पुराने वक़्त में गांवों की जमींदारी प्रथा के बारे में तो आपने सुना ही होगा.ज़मींदारी की एक छोटी सी कहानी से शुरुआत करते हैं. एक गांव में एक बहुत बड़े जमींदारहुआ करते थे. नाम था- हीरा. उनके गांव और आस-पास के लोग उनसे ब्याज पर पैसे लियाकरते थे. हीरा के घर हर महीने एक मोटी रकम बतौर ब्याज आती थी. पड़ोस के गांव में एकऔर जमींदार थे- सेठ लालाराम. ये भी ब्याज से खूब कमाई करते थे. लेकिन दोनों लोगोंमें थोड़ा अंतर था. हीरा ज्यादा पैसे वाले आदमी थे, रसूख भी लालाराम से ज्यादा था.और ये ज़मीन गिरवी रखने से लेकर बाकी तमाम कामों के लिए भी ज़रूरतमंद लोगों को पैसादे देते थे. व्यापार बड़ा था तो पैसा वसूलने में कुछ दिक्कत भी आती थी. जबकि लालारामबहुत सीमित मदों के लिए ही लोगों को पैसा देते थे. और इन्हें वसूली भी करनी अच्छेसे आती थी.एक दिन दोनों ज़मींदार मिले, और बात-बात में बात निकली कि क्यों न मिलकर ब्याज काधंधा किया जाए. इस तरह से धंधे में बरकत तो बढ़ेगी ही, बल्कि ज्यादा लोगों को ब्याजदे पाएंगे. इससे इलाके में रसूख भी बढ़ेगा. आइडिया दोनों लोगों को जंच गया और धंधेकी हिस्सेदारी का एग्रीमेंट हो गया.इस कहानी का हमारी खबर से क्या ताल्लुक?दरअसल खबर को-लेंडिंग (Co-Lending) के कॉन्सेप्ट से जुड़ी है. ‘Co’ किसी भी शब्द केआगे लग जाए तो अर्थ जुड़ जाता है सहभागिता या साहचर्य. और Lending के मायने हैं-उधार देना. दोनों को मिला लें तो को-लेंडिंग का मतलब हुआ 'मिलकर उधार देना'.साहूकारी व्यवस्था अभी भी ग्रामीण इलाकों में चलती है, महंगी ब्याज दरों पर आज भीकई बार गरीब किसान ऋण लेने को विवश होते हैं (प्रतीकात्मक फोटो-आज तक)दरअसल RBI के एक निर्णय के मुताबिक अब बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (NBFC)दोनों मिलकर ज़रूरतमंद लोगों को क़र्ज़ दे सकते हैं. पहले ये काम दोनों अलग-अलग कर रहेथे, लेकिन अब कई बैंक और NBFC मिलकर ऐसा कर रहे हैं. NBFCs. बैंक से किस तरह अलगहैं ये भी समझ लें, साल 1956 के कंपनीज़ एक्ट के तहत रजिस्टर्ड ये कंपनीज़ लोन,स्टॉक, बॉन्ड्स, इंश्योरेंस, चिटफंड वगैरह का व्यापर करती हैं. जबकि बैंक, आप सबजानते ही हैं कि मुख्य रूप से आपके-हमारे पैसे को सुरक्षित रखने और उसके लेन-देनेका काम करती हैं.क्या है को-लेंडिंग मॉडल?खबर के पहले डिस्क्लेमर ये है कि जब भी हम आप से NBFC की बात करें तो इसका मतलबNBFC के साथ HFC (HOUSING FINANCE COMPANY) भी होगा.21 सितंबर 2018 को RBI ने एक नोटिफिकेशन जारी किया. इसमें उसने बैंक और NBFC द्वारा सम्मिलित रूप से प्रायोरिटी सेक्टर के ग्राहकोंको लोन देने के कुछ नियम तय किए थे. लोन का को-ओरिजिनेशन कैसे होगा, लोन मेंहिस्सेदारी क्या होगी, सब कुछ बताया गया था. इस अरेंजमेंट में ये भी बताया गया थाकि बैंक और NBFC मिलकर रिस्क और रिवॉर्ड को शेयर करेंगे.5 नवंबर 2020 को RBI ने एक और नोटिफिकेशन जारी किया. इसमें लिखा था- ‘स्टेकहोल्डर्स से मिले फीडबैक के आधार पर क़र्ज़ देने वालीसंस्थाओं को ज्यादा ऑपरेशनल फ्लेक्सिबिलिटी देने का निर्णय लिया गया है. ताकि बैंकऔर NBFCs अपने सम्मिलित प्रयासों से ज्यादा लाभ कमा सकें. इसके लिए उन्हेंरेगुलेटरी गाइडलाइन्स को फॉलो करना होगा. इस रिवाइज्ड स्कीम (जिसे Co-LendingModel, CLM नाम दिया गया है) का प्रमुख उद्देश्य अर्थव्यवस्था के Unserved औरUnderserved Sector को बैंक और NBFCs के जरिये कम ब्याज पर क्रेडिट दिलाना है.’यहां Unserved और Underserved Sector सेक्टर का मतलब है वो छोटे बिज़नेस जिन्हेंप्रॉफिट कमाने वाले बड़े फाइनेंस आर्गेनाईजेशंस से पूंजी, पैसा और दूसरे संसाधनआसानी से नहीं मिल पाते हैं. कह सकते हैं कि इस मामले में इन्हें इग्नोर किया जाताहै. और इसीलिए ये फंड्स की कमी का सामना करते हैं.रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (प्रतीकात्मक फोटो - gettyimages)बैंक-NBFC का गठजोड़RBI की इस मंजूरी के बाद बैंक और NBFCs मिल-जुलकर लोन देने के इस धंधे में उतर चुकेहैं. कई बैकों और NBFCs ने इसके लिए आपस में एग्रीमेंट कर लिए हैं और कुछ अभीपाइपलाइन में हैं, यानी होने वाले हैं.2 दिसंबर 2021 को देश के सबसे बड़े बैंक SBI ने अडानी कॉरपोरेट हाउस के NFBC अडानीकैपिटल (Adani Capital) के साथ एक डील की है. इस को-लेंडिंग डील के तहत किसानों कोट्रैक्टर्स और खेती के लिए उपयोगी इम्प्लीमेंट्स खरीदने के लिए लोन दिया जाएगा.हालांकि इसमें बड़ा हिस्सा SBI का ही रहेगा. यूं भी करीब 22 हजार ब्रांच और 64 हजारATM के साथ SBI का देश भर में काफ़ी बड़ा नेटवर्क है, जबकि अडानी कैपिटल की वेबसाइटके मुताबिक देश भर में इसकी सिर्फ 60 ब्रांच हैं.इसके पहले भी SBI कई और NBFCs जैसे Vedika Credit, Save Microfinance और PaisaloDigital वगैरह के साथ भी को-लेंडिंग के एग्रीमेंट कर चुका है.भारतीय स्टेट बैंक सबसे बड़ी क़र्ज़ देने वाला बैंक है (फोटो - आज तक)इसी तरह यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया (Union Bank Of India) ने कैप्री ग्लोबल कैपिटललिमिटेड (CGCL) के साथ को-लेंडिंग मॉडल के तहत डील की है. दोनों का उद्देश्य हैMSMEs को 10 लाख से लेकर 1 करोड़ तक के लोन देना. इसके लिए देश के 100 सेंटर्स सेकाम शुरू किया जाएगा. और इसके पहले पंजाब नेशनल बैंक (PNB), बैंक ऑफ़ बड़ौदा (BOB)वगैरह भी को-लेंडिंग एग्रीमेंट कर चुके हैं.बड़े कॉरपोरेट्स की बैंकिंग सेक्टर में एंट्रीहालांकि आरबीआई ने आधिकारिक तौर पर बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र मेंआने की परमीशन नहीं दी है, लेकिन ज्यादातर NBFCs कॉरपोरेट घरानों द्वारा ही शुरूकिए गए हैं. और इनके पास पब्लिक का पैसा भी ठीक-ठाक जमा है. ऐसे में ये कॉरपोरेटहाउस को-लेंडिंग कॉन्सेप्ट के तहत ज्यादा ज़रूरतमंदों को अधिक पैसा दे सकते हैं.एक और बात ध्यान में रखने वाली ये है कि को-लेंडिंग कॉन्सेप्ट पर RBI का फैसला ऐसेवक़्त पर आया है जब चार बड़ी फाइनेंस कंपनीज़- IL&FS, DHFL, SREI और रिलायंस कैपिटलपिछले तीन सालों में कोलैप्स कर चुकी हैं. इन सभी पर इन्वेस्टर्स का ढेर सारा पैसाबकाया है. करीब 1 लाख करोड़ रुपए. वो भी RBI की सख्त मॉनिटरिंग के बावजूद.कई बैंकर्स का भी कहना है कि बैंकों की पहुंच NBFCs की तुलना में कहीं ज्यादा है.और बैंक पहले से ऐसे सेक्टर्स में फाइनेंशियल सर्विसेज़ दे रहे हैं जहां फंड्स कीज़रूरत है. और इसी के चलते बैंकों और NBFCs की साझा क़र्ज़ देनवाली इस जुगलबंदी मेंकुछ खामियां और खतरे भी हैं. वो भी समझेंगे लेकिन पहले ये जान लें कि किन कारणों सेबैंक NFBCs के साथ इस मॉडल को शुरू कर रही हैं.NBFC क्यों ज़रूरी?NBFCs के साथ मिलकर को-लेंडिंग कॉन्सेप्ट के तहत ग्राहकों को लोन देने के पीछे बैंककी क्या सोच है, ये जानने के लिए हमने SBI द्वारा जारी एक पेपर पढ़ा. 11 पेज का येदस्तावेज़ Policy for Co-Lending by BANK and NFBCs के टाइटल के साथ इंटरनेट परउपलब्ध है. इसमें SBI की तरफ़ से कुछ कारण बताए गए कि वो NBFCs के साथ मिलकर ये कारोबार क्योंशुरू कर रहे हैं. संक्षिप्त में जान लेते हैं.# NBFCs की पहुंच ज्यादा है जिससे बैंक को अपना लोन पोर्टफोलियो बढ़ाने में मददमिलेगी. # NBFCs, बैंक के साथ मास्टर एग्रीमेंट के तहत कृषि और छोटे और मध्यम इंटरप्राइजेज़(SME) जैसे सभी सेगमेंट में लोन दे सकेंगे. # NBFCs पुराने लोन्स के फॉलो-अप और रिकवरी में भी मदद करेंगे, जिससे बैंक कीऑपरेटिंग कॉस्ट भी कम रहेगी और ग्रामीण क्षेत्रों की ब्रांचों का पर दबाव कम होगा. # प्रायः NBFCs में NPA (Non Performing Assets) डेटा कम है जबकि बैंकों ने NPAखातों की समस्या से ज्यादा संघर्ष किया है.# को-लेंडिंग मॉडल से बैंकों के लिए प्रायोरिटी सेक्टर में लोन देना सुविधाजनक औरआसान होगा. को-लेंडिंग के खतरे-बड़े बैंकों और NBFCs के इस टाई-अप की कई ज़रूरी बिन्दुओं के आधार पर आलोचना हो रहीहै. दरअसल CLM के तहत दिए जाने वाले लोन में 20 फ़ीसद हिस्सा NBFCs का रहेगा और लोनका बाकी यानी 80 फ़ीसद हिस्सा बैंक देगा. इसका मतलब हुआ कि लोन डिफ़ॉल्ट होने कीस्थिति में 80 फ़ीसद रिस्क बैंक का रहेगा. अब इस मास्टर एग्रीमेंट में बैंकों के लिएदिक्कत ये है कि या तो वे NBFCs द्वारा दिए जा रहे हर लोन में अपना हिस्सा अनिवार्यरूप से अलग से अपने खातों में रखें या फिर अपने विवेक से कुछ लोन्स को रिजेक्ट हीकर दें.इसके अलावा एक बड़ी दिक्कत ये है कि भले ही लोन का बड़ा हिस्सा बैंक दे रहे हैं,लेकिन RBI की गाइडलाइन्स के मुताबिक लोन लेने वाले ग्राहकों के लिए पॉइंट ऑफ़इंटरफेस NBFCs ही रहेंगे. माने कस्टमर के लिए लोन अप्रूव करना, लोन एग्रीमेंट करना,किसी थर्ड पार्टी KYC करवाना, अकाउंट खोलना और बाकी कागजी कार्रवाई करना. ये साराकाम इन्हीं का रहेगा. और ऐसा करना को-लेंडिंग मॉडल में बैंक और NBFCs की अपनी-अपनीभूमिका और जिम्मेदारियों में अव्यवस्था पैदा करने जैसा होगा.बैंक और NBFCS का क्या कहना है?इस बारे में हमने को-लेंडिंग मॉडल के तहत बैंकों के साथ मिलकर व्यापार शुरू करने जारहे नए NBFCs से संपर्क किया. अडानी कैपिटल को हमने ईमेल के माध्यम से कुछ सवालभेजे हैं. खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं मिला. इसके अलावा अडानी कैपिटल की तरफ़ सेWhatsapp पर SBI की पॉलिसी का वही दस्तावेज भेजा गया जिसका ज़िक्र हम खबर की शुरुआतमें ही कर चुके हैं. इसी तरह CGCL की तरफ़ से भी खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहींआया.हमने जब SBI के मुंबई स्थित हेड ऑफिस के उच्चाधिकारियों से बात करने की कोशिश की तोSBI की वेबसाइट पर दिए किसी भी नंबर से संपर्क नहीं हो सका. इसके बाद हमने SBI केलखनऊ रीजन के रीजनल मैनेजर S.K. जायसवाल से बात की. उनसे SBI के रिस्क फैक्टर केबारे में सवाल पूछा, ये भी पूछा कि इंटरेस्ट रेट क्या रहेगा, उन्होंने जवाब दिया,'मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, अभी तक मेरे पास डिटेल नहीं आई है, मैंनेसिर्फ अखबारों में इसके बारे में पढ़ा है. मुंबई लेवल पर टाई-अप हुआ है आप उनसे याNBFCs से बात कर लें.'एक्सपर्ट क्या कह रहे हैंहमने भारती विद्यापीठ इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड रिसर्च की डायरेक्टर यामिनीअग्रवाल से बात की, उन्होंने कहा, 'CLM में लोन किस इंटरेस्ट रेट पर दिया जाएगा,कितने समय के लिए दिया जाएगा जैसे सारे अंतिम निर्णय वही करता है जिसकी हिस्सेदारीज्यादा है. लोन की शुरुआती प्रोसेसिंग कोई भी करे, लेकिन चूंकि SBI का स्टेक ज्यादाहै तो हर दिए जाने वाले लोन का काउंटर-चेक SBI ही करेगा. KYC के लिए भले ही NBFCsजिम्मेदार हों, लोन एप्रूवल भी भले वही करें, लेकिन आखिरी कंट्रोल SBI का हीरहेगा.' इंटरेस्ट रेट्स कैसे तय होंगें, इस पर यामिनी कहती हैं, 'ऐसे बड़ेप्रोजेक्ट्स के लिए जो कंसोर्टियम या ग्रुप बनता है वही निर्णय लेता है. कई बार लोनके अलग-अलग सेगमेंट में लोन की दरें अलग-अलग हो सकती हैं. चूंकि इस मॉडल में पब्लिकका पैसा सम्मिलित है, ऐसे में इस तरह के प्रोजेक्ट्स CAG और RBI के लिए जवाबदेहहोते हैं, इसलिए इंटरेस्ट रेट्स जो भी हों, उनका निर्धारण गाइडलाइन्स के मुताबिक हीहोगा.'SBI और अडानी कैपिटल मिलकर कृषि क्षेत्र में लोन देंगे (फोटो सोर्स -आज तक)SBI और अडानी कैपिटल- को-लेंडिंग मॉडल में आने वाली संभावित दिक्कतों की बहस से अलग SBI और अडानी कैपिटलइसे लेकर उत्साहित हैं. अडानी कैपिटल के साथ टाई-अप की घोषणा करते हुए SBI चेयरमैनने कहा, ये पार्टनरशिप SBI का कस्टमर बेस बढ़ाने, अंडरसर्व्ड फार्मिंग सेगमेंट सेजुड़ने और देश की फार्मिंग इकॉनमी की वृद्धि में योगदान देने के लिए की जा रही है.हम दूसरी NBFCs के साथ भी काम करेंगे ताकि दूर-दराज के इलाकों में बैंकिंगसर्विस दी जा सके और ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों तक अपनी पहुंच बनाई जा सके. अडानीकैपिटल के MD और CEO गौरव गुप्ता ने भी कहा कि कंपनी का उद्देश्य माइक्रोऑन्त्रप्रेन्योर्स को क्रेडिट उपलब्ध कराना है. उन्होंने कहा कि SBI के साथ मिलकरहम कृषि क्षेत्र में उत्पादकता और इनकम बढ़ाने में अपनी भूमिका अदा करेंगे.तमाम दावों और आशंकाओं के बाद अब देखने वाली बात ये होगी कि आने वाले वक़्त मेंकिसानों की आय कितनी बढ़ती है, छोटे उद्योगों के लिए लोन लेना कितना आसान होगा औरफंड्स की कमी की दिक्कतें कितनी कम होती हैं.