'हमने मार गिराए सबसे ज्यादा नक्सली'- छत्तीसगढ़ सरकार के इन दावों में कितना दम है?
राज्य सरकार का कहना है कि छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों के बाद से नक्सल विरोधी अभियानों में तेज़ी आई है. अधिकारी और जवान वही हैं, लेकिन सरकार और संकल्प बदल गए हैं. ये तेज़ी सरकार की विशेष कार्रवाई ही है या महज एक इत्तेफाक?
छत्तीसगढ़ पुलिस ने 15 जून को जानकारी दी कि नारायणपुर में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ में पुलिस ने 8 नक्सलियों को मार गिराने का दावा किया. वहीं एक जवान के भी शहीद होने की खबर आई. इस साल ऐसी कई ख़बरें आई हैं. बीते सालों के तुलना में तो बहुत. बस्तर रेंज के IG सुंदरराज पी की मानें, तो इस साल नक्सल विरोधी अभियानों के जरिए 136 नक्सली मारे गए हैं. ये साल 2000 में छत्तीसगढ़ की स्थापना के बाद से किसी एक साल में सबसे ज़्यादा नक्सलियों की मौत है. जबकि अभी साल के 6 महीने ही बीते हैं. वहीं, साल 2016 में 134 नक्सलियों को मार गिराने के दावा किया गया था.
साल 2024 में सिर्फ़ पांच महीनों में छत्तीसगढ़ पुलिस ने कोर इलाकों में 32 कैंप स्थापित किए हैं. जबकि हर साल औसतन 16-17 कैंप स्थापित किए जाते हैं. सुंदरराज पी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस साल अब तक 72 अभियानों में गोलीबारी हुई. इनमें 136 नक्सली मारे गए हैं. 392 नक्सलियों को अब तक गिरफ़्तार किया गया है. जबकि 399 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. हालांकि उन्होंने 22 नागरिकों और 10 सुरक्षाकर्मियों की जान जाने की बात भी मानी है.
राज्य सरकार का कहना है कि छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनावों के बाद से नक्सल विरोधी अभियानों में तेज़ी आई है. इसका कारण नक्सलियों के ख़िलाफ़ लड़ाई के केंद्र में राजनीतिक इच्छाशक्ति, क्षेत्र में वर्चस्व और नक्सलियों के खिलाफ एक सख्त नीति है. अधिकारी और जवान वही हैं, लेकिन सरकार और संकल्प बदल गए हैं. जो BJP के दिसंबर 2023 में सत्ता में लौटने के बाद से हुई है. हालांकि, राज्य में कई-कई बार ऐसा हुआ है कि पुलिस ने मारे गए लोगों को नक्सली कहा हो, लेकिन उनके परिवार वाले ये मानने से मना कर देते हैं. उनके परिवार वालों का कहना होता है कि वो सामान्य लोग ही थे. यानी कि पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ का आरोप लगता है. जंगल में रहने वाले परिवारों का कहना होता है कि बेवजह ग्रामीणों को निशाना बनाया जाता है.
ऐसे ही आरोप मई 2024 में भी लगे थे. स्थानीय लोगों और मृतकों के घरवालों ने बीजापुर ज़िला मुख्यालय में डेरा डाल दिया था. वो लगातार प्रदर्शन कर रहे थे. उन्होंने पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ का आरोप लगाया. उनका कहना था कि ग्रामीणों को उस वक़्त गोली मार दी गई, जब वो तेंदू पत्ता तोड़ने गए थे. ऐसे ही आरोप मार्च 2024 में भी पुलिस पर लगे. सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने भी सुरक्षाबलों पर गंभीर आरोप लगाए. सोनी सोरी का कहना था कि पुलिस की क्रॉस फायरिंग की कहानी पूरी तरह से झूठी थी. सोनी सोरी ने बीबीसी से कहा था,
''जंगल में तेंदू पत्ता तोड़ने, रस्सी लाने या लकड़ी लाने के लिए जाने वाले आदिवासियों को तो पुलिस माओवादी बताकर प्रताड़ित करती ही थी. उन्हें गोली मारती ही थी. अब घरों के भीतर घुसकर आदिवासियों को गोली मारी जा रही है. और फिर उसे क्रॉस फायरिंग का नाम दे दिया जा रहा है. ऐसा लग रहा है कि जैसे आदिवासी इसी तरह मारे जाने के लिए पैदा हुआ है.''
एक तरफ़ सरकार के दावे हैं, तो दूसरी तरफ़ स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के. ऐसे में हम जानने की कोशिश करेंगे की हक़ीक़त क्या है? इस साल नक्सल विरोधी अभियानों में ‘तेज़ी’ के कारण क्या हैं? क्या ये तेज़ी सरकार की विशेष कार्रवाई ही है या महज एक इत्तेफाक? एक्सपर्स से जानेंगे कि क्या बदला है राज्य में BJP की सरकार आने के बाद?
‘हमेशा सही नहीं होते दावे’इस बारे में हमने पत्रकार आलोक पुतुल से बात की. आलोक स्वतंत्र पत्रकार हैं और अलग-अलग संस्थानों में नक्सलवाद पर रिपोर्ट लिखते रहते हैं. जब हमने उनसे पूछा कि क्या पिछले 6 महीने में ही कोई विशेष बदलाव हुए हैं या फिर ये महज एक इत्तेफाक है? इस पर उनका कहना है कि हाल के समय नक्सलियों पर कार्रवाई तो बढ़ी है. लेकिन ये सिर्फ़ BJP की नीति की वजह से नहीं है. इसके पीछे भूपेश बघेल सरकार के भी काम रहे हैं. 2018 से 2023 तक कांग्रेस की सरकार ने अंदर काम किए हैं. सड़कें बनाकर कनेक्टिविटी बढ़ाने का काम भूपेश सरकार ने भी किया. इसी का फ़ायदा अब मिल रहा है.
ये भी पढ़ें - छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों से मुठभेड़ में 7 नक्सलियों की मौत
लगभग यही मानना पत्रकार विकास (रानू) तिवारी का है. विकास भी बस्तर में दशकों से काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि कार्रवाई बढ़ी तो है. अब फ़ोर्स अंदर के हिस्सों तक घुस रही है. हालांकि, पुलिस के के दावे हमेशा सही नहीं होते. कई बार पुलिस चीज़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है. विकास इसका एक लेटेस्ट उदाहरण भी देते हैं. 15 जून को जिन 8 कथित नक्सलियों को मारा गया, उनमें से 6 को बहुत बड़ा नक्सली बताया गया. उनके 8 लाख रुपये के इनामी नक्सली होने का दावा किया. लेकिन उनके पास से बरामद हथियारों में एक इंसास राइफल थी. अगर वो सब बड़े नक्सली थे, तो उन सबके पास इंसास राइफल होनी चाहिए थीं. उनके मुताबिक़, नक्सलियों का कहना है कि वो बहुत छोटे नक्सली हैं.
इधर, आलोक पुतुल कहते हैं कि सवाल तो उठते ही हैं. कई बार ऐसा हुआ है कि पुलिस के दावे ग़लत भी साबित होते हैं. इस संबंध में उन्होंने एक न्यायिक रिपोर्ट का जिक्र किया. 2019 में आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 28 जून 2012 को एक फर्जी मुठभेड़ में 17 आदिवासियों को नक्सली बताकर मार दिया गया. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि सुरक्षाबलों ने आधी रात को एक बड़े समूह का सामना करने पर घबराहट में गोलीबारी शुरू कर दी.
आलोक ने बताया कि इसी तरह ताज़ा मुठभेड़ों पर भी सवाल उठे हैं. कुछ ऐसी ही बात विकास तिवारी भी करते हैं. विकास कहते हैं कि पुलिस मुठभेड़ के बाद बताती है कि नक्सलियों के नाम उनके रिकॉर्ड में पहले से थे. लेकिन कई बार निर्दोष गांव वाले भी इसके चक्कर में मारे जाते हैं. विकास सुझाव देते हैं कि अगर पुलिस के पास नक्सलियों की ऐसी कोई लिस्ट सच में है, तो वो रिकॉर्ड जारी कर दे. आगे जब मुठभेड़ हों, तो नक्सलियों के नामों को मिला कर ही देख लिया जाए. कई-कई बार ऐसा हुआ है कि मारे गए लोगों के परिवार वाले सामने आते हैं. वो लंबे समय तक थानों में बैठे रहते हैं. पुलिस से मांग करते हैं कि उनके घरवालों के शव उनके हवाले किए जाएं.
जब ये सवाल किया गया कि क्या किसी खास पार्टी की सरकार आने पर नक्सलियों के हमले घटते या बढ़ते हैं? इस पर आलोक पुतुल कहते हैं कि ऐसा नहीं होता. नक्सली किसी पार्टी के ख़िलाफ़ नहीं होते. उनकी लड़ाई सरकार से होती है. हालांकि, विकास तिवारी इस पर अलग राय रखते हैं. वो कहते हैं कि नक्सली हाल के समय में BJP के ख़िलाफ़ थोड़ा एग्रेसिव तो हुए हैं. नक्सली अपने आपको ‘रैशनल’ बताते हैं, वो BJP को हिंदूवादी कहते हैं.
ये भी पढ़ें - छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से सुरक्षाबलों की मुठभेड़, एक जवान शहीद, 8 नक्सली मारे गए
कैसे निकले हल?हमने इसके उलट भी सवाल किया. सवाल ये कि क्या राजनीतिक पार्टियां नक्सलियों के ख़िलाफ़ कम या ज़्यादा हमलावर होती हैं? इस पर आलोक कहते हैं कि ऐसा तो बिल्कुल नहीं है. कांग्रेस भी नक्सलवाद से बचने के उपाय करती रही है और BJP भी. विकास तिवारी का भी लगभग ऐसा ही मानना है.
इन 6 महीनों में क्या कोई विशेष काम हुए हैं? क्या नक्सलियों के पुनर्वास या पीड़ितों के लिए हाल फिलहाल में विशेष काम हुए हैं. इन सवालों पर आलोक का कहना है कि बातचीत के स्तर पर तो कई प्रयास किए गए है. उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने नक्सलियों को बातचीत के लिए आगे आने की बात कही थी. साथ ही, बीते दिनों उप मुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा ने बस्तर संभाग के कई दौरे किए हैं. शर्मा ने हाल ही में कहा था कि सरकार का इरादा नक्सलवाद को खत्म करने के लिए नक्सलियों को मारना नहीं है.
दोनों पत्रकारों का कहना है कि सरकार ने नक्सलवाद से लड़ने में सक्रियता तो दिखाई है. लेकिन ज़मीनी स्तर पर इस पर और काम किए जाने की ज़रूरत है. इसके अलावा लोगों के सवालों को भी सुने जाने की ज़रूरत है. स्थानीय लोगों को अगर लगता है कि मुठभेड़ फर्जी हैं, तो उनकी निष्पक्ष जांच हो. उन्हें भरोसे में लिया जाए. इसके अलावा नक्सलवाद का समावेशी हल निकले. सरकार द्वारा ज़्यादा से ज्यादा नक्सलियों को मेनस्ट्रीम में लाने के उपाए किए जाएं.
वीडियो: 'नक्सली हमले से डरकर भाग आया' IAS ने संभाला, आज बेटा बस्तर का नाम दुनिया में रौशन कर रहा