चीन की गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए बड़ी मीटिंग शुरु
शी जिनपिंग ने मीटिंग बुलाई है. इसमें चीन की गिरती अर्थवव्स्था पर चर्चा होगी. इस मीटिंग को ‘थर्ड प्लेनम’ नाम से जाना जाता है.
चीन की आर्थिक तरक्की धीमी पड़ रही है. बूढों की संख्या बढ़ने से उपभोक्ता कम हुए हैं. जितना सामान चीन पैदा कर रहा है उतना इस्तेमाल करने वाले लोग नहीं है. प्रॉपर्टी सेक्टर का भी बुरा हाल है. बड़ी बड़ी बिल्डिंग बनकर तैयार हैं लेकिन उनमें रहने के लिए लोग नहीं है. हाल ये कि लोग अपनी प्रॉपर्टी घाटे में बेच रहे हैं. इन सब बातों का असर देश की GDP पर भी पड़ रहा है. 15 जुलाई को चीनी सरकार ने दूसरी तिमाही के आंकड़े जारी किए. इसमें विकास दर 4.7 फीसदी रही. ये उम्मीद से काफी कम थी. दरअसल पहली तिमाही में ये दर 5.3 फीसदी थी. उम्मीद थी कि इस तिमाही में ये दर ज़्यादा होगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसी चिंता के बीच शी जिनपिंग ने मीटिंग बुलाई है. इसमें चीन की गिरती अर्थवव्स्था पर चर्चा होगी. इस मीटिंग को ‘थर्ड प्लेनम’ नाम से जाना जाता है. इसमें देश की आर्थिक नीतियों पर चर्चा की जाती है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या अमेरिका को पछाड़ने का ख़्वाब देखने वाले चीन की अर्थव्यवस्था का हाल जापान जैसा हो जाएगा?
- थर्ड प्लेनम मीटिंग क्या है? इस बार इसमें क्या चर्चा होगी?
- चीन की अर्थव्यवस्था क्यों पिछड़ रही है?
- और चीन इस संकट से निपटने के लिए क्या कर रहा है?
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है अमेरिका. दूसरे नंबर पर चीन है. पर चीन दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थवव्स्था बना कैसे? सबसे पहले ये जान लीजिए. 1830 और 40 का दशक चीन के सबसे बुरे दौर में गिना जाता है. इस दौर में चीन की आर्थिक हालत खस्ता थी. इसी समय ब्रिटेन ने देश में अफ़ीम की सप्लाई शुरू की तो पूरा देश नशे का आदि हो गया. चीन ने इसे रोकने के लिए अंग्रेजों से युद्ध किया. बाद में फ्रांस भी इसमें शामिल हुआ. इस युद्ध को इतिहास में अफीम की जंग के नाम से जाना जाता है. अंग्रेज़ी में ये टर्म ओपियम वॉर नाम से ज़्यादा प्रचलित है. जंग खत्म हुई तो देश में सिविल वॉर छिड़ गया. इस युद्ध में 2-3 करोड़ लोग मारे गए. इस गृह युद्ध ने चीन की अर्थव्यवस्था को खत्म कर दिया.1949 में जापान से लड़ाई हुई. चीन ने कोरिया से अपना प्रभाव खो दिया. ताइवान पर भी जापान का कब्ज़ा हुआ. 1920 के अंत में चियांग काई-शेक के नेतृत्व में कुओमिन्तांग ने देश का एकीकरण किया. राजधानी बनिया नानजिंग. 1937 से 1945 तक जापान और चीन के बीच दूसरी बड़ी जंग हुई. इन सभी युद्धों ने कभी भी चीन की अर्थव्यवस्था को पनपने नहीं दिया
फिर आया 1949 का साल. अक्टूबर में चीन में माओ ज़ेदोंग की क्रांति सफ़ल हो गई. माओ ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (PRC) की स्थापना की. ये कदम चीन की आर्थिक तरक्की के लिए सिर्फ़ नींव का काम किया. तुरंत कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आया. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं?माओ ने क्रांति के बाद चीन की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के औद्योगीकरण की कोशिश की. पर वो कामयाब नहीं हो पाए. फिर 1959-1961 के बीच चीन में अकाल पड़ा. इसने 10-40 लाख लोगों की जानें ले ली.
1960 की 'सांस्कृतिक क्रांति' भी अर्थव्यवस्था की राह में रोड़े डालने वाला साबित हुआ. ये एक सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन था और इसका मक़सद था कम्युनिस्ट पार्टी को उसके प्रतिद्वंद्वियों से छुटकारा दिलाना मगर इसका अंत चीन के सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करके हुआ.1976 में माओ की मृत्यु के बाद चीन में सुधारों की ज़िम्मेदारी डेंग ज़ियाओपिंग ने उठाई. यहीं से चीन की आर्थिक तरक्की शुरू हुई.
ज़ियाओपिंग ने चीनी अर्थव्यवस्था को नया आकार देना शुरू किया. किसानों को अपनी ज़मीन पर खेती करने का अधिकार दिया गया. इससे उनके जीवन स्तर में सुधार आया और खाने की कमी की समस्या भी दूर हो गई.
चीन और अमरीका ने 1979 में अपने कूटनीतिक सम्बन्धों को दोबारा स्थापित किया और विदेशी निवेश के दरवाज़े खोल दिए गए. चूंकि उस वक़्त चीन में मज़दूर, मानव संसाधन और किराया बहुत सस्ता था, निवेशकों ने धड़ाधड़ पैसे डालने शुरू किए.साल 1978 में चीन का निर्यात सिर्फ़ 80 हज़ार करोड़ रुपए था. 1985 में ये लगभग 3 लाख करोड़ रुपए हुए. और अगले दो दशकों के भीतर ये लगभग 360 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया. इसी के साथ चीन व्यापार करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया.
1990 तक चीन की आर्थिक विकास दर तेज़ी से बढ़ने लगी और साल 2001 में वो विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया. इससे चीन के लिए व्यापार शुल्क कम हो गए. उसने तकनीक के क्षेत्र में भी तरक्की की. माइक्रोचिप्स की बड़े पैमाने में प्रोड्कशन किया. सस्ते दामों में स्मार्ट डिवाइज़ बनाए. नतीजा, देखते ही देखते चीनी सामान दुनिया के कोने-कोने में पहुंच गया. 2013 में चीन बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव लेकर आया. जिसके तहत वो पुल और सड़क बनाने के लिए दूसरे देशों को कर्ज़े दे रहा है. इस आर्थिक विकास का क्या हासिल रहा?
- दुनिया के साथ व्यापार बढ़ा तो संबंध भी सुधरे.
- विश्व बैंक के मुताबिक चीन में 85 करोड़ से ज़्यादा लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाला जा चुका है.
- चीन में ग़रीबी कम हुई तो लोग शिक्षित हुए. एक अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक चीन में 27% काम करने वाले लोग यूनिवर्सिटी स्तर की शिक्षा वाले होंगे.
ये तो हुई चीन की आर्थिक तरक्की की कहानी. पर चीनी अर्थव्यवस्था का डाउनफॉल क्यों हो रहा है? ये भी समझ लीजिए. सबसे पहले एक ओवरव्यू
ये ग्राफ़ देखिए. इसमें साफ़ दिख रहा है कि पिछले एक दशक में चीन की अर्थव्यवस्था नीचे गई है. कभी दहाई में रहने वाला ये आंकड़ा 5-6 फीसद में सिमटकर रह गया है. ऐसा क्यों हुई? इसकी 5 बड़ी वजह हैं.
चीन में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) नीचे हुई है. किसी सामान या सर्विस के लिए एक आम आदमी को जो पैसे देने पड़ते हैं, CPI उसी का ब्योरा देने वाला इंडेक्स है. इसी तरह एक और इंडेक्स होता है प्रोडक्शन प्राइस इंडेक्स (PPI), जो फैक्ट्री से निकलते समय सामानों के दाम यानी फैक्ट्री रेट का ब्योरा देता है. चीन में CPI के साथ PPI इंडेक्स भी अनुमान से नीचे पहुंच गया है. कंपनियां आमतौर पर फायदा जोड़कर फैक्ट्री वाला रेट तय करती हैं. इसी से उनका मुनाफा तय होता है. इसलिए, PPI घटने का मतलब है कि कंपनियों का भी फायदा घट रहा है. ये भी कह सकते हैं कि देश में कारोबारी गतिविधियां घट रही हैं.
ये सेक्टर चीन की अर्थव्यवस्था में लगभग 25 फीसदी का योगदान देता है. लेकिन पिछले 5-7 सालों में इस सेक्टर का हाल बुरा है. हुआ ये कि जब 1980 में चीन आर्थिक सुधार शुरू हुए तो रोज़गार के नए अवसर पैदा हुए. लोग शहर की तरफ भागे. शहर में लोगों की संख्या बढ़ी तो रहने के लिए बिल्डिंग बनाई गईं. ये काम खूब फल फूला. लेकिन इसमें कोई लगाम नहीं लगी. फिर आया साल 2020. चीन के वुहान से कोरोना महामारी की शुरुआत हुई. इसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लिया. पूरी दुनिया में लॉकडाउन लगा. अर्थव्यवस्था ठप पड़ गई. जिस समय पूरी दुनिया ये मार सह रही थी, उस समय चीन के रियल स्टेट सेक्टर में लगभग 9 हज़ार लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ. इसके बाद चीनी अधिकारियों ने रियल स्टेट सेक्टर को मिली आज़ादी कम करना शुरू कर दी. नतीजा ये हुआ कि बड़ी बड़ी रियल स्टेट कंपनियां घाटे में चली गईं. चीन में इस समय रहने के लिए घर तो हैं लेकिन रहने के लिए लोग नहीं हैं. ये हाल एक नहीं कई शहरों का है. इनमें इतने ज्यादा खाली फ्लैट्स हैं कि ये शहर ‘घोस्ट टाउन’ यानी 'भूतहा नगरी' के नाम से दुनिया भर में मशहूर हो रहे हैं.
किसी देश के आयात-निर्यात के आकड़े सीधे-सीधे अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा को बताते हैं. चीन का निर्यात-आयात कुछ महीनों से लगातार घट ही रहा है. 2023 में चीन के निर्यात में सालाना आधार पर 14.5 फीसदी कमी आई. फरवरी 2020 यानी महामारी शुरू होने से यह सबसे बड़ी गिरावट थी.
चीन ने कोविड में लॉक डाउन लगाया. इसकी वजह से कई बड़े छोटे धंधे बंद हुए. शंघाई से कई बड़ी कंपनियां अलविदा कह गईं. कंपनियां बंद होने की वजह से रोजगार घट रहे हैं. इसलिए वहां बेरोजगारी भी रिकॉर्ड स्तरों पर पहुंच रही है. एशियन डेवलपमेंट बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में 10 में से 6 लोगों के पास ही नौकरी है. बाकी लोग बेरोजगार बैठे हुए हैं. सरकारी आकड़ों के मुताबिक 16 से 24 साल के बेरोजगारों की संख्या 21.3% बढ़कर 1 करोड़ 20 लाख पर पहुंच गई है.
चीन में जन्म-दर रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है. इसका असर ये हुआ है कि बुजुर्ग आबादी बढ़ती जा रही है. नए मानव संसाधनों की संख्या में कमी आई है. इससे सोशल सिक्योरिटी और हेल्थकेयर जैसी सुविधाओं पर भार बढ़ा है. सरकार को उसमें ज़्यादा निवेश करना होगा. इसके बरक्स वाले समय में इंडस्ट्रीज़ में काम करने वाले घट जाएंगे. इसका असर आउटपुट पर और फिर चीन की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. चीन में ये चिंता लंबे समय से जताई जा रही है. इसी वजह से 2016 में सरकार ने वन-चाइल्ड पॉलिसी को खत्म कर दिया था. हालांकि, इसका बहुत फायदा देखने को नहीं मिल रहा है.
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