चौधरी चरण सिंह. किसान नेता. एक जमाने में ग्रामीण भारत का राजनीतिक प्रतिनिधित्वकरने वाली सबसे बड़ी शख्सियत रहे. मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री,उप-प्रधानमंत्री और अंततः प्रधानमंत्री. लेकिन ये सब ओहदे कभी उनकी राजनीतिक पहचानपर हावी नहीं हो पाए. उनकी पहचान हमेशा एक किसान नेता की बनी रही. आजीवन वह इसीपहचान के साथ पहचाने जाते रहे. राज्य से लेकर केन्द्र तक कई बार सरकारों को बनायाऔर बिगाड़ा लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा कभी भी भ्रष्टाचार के दलदल की दहलीजतक नही पहुंच पाई. वे आजीवन एक ईमानदार नेता रहे. आज यानी 23 दिसंबर को उनकीजन्मतिथि है, और इस दिन को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है.बोट क्लब पर एक रैली में बोलते हुए चौधरी चरण सिंह.हम भी आज उनके जीवन से जुड़े 5 रोचक किस्सों को आपके साथ साझा करेंगे.किस्सा नंबर 1 : जब राजनारायण से मुकाबला किया-चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाने में सोशलिस्ट नेता राजनारायण की बड़ी भूमिकाथी. राजनारायण बनारस के रहने वाले थे. उनको अक्सर चरण सिंह का हनुमान कहकर संबोधितकिया जाता था. लेकिन बाद के दिनों में दोनों के बीच गहरे मतभेद हो गए. इतने गहरे किराजनारायण 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ने चरण सिंह की सीट यानी बागपत पहुंच गए. दोनोंका नामांकन भी एक ही दिन था. संयोगवश दोनों एक ही समय नामांकन करने भी पहुंच गए. येदेखकर चौधरी चरण सिंह को लगा कि कहीं उनके समर्थक राजनारायण के साथ कोई बदसलूकी नकर बैठें, इसलिए उन्होंने अपने समर्थकों से कहा,"हम स्थानीय हैं, और इस हैसियत से राजनारायण जी हमारे मेहमान हुए. अब चूंकि वेमेहमान हैं इसलिए हमारी भी जवाबदेही है कि हम लोग उन्हें पूरा सम्मान दें. इसलिए हमउन्हें पहले नामांकन दाखिल करने देंगे. जब उनका नामांकन हो जाएगा, तब हम अपना पर्चाभरेंगे."इतना कहकर चौधरी चरण सिंह ने मामला संभाल लिया. दोनों का नामांकन शांतिपूर्ण तरीकेसे हो गया. लेकिन इस चुनाव में राजनारायण चरण सिंह के हाथों बुरी तरह हारे. चुनावजीतने वाले चौधरी चरण सिंह को मिले 253463 वोट जबकि राजनारायण केवल 33664 वोट पाकरतीसरे नंबर पर रहे थे. उनकी जमानत भी नहीं बची थी.किस्सा नंबर 2 : जब देवीलाल से भिड़ गए -चौधरी चरण सिंह और चौधरी देवीलाल दो बड़े किसान नेता माने जाते थे. चौधरी चरण सिंहपश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते थे, जबकि देवीलाल हरियाणा से. दोनों के संबंध भी बहुतअच्छे थे, लेकिन बाद में दोनों में मनमुटाव हो गया. 1980 के लोकसभा चुनाव मेंदेवीलाल सोनीपत से सांसद चुने गए थे लेकिन 1982 के विधानसभा चुनाव में सक्रिय होनेके लिए उन्होंने सांसदी छोड़ दी. राजनीतिक टिप्पणीकार कहते हैं, 'देवीलाल ओवरकॉन्फिडेंस में थे कि मुख्यमंत्री बन ही जाएंगे, इसलिए पहले ही लोकसभा सीट छोड़ दी.लेकिन ऐसा हो नही पाया. विधानसभा चुनाव में 90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 35सीटें मिली थी जबकि लोक दल-भाजपा गठबंधन को 37 सीटें मिली थीं. कोई भी दल या चुनावपूर्व गठबंधन बहुमत के लिए आवश्यक 46 सीटें नही जीत पाया. लेकिन ऐसे मौके पर दस्तूरयही रहा है कि केन्द्र में जिसकी सरकार होती है, राज्यपाल उसके कथित इशारे पर कामकरता है. वही हरियाणा में भी हुआ और राज्यपाल जी डी तापसे ने कांग्रेस नेता भजनलालको मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई दी. उसके बाद भारी बवाल हुआ. इतना भारी बवाल किदेवीलाल द्वारा राज्यपाल का गिरेबान पकड़े जाने की किंवदंती ने जन्म लिया.इसके बाद चरण सिंह और देवीलाल के मतभेद उभरने शुरू हुए. देवीलाल ने लोकदल छोड़दिया. 1983 में उनकी खाली की गई सोनीपत लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ. वहां से चौधरीचरण सिंह ने किताब सिंह मलिक को लोकदल का टिकट थमा दिया. उन दिनों चौधरी चरण सिंहकी लोकदल और अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा का गठबंधन हुआ करता था. लेकिन देवीलाल तोदेवीलाल ठहरे. अक्खड़ स्वभाव के नेता. वे भी जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ गए.अपनी चुनावी सभा में वोटरों से कहने लगे,"मैं इस लाला चरण सिंह और चौधरी वाजपेयी को कुछ नहीं समझता. आप लोग इनके कैंडीडेटकिताब सिंह मलिक की किताब फाड़ दो." खैर, लोगों ने तो चरण सिंह के कैंडीडेट किताबसिंह मलिक की किताब फाड़ दी, लेकिन देवीलाल भी चुनाव नहीं जीत सके. इन दोनों कीलड़ाई में कांग्रेस बाजी मार ले गई. चौधरी चरण सिंह की पार्टी भले ही खुद चुनाव नहीजीत सकी, लेकिन देवीलाल को हराने में कामयाब हो गई. देवीलाल कांग्रेस के रिजक रामसे लगभग साढ़े बारह हजार वोटों से हारे गए थे. उनकी हार का कारण बने थे चौधरी चरणसिंह की लोक दल के किताब सिंह मलिक को मिले तकरीबन 47 हजार वोट. इसके बाद चरण सिंहऔर देवीलाल के संबंध कभी मधुर नही हो पाए.बाद के दिनों में देवीलाल के चौधरी चरण सिंह से मतभेद हो गए थे.किस्सा नंबर 3 : जब अपने इलाके के किसानों को दिल्ली आने के लिए डांटा -साल था 1977. चौधरी चरण सिंह देश के गृह मंत्री थे. उसी दौरान उनके इलाके के 7-8किसान नहर के पानी की समस्या को लेकर उनसे मिलने दिल्ली पहुंचे. जब चरण सिंह इनकिसानों से मिले तो उन्होंने पूछा, "तुम लोगों का दिल्ली आने और जाने का कितना खर्चा लगेगा?तब किसानों ने उन्हें बताया कि कुल 120 रुपया खर्च लगेगा?यह सुनकर चौधरी साहब डांटते हुए बोले, "जब ये काम पांच पैसे के पोस्टकार्ड से होसकता था, तो तुम लोगों को 120 रुपये खर्च करके दिल्ली आने की क्या जरूरत थी?" इसकेबाद इन किसानों की नहर की समस्या का समाधान हो गया.चौधरी चरण सिंह हमेशा सादगीपसंद रहे.किस्सा नंबर 4 : जब चौधरी चरण सिंह ने एक पत्रकार को डांटा -पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने अपनी आत्मकथा 'कोर्टिंग डेस्टिनी' में एक रोचकवाकये का जिक्र किया है, "1978 में चौधरी साहब एक बार चुनाव सुधारों के लिए बनीमंत्रिमंडलीय उपसमिति, जिसमें मेरे और चौधरी साहब के अलावा प्रताप चंद्र और एल केआडवाणी भी मेंबर थे, की बैठक के लिए निकल रहे थे, तभी एक पत्रकार ने उनसे पूछा,'चौधरी साहब आप प्रधानमंत्री बनने के लिए कुछ ज्यादा ही बेचैन नहीं लग रहे हैं? इससवाल पर चौधरी साहब नाराज हो गए. उल्टा उस पत्रकार से ही पूछ लिया, 'क्या आप किसीबड़े अखबार के संपादक बनना पसंद नहीं करोगे? और यदि आप यह पसंद नही करोगे तो फिरआपका जीवन व्यर्थ है. यदि मैं प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखता हूं तोइसमें बुरा क्या है?" संयोग ऐसा बना कि एक साल बाद वे प्रधानमंत्री बन भी गए.किस्सा नंबर 5: क्रिकेट से नफरत -चौधरी चरण सिंह क्रिकेट के खेल को नापसंद करते थे. क्रिकेट के प्रति अपनी नापसंदगीको वे सार्वजनिक तौर पर भी प्रकट करते रहते थे. एक बार उन्होंने कह भी दिया था,"रेडियो पर क्रिकेट की रनिंग कमेंट्री को बंद करवा देना चाहिए. यह 5-5 दिन तक लोगोंको निठल्ला और बेकार बनाए रखता है. देश के लोगों की वर्किंग कैपेसिटी पर बहुत बुराअसर डालता है."आजकल चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह और पोते जयंत चौधरी राजनीति में सक्रिय हैं.लेकिन क्रिकेट के दीवाने इस देश में चौधरी चरण की इन बातों पर ध्यान देने की हिम्मतशायद ही कोई पार्टी कर पाती. सादगीपसंद व्यक्तित्व के धनी चौधरी चरण सिंह का 29 मई1987 को दिल्ली में निधन हो गया. उनके निधन के बाद अब उनकी पारिवारिक सियासी विरासतको उनके बेटे अजित सिंह और पोते जयंत चौधरी अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के माध्यमसे आगे बढ़ा रहे हैं.