15 साल एक द्वीप पर फंसे रहे गुलाम लोगों की दर्दनाक कहानी
जो बचाने आया, वो अचंभित रह गया
इंसानी प्रकृति के बारे में हमारी मान्यता के कारण हम में से अधिकतर का जवाब होगा. वे लोग जिन्दा रहने के लिए एक दूसरे को मार खाएंगे. लेकिन जैसा अधिकतर होता है. असलियत कल्पना से ज्यादा रहस्यमई होती है. आज आपको सुनाएंगे कहानी उन बेनाम लोगों की. जिन्हें गुलाम बनाया गया. और फिर एक द्वीप पर ले जाकर छोड़ दिया. इस वादे के साथ के उन्हें लेने आएंगे. लेकिन कोई नहीं आया. 15 साल तक ये लोग एक द्वीप में फंसे रहे. ये द्वीप बाकी द्वीपों की तरह नहीं था कि कंद मूल से काम चला लें. महज डेढ़ किलोमीटर के इलाके में बसे इस द्वीप में एक भी पेड़ नहीं था. कैसे फंसे ये लोग इस द्वीप में. क्या इनमें से कोई बच पाया. अगर हां तो कैसे और कैसे सामने आई इन लोगों की कहानी. चलिए जानते हैं. (Castaway)
कहानी शुरू होती है साल 1776 से. वो साल जब अमेरिका आजाद हुआ. लेकिन इंसानों का एक समूह इस देश में अभी भी गुलाम था. ये अश्वेत अफ्रीकी लोग थे. जिन्हें अगले कई दशक गुलामी में जीने पड़े. गुलामों का व्यापार अफ्रीका से होता था. अमेरिका के साथ-साथ ब्रिटेन, पुर्तगाल, फ़्रांस डच सब इस व्यापार में शामिल थे. फ़्रांस में उस दौर में एक नाविक रहता था, बार्थलेमे कस्तालान डु वरने. वरने की जिंदगी आराम से चल रही थी. लेकिन एक चिंता उसे खाए जाती थी. एक राज उसके सीने में दफन था. कई साल पहले उसने अफ्रीका से कुछ लोगों को गुलाम बनाकर खरीदा था. और अब वो लोग एक द्वीप पर फंसे थे. वरने अपनी जान बचाकर निकल आया था. लेकिन जाते हुए उसने उनसे वादा किया था कि वो लौटकर आएगा. इस बात को 15 साल बीत चुके थे. और ये भी पक्का नहीं था कि वो लोग बचे होंगे या नहीं. बचना मुश्किल था लेकिन फिर वादा वादा था. वरने ने एक फ्रेंच जहाज के कप्तान से इल्तिजा की. बहुत मिन्नतों के बाद कप्तान राजी हुआ. और उसने फ़्रांस से हिन्द महासागर की ओर एक यात्रा शुरू की . वो कप्तान उस द्वीप पर पहुंचा. वहां उसने जो देखा, वो किसी को भी अचंभे में डालने के लिए काफी था. कप्तान ने क्या देखा, उससे पहले कहानी में थोड़ा पीछे चलते हैं.(Slave Trade)
Indian Ocean में एक द्वीपनक़्शे पर नज़र डालिए. भारत से दक्षिण पश्चिम दिशा में भारतीय महासागर में एक द्वीप है. उत्तरी अफ्रीका के देश मेडागास्कर से कुछ 480 किलोमीटर दूर इस द्वीप का नाम है ट्रोमेलिन आइलैंड. फ़्रांस का इस पर कब्ज़ा है लेकिन मॉरिशस भी अपना हक़ जताता है. द्वीप की लंबाई कुल डेढ़ किलोमीटर और चौढ़ाई करीब 800 मीटर. समंदर के पानी से मात्र 7 मीटर ऊपर उसकी जमीन है. और जमीन के नाम पर बस बालू ही बालू है. पूरे द्वीप में हरियाली के नाम पर एक भी पेड़ नहीं है. एक मौसम विज्ञान केंद्र बना हुआ है. और इसके अलावा इस द्वीप पर इंसानों के जाने का कोई मतलब नहीं है. इसके बावजूद साल 1761 में इस द्वीप पर लोगों का आगमन हुआ. (survival story)
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फ़्रांस का एक जहाज मेडागास्कर से मॉरिशस जा रहा था. मेडागास्कर और मॉरीशस, दोनों तब फ्रेंच कॉलोनी का हिस्सा थे. और इन दोनों इलाकों के बीच गुलामों का व्यापार चलता था. उटील नाम के इस जहाज में गुलाम भरकर ले जाए जा रहे थे. शिप के कप्तान का नाम था ज्यां डे ला फ़ार्ग. कप्तान को गुलामों के व्यापार की इज़ाज़त नहीं थी. इसके बावजूद पैसे के लालच में उसने मेडागास्कर से 160 लोगों को ग़ुलाम के तौर पर खरीदा और शिप में भर दिया. मॉरिशस के रास्ते में ट्रोमेलिन द्वीप के पास कप्तान और कुछ लोगों के बीच नक़्शे को लेकर बहस शुरू हो गई. रात का वक्त था. हबड़-तबड़ में जहाज द्वीप के किनारे जा टकराया और डूबने लगा. शिप में गुलाम बनाकर ले जाए जा रहे 80 लोग वहीं डूब गए. बाकी बचे लोग किसी तरह द्वीप के किनारे पहुंचे. इनमें बच्चे और औरतें शामिल थे.
क्रू के कई लोग भी तैरकर द्वीप के किनारे पहुंच गए थे. उन लोगों ने जहाज से जितना सामान हो सकता था, बचाया. जहाज का कप्तान ज्यां डे ला फ़ार्ग इस घटना के शॉक में था. इसलिए एक दूसरे आदमी ने कमान संभाली. ये बार्थलेमे डु वरने था. उसने सबसे पहले दो कैंप बनाए. एक जहाज के क्रू, यानी गोरे लोगों के लिए और दूसरा गुलामों के लिए. उन्होंने एक कुआं खोदा ताकि पानी पीने का इंतजाम हो सके. जहाज से बचा हुआ खाना सब में बांटा गया. अगले तीन महीनों तक वे लोग उसी द्वीप में रहे. जब हालत बहुत खराब हो गई तो नए कप्तान ने एक आईडिया आया. उसने जहाज की बची हुई लकड़ियों से एक नाव तैयार करवाई.
80 लोग एक द्वीप पर इंतज़ार करते रहेसितंबर 1761 में इन नई नावों में 122 फ्रांसीसी ट्रोमेलिन द्वीप से मॉरीशस के लिए रवाना हो गए. जबकि 80 गुलाम वहीं द्वीप पर छोड़ दिए गए. जाते हुए कप्तान ने इन लोगों से वादा किया कि वो उन्हें ले जाने के लिए वापस आएगा. 4 दिन समुद्र में तैरने के बाद डू वरने की नाव मॉरीशस पहुंची. उसने वहां के गवर्नर से मुलाक़ात की. और उससे इल्तिजा की कि ट्रोमेलिन द्वीप पर फंसे लोगों को बचाने के लिए एक जहाज भेजे. लेकिन गवर्नर ने साफ़ इंकार कर दिया. गवर्नर को लोगों से ज्यादा इस बात की चिंता थी कि उसकी इजाजत के बिना गुलामों को व्यापार के लिए क्यों ले जाया गया. डु वरने ने बार-बार कोशिश की लेकिन गवर्नर नहीं माना. इसके बाद उसने पेरिस तक बात पहुंचाई. लेकिन वहां से भी कोई मदद नहीं मिली. फ़्रांस से मदद न मिलने का एक खास कारण था.
फ़्रांस और ब्रिटेन इस समय एक युद्ध में उलझे थे. जिसे 7 ईयर वॉर के नाम से जाना जाता है. फ़्रांस हार रहा था. साथ ही उसका खजाना खाली होता जा रहा था. इसलिए फ्रेंच अधिकारियों ने कोई मदद देने से इंकार कर दिया. युद्ध के बाद ये मामला दुबारा उठाया गया. लेकिन तब भी बात नहीं बनी.
अंततः साल 1772 में फ्रेंच अधिकारियों को होश आया. हालांकि फिर भी द्वीप तक जहाज भेजने में 3 साल और लग गए. 1775 में दो लोग एक छोटी सी नाव लेकर द्वीप तक पहुंचे. उनमें से एक वहीं द्वीप पर रुक गया. जबकि दूसरे ने वापिस जाकर बताया कि द्वीप पर लोग अभी भी जिंदा हैं. इसके बाद दो और नावों ने द्वीप पर जाने की कोशिश की. लेकिन तूफ़ान के कारण दोनों बार मिशन फेल हो गया. अंततः 1776 में जाक डी ट्रोमेलिन नाम का एक जहाजी अपना जहाज लेकर द्वीप तक गया. इसी ट्रोमेलिन के नाम पर इस द्वीप का नाम पड़ा. ट्रोमेलिन जब द्वीप पर गया. वहां सिर्फ आठ लोग जिन्दा थे. 7 औरतें और एक आठ साल का बच्चा. हैरत की बात ये नहीं थी कि बाकी लोग नहीं बच पाए. सवाल ये था कि वो 7 महिलाएं इन 15 सालों में कैसे जिन्दा रही. ये लोग कभी अपने घर से बाहर नहीं निकले थे. फिर भी इंसानी जिजीविषा से उन्होंने जीने का रास्ता खोज निकाला.
कैसे बचे ये लोग?1761 में जब फ्रेंच लोगों ने गुलामों को द्वीप पर अकेला छोड़ दिया था. उस दिन से लेकर अगले 15 साल तक इन लोगों ने सिर्फ एक बात का ख्याल रखा. उन्होंने कभी उस आग को बुझने नहीं दिया. जिसे उन्होंने बड़ी मेहनत से जलाया था. इस द्वीप पर एक भी पेड़ नहीं था. इसलिए वे लोग नाव की टूटी लड़कियों का इस्तेमाल आग जलाने के लिए करते रहे. खाने के लिए उन्होंने समुद्री केकड़े, मछली आदि का सहारा लिया. इस दौरान कई ऐसे मौके आए, जब उन लोगों में से कुछ ने द्वीप छोड़ने की कोशिश की. अकेले छोड़े जाने के दो साल बाद 18 लोगों का एक समूह नाव बनाकर समंदर की यात्रा पर निकला. उनका क्या हुआ, कभी किसी को पता नहीं चला. संभव था कि बाकी लोगों की कहानी भी कभी सामने नहीं आती. लेकिन फिर साल 2006 में एक फ्रेंच शोधकर्ता ने इस कहानी में इंटरेस्ट लिया. और अपनी टीम को लेकर उसने द्वीप पर खुदाई शुरू की.
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खुदाई से कई बातें सामने आई. मसलन उन लोगों ने पानी के लिए एक पांच मीटर गहरा कुआं खोदा था. एक किचन बनाया हुआ था. इसके अलावा जमीन खोदकर बालू के पत्थरों की दीवार बनाई हुई थी. छोटे छोटे क्वार्टर बने थे. जिनमें वे लोग रात को सोते थे. बर्तन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए उन्होंने कांसे की 6 कटोरियां बनाई हुई थी. जिन्हें देखकर पता चलता था कि उनकी बार बार मरम्मत की गई थी. इनके अलावा उन लोगों के पास 15 चम्मचें थीं.
द्वीप पर खुदाई के दौरान दो कब्रें भी मिली. जिनके परीक्षण से पता चला कि वे समुद्री पक्षी और कछुवे मारकर खाते थे. शोधकर्ताओं के अनुसार हो सकता है कि कुछ सालों बाद उन्हें समझ आ गया हो कि उन्हें कोई बचाने आने वाला नहीं है. इसलिए उन्होंने वहीं अपना समुदाय बनाया और मिल बांटकर काम किया. इस तरह वे लोग कई सालों तक जिन्दा रह पाए. इन सालों में कई लोग बीमारी से मारे भी गए. लेकिन इनमें से अधिकतर लोगों की कब्रें नहीं ढूंढी जा सकी. शोधकर्ताओं को शक हुआ कि कहीं वे नरभक्षी तो नहीं हो गए थे.
नरभक्षी?जवाब था नहीं. 1950 तक ट्रोमेलिन द्वीप को लेकर एक कहानी चलती थी. बहुत साल पहले ओलिवर ला बूज नाम का एक समुद्री डाकू था. जिसे पकड़कर फांसी दे दी गई थी. ला बूज ने मरने से एक पहले एक क्रिप्टोग्राम पीछे छोड़ा था. जिसमें माना जाता था उसके खजाने का नक्शा छिपा है. शोधकर्ताओं ने पाया कि 1950 में जब इस द्वीप पर मौसम केंद्र बनाया गया. लोगों ने खजाने के लालच में इस द्वीप को खोद डाला था. जिसके कारण द्वीप पर मारे गए लोगों की कब्रें बर्बाद हो गई थी. जो मारे गए थे, उनका कुछ पता नहीं चला. लेकिन जो 7 औरतें जिन्दा बचीं. उनकी कहानी कुछ फ्रेंच खोजकर्ता सामने लेकर आए.
1776 में रेस्क्यू किए जाने के बाद उन सात महिलाओं और एक बच्चे को मॉरीशस लाया गया. इस समय तक मॉरीशस का गवर्नर बदल चुका था. उसने उन सभी महिलाओं को गुलामी से आजादी दे दी. और एक फ्रेंच अधिकारी ने तो एक औरत और उसके बच्चे को अपने घर में आसरा भी दिया. हालांकि गुलामों का व्यापार आगे भी जारी रहा. 1795 में फ्रेंच क्रांति के बाद फ्रांस के संविधान में गुलामी को गैर कानूनी करार दे दिया गया. लेकिन फिर जल्द ही सत्ता नेपोलियन के हाथ आ गई. और उसने फ्रेंच कॉलोनियों, खासकर अफ्रीका में गुलामी को दोबारा शुरू कर दिया. इसके बाद गुलामी को पूरी तरह ख़त्म होने में लगभग 50 साल का वक्त लगा. 1848 में फ्रांस ने एक क़ानून पास कर गुलामी को हमेशा के लिए गैर कानूनी घोषित कर दिया. इसी के साथ..
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