आप खबरों में और सोशल मीडिया में 'चंद्रयान' या 'चंद्रयान 2' का ज़िक्र बहुत बार सुनरहे होंगे. अंतरिक्ष में ISRO रॉकेट भेज रहा है, कई बार जानकारी इतने तक सीमित है.और कई बार इतने तक कि भारत अंतरिक्ष में उपग्रह भेज रहा है. और ये भी कि चंद्रमा परभारत छानबीन करने जा रहा है. 15 जुलाई की सुबह तक हल्ला मचा रहा कि चंद्रयान-2 कोअंतरिक्ष में भेजा जाना है. तकनीकी खराबी आयी और ऐसा नहीं हो सका. अब 22 जुलाई कोदोपहर 2:43 बजे चंद्रयान को लॉन्च किया गया है.लेकिन असल में चंद्रयान क्या है? अंतरिक्ष में क्या करेगा? कितना पैसा लगा है?कितना समय लगा है? कितनी मेहनत लगी है और सबसे ज़रूरी कि इस मिशन से भारत को क्याफायदा होगा? जानना है तो हम बताएंगेक्या है चंद्रयान? कैसे हुई शुरुआत?नाम को तोड़कर देखिए. 'चंद्र' और 'यान'. चंद्रमा तक जाने वाला यान. सबसे पहले खबरोंमें आया 2008 में. उस समय भारत सरकार के अधीन संचालित ISRO/ इसरो यानी Indian SpaceResearch Organisation चंद्रयान - 1 लॉन्च करने की तैयारी कर रहा था. भारत के लिएएक बड़ा समय था. पहले भी भारत अंतरिक्ष में उपग्रह भेजता था. लेकिन देश के लिए पहलामौक़ा था कि चंद्रमा पर रीसर्च करने के लिए भारत कदम उठाएगा. घोषणा अटल बिहारीवाजपेयी के ही प्रधानमंत्री कार्यकाल में ही हो गयी थी. 2003 में. काम पूरा हुआमनमोहन सिंह के कार्यकाल में.22 अक्टूबर 2008. चेन्नई से 80 किलोमीटर दूर मौजूद श्रीहरिकोटा में मौजूदा सतीश धवनस्पेस सेंटर. यानी वो जगह जहां से इसरो अपने मिशन लांच करता है. और सतीश धवन कौन?इसरो के पूर्व चेयरमैन. इस सेंटर से चंद्रयान 1 अंतरिक्ष में भेजा गया.चंद्रमा पर पानी की खोजाई होगी.भेजे जाने के कुछ दिनों बाद यानी 8 नवंबर 2008 को चंद्रयान चंद्रमा की कक्षा मेंदाखिल हो गया. 'कक्षा' यानी किसी ग्रह के चारों ओर का वह घेरा जिसमें उसकागुरुत्वाकर्षण काम करता है. जिससे चीज़ें वापिस सतह की ओर खिंचती हैं. और कक्षा केबाहर जाने पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव ख़त्म हो जाता है. 14 नवंबर को 'ऑर्बिटर' से'इम्पैक्टर' अलग हो गया और चंद्रमा की सतह पर जाकर बैठ गया. इन दोनों के बारे मेंआगे बताएंगे.लगभग एक साल तक चंद्रयान -1 ने डाटा जुटाया. जानकारी जुटाई. रीसर्च में मदद की.पानी का पता लगाया. 312 दिन का समय पूरा हुआ और 29 अगस्त 2009 में चंद्रयान ने अपनामिशन पूरा कर लिया. खर्च की बात हुई. सरकार ने राज्यसभा में 2017 में जवाब दिया.बताया कि इस मिशन में कुल 386 करोड़ रूपए का खर्च हुआ.चंद्रयान कैसा होता है? कितने हिस्से होते हैं?आप फोटो देखते हैं रॉकेट की. लंबा सफ़ेद-सा राकेट. जिसे लॉन्च किया जाता है. लेकिनये रॉकेट जब हवा में जाता है तो कई हिस्सों में अलग हो जाता है. पहले रॉकेट का कामहोता है कि चंद्रयान को कक्षा के बाहर ले जाना. फिर दूसरे रॉकेट का काम होता है किचंद्रयान को कुछ और आगे ले जाना और आखिरी का काम होता है कि चंद्रमा की कक्षा तकचंद्रयान को ले जाना. सारे रॉकेट अपना काम करके चंद्रयान से अलग हो जाते हैं. आखिरमें रॉकेट खुलता है तो अंदर से चंद्रयान अलग हो जाता है.ये तो काम हो गया रॉकेट का. लेकिन असल चंद्रयान के दो हिस्से होते हैं. एक होता है'ऑर्बिटर' और एक होता है 'इम्पैक्टर'. ऑर्बिटर का काम होता है ऑर्बिट में. मतलब एकउपग्रह. जो चंद्रमा की कक्षा में टहलता रहता है. कक्षा क्या होती है, हमने थोड़ी देरपहले आपको बताया है. दोनों साथ जाते हैं अंतरिक्ष में. और चंद्रमा पर पहुंचकर अलगहो जाते हैं. ऑर्बिटर रह जाता है ऊपर, इम्पैक्टर अलग होकर आ जाता है चंद्रमा की सतहपर. चंद्रमा की सतह पर उतरता है. 'अंग्रेजी के शब्द 'Impact' से बना है इम्पैक्टर.जहां ऑर्बिटर कक्षा से चंद्रमा के बारे में जानकारियां जुटाता है, इम्पैक्टर सतह परसे जानकारियां जुटाता है.इसरो के इम्पैक्टर को मून इम्पैक्ट प्रोब यानी MIP कहते हैं. पिछले चंद्रयान मिशनके समय इम्पैक्टर चंद्रमा की सतह से लगभग 100 किलोमीटर ऊपर ऑर्बिटर से अलग हुआ था,और चंद्रमा की सतह पर क्रैश हुआ था. लेकिन कोई नुकसान इसलिए नहीं हुआ क्योंकि उसेइसलिए बनाया ही गया था. इस प्रोब ने जानकारियां जुटाईं और पृथ्वी के सेंटर पर भेजदीं.What makes #Chandrayaan2🚀 special?- 1st space mission to conduct a soft landing on the Moon's south polar region- 1st Indian mission to explore the lunar terrain with home-grown technology- 4th country ever to soft land on the lunar surfaceKnow more 👇 pic.twitter.com/Uznv7l41R2— PIB India (@PIB_India) July 11, 2019इम्पैक्टर के अलावा चंद्रयान में कुल 10 हिस्से रहे हैं. हिस्से भी गजब के. दूर सेदेख सकते हैं कि सतह कैसी है? ऊबड़-खाबड़ है? अगर है तो कितनी? उस पर कैसे काम करसकते हैं. ऐसा कैमरा जो ऐसी चीज़ें देख सकता है जो हमारी-आपकी आंखें भी नहीं देखसकती हैं, या कोई दूसरा कैमरा भी नहीं. लेज़र फेंककर चीज़ों की दूरी निकालने वालायंत्र भी है. मतलब जितनी दूर लेज़र गया, चीज़ या ज़मीन की दूरी उतनी.चंद्रमा पर मिलने वाली चीज़ें खतरनाक हैं? रेडियोएक्टिव हैं? इसका पता लगाने की भीचीज़ें हैं. लेकिन MIP के अलावा सबसे कमाल चीज़ है Moon Mineralogy Mapper, मतलब वहीचीज़, जिसने पता लगाया कि चंद्रमा पर पानी है. और इसी पानी की खोज पर चंद्रयान-2 कीनींव रखी गयी.दस सालों में चंद्रयान में क्या बदला?पहला चंद्रयान तो अभी से दस सालों पहले अंतरिक्ष में गया था. दूसरे का डिज़ाइन 2009में ही पूरा हो गया था. रूस का भी साथ मिला था. 2013 में सब पूरा हो गया था, लेकिनजिस चीज़ के सहारे इम्पैक्टर चंद्रमा पर उतरता, वो रूस को बनाना था. समय पर नहीं बनपाया तो सब 2019 तक रुका रह गया. रूस ने बीच में मना कर दिया तो भारत ने कहा कि हमसबकुछ खुद से ही बनाएंगे.इस बार कुछ चीज़ें नयी हैं. जैसे नया लैंडर. जिसका नाम भारत ने 'विक्रम' रखा है.विक्रम साराभाई के नाम पर. इसरो के चेयरमैन और भारत में स्पेस मिशनों के पिता कहेजाने वाले विक्रम साराभाई. विक्रम लैंडर की मदद से मदद से चंद्रयान का एक हिस्साधीरे-धीरे चंद्रमा की सतह पर उतरेगा. इस बार चंद्रयान का रोवर - यानी रोबोट से चलनेवाली गाड़ी - सतह पर पानी और नम ज़मीन तलाशेगा. और इसको चलाया जाएगा धरती पर बैठकर.चंद्रयान का रोवर और लैंडरपिछले वाले में तो कुछ चीज़ें NASA ने दी थी, इस बार सब अपने यहां बना है. इस बारचंद्रयान बनाने में कुल 978 करोड़ रुपयों का खर्च आया था. और अगर जानना हो तो इस बारके चंद्रयान का वजन, मतलब रॉकेट और रॉकेट में पड़ने वाले ईंधन और चंद्रयान के हरेकहिस्से का वजन मिलाकर 3,850 किलो है. कुल इतना वजन एक साथ पृथ्वी से उड़ेगा. पिछलीबार चंद्रयान में कुल 11 हिस्से थे, इस बार कुल 14 हिस्से होंगे. और काम सारे वैसेही, एक से बढ़कर एक. और सब बने हुए भारत में.रोवर के टायर कमालइसरो का लोगो देखिए. ये लगा हुआ है. अशोक चक्र देखिए, न देखा हो तो वो भी लगा हुआहै. रोवर के दो पहिए अशोक चक्र की आकृति के होंगे और दो पहिए इसरो के लोगो के आकारके. 17 मिनट में कक्षा से उतरेगा चंद्रमा की ज़मीन पर और शुरू कर देगा अपना काम.अशोक चक्रइसरोचंद्रयान का काम क्या?दो ही ग्रह हैं. मंगल और चंद्रमा. जिन पर जीवन की खोज की जा रही है. जीवन के लिएहवा और पानी ज़रूरी है. और सब जगह यही खोज हो रही है. जिस Mapper के बारे में हमनेअभी बताया, उसने दस साल पहले चंद्रयान-1 के समय चंद्रमा पर पानी की खोज कर दी.लेकिन चंद्रयान-1 को जो मिला, वो पानी के कुछ हिस्से ही थे. कुछ कण ही मिले थे.पानी का कोई बहुत बड़ा भंडार नहीं था. पानी का कोई स्रोत भी नहीं मिला था. अब उसकीही खोज हो रही है.इस बारे में इसरो ने भी मीडिया को बताया. इसरो ने कहा था, "चंद्रयान-1 से हमेंचंद्रमा पर पानी के कण मिले थे. इस पर ज्यादा शोध होना चाहिए. चंद्रमा की सतह परपानी कहां-कहां और किस रूप में मौजूद है, और क्या सतह के नीचे और वहां के पर्यावरणमें मौजूद है, इस पर और जांच की आवश्यकता है." जैसे हमारे ग्रह पर उत्तरी औरदक्षिणी ध्रुव हैं, वैसे चंद्रमा पर भी हैं. और इसरो का मानना है कि चंद्रमा केदक्षिणी ध्रुव पर बहुत बड़ी परछाई दिखती है. और ये परछाई किसी न किसी वजह से पानी कीउपस्थिति की ओर इशारा है.लेकिन पानी की इतनी ज़रुरत क्यों है?चंद्रमा और मंगल पर लोगों के रहने की बात हो रही है. धरती का माहौल खराब है, हवा औरपानी में बहुत मिलावट हो गयी है. अब क्या करें? तो बहस हुई कि पृथ्वी को ठीक करनातो बहुत कठिन काम है, पैसा खर्च करके बाहर ही रहने का हिसाब देखा जाए. अमरीका नेशुरू किया तो रूस ने भी किया. जापान आया तो भारत भी आ गया. अब चंद्रमा पर पानी कीतलाश हो रही है.लेकिन इसके अलावा सबसे बड़ा कारण है रीसर्च. खोजबीन. पता लगाना कि हमारा ब्रह्माण्डकब और कैसे बना? कितना फैला? और पानी जैसी चीज़, जिससे जीवन मिलता है, कहां से आई?चंद्रमा पर अगला पेट्रोल पंप होगा?और अगर पानी और हवा मिल गए तो समझ लीजिये कि चंद्रमा एक पेट्रोल पंप की तरह होजाएगा. पृथ्वी से सुदूर ग्रहों के लिए यान अभी से कम पानी और हवा भरकर निकलेंगे.चंद्रमा पर रुकेंगे. सुस्ताएंगे. हवा पानी रीचार्ज करेंगे और आगे बढ़ जाएंगे. अगरसफलता मिली तो सुदूर ग्रहों तक की यात्रा में थोड़ा कम खर्च होगा. और नयी-नयीजानकारियां हमारे सामने आ सकेंगी.क्यों रोकी गयी लॉन्चिंग?लॉन्च के 56 मिनट पहले इसरो ने कहा कि अभी मत उड़ाओ. कह रहे हैं कि टेक्नीकल गड़बड़ीहो गयी. कहां हुई, इस बारे में इसरो ने कुछ नहीं कहा. लेकिन 'आजतक' से बातचीत मेंवैज्ञानिकों ने बताया कि रॉकेट में पड़ने वाले ईंधन का प्रेशर कुछ गड़बड़ दिख रहा था,इस वजह से मिशन को ऐन मौके पर रोक दिया गया. इसका ये भी मतलब लगाया जा सकता है किचंद्रयान में कोई गड़बड़ी नहीं थी, बल्कि इसको लेकर जाने वाले रॉकेट में कुछ दिक्कतहुई, जिसकी वजह से मामला टल गया.कब होगी लॉन्चिंग?कुछ नहीं पता. जब इसरो कहेगा "आल गुड", तब होगा "लिफ्ट ऑफ".--------------------------------------------------------------------------------लल्लनटॉप वीडियो : झारखंड: तबरेज की लींचिंग के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन हुई जमकरहिंसा