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ड्राई आइस खाने से गई मासूम की जान, आखिर ये वाली 'बर्फ' खाने से शरीर में होता क्या है?

हाल ही में खबर आई कि शादी में एक बच्चे ने बर्फ समझकर ड्राई आइस (Dry Ice) खा ली, जिसकी वजह से मासूम की जान चली गई. सवाल ये कि ड्राई आइस खाने की वजह से होता क्या है? और ये बर्फ से कैसे अलग है?

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-78.5°C तापमान होने के चलते Dry Ice इस्तेमाल चीजों को ठंडा रखने के लिए भी किया जाता है. (Image: Wikimedia commons)
1 मई 2024 (Updated: 1 मई 2024, 15:27 IST)
Updated: 1 मई 2024 15:27 IST
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खबर है, छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में एक शादी हो रही थी. दूल्हा-दुल्हन की एंट्री के लिए फॉग यानी धुआं निकाला जा रहा था. ताकि फोटो और वीडियो शूट किया जा सके. फॉग बनाने के लिए मटकों में ड्राई आइस रखी गई थी. शूट खत्म होने के बाद ड्राई आइस को खुले में फेंक दिया गया. जिसे 3 साल के मासूम बच्चे ने बर्फ समझकर खा लिया. जिसके बाद उसकी हालत गंभीर हुई और उसकी जान चली गई.

कुछ दिन पहले ही गुरुग्राम से भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था. जिसमें एक रेस्टोरेंट में कुछ लोगों को माउथ फ्रेशनर की जगह ड्राई आइस दे दी गई थी. जिसके बाद पांच लोगों को खून की उल्टी हुई, कुछ की हालत भी गंभीर बताई गई. पर सवाल ये है कि ड्राई आइस यानी जमी हुई कार्बन डाई ऑक्साइड खाने से होता क्या है (What happens when you eat dry ice)?

जमी हुई कार्बन डाई ऑक्साइड है ‘ड्राई आइस’

हम सब जानते हैं कि पानी कमरे के तापमान पर द्रव्य या लिक्विड होता है. पानी का तापमान जब 0 डिग्री सेल्सियस के नीचे जाता है, तब वो जमने लगता है. वहीं बात करें कार्बन डाई ऑक्साइड या CO₂ की तो ये कमरे के तापमान पर गैस की तरह होती है. लेकिन जब इसी गैस का तापमान 0°C से -78.5°C नीचे किया जाता है, तो ये जमकर ठोस हो जाती है.

ये ठोस CO₂ देखने में बर्फ जैसी लगती है, जिसमें कोई गंध, रंग या स्वाद नहीं होता है. देखने में ये किसी धुंधले कांच जैसी लगती है. जिससे सामान्य तापमान पर धुआं निकलता रहता है.

आखिर किस काम आती है ये?

बर्फ का तापमान जब बढ़ता है, तो पहले वो लिक्विड यानी पानी में बदलती है और फिर गैस यानी भाप में बदल जाती है. वहीं ड्राई आइस जब सामान्य तापमान में रखी जाती है, तो वो लिक्विड में न बदलकर, सीधा CO₂ गैस में बदलती है. इसे साइंस की भाषा में सब्लिमेशन या ऊर्ध्वपातन कहते हैं.

जैसे कपूर वगैरह गरम करने पर पिघलते नहीं हैं, सीधा गैस में बदल जाते हैं. खैर जब ड्राई आइस (Dry Ice) गैस में बदलती है, तो इससे सफेद धुआं भी निकलता है. जिसका इस्तेमाल नकली फॉग बनाने के लिए किया जाता है.

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वहीं -78.5°C तापमान होने के चलते इसका इस्तेमाल चीजों को ठंडा रखने के लिए भी किया जाता है. इसी सब के चलते ये शादियों और रेस्टोरेंट्स में देखी जा सकती है. लेकिन भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) इसे लीथल सबस्टेंस (घातक) की कैटेगरी में रखता है. 

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ड्राई आइस से हो सकता है ‘फ्रॉस्टबाइट’

जब शरीर की त्वचा किसी बेहद ठंडी चीज जैसे कि ड्राई आइस के संपर्क में आती है, तो इससे त्वचा का हिस्सा खराब हो सकता है. अगर ऐसा लंबे समय तक हो, तो गंभीर मामलों में उस जगह के टिशू मर सकते हैं, जिसे मेडिकल साइंस की भाषा में नेकरोसिस कहते हैं. इसे ही फ्रॉस्टबाइट (Frostbite) या शीतदंश भी कहा जाता है. इसमें जलने जैसे लक्षण हो सकते हैं, जैसे छाले पड़ना, सूजन और दर्द या फिर उस जगह का सुन्न पड़ जाना. गंभीर मामलों में वो हिस्सा खराब भी हो सकता है. 

दरअसल हमारी त्वचा और टिशू एक सामान्य तापमान बनाए रखते हैं. जो करीब 37°C होता है. इसी तापमान पर खून की नन्हीं धमनियां जरूरी तत्व कोशिकाओं तक पहुंचाती हैं. ये तापमान कोशिकाओं के कामकाज के लिए जरूरी है. इसी तापमान पर कई एंजाइम शरीर के जरूरी कामों को अंजाम देते हैं. वहीं करीब 40°C पर ये एंजाइम काम करना बंद कर देते हैं. इसके इतर ठंडे तापमान में ये डिनेचर हो जाते हैं या इनकी संरचना बदल जाती है.

दूसरी तरफ ज्यादा ठंडे तापमान की वजह से कोशिकाओं के भीतर बर्फ के क्रिस्टल बन सकते हैं. जिसकी वजह से कोशिका और टिशू खराब हो सकते हैं. बस यही वजह है कि ड्राई आइस इंसानी शरीर के लिए खतरे की वजह बन सकती है.

ड्राई आइस खाने पर क्या होता है?

एक बात तो हम समझ गए कि किसी अंग के बेहद ठंडी चीज के संपर्क में आने पर वहां के टिशू मर सकते हैं. इस पर सीके बिरला हॉस्पिटल, गुरुग्राम के इंटरनल मेडिसिन लीड कंसल्टेंट डॉ तुषार तायल ने हमें बताया कि ड्राई आइस की वजह से जलने जैसा असर होता है. जिसकी वजह से अंदरूनी अंगों को गंभीर चोट पहुंच सकती है.

ड्राई आइस खाने पर मुंह, इसोफेगस (खाने की नली) या पेट के टिशू भी मर सकते हैं. अगर आसान भाषा में बोलें तो खाने वाले का पेट अंदरूनी तौर पर बुरी तरह ज़ख्मी हो जाता है. जो कई बार जानलेवा भी हो सकती है.

लेकिन सिर्फ यही एक खतरा नहीं है. जैसा कि हमने आपको बताया कि ड्राई आइस सीधे गैस में बदलती है. इसलिए जब ड्राई आइस पेट में पहुंचकर गैस में बदलती है तो वो फैलती है. जिससे पेट में प्रेशर बनता है. अगर ये प्रेशर ज्यादा हुआ तो स्टमक या पेट फट भी सकता है. जिसकी वजह से जान भी जा सकती है. ठीक उसी तरह जैसे किसी गुब्बारे में जरूरत से ज्यादा हवा भर जाने से वो फट जाता है.

इसके अलावा जैसा कि हम जानते हैं कि ड्राई आइस की वजह से हवा में C02 बढ़ जाती है. इसलिए इसके धुंए की वजह से उल्टी और दम घुटने जैसी स्थिति भी हो सकती है.

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