शनिवार, 3 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बीजापुर के टेकलगुड़ा और जोनागुड़ा गांव के करीबसुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में 22 जवान शहीद हो गए. वहीं 31 जवानघायल हैं. शहीद जवानों में CRPF यानी सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स की कोबरा बटालियनके 7 जवान, CRPF की बस्तरिया बटालियन का एक जवान, DRG यानी डिस्ट्रिक्ट रिजर्वगार्ड के 8 जवान और STF यानी स्पेशल टास्क फोर्स के 6 जवान शामिल हैं. वहीं कोबराबटालियन के जवान राकेश्वर सिंह को नक्सलियों ने अगवा कर लिया था. 8 अप्रैल कोनक्लसियों उन्हें छोड़ा.CoBRA यानी Commando Battalion for Resolute Action. जिनका आदर्श वाक्त होता है.“संग्रामें पराक्रमी ज्यी” कोबरा कमांडो भारत की उन 8 स्पेशलाइज्ड फोर्सेज में सेहैं, जिन्हें हर तरह की स्थिति में लड़ने की पूरी ट्रेनिंग दी जाती है. नक्सलियोंसे लड़ाई के लिए इन्हें विशेष ट्रेनिंग मिली होती है. इस स्टोरी में हम जानगें किकोबरा बटालियन क्या है? जो नक्सलियों को जंगल में कड़ी चुनौती देती है. इसमेंरिक्रूटमेंट कैसे होता है? ट्रेनिंग कैसी होती है? ये भी जानेंगे कि इस बटालियन कोजंगल की लड़ाई में सबसे बेहतर क्यों माना जाता है?देश की आजादी से पहले 27 जुलाई 1939 को केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स की स्थापना हुईथी. पहले इसे क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस के रूप में जाना जाता था. 28 दिसंबर,1949 को संसद के एक अधिनियम द्वारा इस बल का नाम केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल दियागया. यह आंतरिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सबसे बड़ा संगठन हैं. सरकारें नक्सल कोआंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानती हैं. इनसे निपटने के लिए ऐसे बल कीजरूरत महसूस की जाने लगी जो जंगल और गुरिल्ला वॉर में माहिर हों. दो से सात दिनोंतक चलने वाले ऑपरेशन में पूरी तरह से सक्षम हो. इसी को ध्यान में रखते हुए 2008 मेंकेंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स ने कोबरा बटालियन का गठन किया.CRPF के महानिदेशक रहे प्रकाश मिश्रा ने लोकसभा टीवी से बातचीत में कहा था, CRPF हरतरह की सुरक्षा देखती है, लेकिन नक्सलियों के खिलाफ अभियान के लिए एक अलग तरह केबटालियन की जरूरत थी. जो जंगल में तीन चार दिन रहकर ऑपरेशन कर सके. इसी को ध्यानमें रखते हुए कोबरा बटालियन का गठन किया गया. कोबरा की 10 बटालियन हैं. नक्सलप्रभावित राज्य छत्तसीगढ़ में कोबरा की दो बटालियन हैं.कैसे बनते हैं कोबरा कमांडो?कोबरा कमांडो बनने के लिए सबसे पहले UPSC यानी UNION PUBLIC SERVICE COMMISSION कीओर से आयोजित होने वाले Central Armed Police Forces का एग्जाम क्रैक करना होता है.एग्जाम में रैंक ऐसी हो कि आपको CRPF यानी सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स मिले. CRPFकी बेसिक ट्रेनिंग कंप्लीट करने के बाद जवान कोबरा कमांडो बनने के लिए अप्लाई करसकते हैं. हालांकि CRPF की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद अगर कोई तुरंत कोबरा कमांडोबनने का फैसला नहीं ले पाता है, तो जनरल ड्यूटी कर सकता है. यहां काम करते हुए भीकोबरा कमांडो बनने के लिए अप्लाई कर सकते हैं.कोबरा कमांडो बनने के लिए कठिन ट्रेनिंग से गुजरना होता है.इसके लिए आपको मेंटली और फिजिकली फिट होना चाहिए. आप के अंदर कोबरा कमांडो बनने काजज्बा हो. आपको टेस्ट देना होगा. आपको साबित करना होगा कि आप कोबरा कमांडो कीट्रेनिंग के लिए फिट हैं.तीन महीने की टफ ट्रेनिंगCRPF के जवान अगर कोबरा कमांडो बनने के लिए सारी बाधाओं को पार कर लेते हैं, तोइसके बाद उनकी 90 दिनों की ट्रेनिंग होती है. यह ट्रेनिंग इतनी टफ होती है किज्यादातर लोग फेल हो जाते हैं. इस दौरान बीमार होने पर भी बाहर कर दिया जाता है.अंतिम सात दिनों की ट्रेनिंग बहुत ज्यादा मुश्किल होती है. ज्यादातर जवान इन सातदिनों में ही बाहर हो जाते हैं. तीन महीने की फिजिकल ट्रेनिंग कोबरा स्कूल ऑफ जंगलवारफेयर एंड स्टैटिक्स में होती है.कोबरा जवान की फाइल फोटोकोबरा कमांडो के बारे में कहा जाता है कि ये कुछ बातों में अमेरिकन मरीन कमांडो सेआगे हैं. इस बटालियन का गठन इसी आधार पर किया गया है जिस आधार पर अमेरिकी कमांडोतैयार किए जाते हैं. कोबरा की ट्रेनिंग से लेकर उनके ऑपरेशन को अंजाम देने केतरीकों तक, बहुत कुछ यूएस मरीन कमांडो से मिलता है. खासतौर पर घने जंगलों मेंनक्सली और आतंकियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए इस विशिष्ट फोर्सको खास तरह की ट्रेनिंग मिली होती है.जंगल में लड़ाई के लिए खास ट्रेनिंगकोबरा बटालियन का गठन जंगल की लड़ाई के लिए ही किया गया है. सबसे पहले उन्हें यहसिखाया जाता है कि जंगल में कैसे सरवाइव करना है. अगर ऑपरेशन के दौरान कोई अवरोध आजाए तो कैसे लक्ष्य तक पहुंचना है. इस बटालियन को इंस्पेक्टर जनरल रैंक का ऑफिसरहेड करता है. कोबरा जवानों को गुरिल्ला वॉरफेयर, फील्ड इंजीनियरिंग, विस्फोटकोंका पता लगाने, जंगल में जान बचाने की टेक्निक समेत उग्रवादियों और नक्सलियों सेलड़ने के लिए भी तैयार किया जाता है. इनके स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग प्रोग्राम मेंजंगल वॉरफेयर, ऑपरेशन की प्लानिंग और उसे पूरा करना, शारीरिक क्षमता, मैप रीडिंग,जीपीएस, इंटेलीजेंस और हेलीकॉप्टर से कूदना शामिल होता है.इन कमांडो को कोंबोफ्लाइंग यानी जमीन के रंग और पत्तियों के अनुरूप ढलकर दुश्मन पर हमला और बचाव करनासीखाया जाता है.पानी, जमीन और पहाड़ तीनों जगह ऑपरेशन करने में माहिर हैं.इन जवानों की इस तरह की ट्रेनिंग मिली होती है कि वह जमीन, पानी, पहाड़ कहीं भीआसानी से ऑपरेशन कर सकते हैं. अपने हथियार और जरूरत के सामान के साथ पानी मेंतैर कर इस पार से उस पार पहुंच पहुंचना इनके लिए कोई मुश्किल का काम नहीं है. दिनहो या रात हर समय ऑपरेशन के लिए तैयार रहते हैं. ट्रेनिंग के दौरान इन जवानों कोरात की परिस्थितियों में ढलने की भी ट्रेनिंग कराई जाती है.इतिहास से लेते हैं सबकइन जवानों को ऑपरेशन के दौरान इतिहास में हुई गलतियों से सबक लेना सीखाया जाता है.रात को नक्सली पेड़ काटकर गिरा देते हैं, जैसे ही कोई हटाने की कोशिश करेगा तो IEDब्लास्ट हो जाता है. डेड बॉडी के अंदर प्रेशर बम लगा देते हैं ताकि इन शवों कोउठाने वाले को भी नुकसान पहुंचा सकें.तीन से चार दिनों तक चलने वाले ऑपरेशन में अगर पानी खत्म हो गया, तो जवान गांव मेंपानी भरने नहीं जाते हैं. क्योंकि नक्सली हैंडपंप और मटके में भी बम फिट कर देतेहैं. इससे जवानों का नुकसान हो जाता है. इसलिए ऑपरेशन के दौरान जवान नदी और नाले सेही पानी भरते हैं. ट्रेनिंग के दौरान उन्हें नक्सलियों के तरीकों से पार पानासीखाया जाता है.एक बार कोबरा कमांडो बनने के बाद हर साल एक महीने की ट्रेनिंग करनी होती है. जबजवान ऑपरेशन नहीं कर रहे होते हैं तो उस दौरान वह ट्रेनिंग करते हैं ताकि खुद को हरऑपरेशन के लिए फिट रख सकें.आम तौर पर कोबरा कमांडो की सर्विस पांच साल की होती है. फिट होने पर सात साल करसकते हैं. कोबरा कमांडो को CRPF के दूसरे जवानों की तुलना में रिस्क अलाउंस मिलताहै. फैमिली रखने की सुविधा मिलती है. कैंटीन की सुविधा मिलती है. सर्विस के बादकोबरा कमांडो अपनी मर्जी की पोस्टिंग ले सकते हैं. वापस CRPF की दूसरी बटालियन मेंजा सकते हैं. नहीं NSG, SPG और NDRF में भी जा सकते हैं. CRPF की कोबरा बटालियन मेंअब महिला कमांडोज को भी शामिल किया जाने लगा है.