी 1572 को उदय सिंह का निधन हो गया. उस समय राजवंशों में यह परंपरा थी किराजा का सबसे बड़ा बेटा सुरक्षा कारणों से अपने पिता के अंतिम संस्कार में भाग नहींलेता था. महाराणा प्रताप भी अपने पिता के अंतिम संस्कार में नहीं गए. लेकिन उसअंतिम संस्कार से उदय सिंह का एक और पुत्र नदारद था. धीरबाई का बेटा जगमाल सिंह.ग्वालियर के राम सिंह और महाराणा प्रताप के नाना अखेराज सोनगरा को पता चला कि जगमालमहल में हैं. और उनके अभिषेक की तैयारी चल रही है. दोनों राजमहल पहुंचे, और जगमालको गद्दी से हटा दिया. महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कराया गया.मुगल और मेवाड़इधर दिल्ली में अकबर दिन-ब-दिन शक्तिशाली हो रहा था. मुगलों और मेवाड़ के सिसोदियाराजाओं के बीच यह अदावत तीन पीढ़ी से जारी थी. राणा सांगा को बाबर के हाथों खानवामें हार का सामना करना पड़ा था. महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह को अकबर के हाथोंचित्तौड़ हारना पड़ा था. मेवाड़ के सिसोदिया सरदार जानते थे कि भविष्य में भी अकबर केसाथ युद्ध को टाला नहीं जा सकता था.महाराणा प्रताप के सत्ता संभालने के चार साल बाद आखिरकार दोनों सेनाएं आमने-सामनेआईं. अकबर दिल्ली से चलकर अजमेर आया. उसने महाराणा प्रताप के खिलाफ युद्ध लड़ने केलिए मान सिंह के नेतृत्व में एक बड़ी सेना गोगुंदा की तरफ रवाना की. इस सेना नेराजसमंद के मोलेला में अपना डेरा डाला. दूसरी तरफ महाराणा प्रताप के नेतृत्व मेंमेवाड़ की सेना लोशिंग में डेरा डाले हुए थी. संख्या बल के हिसाब से महाराणा कीस्थिति कमजोर थी. कहा जाता है कि दोनों सेनाओं में 1 और 4 का अनुपात था. मानेमेवाड़ के एक सैनिक पर मुगलों के 4 सैनिक. मुगल सेना की योजना थी गोगुंदा के किलेपर कब्जे की.महाराणा प्रताप अपनी युद्ध परिषद में मुगलों के खिलाफ रणनीति बना रहे थे. मोलेला औरलोशिंग के बीच एक घाटी पड़ती थी, जिसे आज हल्दीघाटी कहा जाता है. युद्ध की शुरुआतीयोजना के अनुसार संख्याबल की कमी से निपटने के लिए यह तय किया गया कि मेवाड़ केसैनिक हल्दी घाटी के दर्रे में युद्ध लड़ेंगे. ताकि संख्या बल के असंतुलन से निपटाजा सके. ये दर्रा इतना संकरा था कि एक साथ दो गाड़ी तक नहीं निकल सकती थीं. यह रामसिंह तंवर की सुझाई हुई युक्ति थी.युद्ध का हालमहाराणा प्रताप की तरफ से उनके हरावल दस्ते का नेतृत्व कर रहे थे अफगान मूल केहाकिम खां सूर. वहीं शाही सेना के हरावल दस्ते की कमान थी सैयद हाशिम के पास. मेवाड़की सेना की बायीं बाजू की कमान झाला बीदा के पास थी. दायीं बाजू की कमान ग्वालियरके राम सिंह तंवर के पास थी. बीच में राणा खुद थे, और अपने घोड़े चेतक पर बैठकरयुद्ध का संचालन कर रहे थे.जिस समय मेवाड़ की सेना का खमनौर में शाही सेना से आमना-सामना हुआ, मेवाड़ की सेनापहाड़ी पर थी. युद्ध शास्त्र का स्थापित नियम कहता है कि अगर आप दुश्मन से ऊंचाई परहो तो आपकी ताकत दस गुना बढ़ जाती है. शुरुआती दौर में यह एडवांटेज मेवाड़ की सेना केपास था. मेवाड़ की सेना का हमला इतना जबरदस्त था कि शाही सेना के पैर उखड़ गए.महाराणा प्रताप ने इस मौके का फायदा उठाने की सोची. उन्होंने अपनी सेना को पहाड़ सेउतरने का आदेश दे दिया ताकि भागती शाही सेना को खदेड़ा जा सके. उनके सहयोगी ग्वालियरके राम सिंह तंवर ने उन्हें समझाया कि वो मैदानी इलाके में शाही सेना का मुकाबलानहीं कर पाएंगे. राम सिंह का अंदेशा सही साबित हुआ.मैदानी इलाके में भिड़ंत होते ही शाही सेना बीस साबित होने लगी. हाथियों से हाथीटकराये. महाराणा प्रताप की सेना के हाथी कमतर साबित हुए. मान सिंह को मारकर युद्धमें वापसी करने की महाराणा प्रताप की आख़िरी कोशिश भी नाकाम रही. हार तय नज़र आनेलगी थी.राणा के मुकुट पर राजसी छतरी लगी हुई थी, जिससे दुश्मन उन्हें आसानी से पहचान लेतेथे. झाला बीदा ने महाराणा से उनकी राजसी छतरी ले ली, और उसे अपने सिर पर पहन लिया.इससे मुग़ल सैनिक महाराणा की बजाए उन्हें निशाना बनाने लगे. महाराणा को जैसे-तैसेसमझाकर जंग के मैदान से निकाला गया. बीदा, उनकी जान बचाते-बचाते हल्दीघाटी मेंवीरगति को प्राप्त हुए. राणा को मैदान छोड़कर जाना पड़ा. उनकी आधी सेना इस जंग मेंमारी गई. सबसे बड़ी बात वो चित्तौड़ को स्वतंत्र नहीं करवा पाए. मेवाड़ का बचा हुआइलाका भी उनके हाथ से फिसल गया. लेकिन यह कहानी का अंत नहीं था. महाराणा प्रतापयहां से अरावली की पहाड़ियों में चले गए. इसी के बाद वो प्रसंग आते हैं, जिनमें कहागया है कि महाराणा ने जंगल में घास की रोटियां खाईं.हल्दीघाटी के युद्ध पर चित्रकार चोखा की 1810 में बनाई पेंटिंग.हल्दीघाटी का परिणामहल्दीघाटी में जीत के बाद मुगल सेना ने गोगुंदा के किले पर कब्जा कर लिया. अब तक यहकिला महाराणा प्रताप का बेस हुआ करता था. लेकिन उन्हें इस पर कब्जा बनाए रखने मेंकाफी मशक्कत करनी पड़ी. महाराणा प्रताप ने इस किले की सप्लाई लाइन काट दी, जिसकी वजहसे वहां मौजूद मुग़ल सैनिक राशन की कमी से भूखे मरने लगे. यहां तक कि अपना पेट भरनेके लिए उन्हें अपने घोड़े मारने पड़े. युद्ध से लौट रही मुग़ल सेना की टुकड़ियों कोअसुरक्षित पाते ही भील उन पर तीर और गोफण से हमला कर देते.‘महाराणा प्रताप : दी इनविंसेबल वॉरियर’ की लेखिका रीमा हूजा बीबीसी को दिएइंटरव्यू में अपने शोध के आधार पर बताती हैं, “ऐसा लगता था कि महाराणा सौ जगह एकसाथ थे, क्योंकि वो गुप्त रास्तों से निकलकर जंगलों में घुस जाते थे.” यह मुग़ल सेनाके खिलाफ छापामार युद्ध की शुरुआत थी. भीलों की सहायता से महाराणा ने मुगल सैनिकोंके मन में खौफ पैदा कर दिया था. इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा लिखते हैं कि राणा केछापामार युद्ध की वजह से मुग़ल सैनिक मेवाड़ में कैद होकर रह गए थे. जैसे ही अकबर काध्यान राजपूताना से हटा, राणा ने अपने खोये हुए इलाकों पर फिर से कब्जा करना शुरूकर दिया. अकबर ने महाराणा को पकड़ने के लिए छह सैनिक अभियान मेवाड़ भेजे, लेकिन किसीको कामयाबी नहीं मिली. हल्दीघाटी के युद्ध के छह साल के भीतर ही राणा ने भामाशाह कीमदद से 40 हज़ार घुड़सवारों की नई सेना खड़ी कर ली. 1582 में महाराणा प्रताप और उनकेबेटे कुंवर अमर सिंह के नेतृत्व में मेवाड़ की सेना ने दीवेर के मुगल थाने पर हमलाबोल दिया. इस हमले में मुगलों को बुरी तरह पराजित होना पड़ा. देखते ही देखतेउन्होंने कुम्भलगढ़, गोगुंदा और उदयपुर पर वापस अपना अधिकार कर लिया.हल्दीघाटी के पास रक्त तलाई में लगा शिलालेख. इस शिलालेख में पहले लिखा था कि'राजपूतों को पीछे हटना पड़ा'. इसी पर विवाद था. कुछ लोगों ने राजपूत शब्द कोखुरचकर हटा दिया (बाएं). और बाद में इसकी जगह मुगल शब्द लिख दिया गया. (दाएं).(फोटो- The Lallantop के लिए नारायण उपाध्याय)तो असल में हल्दीघाटी में जीत हुई किसकी? इस पर हमने बात की झाला बीदा के वंशज औरमेवाड़ के इतिहास पर अध्ययन कर रहे अभिजीत सिंह झाला से. उन्होंने कहा - "देखिएहल्दीघाटी में अकबर की जीत की बात इस आधार पर कही जाती है कि राणा प्रतापयुद्धक्षेत्र से चले गए थे. लेकिन असल में राणा गए नहीं थे, उन्हें भेजा गया थाताकि राजा सुरक्षित रहे. और जब आप इस मोड़ से आगे चलेंगे तो पाएंगे कि ये युद्धयहीं ख़त्म नहीं हुआ था. बल्कि राणा ने इसके बाद असल गुरिल्ला युद्ध शुरू किया औरअपने तमाम क्षेत्र वापस हासिल किए." इसके बाद हमने बात की डॉ चंद्रशेखर शर्मा ने,जिन्होंने हल्दीघाटी को लेकर शोध पत्र प्रस्तुत किया था. उनके इस शोध में प्रताप कोविजयी बताया गया था और इसी शोध के आधार पर ऐतिहासिक तथ्यों में बदलाव की मांग उठीथी. उन्होंने कहा - "हल्दीघाटी के युद्ध में किसकी जीत हुई, ये मैं आपको कुछप्रमाणों के आधार पर समझाता हूं. जब मुगल सेना ने हल्दीघाटी के लिए कूच की थी तोअकबर का सख़्त निर्देश था कि उन्हें महाराणा प्रताप चाहिए, ज़िंदा या मुर्दा. लेकिनमुगल सेना महाराणा को न तो ज़िंदा पकड़ सकी, न मुर्दा. अब आप बताइए जीत किसकी हुई?दूसरा प्रमाण - जब मुगल सेनापति मान सिंह युद्ध के बाद अकबर के दरबार में पहुंचे तोअकबर ने उनकी ड्योढ़ी बंद करने का फरमान जारी कर दिया. ड्योढ़ी बंद करना माने, अबवो व्यक्ति राज दरबार में नहीं आ सकता था. अगर मान सिंह हल्दीघाटी में जीतकर पहुंचेहोते तो अकबर उन्हें इनाम देता. फिर ड्योढ़ी क्यों बंद हुई? अब इस आधार पर बताइए किजीत किसकी हुई." इसके अलावा वो कहते हैं कि हल्दीघाटी युद्ध के बाद तक उस पूरेक्षेत्र में महाराणा प्रताप के नाम पर ही ज़मीन के पट्टे जारी होते रहे. पट्टे उसीके नाम पर जारी होते हैं, जो शासक हो.इसके बाद हमने संस्कृति मंत्रालय के दफ्तर में भी संपर्क किया. वहां से कहा गया किइस संबंध में पुरातत्व विभाग ही कुछ बता पाएगा. पुरातत्व विभाग को भी मेल किया गयाहै. उनका जवाब आते ही वो भी आपको बताएंगे. लेकिन अभी तक जो बातें सामने हैं, उनकेआधार पर युद्ध के पहले पड़ाव में तो मुगल सेना बीस साबित हुई. लेकिन ये ज़रूर है कियुद्ध के बाद के कुछ वर्षों में महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ समेत तमाम क्षेत्रोंपर वापस अधिकार हासिल कर लिया था.